किलै कि आज ?
कुछ पुराणी खुद दगडी
दगडियूं आज खुदेणु छो
डबली भोर भोरी कि आणि
किलै कि आज इन रुणु छो
खुचिल मां उठे विंळ कबि
में दग्डी अप्डी माया लगेई छे
चुकापट्ट हुनु हुलु हेर वख अब
वा देलि बैठी कैकि बाट हेनि छा
अगास गे किलै ऐ खुदेलि नजरि
आज कैथे यख वख वा खोज्याणि छा
कबलाट कनि लागि यकुली जिकुड़ी
टकटेर वै शौर थे कख ले जाणी छा
चमलाट मचाणू रयूंस्यूं बच्यूं जिबन
छब्लाट आज किलै कैरि जाणू छ्या
अच्छेणु छ्या अब वा अच्छे जाळु जी
दोपरि कु बच्यूं घाम जौ तपराणु छया
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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