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Exclusive Garhwali Language Stories -विशिष्ठ गढ़वाली कथाये!

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Bhishma Kukreti:
Am ki Dani:  A Garhwali Story portraying Child Psychology about Desire

(Review of ‘Am ki Dani’ (1967) a Child Psychology based story by Mohan Lal Negi)

                                                      Bhishma Kukreti

            ‘Am ki Dani ‘is very interesting and one of the modern best stories in Garhwali languages. This is one of the finest Garhwali stories depicting child psychology about their desires. Garhwali story lovers would know that Sada Nand Kukreti also portrayed child psychology and children's desires in Garhwali’s first modern story ‘Garhwali Thath’ (1913).
             Kirpal a child comes to the court with his father who does not have hands. There, he sees a child sucking mango. His desire for mango becomes very sharp. Kirpal wanted mango very badly. Children have thousands of desires but they don’t have resources.  Kirpal requests many times to his father for money to buy a mango. Adults who passed with the same situation do not understand the burning desires of children. His father gives him money to buy a mango. Kirpal sucked the mango so much that the inner nut started feeling pain.
   The story is successful in portraying children's desires, frustration by not fulfilling the desires, and the extreme satisfaction of children by getting the desired objects. The language is simple for such a complex subject. The story theme has less opportunity for incidents happening but the storyteller Mohan Lal Negi creates a story as if the incidents were happening very fast.
  ‘Am ki Dani’ is one of the finest examples of child psychology in Garhwali fiction.

Copyright @ Bhishma Kukreti 7/6/2012

Bhishma Kukreti:
                                गढ़वाळी ठाठ -१
 

 

                   कथाकार - स्व सदा नन्द कुकरेती


 

 

(गढवाली की प्रथम आधुनिक कहानी का कुछ भाग)
 

 

[ विशाल कीर्ति का ऑगस्ट, सितेम्बर अक्तूबर १९१३ के अंक मेरे पास है जिसमे 'गढवाली ठाठ ' का एक भाग छपा है इस अंक से लगता है की यह कहानी बहुत लम्बी रही होगी . इस अंक से पहले का भाग स्व रमा प्रसाद घिल्डियाल के पास था . यंहा उस भाग को प्रकाशित किया जा रहा है ]
 

----- गतांक से आगे --

 

 

गणेशु गुन्दरु कि परसे व ळी बात सुणिक तै चुप्प ह्वेगे पर गुन्दरू का मुख पर दीन भाव से देखदु ही रहणु च. गुदरू भी गुड़ कि डळी चाटदो ही जाणू छ. गणेशु करयान नी रै सके यो अंत मा फिर बोली उठे . मी त्वे तनि पकोडि दय्लो तब हाँ .

गुन्दरू बि लालच मा ऐगे . बोलण लगे अच्छा लौट .

एक सलाह की बात ह्व़े गे. द्विये एक कुळेञठि पर बैठ्या छन. द्वियों का नाक बिटे सिंगाणा कि धारा बगणा छन अपर द्विये मिली जुलिक गुद-पकोड़ी खाई रइन .

इतना भी भौत छ कि हम आपस मा बाँटण चुटण की बात भी तीन ही बरस का भीतर सीखी लेंदा. जन-जन हम बड़ा होंदा तनि-तनि ह्मुमा कुछ हौर बात घुसी जान्दन. तब हम बांटिक खाणू सर्वथा भूली जांदवां . भला होओ गुन्द्रू या गणेशु की द्वियूँ मा ण एक पकोड़ी या गुड़ कि डळी ठगीकतै भीतर णि भागि गये.

गुन्दरु का नाक बिटे सिंगाणा की धारि छोड़िक वे को मुख वे की झुगुली इत्यादि सब मैली छन. गणेशु की सिर्फ सिंगाणा की धारी छ पर हौरि चीज सब साफ़ छन. वां को कारण गुन्दरू की मा अळसटि, चळखट अर लमडेर छ. भितर देखा दीं बोलेंद यख बाखरा रहंदा होला . म्याळ खणेक धुळपट होयुं छ. भितर तक की क्वी चीज इथै क्वी उथें. सारा भितर तब मार भिचर -पिचर होई रये. अपणी अपणी जगह पर क्वी चीज नी छ. भांडा कूंडा ठोकरयुं मा लमडणा रंदन. पाणी को भांडो, कोतलो देखा दों . धूळ की क्या गद्दी जमी छ यों का भितर को पाणी पीणो को मन नी चांदो. नाज पाणी की खतफ़ोळ. एक माणी कू निकाळन त द्वी माणी खतेय जान्दन. घर जु कै डोम डोकळा भीख भिखलोई सणि देणा कू बोला त हरे राम ! याँ की नाम नी , कखी दूर बिटे कुई भिखलोई आन्द देख याले त टप्प द्वारों पर ताळी ठोकीकतै कखी चली जाणो .

गणेशु की मा स्वाळा बणोंन्द जो दाड़ी मुड़े कुरमुर करन. स्वाळा वो जो खाणा वाळो द्वी स्वाळा मा छक ह्व़े जांद. वा इनि -कनि चीज बणाइ जाणद, फिर इन नी कि पकौंण मा द्वी घड़ी से भी जादा अबेर होई जाव. सब चीज चटपट उबरे ही लेवा . अर फिर साफ़ . कखिम जळयूँ भळयूँ नी. आया गया को सौसत्कार करनो गणेशु मा अपणो परम सौभाग्य समझद. भीख भिखलोई का वास्ता कानू अच्छो प्रबंध छ .कर्युं रहंद . छै सात हांडी रसोईघर मा धरीं रंदान . आटो, चौंळ, दाळ, लोण, मसालों जो कुछ चीज सांझ सुबेरा का स्वाळा पकौंण कु औंद , वख मदे एक एक चुटकी यूँ हाँडियूँ मा धरि दिया जांद.

गणेशु की मा : यो वर्ष रोज को त्यौहार . थोड़ी जरा भुड़ी पकोड़ी चएंदी छन. द्वी पकोड़ी अर द्वी स्वाळा गुन्दरू कि मा क हाथ मा भी धरनी छ.

लेवा दिदि द्वी भूडा चाखदाई.

गुन्दरू की मा: गिच्ची आँखा मटकाई केक हाथ पसारिक तें ' द भग्यानी ? तिन त करि दिने कन्ने वे लोळा गयां मयां कोल्या मु मेरी भी छई बोल्दी नाळेक तिलु देई . पर रांड होई वैकी त वक्त पर क्वी चीज कभी नी देंदो . एक कमोळा पर द्वि माणी तेल इन्ने क्बारि वार त्योहार कु तै मेरि भि चहे बचै पर क्या करे। बोल्दो, एक दिन साग भुटण कू निकाळनू छयो कि लस्स छूटे कमोळि हाथ परन और चकनाचूर . भूलि ज़रा रयुं छ त अबारे काम चलाणुक देई आल दुं ' गणेशु की मा , दिदि जी देखदो जु रयुं होलो त . र्रू तार करीकतै निकळी गये. ल्या दिदि जी इतने छ रयुं . पुरो होवो नि होवो यांकी देव जाण

 

 

 [ यह भाग श्री रमा प्रसाद जी के संग्रह का है. रमा प्रसाद जी के सुपुत्र श्री अनिल घिल्डियाल ने श्री अनिल डबराल को दिया. यह कथा भाग श्री अनिल डबराल की पुस्तक 'गढ़वाली गद्य परमपरा ;इतिहास से वर्तमान ' के ४३२-४३३ पृष्ठों में प्रकाशित है. ]

कथा का शेष भाग जो मेरे पास है वह आगे क्रमश: ......

                                  गढ़वाळी  ठाठ - २
 

 

                 ( यह कथा भाग विशाल कीर्ति के भाग -१, अगस्त , सितम्बर, अक्टूबर १९१३ की संख्या स-८-९ में ४६ पृष्ठ से शुरू हो पृष्ठ ५० तक है और उसकी प्रतिलिपि मेरे पास है . असली प्रति इस सदी के महान चित्रकार श्री बी. मोहन नेगी जी पौड़ी के पास है . मैंने यह प्रति ठाणे में कौथिक के समय देखी थी. मै श्री नेगी जी को कोटि कोटि धनयवाद  )  
 

                            गढ़वाळी ठाठ .

                       (गतसंख्या से अगाडी )

  कैकी पकोड़ी , कैकी सकोड़ी, वोर वख दांत ही टूटी गै छ्या . विचारी कि दाल दुदलि  करीन इ छयी. बस बिना तेल वा दाल छास्स  तव्वा मा उनने दमे अर वी पकोड़ा बणि गैने . घडेक तक गुन्दरू का बाबू की जाग मा बैठीं रये. (वैको बाबु हळ जोत लेणकु जायुं छयो. ) कि विचारी सणि जाग्दो ऊंग लगणि बैठी गे. कैको झगड़ा न रगडा अपणा  तुपुक खांदा ही उब्बो, आनंद ते फसोरिक तै सगे. गुन्दरू भी गुड़  कि ड़ळी  लस्कौन्द- लस्कौन्द पहिले ही से गई छई . झगड़ा मीत्यो .

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                   गणेशु कौनका भितर स्वाल़ा  पकोडौं की खूब खदर बदर मचीं छ. एक तरफ मिट्ठो भात (खुश्का ) भी उड़णु  छ. खनारा भी खूब जुड्या  छन. लोखुं की खूब घपल-चौदस मचीं क्स्ह्ह. खनारों की एक पंगत (पंक्ति) उठणी दुसरी बैठणीछ. अभी हौरी कतना बैठदान -उठदान कुछ मालुम नी.  कारी-बारी लोग देण दाण  मा जुटयां छन. खनारा बाजि बक्तमु  कारीबार्युं सणि बड़ा ही तंग करी देंदान . एक कोणा बिटे एक बोलद, " भाई ! दाल , दाळ ." तवारि  हैंका कोणा बिटे हैंका बोलद , भुज्जे भुज्जी" हैंको हौरी ही नारा गोरा दिखौन्द . एक- बोल्द- आलो भगळी . का, हाँ- दग्ण्यो की बात छन -तू जाणी. दुसरो बोलद- आलो घना का , अपणो देंदारो अंध्यारी कोणी -जरा रैतो त दे. तीसरो बोलद - हाँ बै हाँ , देखलो त्वे . तवारि एक तरफ फैलू जी भी अन्धेरा कोणा तव जपकी जुपकी लगौणू  छ . चळक- बळक , खसर -बसर एमु खोब औंदन. यो, गौं मा महाचोर छ. यो निगाह को भी टेणो छ. ये कि वाच भी लटपटी छ. लोकहु को बोल छ कि ये टेणा मेंणा  कभी भला नि होंदा. अर सची , यो टेणो भी जाज -काज मा चोरी कौरिक फुकान मचौन्द . एको काम ही इ छ. रात गौं मा लोकहु की बुसड़े उजाडिक तै भी छुट्टी  करद . इबारे स्वाळि पकोड्यू की ही राशि  मा बैठ्यु छ. सुर एक सुर द्वी इन्नी कौरिक तै येन अपणी चोरकीसि  डट्ट बणाइ दिने.चोरकीसि पर एकी आग लगली. इवारे कि दफै त लिंगल दा की नजर  पडिगे. पर यो भी इनने ही चोर छ. अर खांदो छ  चार पथा को ! लिंगल न पूछे   क्या छ ल़ो फैळू होणू . फैळू आंखा टेणा करिक तै  बोल्द- औडक्या  क्याट -अड टेड़ो क्याट  होनू ? लिंगळ डा इतना मा चुप्प ह्व़े गे. करण वख्मु तवारी मूसा पधान जी ऐगैने . इतना ही होयो. एक कन्डो स्वाळा पकोडौ  गौं तव भी बांटेइ   गये. किलै नि हो - नत्थू  सणि चौकुलो दिये कि कुछ ठट्टा. चार स्वाळे अर द्वी पकोड़ी हमारा हाथ भी लगिने.

                   अहा ! गृहस्थाश्रम होव त इन्ने ही हो जख सरो घर भरपूर छ. सदा चार घड़ी चौसठ पहर आनंद ही आनन्द देखण मा आन्द . अच्छी ही अच्छी बात सुणन मा औंदन. अपणा पल्ला थोड़ा भौत काळा  अल्षर भी छन. सुबुद्धि छ -सुविचार छ. संध्या-छ -पूजा पाठ छ. ज्ञान छ -ध्यान छ. दान छ - पुन्य छ. जथै देखा संतोष और शान्ति ही बिराजमान छन. त बोला वख लक्ष्मी बुलौणकु  न्यूतो (निमंत्रण पत्र) सि क्या भेजणो पडद.

          भैयुं ! और दीदि भुल्युं ! यदि तुम अच्छा गृहस्थ होण कि इच्छा  रख्दाई त सत्संग और सत्कर्म करा. क्या करणाये वे गृहस्थ को जख दिन रात 'तेरी' 'मेरी' को ही किकलाट   मच्युं रहंद. रोज मर्रा दंत बजाई होणि रहंद. दंत कख छै भली. जख दीन खाई -खाणि नी रात सेई  - सीणि नी. एक बोल्द 'तिन खाये' हैंको बोलद 'तिन खाये'. अंत मा देखा त कैन भी नी खायो. सभी हाथ झादिक तै चली गैने अर जाला. नाहक  को जळवाडो. नाहक की ठीस रीस सखी मरोड़ . इना जना कना गृहस्थाश्रम ते त अपनों चुप ही भलो. अलग हो भलो. फ़कीर ही होणो भलो. पर फ़कीर कना? एक त तुमारो मतलब उना फकीरू ते होलो जो गृहस्थुं  ते भी मीलू अगाड़ी छन. गृहस्थुं का साल द्वी साल मा एक बच्चा होए त यून्का खासा चार गणि लेवा. मार घिघ्याघ्याळी  . शिव ! शिव ! फकीर होण ते   मतलब इन फ़कीर ते नी. छि: छी: इना फकीरू का नौ त ओ: वी उड़ ताले 'जु' अर कुंदन 'त्ता' . देश को आधा नाश त यूँ फकीरू नै कारे.  खैर , इना फकीरू बातू की चर्चा फिर कभी रहेली.

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" नत्थू  द्यू बाळन को समय ह्वैगे , दिया बाळ . गणेशु  कख छ, तै सणि भि यखम बिठाळ  . वै गुन्दरू सणि भि  धाई  (ध =ऐ ) लगौ. आवा, सब यखमु   बैठा. आखर बोला." इतना बोलीक नत्थू या गणेशु को बाबू संध्या -पूजा तै निपटीक छाजा मा बैठिगे . नत्थू न दियो उओ बाळिक सब तर्जेकार कर्याले । अपना छोटा भुला गणेशु तै  ल्हैगे .गुन्दरू सणि   बुलाणु गयो.  पर, उ देखेव त अगास (आकाश) टूरो करिकतै नांगा मेंळा मा सेयुं छ . " गुन्दरू ! गुन्दरू! कख छै बाच. हाथन झकौळन लगे छयो कि मार भुण भुण भुण मखों क भिमणाट . नत्थू न समजे  या क्या बला आये. घडेक ये तमाशा देखिक छिछ्की रैगे . उबारी इनु समझेय बोलेंद कखी म्वारो को जळोटो  खाली ह्व़े होलो. जबारी  गुन्दरू सेण पड़ी टो वैको गिच्चो गुड़न लाप्तायुं छयो. याँ टे वैका गिच्चा पर दोणु माखा चिपट्याँ छ्या. ओ लोळा माखा झामट पड़न पर भी नि उड्या. ऊँ समजे इन भर्युं घर (गुन्दरू गिच्च) हम सणि दैव ही छप्पर फाड़ीकतै देगी. होय न .नत्थू वै सणि फिर झकोळन लग्यो. पर हे राम ! हजार कळा करिने -गुन्दरू खड़ो नि करिसक्यो  उल्टी गाळी जि देण लग्ये . ' ऐं बे चुचला (ससुरा) ,हमचनी ( हमसणि )  चेनिडे  (सेणि दे) " इत्यादि. वहां भितर , चुल्खान्दा उब्बो गुन्दरू कि मा भी पड़ी  क्या, सेंइ छ पर ड़ बकी मजो  (दैव की भजो) कुछ खबर ही नी कि भित्रतब  को यो अर क्या होणु छ. या ह्व़े लक्ष्मी -गृह लक्ष्मी . नत्थू सणि वक्हम बिटे लाचार उठणो  ही सूझ. चल्दो ही छयो कि इतनामा वखमु प्याच करिकतैं वैका खुट्टा मूडे ज्या पतडेई होव. लगे खुट्टा का छटा पर लसलसी . देख्दो क्या छ कि माखा अर गुड़ कि रबड़ी  बणि छे. ! भूलों! या वो गुड़ की डळी छ तुमन कभी गुन्दरू का हाथ पर देखी होलो. जै डळीन  गणेशु भी ललचाई छयो अर तुम भी तरसे ह्वेल्या. वा डळी माखौं न इनी भरी छई कि  बोलेंद रीठा दाणि रही होली. वीं डळी का ही दगडे यूँ मखों को भी कबडचूर होए. नत्थू भी छी: छी: छीही करिकतैं भैर भागे .  वैन वख जो कुछ होई छयो, सारी कथा अपणा बाबुमु सुणाइ . दैणी तरफ नत्थू बै तरफ गणेशु थालमाल करिकतैं बैठी गैने अर बीच मा ऊंको बाबू . बोल बेटा नत्थू - अबे हाथ जोड़ --

" सरस्वति सरस्वति तू  जाग  जैणी , चढ़े हस्त लटकावे बेणी .

तेरे चुटडे   लग द्वी चार . बिद्या मागा उब्बे बार

खेती न करूँ . खणज न  जाऊं, बिद्या के घर बैठे खाऊं .

आई , माई जोगेश्वरी , बिद्या दे तू परमेश्वरी ."

बोल बे गणेश , तू भी बोल -- 

" बदरी बिशाल भेजदे रसाल ,

बद्दल से रोटी , दरिया से दाळ

खावें तेरे बाल गोपाल .'

गणेश न भी अपणी तोतली बाणी ते इतना ही बोले सकी छयो कि इतनामा, --- 

गणेशु की मा - गणेशु आवा खाणकू . भयूँ ! गणेशु की माको सोर की चर्चा , तुमारी सुणी ही रखे.क्या अच्छो स्वादिष्ट भोजन होलो , यांकी चर्चा ठीक नी समझेदी. सब खाई पेइक निश्चिन्त होया. थोड़ी देरमा सब सैणो पडया.

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        धार  मा   रतब्योण्या ऐगे/ कुर्बुर ह्वाई रात खुलन लगिगे. भौंरा भुण भुण करन बैठिगैने.  पंछी बोलन लगिगैने . हळिया  हळमू  चलिगैने . अहा १ सुबेर्लेक तै हळियों की बोली " आ; आ: डी डी डी , चल भरे चल भारे इत्यादि -२." कनी प्यारी लगी रये. खुणमुण  खुणमुण बल्दू की घांडी भी मन मा कुछ और ही भाव उत्पन करी रये. सन् सन् सन् ठंडी बयार चलि रये.  कुटनारा पिसनारा सब उठी गैने . इथै  उथै   सर्वत्र कलकलाट मचि गे.   अब गणेशु या नत्थू का बाबु कि भी नींद टूट पडै.  नत्थू, हे नत्थू रे ! खड़ो उठ बाबा रात खुली गे. ओ सूण दौ पंछि भगवान् नाम को गान करण लगिगैन . हमसणि  भी करनी चएंद. बोल बेटा टु भी मेरा दगड बोल-

'पवन मंद  सुगंध शीतल हेम मन्दिर शोभितम .

श्री निकट गंगा बहत निर्मल श्रीबद्रीनाथ  जी विश्वम्भरम

शेष सुमिरन करत निशिदिन धरत ध्यान  महेश्वरम .

श्रीवेद ब्रह्मा करत स्तुति  श्रीबद्रीनाथ जी विश्वम्भरम .

शक्ति गौरी गणेश शरद नारद मुनि उच्चारणम

योगध्यानि  अपार लीला श्रीबद्रीनाथ जी विश्वम्भरम .

इंद्र चन्द्र कुबेर धुनिकर दीप प्रकाशितम

सिद्ध मुन्जन करत करत जय जय  श्रीबद्रीनाथ जी विश्वम्भरम .

यक्ष किन्नर करत कौतुक ज्ञान गन्धर्व प्रकाशितम

श्रीलक्ष्मी कमला चवर डोलें  श्रीबद्रीनाथ जी विश्वम्भरम .

कैलास में एक्देव निरंजनम शैल शिखर महेश्वरम

श्री राजा युधिष्ठिर करत स्तुति श्रीबद्रीनाथ जी विश्वम्भरम .

श्रीबद्रीनाथ जी के पंचरत्न पढ्त पाप विनाशानं 

कोठी तीरथ भयउ पुण्ये प्राप्यते फल दायकं ।। ७। ।।

( प्रथम परिच्छेद  परिछ्चेद  समाप्त )



भीष्म कुकरेती का नोट- इस अख़बार को पढने से पता चलता है कि 'गढवाली ठाठ ' या तो बहुत लम्बी कहानी है या उपन्यास के समान है.


 

 सर्वाधिकार- श्री शकला नन्द कुकरेती (श्री सदानंद जी के पोते ) -ग्राम ग्वील, मल्ला ढांगू , पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड , भारत.



 

 


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Bhishma Kukreti:
  Thaul: A Garhwali Fiction about Fair, Festival, Fun, and Family Fervor 

(Review of a Garhwali fiction collection ‘Jonu Par Chhapu Kilai?’  (1967) written by Mohan Lal Negi)

                                  Bhishma Kukreti
  Thaul means fair or place of celebration of praying.  When the fair is there in Garhwali-Kumauni villages it beaks the monotonous life of people and provides chances for people to come out with different lifestyles than routine life. Females get a chance to make up and put on new dresses or put on jewels and pieces of jewelry.  The most pleasure of festival and fair is for children. Fair brings enthusiasm.
  Thaul is about people visiting a fair and enjoying it there. A child Sudama could not sleep before the fair night and sees many dreams. Sudama and his friends Kamlu, Raghu, Chaitu, et all visit the fair and do many activities –chatting, eating, singing buying dolls and toys. They play with toys after coming from the fair and sleep dreaming about plays. 
  The story Thaul by Negi is depicting children enthusiasm and their psychology.  The story writer wove the story very well around fair and children. He uses proverbs and sayings freely and effectively. The proverbs and sayings create or add for creating images of rural life and the atmosphere of fairs, festivals, and family fervor. 
१- पर एक ऐब वीं बिछ्न्दे ( ब्वारी मांगी)
२-घिच्चा कि जरा नखरी निथर ..
३- हिडंग- फिडंग अर फ्वीं फाई भौत करदी
४- पग चले पंथ कटे

Thaul is proof of the strong vocabulary knowledge of story writer Mohan Lal Negi.
      According to Dr. Dabral (2007), Thaul is one of the remarkable stories in Garhwali literature.
Sources:
1-Dr Anil Dabral, 2007 Garhwali Gady Parampara:Itihas se vartman
2-Abodh Bandhu Bahuguna, 1975 Gad Mytek Ganga
Copyright@ Bhishma Kukreti 8/6/2012
                       

Bhishma Kukreti:
गढ़वळि कथा 

 

                                            मुख्य मंत्री क निंद  किलै हर्चीं च ?


( राजनैतिक कथा; एशियाई राजनैतिक कथा; दक्षिण एशियाई राजनैतिक कथा; सार्क देशीय राजनैतिक कथा; भातीय उप महाद्वीपीयराजनैतिक कथा; भारतीय भाषाई राजनैतिक कथा; उत्तर भारतीय भाषाई राजनैतिक कथा;हिमालयी भाषाई राजनैतिक कथा; मध्य हिमालयी भाषाई राजनैतिक कथा; उत्तराखंडी भाषाई राजनैतिक कथा; कुमाउनी राजनैतिक कथा; गढ़वाली राजनैतिक कथा)
 

                                                       भीष्म कुकरेती




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                     हालांकि मुख्य मंत्री अजय बहुखंडी कि निंद एक बात पर सफाचट हर्ची  च , सोची सोचिक परेशान छन कि यीं समस्या को निदान क्या च? पण  अखबारों मा खबर छप्याणा छन बल उत्तराखंडौ मुख्यमंत्री अजय बहुखंडी  जन मुख्यमंत्री राज्य तै मिलण भाग्य की बात च. सफल प्रशाशक  का रूप मा  वो पैलि  प्रसिद्ध छन अर इमानदारी मा तक मामला मा त नरेंद्र सिंग नेगी जी न  गीत  वूं पर लोक गीत बि रची अर गाई जु गीत आज गढवाळ इ ना कुमाऊं क गौं गौं  मा बि प्रसिद्ध हुयुं च . अखब़ारूं  मा रोज लिख्याणु च बल   नारायण दत्त तिवाड़ी बाद अजय बहुखंडी   इ विकास पुरुष की खुर्सी हत्याला. राजनैतिक विद्वान् अर सम्पादक अखबार अर युगवाणी जन पत्रिकाओं मा लिखणा छन बल  अजय बहुखंडी  न आंदो आन्द अपण राजनैतिक परिपक्वता अर राजनैतिक कौशल को परिचय द्याई तबि त केन्द्रीय मंत्री गिरीश रावत का  च्याला चांठी  नेता बहुखंडी   क यख रोज हाजरी बजांद  नि थकदन, इन्नी जसपाल रावत 'महाराज'  अर खड़क सिंग रावत बि अच्काल बहुखंडी  कीर्तन या बहुखंडी   आरती गाण मा लग्यां रौंदन. अर केन्द्रीय मंत्री गिरीश रावत त प्रेस मा जैक जैक बुलणा रौंदन  बल अजय बहुखंडी  अर मी त पिट्या-लुटिक  भाई छंवां. हाँ ठीक बुल्दन राजनैतिक कौलुमनिस्ट  अर राजनैतिक लिखवार. भै जब चुनाव रिजल्ट आई त  गिरीश रावत, जशपाल महाराज अर खड़क सिंग तिनी चीफ मिनिस्टर  कि कुर्सी हथियाणो बान इन भाग दौड़ करणा छया कि यूंकी  रौन्का धौंकी मा मुख्यमंत्री कि कुर्सी कि दौड़ मा बहुखंडी   को त कखी बि नाम निसाण तक नि छयो . फिर अचाणचक यूँ सब्यू न घोषणा करे कि प्रदेश हित अर पार्टी हित  मा हम तिनी अजय बहुखंडी  तै समर्थन दीन्दा. सरा राज मा चुकापुट ह्व़े गे अरे गाजा बाजा बजणा छया गिरीश रावत का चौक मा, मुशुकबाज बजणा छया जशपाल महराज का इलाका मा अर मांगळ लगणा छया खडक सिग क चौंतरा मा पण जैमाळा पोड़  अजय बहुखंडी  क गौळउन्द. अर फिर अजय बहुखंडी  को निर्णय कि गैरसैण मा विधान सभा सत्र बुलाये जालो की खबर से विरोधी पाल्टी क बगैर कुछ कर्याँ भतिया- भंत कौरी दे ,  चाणक्य अर पुरिया नैथाणी बि सोराग मा अजय बहुखंडी  क रानीतिक पैंतराबाजी की बडे करणा होला.  चर्चिल बि बुलणु ह्वाल - व्हट ए पोलिटिकल मैनुवरींग फ्रॉम ऐन इंडियन!

                पण  इख भितर त बहुखंडी का हाल बुरा छन जन बुल्यां - भैर नाचणि बादण अर भितर नी आलण . मुख्य मंत्री क पुटुकउन्द वीं बात समळीक / याद ऐकी   च्याळ रौंदन पड़णा, निंद इ हर्चीं च. अर मुख्यमंत्री बि जाणदन बल यीं बीमारी , ईं बिथ्या क दवै ऊंका हाथ मा नी च . यीं बिथ्या क होंद इ अब ऊं तै राजनैतिक जीवन चलाण पोडल . भैर अर भितर मा अंतर कथगा  हूंद हैं  ?

 

 मुख्यमंत्री तै याद औन्द बल ओ पैलि बार चुनाव लड़ीन अर विधान सभा पोंछी गेन . चुनाव फैसला से विधान सभा मा पौंची गेन यौ इ  काफी छौ. मंत्री पद की त उमेद इ नी छे पण  कै पी एस यू क चेयरमैनशिप कि कोशिश मा बहुखंडी जी लग्यां छ्या. चुनाव रिजल्ट आणो पांच दिन ह्व़े गे छ्या पण तिर्गट जम्याँ छ्या कि मुख्यमंत्री वु ना त क्वी बि ना. हाई कमांड कि अकळाकंठ लगीं कि कु ? कु ? ..

     इलेक्सन रिजल्टो   दुसर  दिन सुबेर फोन करीक गिरीश रावत पैथराक रस्ता से भितर ऐन अर भितर ऐका सोफा मा बैठी गेन. फिर बुलण  मिसेन, बहुखंडी जी ! आप त समजदार छन. पार्टी अर राज्य हित का वास्ता खड़क सिंग जी बेकार इ ना पार्टी मा वो धोकाबाजी क बान प्रसिद्ध बि छन. जशपाल जी धोकाबाज त नी छन पण सब तै पता च कि राजकीय प्रशाशन अर निर्णय मा जशपाल जी भौत कमजोर छन. त आपकी क्या राय च ?

बहुखंडी जी न बात बिंगद ब्वाल, " जी ! आप की बात मा दम त छ."

 गिरीश जीन अगने बात बढ़ाइ ,'  आप टूरिज्म का बारा मा ग्यानी छन त गढवाल विकाश समीति जन विभाग की चेयरमैन शिप  से आप गढ़वाल मा टूरिज्म विकास करी सकदन अर राज्य की भलाई करी सकदन ."

बहुखंडी जी बींगी गेन  -समजी गेन बल चारा फिंक्याणु च .

बहुखंडी जी न सिरफ़ इन ब्वाल," जी आप ये मामला मा जादा अनुभवी छंवां."

गिरीश जीन भाव बढ़ाई,' अच्छा त जल   विभाग  की चेयरमैनशिप पक्की."

बहुखंडी जीक बुलण छौ, " उमेद त मंत्री पद की छे पण .. ."

गिरीश जीन ताबड़ तोड़ ब्वाल, ठीक च त उद्योग विभाग की चेयरमैनशिप.."

गिरीश जीन  बहुखंडी जी क मुख मा लाली क्या द्याख कि  गिरीश जीन ब्वाल, " त आप हाई कमांड को नुमाइंदा तै मेरो नाम सुजाई देला हाँ ! '

बहुखंडी जीन हामी भरी दे.

फिर दुफरा मा लंच टैम पर जशपाल जी ऐन अर सीदा सादा बुलण लगी गेन बल '  तुम तै टूरिज्म विभाग का अध्यक्ष पद अर तुमारि घरवळी तै  पीड़ित नारी कोष्ट की उपाध्यक्षा पद. दिए जालो.

बहुखंडी जीन बि समर्थन दीणै भर्वस इ ना कसम बी खाइ देन । . 

स्याम दै खड़क सिंग जी ऐन अर सीदा  मंत्री पद की बात करण लगी गेन जब कि बहुखंडी जी जाणदा छ्या कि मंत्री पद इथगा सौंग नी छौ किलैकी मंत्री पद वै तै इ दिए जालो जैमा दुदु ना चर चर विधयक ह्वावन . बहुखंडी जीन खदक सिंग जी तै बि समर्थन को भरवस देइ द्याई.   

  वै दिन हाई कमांड कु नुमाइंदा अयाँ छ्या. बहुखंडी जीन सीदा  ब्वाल कि मुख्यमंत्री जै तै बि बणाणा इ बणाइ द्याव पण म्यार अनुभव को ख़याल जरोर  रख्याँ कि पी.एस.यू. की चेयरमैनशिप जरूर.

अर वै दिन इ रात मा बहुखंडी जी अपण भितर खंड मा आदतन द्वी पैग लगाणो बैठ्या छ्या. या द्वी पैग पीणो आदत  भौत पुराणि च . उमदा से उमदा विदेशी शराब अर द्वी पैग ऑन द रौक एक घंटा मा. मिसेज बहुखंडी बि बैठी छे. मिसेज बहुखंडी न ब्वाल, " मिस्टर  बहुखंडी व्हाई डोंट यू ट्राई  फॉर मिनिस्टर शिप?"

बहुखंडी जीन ब्वाल, " डार्लिंग!  इट इज नॉट सो इजी फॉर अ जूनियर एम्.एल.ए."

मिसेज बहुखंडी न बोली," बट व्हट इज रौंग इन ट्राइंग !"

अर फिर दुयुंक भौत देर तलक यीं बात पर छ्वीं लगीन कि कनै मिनिस्टर शिप मीली सकद. अर वै दिन  बहुखंडी जीन विदेशी ब्रैंड शराब को  तीन पैग ऑन द रौक पेन. फिर निर्णय ह्वेई कि यांको वास्ता बहुखंडी जी तै डिल्ली जाण पोडल अर अपणा आकाओं से मंत्री पद को जुगाड़ करण पोडल.

  भौत साल पैल बहुखंडी जी आजौ केन्द्रीय मंत्री जब वो महाराष्ट्र राज्य कैबिनेट मा मंत्री छ्या त बहुखंडी जी का बॉस छ्या. यूँ केन्द्रीय मंत्री न बहुखंडी जी तै सलाह दे कि हाई कमांड तै मीलि ल्याओ.

हाई कमांड को खासम  खास शकील अहमद जी से बात ह्व़े  त अचाणचक  एक घंटा बाद फोन आई कि हाई कमांड अबि मिलण चाणा छन . यू त एक आश्चर्य छौ बल जख मुख्य मंत्री अर मुख्य मंत्रियुं लाळसा वळो  तै हाई कमांड को दर्शनों बान हफ्तों लगी जान्दन मी तै एकी घंटा मा स्वीकृति मीलि गे. 

   कथगा इ सेक्युरिटी इंतजाम पार करणो उपरान्त बहुखंडी जी  हाई कमांड क रूम मा पोंछेंन   , शकील अहमद वखि छ्या. परिचय आदि क उपरान्त शकील अहमद न पूछ,' भई बहुखंडी जी वो तुमारो प्रदेश मा मुख्य मंत्री ब्यूँरण (चुनण) भौती मुश्किल ह्व़े गे."

हाई कमांड चुप इ छ्या.

बहुखंडी जीन ब्वाल," जी "

"आपकी क्या राय च.?" शकील अहमद न पूछ

बहुखंडी जी क राय छे," जो भी  हाई कमांड तय करि  देला. मेरी व्यक्तिगत राय क्वी  नि च "

शकील अहमद जी न ब्वाल, " उन सबि पार्टी का सदस्यों राय च बल मुख्यमंत्री प्रशाशनिक जुमेवारी समभाळ सौक, कडक अर  फ्लेक्जिब्ल भी ह्वाओ, सब्युं तै याने ऑफिसरो तै दगड मा लेकी चलण  जाणो, बेदाग़ छवि   हो,जैक क्वी पाळी नि ह्वाओ,  मतलब क्वी लौबी नि होऊ,  पार्टी भक्त ह्वाओ.पर्सनल अम्बिसन ह्वाओ पण पार्टी से जादा ना.  "

हाई कमांड न पूछ," छ क्वी ?"

बहुखंडी जें बोल," जी इन त सबी होला.."

शकील  अहमद जी न बोल, ' कनो तुमम यि सबि गुण नी छन?"

बहुखंडी जीक प्रशासक  अर डिप्लोमेटी दिमाग मा कुछ चमक आई., ' जी मी अर मुख्यमंत्री ?"

हाई कमांड न ब्वाल," डोन्ट यू वांट तो बिकम चीफ मिनिस्टर ?"

बहुखंडी जीन ब्वाल," जी पर्सनल अम्बिसन त छें च पण..."

शकील अहमद जीन बोल," सभी कार्यकारीणी वळु राय च कि तुम इ चीफ मिनिस्टर लैक छ्न्वां किलैकि तुम बिलकुल लामबंद नि छंवां  अर तुम बेदाग़ बि छंवां."

हाई कमांड न ब्वाल,' त ठीक च शकील  जी ! उत्तराखंड को मुख्य मंत्री बहुखंडी जी तै घोषित करै द्याओ. मी जाणु छौं . बकै बात तुम बहुखंडी जी तै समजै  द्याओ. ' इन बोलिक हाई कमांड चली गेन.

शकील जीन ब्वाल,' अब आप को पैलो काम च गिरीश   जी, जशपाल  जी अर खड़क सिंग जी तै पटाणो काम आप इ कारो."

शकील जीन बहुखंडी जी तै तीन फाइल बि देन . दगड मा हिदायत दे कि द्वी दिन तलक चुप रैन . अर तिसर दिन  अखबारों मा खबर आण चयेंद कि तुम बि मुख्यमंत्री क दौड़ मा शामिल ह्व़े गेवां.

 शकील जी से मिलणो परांत बहुखंडी जीक  समज मा नि आई कि यो अचाणचक  क्या ह्व़े ग्याई.  तेतीस विधायको मादे सबि घाग राजनीतिग्य छ्या बस बहुखंडी जी नया इ छ्या. फिर हाई कमांड तै क्या सूजी कि ..

तिसर दिन सबि अखबारों मा खबर छपी गे बल बहुखंडी इज  इन चीफ मिनिस्ट शिप फ्रे . बहुखंडी भी मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल. चौबीस विधायकों का समर्थन का दवा !

सबसे पैलि फोन गिरीश जीक आई , " बहुखंडी जी ! भाई मेरे यदि मंत्री पद चाहिए तो बोलो पर यह क्या खबर छपवाते हो . मेरे पास पन्द्रा   विधायक, जशपाल जी के पास, नौ  विधायक, खड़क सिंग जी के पास सात विधायक, फिर आपके पास कहाँ से चौबीस विधायक  आये. और सभी के विधायक  कोठडियों में  बन्द हैं ."

बहुखंडी जी न ब्वाल," केन्द्रीय मंत्री जी ! मी डिल्ली ऐ जौं आपसे बातचीत करणो"

गिरीश जीन ब्वाल," जी मी त देहरादून मा इ छौं. इन करो आप रेस्ट होंउस मा ना, ना सब तै पता चौल जाल. अच्छा मी इ आन्दु  पण वुख बि... .ठीक च राजपुर रोड को एक रिजोर्ट च वुख ऐ जाओ  " हालांकि बहुखंडी जी तै पता छौ कि गिरीश जी देहरादून मा इ छन.

रिजोर्ट मा गिरीश जी इन मीलेन जां बुल्या ब्व़े ससुराड़  बिटे अंयीं बेटी तै भिञट्याणि ह्वाऊ. फिर एक रूम मा दुयूं इनै उनै कि छ्वीं लगीन. गिरीश जीन उद्योग मंत्रालयों लोभ दे.

बहुखंडी जीन बोली," गिरीश जी आप डिल्ली इ ठीक नि छंवां? कख केन्द्रीय मंत्री अर कख छ्वटो प्रदेश .."

"मतलब तुम मै  तै समर्थन नि दीणा छंवां ?" गिरीश जीन पूछ

बहुखंडी जीन उत्तर दे,' पर एक भारी समस्या खड़ी ह्व़े गे "

गिरीश जीन बोली,' सब समस्याओं क हल च . उद्योग  मंत्रालय से बड़ो क्वी मंत्रालय नी च. तुम म्यार तरफ आई जांदा त मेरी पाळी मा सत्रा  विधायक ह्व़े जान्दन . फिर क्वी बि .."

बहुखंडी जीन ब्वाल," समस्या,  समर्थन दीणो नी  च . बल्कण मा कुछ हौरी च "

 " उप मुख्यमंत्री पद तो हाई कमांड तै कतै मंजूर नि ह्व़े सकुद ' गिरीश जीन निगोसियेसन कार

इथगा मा बहुखंडी जीन शकील जी क दियीं तीन फाईलूँ   मादे एक फाइल गिरीश जी तै पकडै दे'

जन जन  गिरीश जी फाइल का पन्ना पलटदा गेन तन तन गिरीश जीक मुख लाल हूंद गे  . फाइल मा चार पन्ना अर एक फोटो की प्रतिलिपि छे.

गिरीश जीन अपण पंखी से इ अपण पसीना पूंछ .

अब गिरीश जीन पूछ," त तुम सचेकी मुख्यमंत्री क दावेदार छंवां ? "
 
बहुखंडी जीन क्वी जबाब ने दे

गिरीश जीन पूछ,' जु मी तुम तैं समर्थन नी द्यूं  तो ?"

"कुछ ना मी यीं फाइल अर फ्लौपी टेप तै हाई कमांड तक पौंछे देलू" बहुखंडी जीन बर्फीली अवाज मा ब्वाल.

भौत देर तक चुप्पी राई .

फिर गिरीश जीन ब्वाल," द्याखो मी अर म्यार विधायक तुम तै समर्थन द्याला पण म्यार लोगूँ ख़याल करण तुमारो काम च हाँ!'

गिरीश जीन ब्वाल," अपण आदिमू खयाल करण मी जाणदो छौं."
 
द्वी शहर ऐ गेन अर इथगा देर मा कुजाण कथगा फोन जसपाल जीक ऐन धौं!

रस्ता मा बिटेन बहुखंडी जीन जशपाल जी कुणि फोन कार अर जरा धीरे से पण स्थिर ह्वेक जशपाल जी तै अपण ड्यार  इ बुलाई दे.

इना उना की बात हूणि रैन . जशपाल जी कीमत बढ़ाणा रैन.

फिर जब बहुखंडी जीन जशपाल जी तै फाइल दिखाई त जशपाल जीन  भौत देर मा उसासी लेक ब्वाल,' औ ! त अब तुमि मुख्यमंत्री बणन वळा छंवां  ? जरा म्यार विधायकुं   ख़याल हाँ ...."

खड़क सिंग जी तै फैल दिखाणै जरूरत इ नि पोड़ जब खड़क सिंग जी तै पता चौल कि गिरीश  जी अर जशपाल जी बहुखंडी जी तै समर्थन दीणो राजी ह्व़े गेन त खड़क सिंग जी अफिक लैन मा ऐ गेन.

बड़ा लद झक से बहुखंडी जीन मुख्यमंत्री पद को शपथ ले. चूंकि बहुखंडी जी पार्टी क कै बि पाळी मा नि छ्या त तिनी धडा वळा यूँ तै अपणा समजणा छ्या.

अब जब पद सम्भाळणो तीन दिनों बाद हाई कमांड की सेवा मा गेन त अहमद जीन एक फाइल दिखे दे. फाइल ओपन हूण से  जादा कुछ ना पण बहुखंडी जीक राजनैतिक जीवन तीन चार सालुं कुणि खतम ह्व़े जालो.
 
मुख्यमंत्री जीक क राजनैतिक जीवन  की कुंजी वीं फाइल  रूपी तोता मा च ज्वा हाई कमांड का पास च.  बस तै दिन बिटेन मुख्यमंत्री की निंद हराम हुईं च .

 

 Copyright@ Bhishma Kukreti , 8/6/2012

 

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Bhishma Kukreti:
Ek Dunda Khacchar ki Katha: A Garhwali Story about Discarding Disable or Old workforce

(Review of ‘Joni Par Chhapu Kilai?’ (1967) a Garhwali Story collection written by Mohan Lal Negi)                         

                                                                   Bhishma Kukreti

        There are fine stories about discarding the older workforce, older generation, and disabled or handicapped workforce by organization owners or society in modern literature. For example, in the stage play ’Death of a Salesman ’ by Arthur Miller, the Hindi story ‘Budha Bail’ by Bhishma Kukreti comes in such category. Maricel Oro-Piqueras found that in western literature youth and vigor is considered as virtuous whereas the body that looks old becomes synonymous with sterility, illness, and dependency in the brilliant book ‘Ageing Corporealities in contemporary English Fiction: Redefining Stereotype’.   
                                Mohan Lal Negi uses mules as human beings for showing the discarding of the old or disabled/handicapped workforce by owners. The mule was strong and worries mast when it was a child. The owner sold the mule to another owner. The new owner was happy about the strength, honesty, and disciplinary habits of the mule. The other mules and horses respected the mule. When the mule became lame the owner discarded and left him.  It was difficult for the lame mule to meet the food for a living. Now the lame mule was helpless and used to go into the harvesting field and used to get beats.
  One day, his owner was passing there but he did not talk with the mule. The mule felt very bad that he was lame while he was working for the owner but now the owner is ignoring the mule that once was the star of his business.
    The story is definitely symbolic and attacks industrialization where productivity is a primary goal and when the workforce becomes unproductive due to accidents the business owners don’t care for the disabled workforce.
  The story is one of the finest stories among modern stories about the conflicts between business owners and the disabled workforce.
  The story is very simple and the flow of the story shows the capability of Mohan Lal Negi.
  Reference:
1-Dr. Anil Dabral, 2007 Garhwali gady ki Parampara: Itihas se Vartman
2- Bhishma Kukreti, 2012 Sansaro Kathaon ki Katha, Shailvani, Kotdwara
Copyright@ Bhishma Kukreti, 9/6/2012 
                                                                   

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