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Dr Hari Suman Bisht, famous Novelist-प्रसिद्ध उपन्यासकार डॉ हरिसुमन बिष्ट
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Dosto,
We are sharing here information about Dr Hari Suman Bisht.
हरि सुमन बिष्ट को शैलेश मटियानी स्मृति कथा पुरस्कार
सुप्रसिद्ध उपन्यासकार डॉ. हरिसुमन बिष्ट को मध्य प्रदेश राष्ट्र भाषा प्रचार समिति शैलेश मटियानी स्मृति कथा पुरस्कार से सम्मानित करेगी। इसकी घोषणा करते हुये समिति के मंत्री कैलाद्गा चन्द्र पंत ने बताया कि यह पुरस्कार उन्हें आगामी २५ मार्च को हिन्दी भवन भोपाल में आयोजित बसंत व्याखयानमाला के अवसर पर दिया जायेगा। डॉ. बिष्ट को सम्मानस्वरूप शॉल, श्रीफल, प्रशस्ति पत्र और ग्यारह हजार की राशि भेंट की जाएगी।
उल्लेखनीय है कि डॉ. हरिसुमन बिच्च्ट ने अपनी हिन्दी कहानी और उपन्यासों में जिस तरह से आम आदमी की संवेदनाओं को उकेरा है उससे उनकी कृतियों को कथा साहित्य में विद्गोच्च स्थान मिला है। नोएडा के निठारी कांड की पृच्च्ठभूमि पर पिछले वर्च्च प्रकाद्गिात उनके उपन्यास 'बसेरा' ने बदलते सामाजिक परिवेद्गा और गांवों के द्याहरों में तब्दील होने और उससे उपजने वाली विकृतियों को रखा। डॉ. हरिसुमन ने अपनी कहानियों और उपन्यासों में हर बार नये तरीके से भाच्चा और द्गिाल्प को जीवन्त बनाये रखा है।
डॉ. हरिसुमन बिष्ट की कथा यात्रा समाज और उसके सरोकारों के साथ बढ़ती रही है। उन्होंने अपनी कहानियों के लिये जो व्यापक फलक बनाया, वह आम आदमी के जीवन से लिया है। यही वजह है कि जब वे कहानी या उपन्यास लिखते हैं तो वह आम लोगों को छूती है। १ जनवरी, १९५८ को उत्तराखण्ड के अल्मोड ा जनपद के एक छोटे से गाँव में जन्मे हरिसुमन बिष्ट ने कुमाऊं विद्गवविद्यालय से हिन्दी में एमए करने के बाद डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
डॉ. बिष्ट के 'ममता', 'आसमान झुक रहा है', 'होना पहाड ', 'आछरी माछरी', 'बसेरा', आदि उपन्यासों के अलावा 'सफेद दाग', 'आग और अन्य कहानियाँ', 'मछरंगा', 'बिजुका', तथा 'उत्तराखण्ड की लोक कथायें' नामक कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। देश के अनेक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से सम्मानित हो चुके डॉ. बिष्ट का एक यात्रा-वृतांत 'अंतर्यात्रा' के अतिरिक्त उन्होंने 'अपनी जबान में कुछ कहो' पुस्तक का भी संपादन किया है।
Written by - Charu Tiwari.
BIO-DATA & SHORT LITERARY PROFILE
Name Dr. Harisuman Bisht
Father’s Name Shri R.S. Bisht
Date of Birth & Place 01 January 1958, Kunhil, Bhikyasen,
Dist.- Almora, Uttrakhand (India)
Postal Address A-347, Sector-31,
Noida, U.P.-201301 (India)
Mob. No.-09868961017
E.Mail.id- harisuman_bisht@yahoo.com
Educational M.A.(Hindi)Kumaon University,Nainital
Qualifications Ph.D.-Agra University, Agra.
Works Published :-
NOVELS
1. MAMTA (1980)
2. AASMAN JHUK RAHA HAI (1990) The Novel received literary acclaim from all the quarters.
3. HONA PAHAR (1999)
4. AACHHARI- MACHHARI 2006. (TRANSLATED FROM HINDI TO MARITHI)
5. BASERA (2011).
SHORT STORIES
1. SAFED DAAG (1983).
2. AAG AUR ANYA KAHANIYAN (1987).
3. MACHHARANGA (1995).
4. BIJUKA (2003).
5. UTTARAKHAND KI LOK KATHAYAN (2011).
6. MELE KI MAYA. (2009)
TRAVELOGUE ANTARYATRA 1998 ( TRANSLATED FROM HINDI TO BANGLi)
SCREEN PLAY KHWAB-EK UDATA HUA PARINDA THA
(Hindi Film Rajula)
PLAY 1. DECEMBER 1971 KA EK DIN
(Directed by- Moh. Asharf; No. of Stage ShowThree.)
2. AACHHARI-MACHHARI
(Directed by- G.D. Bhatt/Hem Panth; No. of Stage Show-Two.)
3. LAATA (Directed by- Himmat Singh ; No. of Stage Show-One. )
OTHERS
1. INDRAPRASTH BHARATI QUATARLY HINDI LITERARY MAGZINE (Edited- up to Dec.-2015)
2. DIWANI VINOD
(Translated from Kumauni to Hindi)
3. APNI ZABAN MEIN KUCHH KAHO (Edited 1983)
(Translated from Russian to Hindi)
This Book won The Soviet Land Nehru Award for Literature of the year (1984)
AWARDS/HONOURS
1. Received Aradhakshri Puraskar for literary journalism in the year 1993.
2. Received Dr. Ambedkar Sevashri Samman in the year 1995.
3. Received Akhil Bhartiya Ramvriksh Benippuri Samman in the year 1995 from Hazari Bagh, Jharkhand.
4. Received Rashtriya Hindi Sevi Sahstrabadi Samman in the year 2000.
5. Received Shailesh Matiyani Katha Purskar in the year 2012 from Rashtrabhasha Parchar Samiti Madhya Pradesh.
6. Received Vijay Verma Katha Purskar in the year 2014 from Mumbai (Maharashtra).
7. Received Srijan Gatha.Com Purskar in the year 2015 from Egypt.
8. Also received many awards from Local, social and Literary Field.
9. A number of my Novels and short stories have been translated into various Languages.
10. Some of my creative work (Novels and Short Story Collections) had been topic of a thesis for M.Phil,Ph.D. Degree in the various Universities.
11. Writing regularly on literary topics in almost all the well known Hindi periodicals.
12. Also a broadcaster on the All India Radio-Short Story, Radio Play and Literary Talks.
(Dr. Harisuman Bisht)
M S Mehta
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
harisuman_bisht@yahoo.com
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
हरिसुमन बिष्ट (Harisuman Bisht)
(माताः श्रीमती सरला बिष्ट, पिताः स्व. आर.एस. बिष्ट)
जन्मतिथि : 1 जनवरी 1958
जन्म स्थान : कुन्हील
पैतृक गाँव : कुन्हील जिला : अल्मोड़ा
वैवाहिक स्थिति : विवाहित बच्चे : 1 पुत्र, 1 पुत्री
शिक्षा : पीएच.डी.
प्राथमिक शिक्षा- प्राइमरी पाठशाला कुन्हील (अल्मोड़ा)
जूनियर हाईस्कूल- जू. हाईस्कूल झिमार
हाईस्कूल, इण्टर- मानिला इण्टर कालेज, मानिला
बी.ए.- कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल
एम.ए. (हिन्दी)- कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल
पीएच.डी.- आगरा विश्वविद्यालय
प्रमुख उपलब्धियाँ : 1. तीन उपन्यास, तीन कहानी संग्रह, एक यात्रा संस्मरण, एक संपादित पुस्तक अब तक प्रकाशित
2. 1993 में अराधक सम्मान, 1995 में डॉ. अम्बेडकर सेवा श्री सम्मान, 1995 में रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान, 2000 में हिन्दी सेवी सहस्राब्दी सम्मान प्राप्त।
युवाओं के नाम संदेशः सूचना एवं प्रौद्योगिकी के युग में नवसृजित राज्य उत्तरांचल का चहुमुखी विकास हमारा लक्ष्य। युद्धस्तरीय प्रयास हमारी विजय और माडल राज्य का उदाहरण प्रस्तुत करने में सहायक। युद्ध, जिसे अपनी जमीन पर खड़ा होकर जीता जा सकता है।
विशेषज्ञता : साहित्य, सम्पादन.
Publication -
Novels -
1 Mamta (1980)
2.Aashman Jhuk Raha Hai (1990)
(The Novel received literary acclaim from all the quarters.
3. Hona Pahar (1999)
4. Aachhari - Machhari (2006)
5. Basera (2011)
Short Stories.
1. Safed Daag (1983)
2. Aag Aur Anya Kahaniyan (1987)
3. Machhranga (1995)
4. Bijuka (2003)
5. uttarakhand Ki Lok Kathayan (2011)
Travelogue -
1 . Antaryatra (11998)
Others- Apni Zaban Mein Kuchh Kahao (1983(Edited)
नोट : यह जानकारी श्री चंदन डांगी जी द्वारा लिखित पुस्तक उत्तराखंड की प्रतिभायें (प्रथम संस्करण-2003) से ली गयी है।
Our prime site - http://www.apnauttarakhand.com/harisuman-bisht/
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
पुनर्वास : लेखक - हरिसुमन बिष्ट फिएट उसकी पसंदीदा कार थी । कोई भी नई कार खरीदने की स्थिति में होने के बावजूद वह उसके जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन गई थी । वह उसके मडगार्ड पर बैठकर सोचने लगी कि कालिंदी कुञ्ज कि इस बैराज में उस पर बैठकर ही जायेगी । यदि ऐसा नहीं हुआ तो भी फ़िएट कार को देखकर कोई भी यह अनुमान लगा सकता है की डुबकी लगानेवाली अनामिका ही थी -सुरेश की पत्नी । उसके काले घुंघराले बालों ने उसका चहरा ढक रखा था । हवा का तेज झोंका आता तो थोड़ी देर के लिए चेहरे के नाक -नक्स साफ़ -साफ़ दिख जाते थे। वह बेखबर थी मगर दृढ़ निश्चय के साथ । दरअसल मृत्यु संकट को झेल वह एक ऐसे अपरिचित लोक में जाना चाहती थी , जहाँ जाने के लिए उसे किसी तरह की जानकारी नहीं थी। वह तल्लीन होकर सोच रही थी की उसकी यह यात्रा अपनी निजी यात्रा होगी । ऐसा सोचते हुए उसकी क्रूर हँसी छूट गयी । कोई उसका पीछा कर रहा है , उसे पता ही नहीं चल रहा था । वह घर से निकलकर तेज रफ़्तार SE CHAL RAHI FIAIT सभी जीव निर्जीव KO पीछे छोड़ रही थी , जीवन पीछे छूटता जा रहा था । वह दूर होती जा रही थी नागार्जुन अपार्टमैंट की चारदीवारी से बिना मृत्यु को पाप्त किए । एसा सोचते उसे बहुत सुखद अनुभूति हो rahI थी ।
समय तेजी से बदल रहा था । नाते - रिश्तों की परिभाषा बदल चुकी थी । रहन -सहन के तौर -तरीके एकदम बदल चुके थे । कुछ दिन तक वह सब बदला-बदला सा अच्छा लगा । चाँदनी चौक की तंग गली के जीवन से नागार्जुन अपार्टमैंट की जिन्दगी ने उसे एक अलग दुनिया का AHASAS कराया था । एक खुलापन था । अपार्टमेन्ट की सबसे UNCHI मंजिल की बालकनी से उड़कर कालिंदी कुञ्ज की वादियों में छुप जाने का मन करता था ।
बहरहाल चांदनी चौक KATARE में बने एक KOTARNUMA घर की मधुर स्मर्तियों में, जहाँ उसकी दादी ने उसे वहां चालकाने वाली बैल गाडी , ट्राम के किस्से सुनाये थे वहां , उसने हवा में मार करनेवाले मिग विमानों की गर्जन भी सूनी थी । पेटेंट टैंकों का शोर जब उसने सूना तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ था , और वह सोचती थी की कहाँ से आते होंगे ये टैंक , कितनी बड़ी होगी उनकी दुनिया , अपनी गली में तो एक टैंक भी नहीं घुस घुस दुनिया , अपनी गली में तो एक टैंक भी घुस नहीं पायेगा । अपनी उस तंग गली की चौडाई का अनुमान लगाने का मौका उसे दो राष्ट्रीय त्यौहारों पर मिलता था और उसी दिन मौसम ने साथ दिया तो कोटर से बाहर खिंच लाने का प्रयास करती ताजा हवा उसी दिन सनसनाती हुई चलती महसूस होती थी । वह विकास था देश की , चांदनी चौक की सड़कों का ।किस्मत का जोर कतरा चांदनी चौक ही था । दस वर्ष पहले सुकेश से शादी होने पर सब कुछ जस का तस् था । सिर्फ़ कोटर बदला और कतरे का मुहाना बदला था , बस . अपार्टमेन्ट में आने के कई दिनों तक वह चांदनी चौक की यादों से मुक्त नहीं हो पायी थी । एकदम सन्नाटा बुनता घर । चिल्ला रेग्युलेटर से उड़ उड़ कर आते मच्छरों की भिनभिनाहट उसे डरा - सी देती थी । वह अपना मन बांटने के लिए घर को सजाने में लग जाती थी । दिन का अधिकाँश समय बंद कमरों मेंबीतता था । जहाँ वह अपनी एक अलग दुनिया इजाद करती थी । जिससे बाहरी दुनिया के कोने - कोने से जुड़ने की कोई कमी उसे महसूस न हो । इसलिए नागार्जुन अपार्टमेन्ट के सबसे ऊँची मंजिल पर बने फ्लोर को वह एक सम्पन्न घर बनाने में सफल हो गयी थी । फ्लैट की हर चीज में अपना सबकुछ दिखने लगा उसे। धीरे -धीरे कुछ दिन के बाद उसने बंद कमरे के बाहर यानी ड्राइंग रूम से बालकनी की तरफ़ स्लाइडिंग डोर को खोलकर एक आराम कुर्सी लेकर बैठाना शुरू कर दिया था । नोयदा से दिल्ली की तरफ़ दौड़ती कारें , बस और स्कूटर को देखकर उसका मन भी मचलने लगा था । कभी - कभी सुंदर चमकती कार का पीछा करती उसकी नजर चिल्ला रेग्युलेटर से समाचार अपार्टमेन्ट तक दौड़ती , मगर चौड़ी और अधिक चौड़ी होती जा रही उसकी आंखें स्थिर नहीं रह पाती थीं । तब वह सोचती -सचमुच यह दुनिया बहुत बड़ी है। मन करता है की एक सिरे से चलना शुरू करूँ और जीवन भर चलती रहूँ । काश उसके पास भी एसी ही कार होती तो .... पता नहीं सुकेश के पास बैंके बैलेंस कितना होगा । इस फ्लैट की देनदारी की उतरन चोटि भी होगी या नहीं । रोजमर्रा के खर्चों की यहाँ आने के बाद कोई सीमा नही रही । इससे तो चांदनी चौक का कतरा अच्छा था । एकदम कम खर्चीला - एक रुपये की मिर्च , एक रुपये का धनिया और तमाम दैनिक आवश्यकताओं की चीजें यहाँ की अपेक्षा सस्ती और मुफ्त की लगती हैं । अनामिका जब भी ग्रहस्थी के विषय में सोचती तो उसका मन सुकेश को यह कहने के लिए उत्सुक रहता था - "इस अपार्टमेन्ट की एक भी गैराज एसी नहीं जिसमें बेशकीमती कार खादी न हो । तुम्हें अपनी गैराज खाली नहीं लगती । चाद्न्दानी चौक की बात और थी । सही अर्थों में हम अपने अतीत को चांदनी चौक के कतरे में छोड़ आए हैं । वहां तो टांगें अपनी ठौर भी नही ले पाती थी । अब यहाँ रहने लगे तो माहौल के साथ - साथ चलना होगा । " " मैं भी इस कभी को महसूस कररहा था , कर्ज की परतों को कोई देखता नहीं अनामिका । और न यह कोई पूछेगा की गाडी किस्तों की है या नगद भुगतान पर । गाडी आवश्यक थी , वह हमने ले ली .न होने पर कुछ अजीब - सा लगता था मन में जैसे सबकुछ होते हुए भी कुछ नहीं हो । " अनामिका की कहने भर की देर थी , हफ्ते भर में सुकेश ने एक फिएट कर खरीद ली ।अनामिकाबहुत खुश हुई थी । सुकेश को कतरे की जिन्दगी में कभी गाडी की आवश्यकता ही नहीं महसूस हुई थी । मगर नागार्जुन अपार्टमेन्ट का फ्ल्येत और कार जैसे एक दूसरे के प्रआय बन चुके थे । और माल का थोक थोक व्यापरपर मेंपरेशां होता रहता था । सुकेश का सारा समय आइसक्रीम और कस्टर्ड का थोक व्यापार करने में व्यतीत था । ग्राहकों को माल सप्लाई न कर पर वह बहुत परेशान रहता था एसा अनामिका भी भलीभांती जानती थी । कई बार उसका मन हुआ की सुकेश कोई कहे ,"शाम को जल्दी लौट आया करे । मैं दिन भर अकेली बोर हो जाती हों । कोई बात करने को नहीं मिलता । " अपने विचलित मन को समझाती हुई चांदनी चौक के कतरे में बिताये दिनों में जिन्दगी के संवाद ढूढने लगती थी । भरे -पूरे में रहने के कारण मुहं में फंसे शब्दों ने चेहरे की आक्रति बदल दी । इसलिए तो एक रात धीरे से वह सुकेश के कान में फुसफुसाई थी -" क्यों न हम इस कोटर से कहीं दूर रहने को चले जाएँ । " सचमुच सुकेश को उसका सुझाव अच्छा लगा था । हौले -हौले बोला था -" मुझे कभी -कभी बड़ा आश्चर्य होता है अनामिका की जितनी चोटी चादर लाता रहा हूँ वह ओढ़ते वक्त बड़ी ही लगती है । " अनामिका को जब तब सुकेश के एसे ही शब्द गुदगुदाते रहते थे । घर में य.सी.,रंगीन टी .वी.,टेलीफोन यहाँ तक की ड्राइंग रूम में एक कंप्यूटर के लिए दूसरी बार कहने की जरूरत नहीं पडी थी । सभी साधन सुलभ होने के बावजूद उसको हमेशा एकांत की पीडा रहती थी । जब वह बहूउट दुखी हो जाती थी तो कहती , "इस अपार्टमेन्ट के लोग अजीब हैं । सीढियां चढ़ते उतारते उसने आज तक किसी फ्ल्येत में बातें करते नहीं सूना । उसने कई बार अपने ही फ्लोर में जाकर कुछ देर अपने एकांत को ख़त्म करने के लिए पहल करने की भी सोची, मगर हमेशा जिस फलायेत की तरफ देखा उसके दरवाज बंद ही दीखे ।"
http://harisuman-samvedna.blogspot.in/2008/05/blog-post_2737.html
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
मैं न चाहता युग युग तक
पृथ्वी पर जीना
पर उतना जी लूँ
जितना जीना सुंदर हो
मैं न चाहता जीवनभर
मधुरस ही पीना
पर उतना पी लूँ
जिससे मधुमय अन्तर हो
मानव हूँ मैं सदा मुझे
सुख मिल न सकेगा
पर मेरा दुःख भी
हे प्रभु कटने वाला हो
और मरण जब आवे
टैब मेरी आंखों मैं
अश्रु न हों
मेरे होंठों मैं उजियाली हो।
ये पंक्तियाँ चंद्र कुंवर बर्त्वाल के समग्र जीवन को समझाने के लिया पर्याप्त हैं। ये पंक्तियाँ साधारण नहीं, कविता की संरचना और शब्द प्रयोग में एक गहरी अन्विति और संश्लिष्ट लिया हुई हैं सतही रूप में ये पंक्तियन जीवन विमुख, उदास या हारे हुआ जीवन का एक वर्नातामक चित्रभर हैं.जिसमें एक क्षिप्रा
गति है और रंग है -जो शब्दों के मध्यम से अभिव्यक्त हुआ है। ये इसी मंगलमयी पंक्तियाँ उत्कृष्ट काव्य की चरम अनुभुतियुं से निकली हैं जो विश्व के चेतानामन को आलोकित करने लगाती हैं ।
चंदर कुवर बर्थ्वाल को अपने असाधारण कवि होने का पुरा भंथा-छोटी उम्र मैं ही उन्हें सही साहित्य की परख हो गई थी.वह अपने कवि होने की महत्ता को समझाते थे .aपाने कृतित्व को समझाते थे- शायद अपने कृतित्व का आलोचक उनसे बार दूसरा कोई नहीं हो सकता- इससे भी वह भलीभांति परिचित थे-
मैं मर जाऊंगा पर मेरे
जीवन का आनंद नहीं।
झर जावेंगे पत्रकुसुम तरु
पर मधु-प्राण बसंत नहीं
जीवन मैं संतोष से लबरेज इन ध्वनिपूर्ण पंक्तियों मैं यथार्थ का अद्भुत सौन्दर्य पूरी चमक के साथ अपनी उपस्थिति को दर्ज करता है -"मेरा सब चलना व्यर्थ,हुआ, मैं न कुछ करने मैं समर्थ हुआ"। रोग शएय्या पर दस्तक देती
मृत्यु से उपजी छात्पताहत के मध्य "यम्और मृत्यु पर ढेर सारी कवितायन इस बात की पुष्टि करती हैं की क्रियाशील उर्जा का कीडा उनमें मौजूद था।
"मुझे ज्वाला मैं न डालो मैं न स्वर्ण , सुनार हूँ ।
मत जलाओ , मत जलाओ मैं न स्वर्ण ,सुनार हूँ ।"
मृत्युबोध पर ये पंक्तियाँ कोई असाधारण कवि ही रच सकता है ."यम्"उनकी अन्यतम कविताओं में से है .कुल २८ वसंत और २४ दिन देखे चंद्र कुंवर बर्थ्वाल ने .इतनी कम आयु पी-यानि शताब्दी का एक चौथी हिस्सा.इतनी कम जीवन अवधि में सम्पूर्ण जीवन और उसके रहस्यों को समझना उनकी असधार्ण प्रतिभा को ही प्रदर्शित करती है .वह प्रसाद,पन्त और निराला के समकालीन थे.उस दौर के बेहतरीन लेखकों,कवियों संगत और दोस्ती उन्हें नसीब थी- यह वह दौर था जब छायावाद अपने चरम उत्कर्ष पर था। एक तरह से छायावाद लगभग अपना कार्य निष्पादित कर चुका था । किंतु किसी रचनाकार का अपने अतीत से मुंह मोड़ना इतना आसान नहीं होता -चंद्रकुन्वर भी उससे अलग-थलग नहीं रह सके .उनको छायावाद के प्रमुख स्तम्भों का सानिध्य प्राप्त होने के बावजूद अपने को छायावादी कवि कहलाने से बचते रहने पर भी -वे चाहते तो उसी परम्परा का निर्वाह कर अपना sthan sunishchit कर सकते थे । परन्तु ,उनहोंने इस नहीं किया। दरअसल उन्हीं अपने इक नए रस्ते की तलाश थी । नई उर्वरा जमीं की तलाश थी । प्रगतिवाद और प्रयोगवाद की भूमिका उस समय बनाई जा रही थी उसमें भी अपनी कविता के पल्वित-पुष्पित होने की सम्भावनायें उन्हें ज्यादा नहीं दिख रही थीं । इसीलिए उन्होने छायावाद और प्रगतिवाद का सारतत्व तो ग्रहण किया अवश्य , किंतु अपना दृष्टिकोण उन सबसे अलग रखा ।...........................
प्रस्तुतकर्ता Harisuman Bisht
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