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Bhishma Kukreti:
चीनी कथा )

 

                      एक शराब्यौ  सुपिन

                     

 

                     कथाकार-   ली कुंग-त्सो

 

                   भावानुबाद - भीष्म कुकरेती

 

(मीन चीन की भौत सी पुराणि कथा बंचिन .सब मजदार छन . नवीं सदी मा ली कुंग-त्सो क रचीं  कथा 'एक शराबी सुपिन'

या दक्खिण सूबौ  सूबेदार ' कथा मा इन बात च ज्वा कै बि जगा अर कै बि  मनिख पर फिट ह्व़े जांद ) 


                सुन्यू फेन  एक इन जवान छौ जै तैं शराब पीणौ ढब पोड़ी गे छौ अर पक्को दरयौड्या ह्व़े गे छौ. फेन वैकु असल  नाम नि छौ .

दारु पीण से वैकी दिमागी हालत गडबड / कन्फ्यूजन/घंगतोळ  मा रौंद त वैको  नाम फेन  (बिंडी कन्फ्यूज/बिंडी घंगतोळ ) पोड़ी गे. फेन अळगसी अर अर धन -फुक्वा

ह्व़े गे छयो . ब्व़े बाबू से पंयीं अदा से जादा जायजाद खतम ह्व़े गे छे. हाँ ! अबि तलक  लोकुं  समज मा नि आयो बल  फेन की  जायजाद दारु, पातरूं  (वैश्या )

ख़तम ह्व़े की कै हौरी वजै से जायजाद चम्पत ह्व़े । उन इन बात नी च बल फेन न क्वी हौर कामौ बारा म  नि घडे  ह्वाऊ. ऊ एक दें सरकारी मुलाजिम बि राई अर

राजौ सेना मा रावत/ लेफ्टिनेंट बि ह्व़े गे छौ । पण जैक जोग इ खराब ह्वावन वैको भेमता बि क्या कौरी सकदि! उख सेना मा दारूबाजी अर अपण बड़ों बुल्युं नि मानणो 

अभियोग मा वै तैं सेना की नौकरी से निकाळे गे। बस अब, फेन बेरोजगार अर आजाद मनिख छौ । फेन का दिन शराब पीण, अर अपण दगड़यौं दगड़ जीमण जामण 

व्यतीत होंदा छया . जन जन वैकी पीणे सामर्थ  बढ़ तनि वै अनुपात मा  वैकी जैजाद  बि कम होंदी गे. जब कबि कब्यार फेन सुद मा रौंद थौ त आपन ज्वानि, सेना की रौब्दर्या

नौकरी बारा म सोचदो छौ अर दगड़  मा निरसेक आंसू बि बौगांद छौ, पण जब दिबतौं रसौ  झांझ मा होंद छौ त जम, मजा, मौज मस्ती इ सुजदि छे .

                   फेन अपण बूड खूडुञ कूड़ मा रौंद छौ जो बड़ो शहर से तीन चार मैल दूर छौ.  कूड़ो  चौक क अग्वाड़ी एक बड़ो, हौरु अर भौत पुराणो   'टिड्डी' डाळ छौ .

ये झपनेळु डाळौ छैल तौळ बैठिक फेन अर वैका दगड्या पेंदा छा अर बडी बडी जीमण -जळसा करदा छा.

                 इन डाळ  भौत सालुं तलक जिंदु रौंद. कबि कबि क्या जदातर डाळौ  मोरणो बद बी चालीस पचास साल पैथर जलडों बिटेन फांकी फुटदन अर फिर से डाळ जामी जान्द .

फेन क कूड़ो समणयाक  टिड्डी अ  डाळ बि भौत बुड्या डाळ च अर एका फौन्टा कथगा दूर इना उनां  जयां छन धौं !    हाँ  डाळौ तौळ जमीन पुटुक खंड मंड हुयुं च. जलड़

भैर -भितर हुयां छन, जलड़ो पर गेड़ी पोड़ी छन . गंज मंज जलड़ो ढुड़्यार  क्वारों भितर कुजाण कथगा किस्मौ कीडों ड़्यार/पेथण  ह्वाल धौं .

         एक दिन फेन न इथगा प्यायी बल वो रुण बिसे गे. वैन ब्वाल बल वो ये पुराणो बुड्या  डाळ भावुक ह्व़े ग्याई. छ्वटु मा ये यि डाळ तौळ वैन ख्याल , वैको बुबा न ख्याल अर

वैको ददा न बि ख्याल. अब वो बुड्या  (हालांकि  वैकी उमर तीसेक पेटा मा छे  ) हूण बिसे गे. भावुकता मा फेन किराण बिसे गे .  फेन क दगड्या साऊ अर  तिएन वै तैं

  भितर  ल्ही गेन. ऊँ दुयूं न फेन तैं पलंग मा पड़ाळ दे.

           ऊंन  बोली," जा तू जरा से जा अर फिर तू ठीक ह्व़े जैल.  हम तैबर तलक  घ्वाड़ो तैं   दाणा पाणी दीन्दा अर चौक मा अपण खुट धोंदवां . जैबर तलक तू भलो मैसूस नि करदी

हम इखमी रौला.

            फेन तैं जप  जपाक समसट गैरी निंद ऐ गे. जनि वैका आंखि बुजेन कि वो क्या दिखदो  बल वै तैं लीणो  गुलाबी यूनिफ़ॉर्म मा द्वी भुर्त्या  अयाँ छन. दुयूंन फेन

 तैं गंड गंड सिवा  लगाई अर ब्वाल,"  लोकुस्तानिया क रज़ा  न आपौ कुण बधाई रैबार भ्याज.  आप तैं राजमहल मा आणो न्यूत भिज्युं च

अर दगड़ मा एक रथ बि भिज्युं च. चौड़ चलो.!"

    फटाफट फेन न बढिया टोपी पैर अर बिगरैलो गाउन पैर अर म्वार ऐथर ऐ गे. म्वार ऐथर बाट मा  एक सुन्दर हौरू रथ वैको जग्वाळ मा खड़ो  छौ .

रथ तैं खैंचणौ  चार घ्वाड़ा जुत्यां  छ्या, सात आट राज्महलौ  भुर्त्या रथ मा वैकी जग्वाळ मा छ्या. 

                    फेन को रथ मा बैठण छौ कि रथ जमीन तौळ  वै उड़्यार पुटुक  जाण बिस्याई जु  उड़्यार टिड्डी क डाळौ  जलडु  से बणयूँ छौ. 

वु खौंळयाणु छौ बल रथ जलडु पुटुक बगैर परेशानी छिरणु छौ. अर उड़्यार या ढुड़्यार क दुसर तर्फां बिगरैल-  बिगरैलपाख पख्यड़, नदी,  जंगळ छ्या.

य़ी सब अनोखा छ्या. पाख पख्यड़ो से अगनै  एक सहर की बडी सी दीवाल छे जख बड़ा बड़ा उच्चो कूड़ छ्या. कोटद्वारौ /राजमहलौ गेट समणि लोकुं  पिपड़कर लग्युं छौ.

लोग सड़कौ ढीस या ढीस्वाळ  खड़ा छ्या जाण से राजरथ सडक मा बेदिक्कत अगनै जाणो राओ. लोक कनफणि सि आंख्युं न राजरथ अर राजौ पौण फेन तैं दिखणा छया.

गेट क भितर  लोगुस्तानिया क क्वाठा भितर /राजौ महल छौ .

                     लम्बी भीड़ /दिवालौ भितर  क्वाठा भितर मीलों लम्बू छौ. भितर रस्तों मा लोकुं पिपड़कारो/भीड़  छौ . सबि कामगति अर काम पर लग्यां  छया,

खौंळेणो बात या छे बल सबि साफ़ अर मयळ प्रकृति का छया. सौब एक हैंका तैं रामा रूमी करणा छ्या  पण कुनगस कि क्वी बि जु एक सेकंड से जादा रामा रूमी मा लगाणा छया,

इस लगणु छौ जन बुल्यां दिन छ्वटु ह्वाऊ अर हरेक तैं अपण  काज पूरो करण जरूरी छौ. फेन कु समज मा नि आई कि  लोक क्यांक बान इथगा व्यस्त छन. मजदूर अपण मुंड मा

बड़ा बड़ा गर्रू बुर्या लेकी जाणा छ्या. साफ़ साफ़ कपड़ों मा बिग्रैल , मजबूत , उंचा  कद काठी क सैनिक अपण  ड्यूटी पर लग्यां छया. 

                  गेट पर   वै तैं राजा क एक चाकर लीणो यूं छौ . वो चाकर फेन तैं एक बग्वान भितर ल्हीग जख सिरफ़ अर सिर्फ राजौ मैमान  ठहरदा छ्या.

फेन तैं मेमानखाना अयाँ  पांच मिनट बि नि ह्व़े होला कि  चाकर न रैबार दे बल प्रधान मंत्री   वै तैं मिलणो ऐ गेन .पधान न अर  वैन एक हैंको तैं रामा रूमी कौर.

पधान न बोली बल वो फेन तैं राजा समणि लिजाणो अयूँ   च 

'राजा क मंशा छ कि तेरो ब्यौ वो अपण दुसरी बेटी दगड कारन ."  प्रधान मंत्री न बथाई

दड्या  फेन न जबाब दे , ' साब मी यांक काबिल कख छौं!" पण भितर बिटेन फेन अपण भाग पर पुळयाणो /खुस होणो छौ.

" आखिर, म्यार  भाग जग इ गे ." वैन स्वाच," अब मी लोकुं तै दिखौल बल फेन क्या कौरी सकुद .मी अब अफु तैं राजौ एक इमादार अर कामगति चाकर साबित करलु

अर लोकुं भलाई करलू. अब मेरी जिन्दगी उन बेतरतीब नि राली. अब मी लोखुं तैं दिखौलू कि मी क्यार कौर सकुद !  ". 

               सौ गज दूर  पधान मंत्री  अर वो एक शानदार लाल अर सोना क कुंदा वळ गेट से भितर गेन. भितर गार्ड, सिपै बड़ा सावधानी मा खड़ा छ्या . जब कि अधिकारी बड़ा बढिया कपड़ों मा

राजगृह मा द्वी तरफ खड़ा ह्वेक वैकी आगवानी करणा छ्या. फेन न अबि तलक कबि बि अफु तैं इथगा महत्वपूर्ण  नि देखी छौ.  राजगृह मा पंगत मा लोगूँ दगड वैका दगड्या

चौ अर तिएन बि खड़ा ह्वेक वैको स्वागत करणा छया. फेन न ऊंक तर्फां हथ हिलाई. फेन सुचणो छौ जरुर वैक द्वी दगड्या जळणा होला!

         प्रधान मंत्री फेन तैं लेकी सीडि चढीक एक बड़ो हाल मा आई. फेन न अंथाज  लगै बल इख राजा  लोगूँ तैं दर्शन दींदो ह्वाल. राजा क समणि एक चाकरौ   बुलण पर

फेन न घूंड टेकिक राजा तैं सिवा  लगाई.

" त्यार भग्यान बुबा जी क प्रार्थना पर मीन  त्यारो  ब्यौ अपण दुसरी बेटी याओफैंग  क दगड़ करणो निर्णय ल्हें याल.. हमन निर्णय ल़े याल बल

याओफांग तेरी घर्वळि होली." राजा न ब्वाल. 

    घंगतोळ  मा अर ख़ुशी मा दरोड्या  से कुछ नि बुले ग्याई.

 " ठीक च अब कुछ दिन इख  आराम कौर . ज़रा शहर देखी लेदी. म्यार प्रधान मंत्री त्वे तैं सौब जगा दिखे द्यालों. मी तैं ब्यौअ तयारी करण "" राजा इन बोलीक चली गे.

             कुछ दिन परांत सरा शहर  तैं सजाये गे अर राजकुमारी ब्यौ  दिखणो बान लोगूँ जमघट लग्युं छौ. राजकुमारी बढिया कपड़ों अर जर जेवर मा सजीं छे.

राजकुमारी सेवा मा कुजाण कथगा बिगरैली चेली छै धौं! राजकुमारी बिगरैली, हुस्यार  अर बढिया स्वभाव की छे

            ब्यौअक  रात राजकुमारी न बोलि," मी अपण बुबा जी मंगन बोलीक इख कै बि महल की मांग कौरी सकुद. जु महल चयाणु च बोलि द्याओ. "

   फेन न जबाब मा ब्वाल,'  सची बोलूं त मि त जनम भरो अळगसी छौं .मै तैं राजकाज जन कामों अनुभव बि नी च. अर ना इ मैं तैं राजपाट  चलाणो

क्वी ज्ञान च."

 " ह्यां ! फिकर करणो बात कुछ नी च. मि तुमारि पूरी मदद करलू " राजकुमारी न मयळ ह्वेक ब्वाल  .

ए मेरी ब्व़े! यू त अति  होणु छौ. दरोड्या न मन इ मन मा स्वाच बल राजकुमारी कजे होणो  मतबल राजपाट चलाण. वु रुण चाणु छौ  पण राजकुमारी तैं गलतफहमी नी ह्व़े जाओ क 

डौरन  वैन अपण अंसदरि  रोकि दिने.

            दुसर दिन राजकुमारी न अपण बुबा जी से बात कौर

राजा न ब्वाल, ' म्यार सुचण से मि वै तैं साउथब्लफ  क सूबेदार/ गबर्नर  बणै  दीन्दो. उखाक गबनर तैं बदिन्त्जामी क वजै से बर्खास्त करे गे छौ अर जगा खाली च.

साउथबफ  एक सुन्दर राज्य /जिला च पहाड़ी तौळ , दूण मा बस्युं च, इख जंगळ छन, बड़ा बड़ा  छिंछ्वड़ छन अर जगा रौन्तेली च ."

        राजा न अपण  बेटी सणि अग्वाड़ी बिंगाई, "  इखाक लोक भला छन, नियम धियम का पालन करदारा छन. हाँ  हम से जादा काळ जरूर छन पन सौब बीर अर मेनती छन.

   लोग म्यार जवैं अर बेटी तैं शाशक देखिक खुस होला. वो त्वे से खुश राला. मी जाणदो छौं  लोगुन  खुस होण"

   फेन साउथबफ अ  सूबेदार बणणो  खबर से पुळयाई . वै तैं यांक क्वी चिंता छे बि ना कि वै तैं कखाक सूबेदार  बणाना  छन जब तक राजकुमारी वैक दगड़ च.

"त अब मि साउथबफ अ   सूबेदार  छौं !"  फेन न ब्वाल.

राजकुमारी न ठीक कार," प्रिये! साउथबफ एक बड़ो राज्य च."

" नाम से कुछ फ़रक नि पड़दो.  नी?फेन न बोल.

     हाँ फेन एकी राड़ छे बल वैका दुई दोस्तों चौ अर तिएन तैं वैक दगड सहायक का तौर पर रावन ! ऊंको   साउथबफ जाण से पैल  एक राजकीय बिदै  जीमण

उरये गे अर फिर दुसर दिन राजा खुद ऊँ तैं बिदै  देणो गीत तलक आई. राजकुमारी अर फेन तैं देखणो बाटऔ द्वी तरफ लोकुं भीड़ खड़ी छे. फेन अर राजकुमार राजकीय रथ मा छया अर जनानी

राजकुमारी ससुरास   जाण पर रुणा छया. रथ गाजा बाजा क दगड छ्या. रथ का चारो तरफ  सिपै छ्या.

    जातरा तीन दिन मा ख़तम ह्व़े. साउथबफ  द्वी झणो बडी आदिर खातिर ह्व़े.

      दुयूं दिन एक साल तक बडी खुसी से गुजार. लोक भला, अनुशाशन प्रिय, अर कामगति छया. उख ना त छगटा छया, ना इ उख मंगत्या छया 

भैर वळुञ  लडै नि होंदी थै किलैकी लोक अपण हिफाजत करण मा काबिल छया जो अपण जान जोखिम मा डाळिक दुस्मनू जाण लीण मा

उस्ताद छया. पन इखाक लोक अपण आपस मा कतै  नि लड़दा छया. राजकुमारी बडी सभ्य छे, भलि प्रकृति क छे,  अर मयळि छे 

फेन अळगसी छौ पण राजकुमारी क बुलण से लोगूँ   समणि उदारण पेश करणो खातिर अब सुबेर उठदो छौ  अर अपणो कर्तब्य निभान्दो छौ. हालांकि

वै तैं य़ी सौब पसंद नि छौ पण कौरी बि क्या सकदो छौ! ऊँ वैन दारुक बोतल अपण औफ़िस मा लुकईं त छन छे पण राजकुमारी क डौरन या

वीं तैं दिखाणो बान अफु पर काबू पाण सीखी ग्याई. राजकुमारी अ  प्यार पाणो खातिर वो अनुशाशन मा रौण गिजण बिसे गे.

फेन मन तैं बुझान्दो छौ बल कुछ पाणो बान कुछ खतण पड़द.दुफरा मा वो , राजकुमारी अर वैका दगड्या बौण जांदा छया. राजकुमारी अर

 फेन हथ मा हथ डाळिक  घुमदा छ्या. हाँ, एक उड़्यार पुटुक  बैठिक चौ अर तिएन क दगड दारु बि पे लीन्दो छौ अर उख वै तैं लग की राजकुमारी

क कजे  हूणै  भौत बडी कीमत दीण  पड़नि च .

 " अब एक बि बूँद ना हाँ! ' राजकुमारी वै तैं रोकदी छे.

दुन्या मा सबी चीज इकदगड़ी नि मिलदी इन सोचिक ज्यू मारिक वै तैं उठण पोड़दो छौ. राजकुमारी क ब्यौवार हेलो छौ, चौ अर तिएन

वैका सेक्रेटरी छया. अब जिंदगी मा याँ से जादा क्य चयाणो छौ.   वो सोचदो छौ याँ से जादा जिन्दगी से कुछ नि मंगण चयेंद.

   पण,  एक बर्स भितर एक दिन राजकुमारी तैं ठंड लग अर वा मोरी गे. फेन तैं राजकुमारिक मोरण सहन  नि होई अर वैन फिर से दारु

पीण  शुरू कर डे. वै तैं इथगा सदमा लग बल वैन सुबेदारी छुड़नो सीआरस कर दे. वैन पण बचत से एक पख्यड़ मा राजकुमारिक याद मा एक मकबरा बणायि .

तीन मैना तक मकबरा समणि ओ रुणु राई.

     राजकुमारिक मरणो परांत कुछ बि ठीक नि चौल. ओ दारुक दूकान मा जांद छौ अर रात दिन पीण लगी गे. राज अपण बेटी क मरणो  कारण फेन कुणि कुछ 

बोदू छौ. हालांकि फेन क दुर्ब्यव्हार की खबर राजा म जाणि रौंदी छे अर राजा नि चांदो छौ की फेन की बेज्जती करे जाव.  अब फेन क दरोडया प्रकृति क

वजै से लोक अर वैक दगड्या सनै सनै कौरिक वै तैं छुडण बिसे गेन . अब फेन कंगाल बि ह्व़े  गे छौ अर चौ अर तिएन मंगन उधार मंगण बिसे गे.

    एक दिन वो सरा रात शराबौ  नशा मा बीच  रस्ता मा पड़यूँ  राई . या बात सूणिक राजा न बोल," साला तै निकाळो भैर! राष्ट्र पर वो एक धब्बा च।"

    राणी  न  फेन तैं बुलै आर ब्वाल," राजकुमारी क मरण से तुम भौत दुखी छंवां. बदलौ बान कुछ दिन तुम अपण घौर किलै नि जांदा?"

  फेन न जबाब मा ब्वाल," म्यार ड्यार कख च?"

 राणी न ब्वाल," दुःख मा तुम अपण घौर बि बिसरी गेवां. तुमर गांवक नाम  क्वांगलिंग च. हम द्वी चार चाकर  दगड मा भेजी दींदवां."

  अब फेन तैं अपण  गां क्वांगलिंग याद आयो.

             द्वी चाकर अयाँ छया. हाँ अबैं दें  गेट  ऐथर पुराणो रथ छौ . क्वी बि सिपै दगड मा जाणो नि छौ. इख तलक की क्वी बि मिलणो नि आई.

फेन समजी गे बल इख  राजपाट का दिन  खतम ह्व़े गेन .     

            ड़्यार बौड़द दें   अब वै तैं याद आई की यूँ इ रस्तों से ओ आई छौ. अब ओ अपण घौर ऐ गे छौ . चाकरू न वै तैं एक पलंग मा धकयाई अर

एक चाकर न बोल," ले त्यार ड्यार ऐ गे.'   

   अररर फेन बिज़ी गे. फेन न द्याख बल वैक द्वी दगड्या चौक मा खुट धूणा छया.  घाम अछल्याण वाळ इ छौ.

फेन जोर से चिल्लाई , " हत ! या बि  क्या जिन्दगी च!"

  चौ अर तिएन न पूछ,"  ए भै फेन! टु इथगा चौड़ किलै बिज़ी भै?"

  " क्या इथगा जल्दी? मी त एक पूरी जिन्दगी बितै  क ऐ ग्यों." फेन न ब्वाल.

फेन न दुयूं मा अपण सुपिन बारा मा बताई. फेन न बोल," आफर इखम रथ ऐ छौ. इखम .."

चौ न ब्वाल, " जरुर त्वे पर डाळौ भूत लगे गे।'

फ़ेन् न बोल," जा आबी तुम अपन घौर  जाओ आर भोळ ऐ जैन "

   दुसर दिन फेन न अपण नौकरूं  कुण कुलाड़ी अर गैंती-सब्बळ लेक 'टिड्डी' डाळौ जलड़ कटण अर ढुढयार  खुदणो हुक्म दे. 

नौकरूं  न जब  डाळौ बड़ा बड़ा जलड़ काटी न त पाई की उख एक उड़्यार च. उड़्यार पुटुक छ्वट रूप मा एक बड़ो शहर छौ.

राजमहल माटो रूप मा छौ. अर राजमहल क चरों ओर किरम्वळ रिंगणा छया. एक छत मा द्वी बडी बडी  सिपड़ी बैठीं छे.यूँ सिपड्यो

सुफेद फकर छया अर लाल मुख छौ. अर भौत सा किरम्वळ सिपै रूप मा जगा की रख्वळि करणा छया.

 " ओ ट या च लोकुस्तानिया क राज च अर यो राजा क महल च जख राजा बैठद छौ." फेन न पुळे क ब्वाल. पण दगड म खौंळयाणो बि छौ.। 

उख उड़्यार पुटुक एक रस्ता दखिण ज़िना जाणो छौ अर उख माटो इनी टीला बण्या छन जन साउथबफ छौ. इख क किरम्वळ जरा काळा छ्या .

वैन द्याख की एक जगा मा हरो मौस क टीला छौ , फेन समजी गे की यो इ जंगळ च जख वो अर राजकुमारी घुमणो आंदा छया. सौब उनि छौ जन

वैन सुपिन मा देखी छौ. हाँ सब छ्वटा छ्वटा आकृति मा छ्या. वै   तैं राजकुमारी क याद आई अर दुखी ह्व़े गे, वो जाणदो छौ वो सब सुपिन छौ

 बिज्यूँ  स्थिति या सुपिनो स्थिति मा ह्वाव  प्यार प्यार इ होंद

वैन अपण दगड्यों मा ब्वाल,' मि त समजणो छौ बल यो सौब सुपिन च . पण यू असल  मा  लोकुस्तानिया राज च. सैत  च हम सब  सुपिनेर छंवां"

                 वै दिन बिटेन फेन फेन नि रै गे . वो एक फकीर बणि गे पण हौर बि जादा  पीण लगी गे.अर इनी तीन साल मा मोरी गे.     

Bhishma Kukreti:
गढ़वळि कथा                                   

                           जोगेशुर  जी को  टैक्स

     

                                 भीष्म कुकरेती


( यह कथा 'हिलांस'  (दिसम्बर १९८६) में प्रकाशित हुयी थी. गढवाली गद्य के महान समीक्षक डा. अनिल डबराल की टिप्पणी इस प्रकार है - जोगेसुर जी को टैक्स छोटी सी कहानी है . जो राज्य टैक्स नीति पर प्रकारांत से आक्षेप करती है. भीष्म कुकरेती सटीक ढंग से अपनी बात कहते हैं. इनकी प्रोक्ति बहुत सुगढ़ है . प्रतेक अनुच्छेद अपने लेखक से पूछ सकता है कि उसे क्यों इस्तेमाल किया ग्या है - गढवाली गद्य परम्परा ; इतिहास से वर्तमान - पृष्ठ २४४)



              प्रधान जी अर पंच लोक हौज जिना जाणा छ्या. इ सबि परेशान  छ्या कि चौकीदारी कने करे जाओ. हौज जिना इलै जाणा छ्या बल सै त च चौकीदार कि तनखा बान क्वी ब्यूंत  समज मा ऐ जाओ.  पैल पधान जीक काम भौत होंदा छ्या. जन कि राजा बान या लाट साबौ बान कर वसूली , न्याय निसाब अर भौत सा काम जन  कि जीमणु मा पैल पंगत  मा खाणौ  बैठण, कैक कुड़कि  मा सबसे अग्वाड़ी रौण, दान दक्षिणा ब्वालो या  चंदा दीण मा सबसे पैथर ह्व़े जांण  मुर्दा तै मड़घट लिजांदै सौबसे पैथर रौण आदि.  अबक  प्रधानु पर भारत सरकारो  भरवस नि रै गे त न्याय निसाब का वास्ता कोर्ट खुले गेन.सैत च भारत या उत्तर प्रदेश सरकार तै परधानु क गणत पर बि विश्वास  नि रै होलू त अलग से रेवेन्यु विभाग खुली गेन. अब भैंसी बियाणो  टैक्स या गौड़ भैंसी लैन्दो, औताळी या ब्यौ टैक्स त छ ना कि ग्राम प्रधानम अर पंचो मा क्वी काम ह्वाओ. बस बरा नाम प्रधान-पंच छन. 
 
           पण बुल्दन बल कै  तै कुर्सी द्याओ त कुर्सी अफिक काम अर रौब खुजे लीन्दी. रौब खुणि या कुछ काम नि त  कलोड़ो  काँध मलासणो बान धौं ! प्रधान जी अर पंचु न अफुकुणि  कथगा इ काज उराई दिने. जन कि कैक ब्यौ ह्वाओ या कैक  इख तिरैं बरखी ह्वाओ त प्रधान जी अर पंच गौं मा संजैत  भांडू बान चन्दा  उगाणा रौंदन. अच्काल बादी -बादण अर प्रधान-पंचू मा क्वी भेद नी च . प्रधान अर पंच बि  मंगत्या ह्व़े गेन. भौत दिनों से प्रधान अर पंच परेशान छ्या बल हौज को पतरोळ  की तनखा अर रख रखाव क बान क्या करे जौ. अच्काल उत्तर प्रदेस सरकार हौजो बान कुछ इमदाद त दे दीन्दी पण रख रखाव क बान कुछ नी दीन्दी.

         प्रधान जी अर पंचु न लोगूँ कुण ब्वाल हर मैना हौज क बान इकन्नी द्याओ त लोग रूसे गेन बल यांकी बणायि तुम लोकु तै पंच- परमेसुर ? सरा गां वळ प्रधान अर पंचो से इथगा खफा ह्वेन कि एक बरखी मा यूँ तै सबसे पैथर खाण क बिठाळे गे. हौज टैक्स  दीणो क्वी तैयार नि छयो.

            अब यि लोक हौज जिना झाड़ा जाणा छ्या जां से झाड़ा करद दै हौजौ  पतरोळो  अर रख रखाव बान तनखा कखन लये जाव पर विचार विमर्श ह्व़े साको. इन बुदन बल कै चीज पर टक्क लगाण ह्वाओ या फोकस करण ह्वाओ त वा बात झाड़ा करद दै स्वाचो. ये इ मकसद से सबि दुफरा मा झाडा फिराग जाणा छ्या.

   अर इथगा मा दूर बिटेन जोगेश्वर उर्फ़ जोगेसुर जीक घ्वाडा दिखेन . जब बिटेन गौं मा मनि ऑर्डरो आण बढ़ जोगेसुर जीक घ्वाडा आराम का वास्ता तरसेण मिसे गेन. मनोड्यर क  वजै से  अब लोकुं तै मोल खाण मा विटामिन अर हारमोंस दिखेण  बिसे गे. पैल कहावत छे बल - हमन छै मैना मा इथगा ढाकर खाई अब त मन्योडरी इकोनोमी मा कहावत ह्व़े ग्याई -हमन एकी मैना मा इथगा घ्वाडा खैन.   

 प्रधान जीन पंचमु  पंच तै पूछ," यो पंचमु ! गां मा जोगेश्वरक  कुल मिलैक कथगा घाणि घ्वाड़ो आन्दन  भै?"

पंचमु न बात समजद गणत कार अर ब्वाल," जोगेसुर काका  मा तीन घ्वाड़ा छन. द्वी दिन दुगड्ड जाण. एक दिन माल  भरण मा अर  द्वी दिन दुगड्ड बिटेन गाँ आण मा . त मैना मा पांच-छै  घाणि ह्व़े इ जांद अर घ्वाड़ा छन तीन  याने कि पन्दरा से अठरा  घाणि  ह्व़े जान्दन. "

प्रधान जीन प्रथमा पंच से पूछ," ये प्रथमा ! पतरोळ की तनखा कथगा हूंद?"

प्रथमा न ब्वाल,' इ सात रूप्या ."

प्रधान जी न ब्वाल," जु जोगेसुर बिटेन  फी घाणि पर फी घ्वाड़ा आट अन पंचैत कर वसूले जाओ त . ...?"

प्यारा पंच न ब्वाल," हूं त इन मा पंचैत की आमद  कमसे कम आठ  से दस रूप्या त ह्वेई जाली ."

प्रधान जीन ब्वाल," त रै  परकास तू समजाण मा हुस्यार छे. जोगेसुर तै ठीक  से समजा कि आज से हर घ्वाड़ा पर  एक घाणि क आठ आना दीण पोड़ल "

सब्यूँ न हामी भौर

जब जोगेसुर जी घ्वाडा समेत आई त वैन सब्यूँ तै घ्वाडा छाप बीड़ी पिलाई

फिर परकास न जोगेसुर जीक कुणि ब्वाल,' ये ब्वाडा पंचैत को हुकुम च बल आज से त्वे तै फी घाणि, फी घ्वाडा आठ पंचैत टैक्स दीण पोड़ल "

जोगेसुर जी सटसटा क एक लद्यूं घवाड़ा मा चौड़ी गे अर ब्वाल,' ठीक च ! भौत बढिया. अबि से म्यार रेट बि  फी घवाड़ा पाँच रूप्या जगा सात रूप्या ह्व़े गेन. ये परथमा आज त्यार बि लदान च त आज त्वे तै पांचै  जगा  सात रूप्या दीण पोड़ल हाँ !!!"

प्रधान जीन  ब्वाल, ' पण यो त बेमानी च. हमन त आठ आना टैक्स की बात कौर ..अर...तू द्वी  रूप्या बढ़ाणि छे?'

जोगेसुर जीन ब्वाल,' मी घुडैत छौं याने ब्यापारी छौं .त हर अवसर कुअवसर पर म्यार काम मुनाफ़ा कमाण च. पंचैत टैक्स आण से मी बि कुछ जादा इ कमै ल्योलू."

अर जोगेसुर घुडैत खुसी खुसी गौं तरफ  बढ़ी गे.

 

.Copyright@ Bhishma Kukreti 4/6/2012 

Bhishma Kukreti:
Kangu Abt: A Garhwali Story about Social Insults to Poor

(Review of a Garhwali Story collection ‘Joni par Chhapu Kilai? ‘  (1967) written by Mohan Lal Negi )
                           Bhishma Kukreti

          ‘Kangu Abt ‘story from ‘Joni par Chhapu Kilai? ‘collection is about nobody likes to become the relative of a poor man or poor family. If the circumstance becomes that the poor man becomes the relative of a rich man the rich man insults to the poor man.  Sulochana is the lame daughter of Kafu Rawat. Kafu is a rich man. However, he had to marry Sulochana to a poor man Mangal. Kafu does not provide regard to Mangal. However, when Kafu becomes seriously ill, except Mangal nobody looks after  Kafu.  Kafu understands the importance of a kind-hearted human being.
  The storyteller with the help of narration and dialogues create images of poor men insulted in the society.

Copyright@ Bhishma Kukreti 5/12/2012

Bhishma Kukreti:
Dolapalki: A Garhwali Story about Struggle of Shilpkar /Scheduled caste in Garhwal for their Rights

(Review on ‘Joni par Chhapu Kilai’ (1967) a Garhwali Story Collection by Mohan Lal Negi)

                                Review by:  Bhishma Kukreti

   As per the caste discrimination custom, Shilpkars /scheduled caste community was not allowed to have Janeu and they were not supposed to take Var or Byoli  (Groom-Bride ) on Dola-Palki (closed Litter -Palanquin) in the village area and near the temple. While the upper caste community had full rights.  Ary samaj movement and Freedom movement brought awareness among Shilpkars or scheduled cast community for their equal rights or human rights a putting Janeu or taking groom-bride on palanquin freely. Kalu a Shilpkar initiated Dola-palki and there was tension between Shilpkar and the upper caste community.  Hosuyaru Negi an upper caste thinker made understand the upper caste people and threatened them for calling the police force.
  The story is about awareness purpose and there are speeches that make the story flow slow. The speech is also the agent of dullness in the story.
  The story is based on true incident that took place all over Garhwal.  The story is called a realistic story 9even speeches tally with speeches of many Ary Samaji social workers). The story is capable in showing the social development phase and tension between two communities.

 Copyright @ Bhishma Kukreti 6/6/2012

Bhishma Kukreti:
                                  गढ़वाळी ठाठ  -१


                          कथाकार - स्व सदा नन्द कुकरेती [/color]



                 (गढवाली की प्रथम आधुनिक कहानी का कुछ भाग)


[ विशाल कीर्ति का ऑगस्ट, सितेम्बर अक्तूबर १९१३ के अंक मेरे पास है जिसमे 'गढवाली ठाठ ' का एक भाग छपा है इस अंक से लगता है की यह कहानी बहुत लम्बी रही होगी . इस अंक से पहले का भाग स्व रमा प्रसाद घिल्डियाल के पास था . यंहा उस भाग को प्रकाशित किया जा रहा है ]

     ----- गतांक से आगे --

गणेशु गुन्दरु कि परसे व ळी बात सुणिक तै चुप्प ह्वेगे पर गुन्दरू का मुख पर दीन भाव से देखदु ही रहणु च. गुदरू भी गुड़ कि डळी  चाटदो ही जाणू छ. गणेशु करयान नी रै सके यो अंत मा फिर बोली उठे . मी त्वे तनि  पकोडि   दय्लो तब हाँ .
 
                   गुन्दरू बि लालच मा ऐगे . बोलण  लगे अच्छा लौट .

          एक सलाह की बात ह्व़े गे. द्विये एक कुळेञठि पर बैठ्या छन. द्वियों  का नाक बिटे सिंगाणा कि धारा बगणा छन अपर द्विये मिली जुलिक गुद-पकोड़ी खाई रइन .
 
                  इतना भी भौत छ कि हम आपस मा बाँटण चुटण की बात भी तीन ही बरस का भीतर सीखी लेंदा. जन-जन हम बड़ा होंदा तनि-तनि ह्मुमा कुछ हौर बात घुसी जान्दन. तब हम बांटिक खाणू  सर्वथा भूली जांदवां . भला होओ गुन्द्रू या गणेशु की द्वियूँ मा ण एक पकोड़ी या गुड़ कि डळी   ठगीकतै भीतर णि भागि गये.

                    गुन्दरु का नाक बिटे सिंगाणा  की धारि  छोड़िक वे को मुख वे की झुगुली इत्यादि सब मैली छन. गणेशु की सिर्फ  सिंगाणा की धारी छ पर हौरि चीज सब साफ़ छन. वां को कारण गुन्दरू की मा अळसटि, चळखट अर लमडेर छ. भितर देखा दीं बोलेंद यख बाखरा रहंदा होला . म्याळ  खणेक धुळपट होयुं छ. भितर तक की क्वी चीज इथै  क्वी उथें. सारा भितर तब मार भिचर  -पिचर होई रये. अपणी अपणी जगह पर क्वी चीज नी छ.  भांडा कूंडा ठोकरयुं मा लमडणा रंदन.   पाणी को भांडो, कोतलो  देखा दों  . धूळ की क्या गद्दी जमी छ यों का भितर को पाणी पीणो को मन नी चांदो. नाज पाणी की खतफ़ोळ. एक माणी कू निकाळन  त द्वी  माणी खतेय जान्दन. घर जु कै डोम डोकळा भीख भिखलोई सणि देणा कू बोला त हरे राम !  याँ की नाम नी , कखी दूर बिटे कुई भिखलोई आन्द देख याले त टप्प द्वारों पर ताळी ठोकीकतै कखी चली जाणो .

         गणेशु की मा स्वाळा  बणोंन्द जो दाड़ी मुड़े कुरमुर करन. स्वाळा वो जो खाणा वाळो  द्वी स्वाळा मा छक ह्व़े जांद. वा इनि -कनि चीज बणाइ जाणद,  फिर इन नी  कि पकौंण  मा द्वी घड़ी से भी जादा अबेर होई जाव. सब चीज चटपट उबरे ही लेवा . अर फिर साफ़ . कखिम जळयूँ   भळयूँ नी. आया गया को  सौसत्कार करनो गणेशु मा अपणो परम सौभाग्य समझद. भीख भिखलोई का वास्ता कानू अच्छो प्रबंध छ .कर्युं रहंद . छै सात हांडी रसोईघर मा धरीं रंदान . आटो, चौंळ, दाळ, लोण, मसालों जो कुछ चीज सांझ सुबेरा का  स्वाळा पकौंण  कु औंद , वख मदे एक एक चुटकी यूँ हाँडियूँ  मा धरि दिया  जांद. 

    गणेशु की मा : यो वर्ष रोज को त्यौहार . थोड़ी जरा भुड़ी पकोड़ी चएंदी छन. द्वी पकोड़ी अर द्वी स्वाळा गुन्दरू कि मा क हाथ मा भी धरनी छ.

  लेवा दिदि द्वी भूडा चाखदाई.

    गुन्दरू की मा: गिच्ची आँखा मटकाई केक हाथ पसारिक तें ' द  भग्यानी ? तिन त करि दिने कन्ने वे लोळा गयां मयां कोल्या मु मेरी भी छई बोल्दी नाळेक तिलु देई . पर रांड होई वैकी त वक्त  पर क्वी चीज कभी नी देंदो . एक कमोळा  पर द्वि माणी तेल इन्ने क्बारि वार त्योहार कु तै मेरि भि  चहे बचै पर क्या करे। बोल्दो, एक दिन साग भुटण कू निकाळनू छयो कि लस्स छूटे कमोळि   हाथ परन   और चकनाचूर . भूलि ज़रा रयुं छ त अबारे काम चलाणुक   देई आल दुं ' गणेशु की मा , दिदि जी देखदो जु रयुं होलो त . र्रू तार करीकतै  निकळी गये. ल्या दिदि जी इतने छ रयुं . पुरो होवो नि होवो यांकी देव जाण   

 [ यह भाग श्री रमा प्रसाद जी के संग्रह का है. रमा प्रसाद जी के सुपुत्र श्री अनिल घिल्डियाल ने श्री अनिल डबराल को दिया. यह कथा भाग श्री अनिल डबराल की पुस्तक 'गढ़वाली गद्य परमपरा ;इतिहास से वर्तमान ' के ४३२-४३३ पृष्ठों में प्रकाशित है. ]

कथा का शेष भाग जो मेरे पास है वह आगे क्रमश: ......  

 सर्वाधिकार- श्री शकला  नन्द कुकरेती (श्री सदानंद जी के पोते ) -ग्राम ग्वील, मल्ला ढांगू , पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड , भारत.

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