Author Topic: Exclusive Garhwali Language Stories -विशिष्ठ गढ़वाली कथाये!  (Read 48854 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Dosto,

Our Senior Member Shri Bhishma Kukreti Ji has collected some exclusive Garhwali Stories which Kukreti Ji will here with you in this topic.

We are sure you will like these stories. Here is the first one.

गढवाली भाषा  की  एक  गूढ़ रहस्यात्मक  कथा                                    दाताs  ब्वारि -कनि दुख्यारि                                                  कथाकार - भीष्म कुकरेती                 गौं मा इन कबि नि ह्व़ेओ. इन कैन  बि कबि नि देखी. हाँ बुन्याल त - गाँ मा क्या अडगें (क्षेत्र) मा झबरी ददि सबसे दानि मनखिण च , ह्व़े गे होली  पिचाणा छयाणा  साल की पण कुनगस च  बल झबरी ददि न बि इन अचर्ज नि द्याख .बैद जी ऐ ऐ क थकि  गेन. वैद जीन क्या क्या जि नि कार! पण दाता की ब्वारी गौमती फर क्वी फरक इ नि पोड़. बैद चिरंजीलाल तै अफु पर इ रोष ऐ गे , गुस्सा ऐ गे. वैन आन नि द्याख जान नि द्याख अर गुस्सा मा अपणो इ सुयर भेळुन्द  चुलै दे, अरे इन कबि नि ह्व़े कि मरीज को दुःख बैद चिरंजीलाल को बिंगण मा नि आई हो.ठीक च बैदें करद करद  मरीज मोरी बि ह्वाला पण चिरंजी  तै दुःख को पता त पोड़ी जांद छौ. सुयर भेळुन्द चुलांद चुलांद  चिरंजीलाल न धन्वन्तरी अर चरक का सौं घटीं कि आज से अब बैदकी नि करण बल जब हथुं फर जस इ नि रै गे त किलै बैदकी करण . जस को जख तक सवाल च चिरंजी जरा मुर्दा क बि नाडी देखी लीन्दो छौ त मुर्दा  चम खड़ो ह्व़े जान्दो छौ. चिरंजीलाल न क्या क्या दवा नि पिलैन पण दाता कि ब्वारी उनि कड़कड़ी इ राई.                               पूछेरूं गणत बुसे  गे, गणत को क्वी फल सुफल नि ह्वेई. बक्की हल्दी अर चौंळ सूंगी सूंगी बेहोश क्या परजामा मा चली गेन पण मजाल च .. कबि नागराजा त कबि  ग्विल्ल, कबि दुध्या नरसिंग त कबि डौन्ड्या नरसिंग  या कबि सैद या देवी बाक मा उपजी जाओ. सुबेर दाता क ड़्यार नागर्जा क घड्यळ, दुफरा मा  डौञड्या नर्सिंगौ घड्यळ अर रत्यां घड्यळ मा देवी नचै.  बक्क्युं  बाकs  अधार पर तीन दै हंत्या क जळकटै बि ह्व़े गे. इथगा दिनु  बिटेन  जागर्युं बास अब ये इ गाँ मा हुयुं च. इथगा घड्यळ धरणो परांत बि दाता कि ब्वारी नि ह्वाई सुख्यारी.  ये इ हुर्स्या हुर्सी  मा भौतुंन अपण ड़्यार बि घड्यळ धौरि  देन . अब  दुसरो अडगें का एक  बाक्की न बाक मा ब्वाल बल बिंडी सौ साल पैलि क्वी बूड खूड लडै मा घैल ह्व़े छौ. खुंकरी को कचयूँ वै बूड खूड तै कवा, करैं, चिलंगौं न कोरि कोरिक  खै छौ. वै पुरखा कि अधीति , अटकदि भटकदि आत्मा अब दाता कि ब्वारि तैं चैन नि  लीण दीणि च.  बुल्दन बल  जैकु  म्वारु वु क्या नि कारू . दाता  क ब्वेन  महादेव चट्टी म गंगाळ म नारेण बळि  बि कराई ।  पण दाता कि नौली नौली ब्वारी न ठीक नि हूण छौ स्यू  वा ठीक नि ह्वाई.                 दाता क डंड्यळ म , छ्ज्जाम , चौकम, मनिखौं , बूड बुडयूँ,  नौना नौन्याळियूँ पिपड़कारो मच्युं रौंद छौ. घसेर्युं छ्वीं  दाता क ब्वारि  छ्वीं बिटेन शुरू होंदी छे अर दाता क ब्वारि छ्वीं मा खतम होंदी छे. ग्वेरूं क बातचित मा बि गोर ना दाता कि ब्वारि इ होंदी छे.  स्कूलया बि स्कूल जांद दै  दाता क ड़्यार हाजरी लगावन अर तब स्कूल ज़िना जावन.अर फिर स्कूल बिटेन सीदा दाता क ड़्यार जावन अर तब फिर अपण ड़्यार जावन. दाना सयाणा  जु पैल कैक चौक मा छ्वीं लगान्दा  छया अब बस सुबेर बिटेन स्याम तलक इख दाता क चौक मा इ जमघट लगैक छ्वीं लगांदन अर दगड मा दाता क ब्व़े तै सलाह मशवरा बि दीणा रौंदन. अच्काल, दाता कौंका चौंतरा जवान, अध्बुडेड़ , बुड्यों कुणि तमाखू खाणै एकमात्र जगा च.    गौं कि बात च त दुःख सुख मा काम नि आण त कब काम आण भै! जु बि आओ वु पैल दाता क ब्व़े तै ढाढस द्याओ अर फिर चौक मा बैठी जाओ. बनि बनि क लोक याने बनि बनि क राय मशवरा . दाता क ब्व़े बि हेरक क बुल्यूं मानणो बिवस  छे. क्वी ब्वाल बल तैं ब्वारी तै गरम पाणी पिलाओ त ब्वारी तै तातो पाणी  दिए जान्द छौ, अर क्वी  वैबरी ब्वालो बल मेरी स्याळि बि इनी बीमार ह्व़े छे अर वीन छांच क्या पे कि वा ठीक ह्व़े गे छै. बस क्या दाता क ब्वारी तैं वैबरी छाँछ पिलाए जांद छौ. क्वी ब्वाल बल ब्वारि तै ढिकाण द्याओ  त ढिकाण दे दिए जांद. मतबल जति मुख तति तरां बैदकी.                  अब जब दाता क ड़्यार म अडगें लोक सुबेर बिटेन स्याम तलक जमा रावन त बात कख बिटेन कख पौंची जाली अर कथगा इ बात होली. उख एक पन्थ द्वी काज हूणो छौ. लोक दाता क ब्वारिक खबर सार बि लीणा अर दगड मा कथगा इ काम बि निबटाणा छया. जब इथगा लोक कट्ठा ह्वेक बैठयाँ रावन त ब्यौवरी/ब्यौपार बि होणि छौ. अर फिर ब्यौथौं छ्वीं बि लगणि छौ. यूँ आठ दस दिनु मा दाताक  चौक मा इ बीसेक जनम पत्र्यु दिखण दाखण ह्व़े,  चार नौन्युं मांगण फिक्स ह्व़े, आठ जोड़ी बल्द बि इखी बिकेन, कथगा गौड्यू गोशी, गौशाला बदलेन, द्वी तीन भैंसी इना उना ह्वेन, चार तन्दला बखरों क ब्यौपार बि इखी यूँ दिनु ह्व़े . द्वी कतर पुंगड़ो ब्यौपार तक इखम ह्व़े ग्याई. दाता क ब्वारि कनफणि सि बीमार क्या ह्व़े कि दाता क ड़्यार अच्काल ब्यवरयौ कुणि मंडी बि बौणि गे.        दाता ! अहा, दाता ! यनु मयळु च बल सरा अडगै की ब्व़े प्रार्थना करदन बल हे भूम्या ! नौनु देलि त दाता जन. दाता जब द्वी सालौ छौ त बुबा भग्यान ह्व़े ग्याई अर ब्व़े रंडोळ (विधवा)  ह्व़े गे छे.रंडोळ ब्वेन  पड्याळ कौरिक, मजदूरी कौरिक दाता तै पढ़ाई अर आज दाता लखनौ कोलेज मा प्रोफ़ेसर च. ब्यौ क टैम आई त दाता न बोली दे जैञ  ब्वे न म्यार बान इथगा खैरि  खैनि त जख ब्वे ब्वालली मीन तखी ब्यौ करण. बस स्यू ब्यौ ह्व़े ग्याई.             पण   भाग त द्याखदी दाताक ब्वे का!  ब्यौ क उपरान्त पलुणि क तिसर  दिन इ दाताराम तै ड्यूटी पर जाण पोड़. बल उख कोलेज मा समेस्टर की इमतान छन त छुट्टी इथगा इ मीलेन . अर जनि दाता कुटद्वर पौंची होलु  की इना दाता क ब्वारी गौमती अड़गटे गे, कड़कड़ी क कड़कड़ी ह्व़े गे. अर इन लग जन बुल्यां ईं ब्वारी खुणि लुचुड़ ऐ गे धौं! भूत पिचास, सैद, डैण लग्यां दुख्यर सब्यूं न देखिन पण इन अजाण दुःख कैन नि देखी छौ. एक द्वी दिन मा बबाल ह्व़े ग्याई बल दाता क ब्वारी मैत इ बिटेन बीमार च.                 ग्विर्मिलाक हुणो छौ. लोक दाताक चौक मा जम्याँ छ्या. मथि  ड़ड्यळ म  दाता क ब्वारी रोजक तरां कबि अपण दांत किटणि त कबि खळ-खळ गिच उफारणि छे. कबि एक हौड़ फरकणि त कबि हैंको हौड़ फरक जाओ.कबि खताखति उस्वासी ल्याओ त कबि आंखि कताडिक  टकटकी लगैक मथि ढ़ाईपरौ  कडियूँ, पटला, बौळि दिखद जावो. कबि वा अस्यौ (पसीना) मा नये जाओ त कबि वीं तै जड्डू लगी जाओ .अबि गोमती रूंग म्याळ मा पड़ी पड़ी, मुट्ठी बौटि बौटिक कणाणि छे.         कुछ लोक बैठयाँ छ्या, जनानी कुमसाणा छ्या, झबरी ददि सीढ़ी मा बैठि छे कि रणेथ  क  परमानाथ  डळया गुरु इकतारा बजांद बजांद चौक मा ऐ.परमानाथ  ए गांवक  डळयागुरु छौ. वो  इकतारा बजांद बजांद बडी भली भौण मा गाणो छौ -                                    माता रोये जनम जनम कू , बहन रोई छै मासा।                                   तिरया रोये डेढ़ घड़ी कूँ , आन करे घर बासा  ।।       सबि लोक चित्वळ ह्व़े गेन बल परमा डळया कख कख क डाक लांद धौं ! अर क्या फरकांद धौं! परमा नाथन एकतारा दिवाल पर खड़ो कार . चिलम भौर अर लम्बी लम्बी सोड मारिक धुंवारोळी कार. जब सोड मारिक परमा नाथ तै सेळि  सि पोड़ त वो सीधो सीढी चौढ़ अर  झबरी ददि क तौळ वळि सीढ़ी मा बैठी गे। वैन झबरी ददि मांगन सौब बिरतांत सूण  अर फिर से चिलम पर जोर की सोड पर सोड मारिन. सरा वातावरण मा धुंवारोळी फैली गे. अब फिर वैन भित्रां मुख कौरिक दाता क ब्वारिक तर्फां ह्यार. झबरी ददि बिटेन सबी बिरतांत बि सूण पर्मानाथान दाता क ब्व़े तै धाई  लगाई ,' ये बौ ! जरा तै ब्वारी तै भैर छज्जा मा लादि." परमानाथ  ए गांवक  डळयागुरु छौ त वैकी बात क्वी बि अणसुणि नि करदो छौ. जनानी दाता की ब्वारी तै छजा मा लैन .  परमा डळया न दाता क ब्वारी तै खूब ह्यार . एक दै ना कति दै ह्यार . फिर परमा तौळ चौक मा ऐ ग्याई. चौक बिटेन वैन झबरी ददि तै ब्वाल," हे झबरी ददि ! मी त बोदू त्वे तै जिंदु इ कुंडम जळे दीन्दा त भलो छौ." झबरी ददि पर जन बुल्यां बणाक लगी गे होऊ, वीन बि तडाक  से ब्वाल ,' अपणि ब्व़े तै जिन्दो ख्ड्यार तू." पण  दगड मा झबरी ददि समजण बि बिसे गे कि परमानाथ तै क्वी अकल कि बात सूजी गे. वा सने सने कौरिक  सीडी उतरण मिसे गे.  फिर परमानाथ न चिरंजीलाल तै सुणायि,"  बैद जी तुम त दवाई का इ गुलाम छंवां. मन बि कवी चीज होंद.कि ना ?" चिरंजीलाल उनि बि दुखी छौ वैन कुछ  नि ब्वाल. परमानाथ न झबरी ददि तै जोर कैकी पूछ," ये ददि कति नाती नातिण  छन त्यार?" " ए अभागी गुरु दाग नि लगै . झड़ नाती , नतेण सौब मिलैक होला तीन बीसी से अग्यारा कम." झबरी ददि क जबाब छौ परमानाथ न ब्वाल,' अर अबि बि नि समजी कि दाता कि ब्वारी किलै दुखयारी च " झबरी ददि न ब्वाल, जु तू अफु तै भेमाता समजदी त बोल .."परमानाथ न पूछ," दाता ब्यौ बाद कति राति घौर राई?"झबरी न जबाब दे ," द्वि राति.." परमानाथ न पूछ,' अर दाता क ब्वारिक उमर क्या होली/' झबरी ददि न जबाब मा ब्वाल,' होली बीस , इक्कीस.."परमा नाथ न जबाब दे," ए खाडून्द कि ददि ! जवान ब्वारी , ब्योला ब्यौ क द्वी राति बाद देस चले गे त ब्वारी न दुख्यर होणि च कि ना?"झबरी ददि न अपण कपाळ पर जोर कि चमकताळ लगाई ," ए म्यरा भुभरड़! हाँ इन मा त ब्वारी न दुख्य र हुणि च ..कि ना...अर जवान ब्वारी अर ब्योला त द्वी राति ...अच्छा तबी ब्वारिक दंत सिल्याणा छन तबी वा दंत किटणि च..तबि अस्यौ .. ये ब्व़े  ! मेरी खुपड़ी मा या बात कि लै नि आई.."परमानाथ न ब्वाल, " अब तेरा बर्मंड मा बात भीजी गे ."झबरी ददि न धाई लगान्द ब्वाल, " ये दाता क ब्वे! भोळ इ कैरा दगड ब्वारी तै दाता क पास लखनौ भेज  . मी नाती नातिण्यु सौं घौटिक बुलणु छौं जनि ब्वारी दाता तै द्याख्ली वीन  अफिक ठीक ह्व़े जाण." चिरंजीलाल वैद दौडिक परमानाथ क ध्वार आई अर खुसफुस अवाज मा ब्वाल,' मतबल , देह सुख कि कामना से दाता कि ब्वारी दुखयारी च ?"परमानाथ न ब्वाल, " कनो आँख, कंदूड़ , साँस लीणो ढंग नि बथाणा छन कि देह सुख कि कामना से इ दाता कि ब्वारी दुखयारी च " चिरंजीलाल वैद को जबाब छौ,' अरे मीन यीं दृष्टि से टटोळ इ नी च ..हाँ देह कामना की .."दान, बूड खूड समजी  गेन कि असली बीमारी क्या च. इना कैरा  दाता की ब्वारी तै भोळ लखनौ लिजाणो तयारी मा लग उना परमा नाथ अपण एकतारा बजाणबिसे  गे अर गाण मिस्याई--                       सुन रे बेटा  गोपीचंद जी , बात सूनी की चित लाइ ।                       कंचन काया, कनक कामिनी , मति कैसी भरमाई  । ००००     ००००० पाँच सात दिनु पैथर  कैरा जब लखनौ बिटेन घौर बौड़ त वैन बताई बल दाता कि ब्वारी लखनौ पौंछणो तीनेक दिन मा ठीक ह्व़े ग्याई.  copyright@ Bhishma Kukreti (हिलांस, ऑगस्ट, १९८३ , पृष्ठ ९)

--


Regards
B. C. Kukreti
---------------


M S Mehta


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
Garhwali That: One of the Greatest Stories in World Literature

(Review of First Modern Garhwali Story ‘Garhwali That’ (1913) by Sada Nand Kukreti)
Notes on initial great modern stories; South American initial great stories; North American initial great modern stories; east European initial great modern stories; West European initial great modern stories; South European initial great modern stories; Asian initial great modern stories; south Asian initial great modern stories; SAARC countries initial great modern stories; Indian subcontinent initial great modern stories; Indian language initial great modern stories; north Indian language initial great modern stories; Himalayan language initial great modern stories; Mid Himalayan  language initial great modern stories; Uttarakhandi language initial great modern stories; Kumauni language initial great modern stories; Garhwali language initial great modern stories

                                               Bhishma Kukreti

                 As per Vishwambar Datt Chandola, the first modern Garhwali prose was published in 1830 as translation of New Testaments as ‘New Testaments’ and second prose book of Garhwali is translation of ‘Gospel of Matthews’ published in 1876 by Christian missionaries. Govind Prasad Ghildiyal published the translation of ‘Hitopadesh’ into Garhwali in the year 1900.

               The first original Garhwali prose is the first Garhwali story ‘Garhwali That’ written by Sada Nand Kukreti (Gweel, 1886-1937) published in series in news letter Vishal Kirti. Credit goes to Rama Prasad Ghildiyal for bringing such brilliant story in lime light to the modern readers (Himachal Saptahik, Muni ki Riti, 26th January, 1953). Later on one of the finest Hindi story tellers of left wing Rama Prasad Ghildiyal Pahadi   edited the story, and published in Hilans, Mumbai (November, 1982) with the changed title ’Gundru kaunka Bhitar swala Pakoda’. However, Bahuguna criticized Pahadi for changing the title of the first modern Garhwali story.
                This author has the copy of Vishal Kirti (part -1; August, September, October, 1913 AD, number: 7-8-9) a monthly newspaper0 provided by famous artist B. Mohan Negi. There is a stamp on the paper –Vishal Mani Sharma, Upadhyaya, Guptkashi.  Dr. Anil Dabral Published previous portion of ‘Garhwal That’ in the book Garhwali Gady parampara: Itihas se vartman(2007) page 432-433.Dr.Anil got the story copy from the collection of Rama Prasad Ghildiyal ’Pahadi’.  There is a sentence before the start of story series in Vishal kirti (August-October, 1913, page 46-50) –
                                     गढ़वाळी ठाट ।
                              (गत संख्या से अगाडी)
 The last paragraphs of the series are as:

                                श्री वदरीनाथ जी के पंचरत्न पढंत पाप विनाशनै ।
               कोटि तीरथ भयउ पुन्ये प्राप्यते फल दायकं' ।। ७ ।।
                                                         ( प्रथम परिच्छेद समाप्त । )

                       It clearly shows that the story was very long and was not limited to Ganeshu and Gundaru characters as explained by Pahadi and perceived by others. The paper shows that ‘Garhwali that’ was written for showing various life styles of contemporary Garhwal.
                                    However, whatever is available (Pahadi’s collection and copy with this author) is marvelous example of storytelling style by Sada Nand Kukreti.
  The theme of story is to show the difference between two women- mother of Ganeshu and mother of Gunduru.  The mother of Ganeshu is well organized, energetic, likes cleanliness and has brilliancy to manage the house. While, the mother of Gunduru is lazy, does not care for hygienic factor in the hose. Father of Ganeshu is spiritual and a religious person who preaches morality to his new generation early in the morning.
     One of the great story writers of world literature Sada Nand Kukreti arranged events very wisely and the readers could feel the distinctions between characters.
     The immense fiction creator of world fiction world Sada Nand Kukreti is master of characterization. His words create images for each character.
     Tauntingly, tale teller creates character of lazy woman as:
कैकी पकोड़ी कैकी सकोड़ी, वोर वख दांत ही टूटी गै छ्या. बिचारि कि दाळ दुदळि करीन हि छई. बस बिना तेल वा दाळ छुस छास तव्वा मा उन्ने दमे अर वी पकोड़ा बणि गेन.
 The story creator narrates character of family of Ganeshu as
गणेशुं का भितर स्वाळा पकोदा की खूब खदर -बदर मचीन छ. एक तरफ मिठो भात बि उडणु छ. खनारा बि खूब जुड्या छन. लोगूँ की घपळ चौदस मचीं छ.

             The grand tale maker of world story literature Sada Nand Kukreti uses satirical style for describing various characters. He also used idealistic situations as and when is required.
    Sada Nand used perfect phrases for creating humor, satire, morality, abhorrence, enthusiasm as per need. Sada Nand had command over words.
  This author is from the same village Gweel-Jaspur (once same but now divided) and Sada Nand Kukreti was of my grandfather’s age.  By reading story, this author can say that Sada Nand Kukreti was of opinion to have standard Garhwali and Kukreti opted dialects for Pauri or Shrinagar area leaving Salani (his area) or Dhangwali dialects. Though, the humorous words of Sada Nand and culture in the story are from Dhangu (for example Mitho bhat is not served in auspicious feast except in Dhangu). There are less dialogues and they are from daily life. The dialogues are helpful in flow of story and characterization too.
              The flow in the story is very smooth and reader goes along with story.
           Since, after closure of ‘Vishal Kirti’, Sada Nand Kukreti took a very noble cause of opening Middle school in Silogi, Malla Dhangu, Ganga Salan, he could not write stories or verses. However, one long story is enough for Sada Nand to be one of the greatest story writers of world literature.
                The first modern Garhwali story   ‘Garhwali That’ has same place among greatest stories as Italian great stories ‘Mendicant Melodi’, ‘Lulu’s Trumph’I, and ‘Two Miracles’;  Spanish great stories – ‘The tall woma,  Malese perez the organizt’ ;  Japanese great stories- ‘The Pie’, and ‘A domestic animal’; Dutch stories as ‘The story of Saidjah’, ‘Sketches’; Hungarian great modern stories- The invisible Wound’, ‘A Ball’ and ‘The green fly’; Russian great initial modern stories-‘The district doctor’, ‘The Christmas tree and the Wedding’, ’The long Exile’ , ‘The bet’; great stories of Poland- ‘The lighthouse keeper of Asinwall’, ‘The human Telegraph’, Yiddish great  stories –‘a Woman’s Wrath’, ‘Passover Guest’; great initial modern stories of Denmark ‘Henrik and Rosalie’; Great initial modern stories from Sweden- ‘Love and Bread’, ‘The eclipse’; Belgian great initial modern stories-‘the mysterious Picture’, The massacre of the innocents’; Croatian initial modern story- ‘The neighbor’; Serbian initial modern story- ‘At The well’;  great initial modern stories  of Czechoslovakia  - Vampire, ‘Foltyn’s  Drum; great initial modern stories –‘The Priest’s tale’;   Romanian great initial modern stories- ‘The Easter Torch’ and ‘What Vasile Saw’; Bulgarian initial great modern story-‘The commissioner ‘s Christmas ‘; South American initial great modern stories –‘Chivalry’, ‘The Attendant’s Confession’, ‘The legend of Pygmalion’, ‘Creole Democracy’, American great initial modern stories – ‘The Specter Bridegroom’, ‘Mrs. Bullfrog’,’ Tell Tale-Heart’,’ Journalism in Tennessee’, ‘ The Man and the Snake’, ‘Supply and Demand’ have in international fiction world.

      As British story world provide respects to great story writers as Sir Walter Scott (1771-1832), Samuel Lover (1997-1868), Charles Dickens (1812-1870), Willkie Collins (1824-1889), Thomas Hardy (1840-), R. l. Stevenson (1850-1894), Oscar wild (1854-1900) for modernization of British stories ; world literature respects Sada Nand Kukreti initiated modern Garhwali fiction writing. Germans are proud of great story writers Jakob Grimm (1775-1859), E.T.A Hoffman (1776-1822), and Gottfried Keller (1819-1890) for modernizing German stories; North Indians are proud of Sada Nand Kukreti for modernizing Garhwali story writing. French people appreciate very much great story writers Voltaire (1694-1779), J.F. Marmontel (1723-1799), H.De Balzak(1799-1850) for modern stories ; Himalayan people appreciate Sada Nand Kukreti for his first Garhwali story;  Italians admire great story writers  Edmondo De Amics(1846-1908), Matilde Serao(born 1856), Grazia Deledda (born 1872) for modern Italian story writing, Mid Himalayan story lovers love Sada Nand Kukreti  for his first modern Garhwali story; Spanish have  high regard for great modern Spanish story tellers Pedro Antonio de Alarcon( 1833-1891), Gustavo Adolfo Becquer (1836-1870) and leopard Alas (1852-1901) for initiating modern Spanish story writing  same way Dhangwals has high regards for Sada Nand Kukreti as modern great Garhwali story writer;
                      Japanese are bigheaded for Mori Ogwai (1860-1922), Shimazaki Toson (born 1871) for their modernizing Japanese fiction world Garhwalis feel proud of Sada Nand Kukreti‘s initiative.
                Critics appreciate E.d Dekker (1820-1887), Herman heijermans(1864-19240, for modernizing Dutch fiction and same way Sada Nand Kukreti is appreciated for Garhwali fiction.
               World literature values the importance of Hungarian short story writers Karoly Kisfaludi (1788-1830), Maurus Jokai (1825-1904), Kalman Mikszath (1849-1922) for modernizing Hungarian stories, same way there is importance of Sada Nand Kukreti in Asia for modernizing Garhwali stories. World fiction critics praise the works of Russian modern fiction writers as Puskin , Nikol Gogol (1809-1852), Ivan Turgenev (1818-1883), Feodor Dostoievsky (1821-1881), Leo Tolstoy (18128-1910), Anton Chekhav (1860-1904) for modernizing Russian fiction writing and Garhwali critics as Bahuguna and Dhoundiyal  praise Sada Nand Kukreti for his first Garhwali fiction.
                 As due to stories of Henryk Seinkiewicz (1846-1916), Boleslav Prus (1847-1912) the literature of Poland is modernized and due to story of Sada Nand Kukreti Garhwali prose literature got modernization.
                      Credit goes to Isaac L. Peretz (1851-1950),  Sholom Aleichem , for initiating modernization in Yiddish stories and credit goes to Sada Nand Kukreti for initiating Garhwali prose modernization.
                As Goldchmidt (1819-1887), J.P. Jacobsen (1847-1885) for Denmark fiction; P.C. Abjornbensen (1812-1878), Jorgen Moe (1813-1880) for Norway stories,   August Strindberg, Selma Lagerlolf (born 1858) for initiating modern Sweden fiction;  Charles De Coster (1827-1879), Maurice Maeterlink (born 1862)  for initiating modern Belgian fiction are appreciated S.D. Kukreti is appreciated for his initiating modern  Garhwali fiction.
        Vuk Karajich (1787-1864) is father of modern Serbian literature and Sada Nand Kukreti is father of modern Garhwali prose.
           As Neruda and Svatopluck Cech (1846-1908) are regarded initiating modern Czechoslovakian fictions Sada Nand Kukreti is regarded for modern Garhwali fiction. Sada Nand Kukreti has same place in modern Garhwali fiction literature as Greece fiction writers Demetrois Bikelas (1835-1908) has in Greece fiction literature.
     I.l. Caragiale (1852-1912), Marie queen of Romania (born 1875) initiated modern fiction in Romania and Kukreti initiated modern fiction in Garhwali language.
          Dimitr Inanov (born 1878) is considered modernizing Bulgarian modern short stories and same was Sada Nand is the father of modern Garhwali stories.
               Sada Nand Kukreti is remembered for his initiating acts in Garhwali story world as Ricardo Fernandez-Garcia (born 1867), Machado de Assis (1839-1908), V. Garcia-Calderon (b.1890) R.Blanco-Fombona, Ruben Dario (1867-1916) are remembered for their initiation in modern fiction of South America.   
                   Washington Irving (1783-1859), N.Hawthorne (1804-1864), Edgar A. Poe (1809-1849), Mark twain 91835-1910), Ambrose Bierce (1839-1914), Bret Harte (1839-1902), O.Henry  (1862-1910) took initiative for developing modern north American fiction. Same way, Sada Nand Kukreti took imitative for developing modern Garhwali fiction literature.
   Rama Prasad Ghildiyal rightly said that the story’ Garhwali That’ is competent enough to compete any story in any language of all times.
Reference-
1-Abodh Bandhu Bahguna, 1975, Gad Matyki Ganga, Alaknand prakashan, Delhi, India 
2- Dr. Anil Dabral, 2007, Garhwali Gady Parampara: Itihas se Vartman
3- Barrett Clark and Lieber (editors), 1925, Great Short stories of the world, Robert M. McBride and co

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2/6/2012     

Notes on initial great modern stories; South American initial great stories; North American initial great modern stories; east European initial great modern stories; West European initial great modern stories; South European initial great modern stories; Asian initial great modern stories; south Asian initial great modern stories; SAARC countries initial great modern stories; Indian subcontinent initial great modern stories; Indian language initial great modern stories; north Indian language initial great modern stories; Himalayan language initial great modern stories; Mid Himalayan  language initial great modern stories; Uttarakhandi language initial great modern stories; Kumauni language initial great modern stories; Garhwali language initial great modern stories to be continued….

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
कना कना ग्राहक !
 

भीष्म कुकरेती

 

 एक कम्प्यूटर कम्पनी मा शिकैत आई

ऑपरेटर  - गाहक  जी ब्वालो क्या सिकैत च?

गाहक- मेरो वर्ड प्रोसेसर इ नी चलणो च

 ऑपरेटर- अछा ! क्या होणो च? 

गाक - वु क्या च , मि टाइप करणों छौ कि अचाणचक म्यरा टाइप कर्याँ  शब्द  कखि भाजि गेन

 ऑपरेटर- हैं! कखि भाजि गेन?

गाक- वूं.. वूं ..मतबल शब्द हरची गेन

ऑपरेटर- वो! तुमारो कम्प्यूटर स्क्रीन कन दिख्याणु च?

गाक- खाली च .

ओपरेटर- खाली च?

गाक- ह यू स्क्रीन कुछ बि स्वीकार  नि करणो च मतबल  मि कुछ बि टाइप करणों छौं ,स्क्रीन मा कुछ बि नि आणो च .

ऑपरेटर - क्या अप अबि बि वर्ड फाइल मा छंवां ?

गाक- मि तै कनकै पता चलण  कि मि वर्ड फैल मा छौं कि ना ?

ऑपरेटर - अछा ! तुमर स्क्रीन मा ए.बी.  वळु  सी (C ) पौम्प्ट  दिखेणु च .

गाक- यू सी (C ) पौम्प्ट  क्या हुंद?

ऑपरेटर - चलो रौण द्याओ. ज़रा अपण कर्सर तै स्क्रीन मा घुमावदी

गाक- स्क्रीन मा क्वी कर्सर इ नी च. मीन ब्वाल नी च बल कम्प्यूटर मेरो टैपिंग तै स्वीकार इ नी करणों च.

ऑपरेटर- क्या तुमर मोनिटर मा पावर इंडिकेटर च ?

गाक- मोनिटर क्या हुंद?

ऑपरेटर - यू टी.वी. जन इ होंद.इख पर एक लाईट होंद जु बतांद बल मोनिटर अर कम्प्यूटर औन  च कि ना .

गाक- मि नी जाणदो कि ..

ऑपरेटर- अच्छा मोनिटर को पैथर द्याखो अर पता करो कि मोनिटर पुटुक  एक बिजली तार जाणो छ कि ना.बिजली तार दिखेणु च कि ना?

गाक- मै लगद  , हाँ !

ऑपरेटर - बढिया. अब इन द्याखो कि मोनिटर बिटेन बिजली तार बिजली मेन स्विच तलक जयुं च कि ना ?

गाक- हाँ! हाँ ! स्विच बिटेन बिजली तार मोनिटर  तक जयूँ च

ऑपरेटर - भौत बढिया. ज़रा मोनिटरो पैथर द्याखदी कि उख द्वी हौर केबल याने तार  छन कि ना /

गाक- हाँ सैत होला, सैत  च जरुर होला .

ऑपरेटर- अब इन द्याखो कि इ द्वी केबल मोनिटर पर टैट से कस्यां छन कि ना?

गाक- पण मि उख तलक नी पौंछि सकुद

ऑपरेटर- पौंछणै  कोशिश त कारो।

गाक- पण कोशिश ?

ऑपरेटर-जरा पुठया जोर लगाओ त सै !

गाक- पण कनकै?

ऑपरेटर-अच्छा कनि कौरिक द्याखो त सै ! ऊँ ..ऊँ ..इन कारो घुण्ड मा बैठिक द्याखो ..

गाक- अरे पर कन कै दिखण

ऑपरेटर- जरा कै बि कोण से त द्याखो कि कम्प्युटरो दुई केबल ठीक से  कस्यां छन कि ना .

गाक- ह्यां ! पण  दिखण कन कै च?

ऑपरेटर- चलो हथ लगैक  इ सै

गाक- पण मीन कनकैक हथ लगाण या दिखण ? म्यार आंख्युन दिखेणु नी च .

ऑपरेटर - क्या  आपै नजर कमजोर च ?

गाक- ना , ना उज्यळ मा मी साफ़ दिखदु

ऑपरेटर- अरे त द्याखो ना .

गाक- कन कै दिखण इख पुट अन्ध्यरु  च

ऑपरेटर- क्या मतलब?

गाक- वु क्या च . आज हमर इख सुबेर बिटेन लाईट जईं च

 ऑपरेटर- हे म्यार  भुभरड़ इन बात च . अछा इन कारो ये कम्प्यूटर तै बांधो अर जै  दुकान मा तुमन यू कम्प्युटर ल्याई वै तै दे द्याओ 

गाक- अच्छा ! मसीन इथगा खराब ह्व़े ग्याई

ऑपरेटर- हाँ अबि मसीन तै दुकानी म ली जाओ.

गाक- अच्छा ! उख क्या बुलण ?

ऑपरेटर- इन बोलि दियां कि तुम सबसे बड़ा मूर्ख ग्राहक  छंवां जैन बेवकूफी मा कम्प्यूटर खरीद.

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
                                पवित्र गौन्त्या पौणु


               प्रवासी यहुदियुं    यिड्डिश भाषौ एक नामी कथा 

                     कथाकार- शोलोम एलिकेम (राबिनोविच )



                                                अनुवाद - भीष्म कुकरेती


( यिड्डिश जेरुसलम से भैर जयां प्रवासी यहुदियुं   क भाषा च. या भाषा  जर्मनी अर हौरी भाषों

से मीलिक बौणि.  यिड्डिश भाषा मा  लिख्युं साहित्य को इतिहास सिरफ़ तीन सौ साल पुराणो च .

पण ईं भाषा मा प्रवासी यहुदियुं न  भौती बढिया साहित्य गड़ी/रच .
 
 यिड्डिश कथौ मा रूसी साहित्य कि छाप जरूर राई पण ऊंको कथों मा यह्यूदी संस्कृति,

यहुदियुं जेरुसलम कि खुद- याद, यहुदियुं प्रवास  मा संघर्ष पूरो मिल्द अर याँ से  यिड्डिश कथा अलग इ पछेणे 

जान्दन अर ऊंको अस्तित्व इ अलग च.

 .शोलोम एलिकेम (राबिनोविच -१८५९-१९१६ ई. ) को नाम आधुनिक कथाकारों मा भौत  इ आदर को नाम च.

शोलोम एलिकेम  की कथों मा प्रवासी यहिद्यूं संघर्ष, दुःख की बात  होंद अर ट्रेजिडी मा हौंस बि होंद.

पवित्र गौन्त्या मा बि प्रवासी यहिद्यूं क जेरुसलम की 'खुद ' की , याद की ट्रेजिडी च अर दगड मा हंस्योड्या ब्युंत /स्टाइल बि च.)

 

                                 पवित्र गौन्त्या पौणु  (दि  पासोवर गेस्ट )

" भोळ  इख गौन्त्या पौण रेब योनेह आणु  च. तीन अपण जिन्दगी मा कबि बि इन पौणु नि देखी होलु !"

" वो पौणु कन छन  ?"

"पूरब  को  मनिख"

"यांको मतबल ?"

"मतबल एक पवित्र यहूदी , एक बड़ो नामी गिरामी मनिख. बस एकी बात च बल वो हमारि बोली यिड्डिश भाषौ मा  नि बोल्दन."

"त  वूं  कें भाषा मा बचळयान्दन ?"

"हिब्रू भाषा  मा ."

" क्या वु जेरुसलम का छन?"

" मी नि जाणदो बल वु कखक छन  पण कुछ अजीब इ छन"

मेरो बुबा जी अर मंदिरौ  पुजारी जी मा  या छ्वीं लगणा छया.गौन्त्या पौणो बारा मा मी उत्सुक ह्व़े गेऊं.

मी सुचणो छौ बल कनो होलु वो यहूदी जो यिड्डिश (प्रवासी यहुद्यूं गडी  भासा )   भाषा नि जाणदो अर कुछ अजाण भाषा मा बचळयांदो. मेरो हिसाब से त

यहूदी भासा माने यिड्डिश बोली..

 

      मीन मन्दिरौ धर्मशाला मा  वै विचेतर मनिखौ दर्शन करीन. कुछ अजीब सी सूरत, वैकी  फर की टोपी पैरीं छे अर वैन कमर पर

लाल, नीलो , अर पीलो रंग क धारीदार टर्किश डुडड़ो पैर्युं छौ. 

 हम सब बच्चा वै ऊपरी   मनिखौ चारो तरफ खड़ा ह्व़े गेवां. अर वै मनिख तै इन घुरणा छया जन बुल्यां वो कै हैंकी दुनिया बिटेन ऐ होऊ.

मन्दिरौ पुजारिन रुसेक बोली ," तुम बच्चों तैं कै ऊपरी मनिखौ मुख ऐथर इन नि रिंगण  चएंद. "

उख लोग आणा छया अर वै ऊपरी मनिख तै सिवा लगाणा छया.  भुरिण दाड़ी  वळु लोकुं  सिवा बर्जणा छया.अर फिर सिवा क जबाब मा बुलणा छया," शालोम , शालोम"

वै ऊपरी मनिखौ ," शालोम , शालोम" बुलणो ढंग अर हम प्रवास्यूं  ," शालोम , शालोम" बुलणो ढंग मा जमीन असमानों भेद छौ.

हम सौब बच्चा ऊपरी मनिखौ ," शालोम , शालोम" बुलणो ढंग  पर खित खित  हंसण मिसे  गेवां. . याँ पर पुजारिन हम बच्चों तै  हथन  सैन कार

कि इन हंसण ठीक  नी च.

             अब मन्दिर की बैठकौ परांत अजाण पौण म्यार बुबा जी क दगड चलण मिस्याई/बिस्याई अर जनि मै पता चौल बल गौन्त्या पौण हमर घौर जाणो च त म्यार पुठुन्द नौ पूळ पराळ जाण बिसे/मिसे गेन. मै पर घमंड चढी गे बल  म्यार दगड्या  जळणा ह्वाला. अपण दगड्यों तै ख़ुशी अर घमंड मा जीव भैर गाडिक चिरडाई  की द्याखो महत्वपूर्ण मेमान हमर ड़्यार  जाणो च.  रस्ता मा सौब चुप चाप इ चलणा रैन .ड्यारम ऐक बुबा जीन गौन्त्या पौणो परिचय ब्व़े से कराई. म्यरा ब्व़े बुबा जीन गौन्त्या पौणो  आदिर/ स्वागत करी. स्वागतो जबाब मा गौन्त्या पौण बुल्दो ग्याई, "  शालोम"  "शालोम" . यां पर मी तै अपण दगड्यों हंसण याद ऐ गे. मीन अपण मुख मेज तौळ लुकै  जां से मि कखी खितखित नि हौंस जौं. मि गौंत्या  मेमानो  जिना बार बार दिखणु छौ. मि तै मेमानौ /पौणौ पैनावा पसंद आणु छौ. मी तै वैको लाल, पीलो अर नीलो रंग को तुर्की तिगड़ा (कमर पर  बंधीं रस्सी ), भूरिण दाड़ी क बीच लाल लाल गल्वड़, झाडीनुमा भौं क तौळ  बिगरैली काळी आंखी भौत पसंद ऐन.म्यार बुबा जी भीत इ पुळयाणा (खुश) छ्या अर पौणौ दगड आनन्दित होणा छया.मेरी ब्व़े पौण तै आम मनिख से भौत जादा आदर दीणि छे.  बुबा जी छोड़िक गौन्त्या पौणौ  दगड क्वी कुछ नि बचळयाणु (बातचीत) छौ. बुबा जीन पौण तै  मेजक एक छ्वाड़ो  गद्दीदार कुर्सी मा बिठाळ.

            ब्वे मेमानौ खुणि खाणको इंतजाम मा  व्यस्त छे अर दगड मा नौकरानी बि   ब्वेक साथ दीणि छे. बुबा जी गौन्त्या पौणअ दगड हिब्र्यु भाषा मा बचळयाणा. मी तै गर्व च कि मी हिब्र्यु बिन्ग्दो छौ. बुबा जी अर गौन्त्या पौण मा किदुइश बुलणो बगत आई त  इन छ्वीं लगीन-

म्यार बुबा जी ---"नू?"   (क्या आप किडूइश  बुलिला?")

पौण---- नू-नू (भलो च आपी ब्वालो")

बुबा जी ----नू- ओ? (आप किलै ना?)

पौण ---- ओ-नू (मी किलै?)

बुबा जी ---- आई.ओ! (पैल आप)

पौण - ओ-आई (पैल आप)

बुबा जी - ई.ओ-आई (मी प्रार्थना करदो कि पैल आप)

पौण - आई-ओ-इ ( मी आपसे प्रार्थना करदो )

बुबा जी - --आई-ई-ओ-नू ?(आप मना किलै करणा छं वां?")

पौण -- ओई-ओ-इ-नू- नू! (आप जोर करदां  त ठीक च !)

   अर पौण न म्यार बुबा जीक हथ  बिटेन वाइन को कप ले, अर एक कुड्डिश  मंत्र पौढ़ . पण कनफणि सि कुड्डिस  पूजा मंत्र थौ  धौं !  हम  प्रवास्युं न इख इन कुड्डिश मंत्र कबि ना त सुणि थौ अर मै नि लगदो हम कबि इन कुड्डिश मंत्र अगने सुणला . पैल त यू मंत्र हिब्र्यु भाषा मा थौ , फिर या आवाज वैकी  दाड़ी से ना इन लगणो थौ  जन बुल्यां मंत्रु अवाज कमर को डुडड़ो से आणि ह्वाऊ धौं ! म्यार दगड्या इखम होंदा त उंको  खित खित हंसण से तमासो लगी जाण थौ.

            इखुली नौनु होण से मेरो ब्यवहार ठीक थौ . मीन अपण बुबाजी से सवाल पूछिन.  अर फिर हमन दगडया दगड़ी हगदाह पूजा मंत्र पौढ़. मी तै बड़ो भलो लग कि गौन्त्या आदरणीय पौण सिरफ़ हमारो थौ अर कै हैंको नि थौ.   

              हमर पुराणा एक यहूदी संत  न एक बात लेखी छौ बल खांद दै चुप रौण  चएंद अर खांद  दें बचळयांण बुरी बात च. पण वै यहूदी संत तै पता नि रै होलू बल यहूदी खांद दें नि बचळयावन त कब  बचळयावन?   खासकर जब समौ नि होऊ अर भौत सि बथा खाण से पैलि, खांद दें अर खाणा खाणो परांत बथाण जरोरी ह्वावन त  तब?  नौकरानी न हम सब्युं तै पाणी दे अर हमन हथ ध्वेन अर बेनेडिक्सन  मंत्र द्वरै. ब्वेन माछो साग अर हौरी खाणक टेबल मा धार. म्यार  बुबा जीन  अपण बौंळ बिटेन अर पौणो दगड हिब्र्यु मा छ्वीं लगाण मिसे गेन. छ्वीं भौत लम्बी लगिन.

बुबा जीन  छ्वींक  पवाण लगाई जन हरेक (प्रवासी) यहूदी हैंको यहूदी तै पुछद,"

"तुमर नाम क्या च ?"

"अयक बेकार गाशल दामास हैनोक वासाम जान साफफ टाटजाट्ज "

इथगा बड़ो नौ सुणि क  म्यार बुबा जीक हथ हवा मा इ जख्यक   तखी रै गेन. 

मीन खांस अर अपण मुख  मेज  तौळ ली ग्योंऊ .

ब्वेन   मेखुण ब्वाल," फेवल !  त्वे तै ध्यान लगैक खाण चयेंद कखी मछकंद (माछु काण्ड ) त्यार गौळ पर फंसी  गे त ?" अर दगड मा पौण जिना खौंळेक सि दिखणि राई. इन कनफणि सि नाम ब्व़े क बिंगण (समजण) मा नि आई. 

बुबा जीन हम सब्युं तै बिंगांद  ब्वाल," अयक बेकर याने अलेफ -बेस , हमारो वर्णमाला च अर नाम धरद या बथाण दै यू वर्णमाला क प्रयोग एक जरुरी रिवाज च."

पौण न नौकरानी समेत हम तैं प्रेम से दिखद दुवराई, " अलेफ-बेस , अलेफ-बेस.." पौणो काळी आंख्युं मा हम सब्यूँ  खुणि ममत्व अर दोस्ती भाव  छ्या.

नाम जाणणो परांत बुबा जी न पूछ बल ग्यानी पौण कै जगा को च ? ( जगों नाम से मीन समज ) . बुबा जी  ब्व़े तै यिद्दिश (प्रवासी यहूद्यूं  भासा) मा बिंगाणा छया. नौकरानी अर मेरी ब्व़े खौंळयाणा छया. किलैकि,  क्वी बि मनिख,   द्वी हजार  मील चलिक चालीस दिन चालीस रात्यूं मा सात समुन्दर , पाख पख्यड़, रेगिस्तान  पार कौरिक  थुका आन्द. 

बुबा जीन अनुवाद कौरिक बताई बल  उख इजराइल स्वर्ग च, लौंग हुन्दन , भौत सा मसाला हुन्दन , जड़ी बूटी हुन्दन , बनि बनि फल जन सेव, आडु, नारंगी, लिम्बू अर तिमुल,  बेडु होन्दन. उख सोना चांदी जडित मकान हुन्दन, अर इनी थाळी गिलास बि सोना चांदी क हुन्दन, उख भौत बनिक जर जेवरात हुन्दन.

ब्वें न पूछ," ह्यां ! जब उख इथगा चीज बस्तर होन्दन त इख किलै नि लांदन अर वां से खूब कमाई बि होली. जरा पौण तै पूछो त सै!" 

बुबा जीन हिब्र्यु बोली  मा  ग्यानी गौन्त्या पौण तै ब्वेक  पुछ्याँ सवाल पूछिन.

पौण न हिब्रू मा जबाब दे अर बुबा जीन अनुबाद कौरिक बथाइ," जब तुम उख जाओ त जु चयाणु च स्यू इस्तेमाल कारो पण  उख बिटेन कुछ बि नि लै सकदवां."

ब्वेन पूछ," किलै?"

बुबा जीन अनुबाद कौरिक समजाई," जु तुम उख बिटेन क्वी चीज भैर ल्हैल्या त या तुम तै डाळ मा फांसी दिए जाली या पथर्यौ कौरिक मारे जाल"

पौण न भौत सि कथा सुणैन  अर जन जन वो कथा सुणान्दा गेन  हम सौब उथगा इ जादा रोमांचित हुंदा गेवां :

" वु देश यहुदद्यूं  क च जु उख रौंदन. यूँ यहुद्यूं तै सेफार्दिम बुल्दन. अर ऊंको राजा बि छ जो यहुदी च. यहूदी रज्जा बड़ो पुण्यात्मा रज्जा च. फर की टोपी पैरण वळ  रज्जा को नाम च - जोसेफ-बेन- जोसेफ. जोसेफ बेन-जोसेफ सेफार्दिम को सबसे बड़ो धर्मगुरु च. वो छै घ्वाड़ों चमकदार रथ मा भैर जांद अर  जब वो यहूदी मन्दिर मा पौन्छ्दो त   लेवाईट लोग धर्म गुरु क स्वागत गीतुं से करदन "

मेरो बुबा जीन पूछ," क्या मन्दिर मा गाण वळा लेवाईट  बि रौंदन?" पौण न जो जबाब दे वां से बुबा जी पुळे गेन. (लेखकीय- लेवाईट इजराइल मा धर्म अर राज करण वाळु एक ज़ात होन्द्) 

"तू  जाणदि छे? " मेरो बुबा जीन मेरी ब्व़े तै बथाई," पौण बुलणु च बल, ऊंक देस मा इन  च बल जख मन्दिरूं  मा धर्म गुरु ,लेवाईट  अर  ऑर्गन  बाजा होन्दन  "

 " अच्छा! अर वेदि  ?" मेरी ब्वें न पूछ

मेरो बुबा जीन जबाब मा ब्वाल,'  पौण बुलणु च बल हाँ हाँ ऊंक मंदिरूं   मा बि जेरुसेलामो तरां वेदि अर बलि वेदि होंद."

मेरो बुबा जी अर मेरी ब्व़े न दुयूं न पता नि किलै कनफणि सि  लम्बी साँस ले धौं ! हाँ यो जरूर च बल हम तैं गर्ब हूण चयेंद, पुळयाण चयेंद/खुश हूण चएंद बल हमम  इन धरती च जख हमारो यहूदी राजा च, हमारो इ धर्म गुरु च, जख लेवाईट  जाति क लोग छन, जख  मंदिरूं मा वेदी च, बली वेदी च, ओरगन बाजा होंद. मेरो दिमाग मा मिठो  मिठो, बढिया- बढिया ख़याल आण बिसेन .अर  मी अपणी पुरखों की पवित्र यहूदी धरती क  खयालूं मा डूबी गेयुं .पवित्र यहूदी धरती जख कूड पाइन-वुड का छन अर कूड़ों छत , मुंडळ  चांदी का जन चमकीला छन, जख फर्नीचर सोना क छन, जख हीरा अर मोती रस्तों मा पड्याँ  रौंदन! अर  कास मि ऊख यहुद्यूं पवित्र धरती मा  जै सकदो !  जु मि उख जै सकदो त कनि कौरिक बि लुकै छुपैक अपण ब्वे कुण पवित्र धरती से हीरा क मुरखल, अर  कथगा इ मोत्यूं खगुळी, हंसुळी  गुलबंद लान्दो.  मीन अपण ब्वे क ज़िना द्याख अर जैन्क  मुरखल पैर्या छ्या. मि तै अपण पुरखों पवित्र धरती क खुद लगण लगी गे. मि तै अपण यहुद्यूं  पवित्र धरती जाणै बडी इच्छा हुण बिस्याई . मीन स्वाच बल मि चुपके से बगैर कै तै बतयाँ चुपके से पौणो दगड अपण असली धरती म जौलू . मि अपण जिकुड़ी क गाणि-स्याणि /तीब्र इच्छा  सिरफ़ पौण तै बतौलु जां से क्वी  कुछ नि जाणो . मि पौण से प्रार्थना करलू बल चाए कुछ दिनों को इ सै मि तैं यहुद्यूं क पवित्र धरती क दर्शन कारणों ली जाओ.  मि तै पूरो भरवस छ बल पौण मि तै यहुद्यूं पवित्र धरती दिखालु. पौण  बड़ो मयळु च, वैको व्यवहार नौकरानि दगड  बी भलो च अर जरूर पौण मि तै इजराइल हमारो असली देस लिजालो.

  ये मेरी ब्वे!  पौण न  मेरी मन क बात पौढी दे. 

पौण न बोली," प्यारे बच्चे ! धीरज धौर .  पासोबर पूजा क बाद ही  यांको प्रबंध करला."   

   मि सरा रात सुपन्याणो रौंऊ.

मीन सुपिन मा द्याख बल, मरुस्थल, रगड़, बळु , छाम (ताड़) का लदफक डाळ, मन्दिर, एक मन्दिर को बड़ो धर्म गुरु अर रौन्तील्या पहाड़,पाख पख्यड़.मी पख्यड़  (पहाड़ी ) मा चढ़णो छौं.वीं पवित्र धरती कि डाळियूँ पर हीरा -जवारात्यूँ फुळड़ा लग्यां छन. म्यरा दगड्या   हीरा -जवारात्यूँ क  डाळियूँ मा चड्या छन अर डाळो फ़ौट्यूँ  /शाखाओं तै हलाणा छन.  हीरा जवारात दणमण दणमण कौरिक  भीम /भ्युं पड़णा छ्या.में जमीन मा इ रैक हीरा जवारात टिपणु छौं अर सरासरी अपण खीसा पुटुक घळणु छौं.खौंळयाणै बात या छे बल मि जनि जनि हीरा जवारत खीसा  पुटुक घळदु ग्यों  तनि तनि मेरो खीसा पुटुक  हौरी बि जगा बढ़दि गे. मि अपण  खीसा भरदो ग्यों , भरदो ग्यों. अर फिर सुपिन मा मीन अपण खीसाउन्दन चीजुं तै भैर गाड त वो हीरा जवारात नि  छया बल्कण मा पवित्र  धरती का फल जन कि सेव, आड़ू, दळिम, खजूर, बेडु-तिमला, ओलिव, अखोड़ जन फल छ्या. मी दुखी ह्व़े गेऊं. अर मीन ऊं सौब फलूं तैं  इना उना  चुलै दे.

  फिर मि सुपिन मा क्या दिखदु बल मि यहुद्यूं क पवित्र धरती क मन्दिर मा छौं. मीन पुजारी क मंत्र सुणिन, लेविट को गाणा सुणिन, ओरगन बजद सूण. मि मन्दिर भितर जाण चाणो छौ.  मेरी नौकरानी  रिन्केल न म्यार हथ पकड्या छन अर वा मि तै मन्दिर भितर नि जाणि दीणि च. मीन भौत मिन्नत कौर पण वा नि मानी . फिर मि दुखी ह्व़े गेऊं. मि बिज्दो छौं अर मेरो बुबा-ब्व़े दुखी छन. मेरी ब्व़े का कंदुड़न्द मुर्खल नि छ्या, मेरो बुबा जी अध्नंगा छया. सबि रुणा छ्या.  मेरो छ्व्टो मगज मा कुछ बि बिंगण /समज  मा नि आणों छौ.

असलियत  मा हमर पौण गायब छौ अर हमर ड्यारौ    सौब मंहगा भांड -कूंड, सोना चांदी क भांड-कूंड जन कि चांदी चमचा, चांदी चक्कू,  ब्वेक जर जेवरात  सौब गायब छ्या इख तलक कि नौकरानी रिंकल बि गायब छे.

  मेरी जिकुडि मा छाळा पोड़ी गेन। दुख यांको नि छौ बल ड़्यारक चांदी क कप, चांदी क तस्तरी , चांदी क चमचा, चांदी क करछुल, गायब छन. दुख यांको बि नि छौ बल  ब्वेका गैणा (जेवरात )  गायब छन अर ना इ दुख यांको छौ बल नौकरानी रिकल गायब च. दुख यांको छौ बल पवित्र धरती गायब छे, वा धरती गायब छे जख रस्तों मा हीरा , मोती , जवरात होन्दन, दुख यांको छौ कि वा धरती गायब छे जख मंदिरूं  मा धर्म गुरु होन्दन, जख मंदिरूं मा लाइवेट  होन्दन, मंदिरूं मा ओरगन बजये जांद, मन्दिर कि वेदी गायब हुणो दुख छौ, मन्दिर की बली वेदी गायब हुणो दुख छौ, असली दुख यांको छौ बल क्वी मी मांगन  पवित्र धरती की  सुन्दर से सुन्दर चीज ली गे, मी मांगन ली गे, मी मांगन ली गे.

मीन अपण मुख दीवाल ज़िना कौर अर सुरक सुरक किराण  बिसे गेऊं

 

   

Reference:

Sholom Aleichem, 1923 ,  THE PASSOVER GUEST  , Great Short Stories of the World

( १०७५ पेज की यह पुस्तक मैंने सडक से खरीदी थी व कई पन्ने फटे  हाल में हैं  कुछ पन्ने गायब या खस्ता हालत में हैं इसलिए सम्पादकों का नाम  उपलब्ध नही है.) 

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
Adventurous and Horror Story in Garhwali दैसत अर सांसदार कथा

 

              छठों भै कठैत की हत्या ?
 

                    story writer   भीष्म कुकरेती
                     

              हौर क्वी हूंद त डौरन वैक पराण सूकी जांद पण मेहरबान सिंग कठैत त राजघराना को संबंधी  छौ

       राजा प्रदीप शाह को खासम  ख़ास महामंत्री पुरिया नैथाणी सनै कौरिक खड़ो ह्व़े अर वैन कैदी

मेहरबान सिंग कठैत तैं द्याख .

फिर पुरिया नैथाणी न मेहरबान कठैत को तर्फां   देखिक , घूरिक ब्वाल," ओह ! कठैत जी!  जाणदवां  छंवां तुम पर

क्या अभियोग च?"

मेहरबान सिंग कठैत न जबाब दे,' पुरिया बामण जी ! अभियोग? जु म्यार ब्वाडा क नौन्याळ पंच भया  कठैत तुमर

पाळिक बजीर मदन सिंग भंडारी , हमर बैणि क जंवैं  भीम सिंग बर्त्वाल जन लोकुं हथों न दसौली ज़िना नि  मारे  जांद

अर तुम पकडे जांद त  तुम क्या जबाब दीन्दा ? बामण  जी जरा जबाब त द्याओ."

पुरिया नैथाणी न ब्वाल," खैर .. हाँ त ! खंडूरी जी ! डोभाल जी ! जरा हम सब्युं समणि   मेहरबान सिंग कठैत पर क्या क्या अभियोग छन सुणाओ.!"

खंडूरी न पुरिया नैथाणी, भीम सिंग बर्त्वाल, मदन भंडारी, सौणा  रौत, भगतु  बिष्ट , डंगवाल, भागु क नौनु सांगु सौन्ठियाल  अर सात आट और मंत्र्युं  ज़िना देखिक ब्वाल," 

मेहरबान सिंग कठैत क  भायुं - सादर सिंग, खड्ग सिंग आद्युं न जनता पर स्युंदी सुप्प डंड, हौळ डंड, चुल्लू डंड, सौणि सेर  जन क़र लगैन  अर जनता

तैं राणि राज अर प्रदीप शाही खिलाफ कार."

मेहरबान न बेधडक ब्वाल,' डंड   लगाण त क्वी राजशाही कि  खिलाफात नी होंद. राजा क बान इ कर लगये  गेन ."

सांगु सौन्ठियाल न ब्वाल,' पण जब कर राजकोष मा आओ त ठीक छौ. भाभर, रावाईं  से लेकी बद्रीनाथ तक इन दिखे गे कि डंड को

तीन चौथे से बिंडि  भाग तुम कठैत भयूँ न गबद कॉरी . गबन कौरी ."

अबै दें दिवाकर डोभाल न ब्वाल,' अर फिर कठैत भायुं  न कथगा  काम का मंत्रीयुं जन शंकर डोभाल, गंभीर सिंग भंडारी , भागु सौन्ठियाल की

बर्बर हत्या कराई ."

मेहरबान सिंग न ब्वाल," ठीक च त आप लोकुं न म्यार ब्वाडा क पंची नौन्याळू  हत्या कौरी आल. अब में फर क्यांक अभियोग ?"

भीम सिंग बर्त्वालन ब्वाल," मेहरबान जी तुम पर इ त बड़ो अभियोग लगण चयेंद. हम सौब तैं पता च बल पंच भया कठैतऊं  असली

दिमाग त तुम छ्या . अर को नि जाणदो बल तुम इ त कर चोरीक धन का हिसाब किताब दिखदा छया. "

                 पुरिया नैथाणी क आंख्युं सैन से एक सिपै न मेहरबान कु गात पर बंध्युं लगुल  खैंच अर मेहरबान तैं चलण पोड़.

दगड मा मेहरबान क दगड का कैदियूँ    तैं बि म्वाटा लगुलोँ  से खिंचे गे अर सौब कैदि चलण बिसेन.

                 एक उड़्यार जन कूड़ सि कुछ  छौ . उख मेहरबान अर हौरी कैदि बि लए गेन. दगड़ मा सबि मंत्री बि छ्या.

एक मंत्री भंडारी  न क्रूरता से  ब्वाल,"   देख बै मेहरबान ! .तयार दगड़ मा का  चार अपराध्युं तैं  एक एक कौरिक फांसी  दिए जाली . अर देख ली

कन फांसी दिए  जाली. "

सब्युं न  द्याख कि मथि बौळि पर एक बड़ो म्वाटो ज्यूड़ जन डुडड़ा छौ . ज्यूड़ पर कैदिक गौळु  बंधे जांद छौ अर फिर वै तैं छटाक  से तौळ छुडे जांद

छौ. भंडारी न ब्वाल,' फांसी ऊं तैं इ दियी जाली जौन कम अपराध कार."

फिर सौब हैंक उड़्यार ज़िना ऐन जख मथि जंदर बरोबर बडी बडी पथरौ जंती  छौ. कैदी तैं तौळ पड़ळे जांद छौ अर फिर मथि बिटेन पथरौ

जंती डुड़डों मदद से छुडे जांद छौ. अर य़ी जंती मोरण वाळक गात तैं तब तक थींचदा  छ्या जब तलक मोरण वाळक ह्ड्की बूरा नि  बौणि जवान.

हैंक उड्यारम राम तेल गाडणो  इंतजाम छौ. कैदिक मुंड सुधारीक वै तैं जिन्दो इ उलटो लटगये जांद छौ अर तौळ बडी कढाई चुल्ल मा धरीं रौंदी छे. फिर एक सुव्वा से

कैदिक मुंड पर दुंळ  करे जांद छे . धीरे धीरे कौरिक कैदिक ल्वे /खून गरम तचीं   कढ़ाई मा टपकदो छौ अर फिर धीरे धीरे तेल जन बौण जांद छौ .कैदी भौत देर तलक ज़िंदा रौंद छौ

अर यो डंड भौत इ खतरनाक, बीभत्स निर्दयी डंड माने जांद छौ . राम तेल की सजा बिरला इ लोगूँ तैं दिए जांद छे.

एक हैंको मिरतु दंड को इंतजाम बि छौ जख मथि बिटेन पैनी कील लग्यां जंदर जन चल्ली अपराधी  मनिख मा फिंके जांद छया   

  इन भयानक भिलंकर्या मिरतु दंड सजा दिखाणो गाऊँ क सयाणो तैं बुलये  जांद छौ जां से प्रजा मा राजाक डौर ह्वाओ.

पुरिया नैथाणी न ब्वाल," मेहरबान सिंग जी आप तैं कठैत भायूं तै सहयोग दीणो बान पन्दरा गति   'राम तेल गाडणो' या क्वी हौरी सजा दिए जाली.

फिर मेहरबान सिंग तैं  वीं  जगा  लये गे जो जघन्य अपराध्युं   बान बणी छे . वैक दगड्यों तैं कख ल्हिजये गे वै तैं कुछ नि बतये गे.

                   मेहरबान सिंग कठैत तैं मरणो डौर उथगा नि लगणो छौ जथगा डौर मिरतु मा देर हूण से लगणि छे. हिमाचल या इख शिरीनगर  मा राजघराना

मा हूण से  वो जाणदो छौ कि मंत्री या वैका पाळि दारूं मुंड धळकाण  आम बात च . मेहरबान सुचदो गे पण पुरिया नैथाणी हैंको लुतको /हाड मांस को मनिख छौ.

सौब भयुं तैं वैन जान  से मरवै   दे पण मी तैं जिंदु इ पकड़वाई . जरूर ओ मेरो मिरतु डंड तैं इथगा बीभत्स  बणालो कि क्वी हैंको मनिख वैको विरुद्ध हूणो सोची बि

नि साको. मेहरबान तैं राजघराना मा रैक पता छौ  बल मिरतु डंड मा जथगा देर लगद वो डंड वो उथगा इ तरास दिन्देर होंद.

                 य़ी कुठड़ी   ब्वालो या उड़्यार औ जेल ब्वालो क बारा मा मेहरबान तैं कुछ कुछ अन्थाज त छौ. जब रात अलकनंदा क स्वां स्वां से वै तैं निंद नि आई

त वो समजी गे कि या जगा कखम च. वो शिरीनगर कम इ आंदो छौ. बदरीनाथौ   रस्ता मा खांकरा मथि अर फतेपुर औ तौळ वैको घौर छौ पंच भया कठैत सला

मशवरा लीणो बान या  राजकोष से लुकयूँ धन दीणो  वै तैं   शिरीनगर बुलान्दा छया. मेहरबान न य़ी कोठड़ी बारा मा  सुणी छौ.क्वी अलकनंदा ज़िना भागल त सीधो

रौड़ीक गंगळ इ जालो अर हैंक तरफ सिपयों जाळ अर बीच बीच मा पाणी ढंडीयूँ से क्वी नि बची सकदो छौ. 

                 राजघराना परिवारौ  हूण से वै तैं कैदखाना से भगणै  सुजणि   इ छे. कैद से भगणो मतलब जिन्दगी.

 सुबेर दिन मा या स्याम दै तीन चार भृत  भुर्त्या आंदा छ्या. एक  सुबेर  जौ क सतु दे जांद छौ. दिन मा हैंको  जौ क रुटि  प्याज अर एक छ्वटि कंकरी लूणै   देण वाळु 
 
पर वै तैं भर्वस नि होणु छौ. हाँ स्याम दै कुठड़ी से भैर  दिवळ छिल्ल जगाण वळु अर जौ को बाड़ी, बाड़ी दगड़ो वास्ता लुण्या  पाणि  दीण वळ पर कुज्याण किलै भर्वस होण लगे

बल यो ई मनिख  कामौ च.

तिसर दिन वैन स्याम दै वळु   भुर्त्या /भृत तैं पूछ , " त्यार नाम क्य च ?"

" म्यार नाम फगुण्या नेगी च ." भृत न जबाब दे

मेहरबान न पूछ," नेगी जी तुम जाणदा छंवां बल पन्दरा गति औंसी दिन म्यार रामतेल गाडे जालो या कुचः बडी भयानक सजा ?."

" हाँ सूण त मीन बि इन्नी च  बल तुम तैं उलटो लटगैक मुंड पर स्यूण न दुंळ  कौरिक  तुमारो खून से रामतेल गाडे जालो." फगुण्या न जबाब दे

थोड़ा देर तलक मेहरबान क पुटुकउन्द डौरन  च्याळ   पोड़ना रैन. मुंड बिटेन जरा जरा कौरिक गर्म कढ़ाई मा खून टपकणो बारा मा सोचिक वै तैं

डौरन  उकै /उल्टी आणो ह्व़े गे.  फिर कैड़ो  जिकुड़ी  कौरिक मेहरबान न पूछ," त स्याम दें तू इ मेरी टहल सेवा मा रैली ?"

फगुण्या न सुरक सुरक बाच मा ब्वाल," हाँ जब तलक मथि वाळ चाल त स्याम दै  मी इ तुमारि नेगिचारी, सेवा टहल  मा रौलू .हाँ जु तुम जोर से बोलिल्या या

मी जादा देर तलक तुमारो दगड छ्वीं लगौलू त ह्व़े सकद च मेरी जगा क्वी हैंको भुर्त्या (भृत) ऐ जालो ."

मेहरबान समजी गे कि यू फगुण्या कुछ ना कुछ मदद दीणो तैयार ह्व़े जालो.

               वैदिन  इ फगुण्या न बथों बथों मा बताई बल कठैतूं एक खाश भुर्त्या घुगतू रौत  तैं लाल गरम तवा मा नचै  नचै क मारे  गे . फगुण्या न

बथै जब घुगतू रौत  तैं लाल लाल गरम तवा मा नचाणा छया त वैक ऐड़ाट भुभ्याट, रूण-धूण सूणिक  राणि बि बिज़ी गे छे बल. घुगतु रौत क

किराण से कत्ति बाळ/बच्चा  छळे गेन बल. मंत्री पुरिया नैथाणि न फिर राणी सणि समजाई बुझाई बल  बिद्रोहियों  तैं इनी

निर्दयी पन से डंड्याण  चएंद जां से हौर क्वी बि राजशाही बिरुद्ध सोचो इ ना.

             रात भर अलकनंदा क स्यूंसाट अर घुगतु राउत को लाल लाल गरम  तवा मा नचाणो बारा मा सोचिक सोचिक  मेहरबान तैं निंद नि ऐ.

 जरा सी निंद आणो  ता मेहरबानो आंख्युं मा गरम लाल लाल लोखरै पटाळ जै  लोखरै पटाळ तौळ म्वाटा म्वाटा गिंडा जळणा छन अर अळग मा घुगतू रौत

केवल नाची इ सकुद छौ. खड़ी दीवार इन छे कि क्वी बि  कुछ नि कौरी सकुद छौ. बस मोरण वाळ रोई   इ सकुद छौ अर नाची सकुद छौ । मेहरबान तैं याद आई बल

जब  खड्ग सिग कठैत न शंकर डोभाल का  एक खास समर्थक घोगड़ बिष्ट तैं लाल लाल गरम तवा मा नाचणै  सजा दे छौ त तब मेहरबान न  गरम तवा मा घोगड़ बिष्ट 

क नचण क्या जिन्दगी से संघर्ष देखी छौ. जब लोखरै पटाळ  कम गरम छे त घोगड़ बिष्ट किराणो छौ  बल ," मी तैं कुलाड़ी न मारी द्याओ .. ए ब्व़े .. मेरी मौण

धळकै द्याओ पण इन तरसे तरसेक नि मारो'.  धीरे धीरे घोगड़ बिष्ट केवल किराणो इ छौ. अर जथगा बि दिखण वाळ छ्या वो हंसणा छया. तब मेहरबान बि हंसणो छौ. 

         चौथू दिन स्याम दै फगुण्या आई , भैर दिवळ छिल्ल जळैक वैन  बथाई बल आज कठैतूं घोर पाळिदार मंगला नन्द मैठाणी तैं घणो जंगळ मा लिजये गे  अर उख

खड्डा पुटुक किनग्वड़ो , हिसरौ  काण्ड अर दगड मा कळी बुट्या डाळे गेन अर फिर मंगला नन्द मैठाणी तैं जिंदु वै खड्डा मा डाळे गे. फगुण्या न अगने बथाई

 बल  सौब बुना छया बल  भोळ  या पर्स्युं  तक मंगला नन्द मैठाणी तरसी तरसी क मोरी इ जालो. यीं बात सूणिक मेहरबान  सिंग क अंग फंग कामी गेन.

   फिर  फगुण्या न अपण खिसा उन्दन द्वी बड़ो प्याजौ  दाण अर पांछ छै कंकर ल़ूणो निकाळ अर  कोठड़ी  क जंगला बिटेन मेहरबान तैं

पकडै क ब्वाल,' . कनि कौरिक बि मी अपण घौरन  यूं चीजुं तै लौंउ . बाड़ी मा या रुट्टी मा ... "

 मेहरबान न ब्वाल,' हूँ! ज्यू त इन बुल्याणु कि त्वे तैं भौत सा इनाम किताब द्यों पण इख  मीम क्या च ? खन्नू  बि नी च ."

फगुण्या न कुछ नि ब्वाल पण मेहरबान न ब्वाल," हाँ जो बि मेरी सेवा टहल करदारा रैन मीन ऊं तैं खूब इनाम दे.पण आज त्वे तैं मी क्या द्यूं?"

    "नै  जी  ! मी तैं बदरीनाथै किरपा से तनखा मिलदी छें च. इनाम किताब कि क्या बात ?" फगुण्या  न ब्वाल.

मेहरबान न  कनफणि सि,  अजीब सि भौण मा ब्वाल,' हाँ तनखा अलग बात च अर मातबर, थोकदारूं  थोकदार मेहरबानौ तर्फां न इनाम किताब अलग इ बात च.

चार दिन पैलि मींमंगन इनाम पाणो बान  ढांगू ,  उदैपुर , रवाईं, बदलपुर, माणा, जन दूर जगौं  बिटेन उखाक थोकदारूं  पंगत लगीन रौंदी छे."

फगुण्या न बोली,' जी ! जाणदो छौं."

मेहरबान  न सुरक ब्वाल," क्या बात नेगी जी तुम भौत मातबर छं वां क्या?"

फगुण्या न जबाब दे, केक मातबर ! मी बि ढांगू क छौं जख जौ बि उथगा नी होन्दन जथगा इना ग्युं होन्दन .गरीब इ छौं ."

" मि तुम तैं मातबर बणै सकुद छौं ....? ' मेहरबान न भौत इ भेद भोरीं भौण मा ब्वाल.

'सची ! तुम मि तैं मातबर बणै सकदवां क्या ? ब्वालो क्या काम करण ? ' फगुण्या न बि भेद भरीं बाच मा  पूछ .

' हाँ ....जु तुम मेरी मदद करील्या त ..! " मेहरबान सिंग न सरासरी ब्वाल.

फगुण्या न पूछ ," ब्वालो ! काम क्या च ..?"

इथगा मा भैर ज़िना कुछ छिड़बिड़ाट ह्व़े. फगुण्या सुरक सुरक न ब्वाल,' म्यार पैथर बि राजा क हौरी सिपै लग्यां रौंदन कि मि कखी ..

तुमारि मदद त  नि करणु  होऊँ .बकै बात भोळ करला...हाँ .. मि अबि भैर कैदखाना क जग्वाळी मा जाणु छौं ."

      आज मेहरबान तैं अलकनंदा क स्युंसाट से फ़रक नि पोड़ पण द्वी बतुं से आज रात बि निंद नि आई.  एक तरफ मेहरबान तैं पूरो भरवास है गे

कि फगुण्या   लालच मा ऐ गे अर अब मेहरबान तैं कैदखाना से भगण मा मदद मीलली इ.

                    पण जनि मेहरबान  मंगला नन्द मैठाणी तैं काण्ड अर कळी पुटुक मारे गे कि याद आँदी छे त सरा आसा पर बणाक लगी जांदी छे.

मेहरबान न  काण्ड अर कळि से कन मौत होन्द् दिखीं छे.जब पंच भै  कटोचूं तैं भट्ट सिरा मा कत्ले आम करे गे छौ त सिरीनगर

मा  असली राज  मेहरबानौ ब्वाडौ नौनुं ह्व़े गे छौ. कठैतूं न कटोचूं ख़ास ख़ास पाळिदारूं  तैं इन निर्दयी सजा दिए 

 गे कि कटोचूं मौतौ दसों दिन बिटेन सिरीनगर मा बुल्याण बिसे गे बल अब त राणी राज नी च बल्कण मा

असल राज त कठैतगर्दी को च.

      वै दिन मेहरबान सुदन सिंग कठैत क बुलण पर  कटोचूं   खासम खासदार भक्तु डिमरी क सजा दिखणो जंगळ गे.

एक खड्डा पुटुक किनग्वड़, हिसरूं  काण्ड आर दगड़ म कंडाळी क बुट्या डाळे  गेन अर फिर उख पुटुक जोर से भक्तु डिमरी तैं जिंदु इ

चुलये  गे. भौत देर तलक भक्तु डिमरी किराई छौ ,  ऐड़ाइ छौ . फिर ऐड़ाट भुभ्याट खतम ह्व़े बस  भक्तु डिमरी क कणाट इ  कणाट

छ्या . अर फिर ल्वे बौगण से कणाट बि नि राई बस भक्तु डिमरी  किनग्वड़, हिसरूं काण्ड आर दगड़ म कंडाळी म उन्द -उब हो णु रै .

जन बुल्यां क्वी मर्युं मनिख अफिक बचणो कोशिश करणो ह्वाऊ. पीला, हौरा  काण्ड अर कंडळी लाल ह्व़े गे छ्या. जब भक्तु डिमरी

क कणाट बन्द ह्व़े त  सुदन सिंग कठैत अर मेहरबान सिंग कठैत सिरीनगर ऐ गेन. दुसर दिन फिर सुदन सिंग कठैत अर

मेहरबान सिंग कठैत भक्तु डिमरी क लाश  दिखणो गेन (कि क्वी वै तैं बचाओ ना ). सुदन सिंग तैं त ना पण मेहरबान सिंग

तैं उल्टी ऐ गे. सरा  खड्डा क काण्ड कंडाळी भूरिण भूरिण  रंग मा बदली गे छौ अर सरा खड्डा मा किरम्वळ, सिपड़ी  अर 

छ्वटा-बड़ा कीड़ो सळाबळी  मचीं छे. सड्याणि न बि सब्यूँ  तैं उकै सि  आणि छे.

            एक तरफ  भक्तु डिमरी क सजा कि याद से डौर  अर दुसरी तरफ फगुण्या की मदद से कैदखाना बिटेन भजणै बडी आस.

मेहरबान न सोची आली छौ कि भोळ कन कौरिक फगुण्या  तैं लोभ मा संस्याण . मेहरबान न घड्याइ कि फगु ण्या तैं आधा

खजानों दिए बि जावो तबी बि खजानों मा इथगा माल च बल कि आधा गढ़वाळ मोले सक्यांद च. फिर कन कौरिक बि वो खजाना लेकी

 हरिद्वार या बिजनौर ज़िना भाजी जाल अर उख फिर धन का बल पर भौं कुछ करे सक्यांद. त मेहरबान तैं कैदखाना से भैर हूण जरूरी च.

मेहरबान न पक्को इरादा कौरी याल कि  कैदखाना बिटेन भगण इ च , अर भाजी नि सौकल त कुज्याण वै तैं क्वा निरदै सजा दिए

जांद धौं . मेहरबान सिंग इथगा त जाण दो छौ बल ज्वा बि सजा/डंड  होली वा भयानक इ होली. भयानक सजा को भयंकर / भिलंकारि  डौर

अर  कैदखाना बिटेन हरिद्वार /बिजनौर ज़िना भगणो आस  का बीच मेहरबान सिंग सरा रात झुल्याणो राई .

     आज दिन भर मेहरबान सियूँ सी रै पण वै पर डौर अर आसा क दौरा बि पड़णा इ रैन

 

         स्याम दें फगुण्या आई अर वैन बथै  बल कठैत भायूं क घोर पाळिदार टिहरी को सुबान सिंग थोकदार तैं भितर ग्वडै मा तमाखू अर

सुरै लखडों धुंवा    देक सजा दिए गे. मेहरबान तै भितर ग्वडै मा धुंवां देक सजा दीणो सौब पता छौ. वैक कठैत भैयुं न बि कटोच भयात

अर डोभाल, भंडारी जन लोकुं क कति पाळिदारूं तैं भितर  ग्वाडिक तमाखू अर सुरै क धुंवां से मार . खिराणि न खांसी खांसी क मनिख

मोरी जांद छौ.   फिर से मेहरबान की आस खतम हूंद गे अर डौर भितर आन्द गे.  निर्दयी सजाऊं याद कौरिक इ मेहरबान क पुटुकुंद  च्याळ

पोड़ण बिसे गेन . मेहरबान बिसरी गे बल वैन त  फगुण्या तैं लालच देक , पटैक कैदखाना बिटेन भगणो कौंळ/योजना  बणाण छे.

पन कुज्याण भौत देर सजों तलक डौर से वो अद्बकायुं सी गाणि  मा चले गे. फिर आस वैक भितर  बैठ.

  भौत देर  परांत मेहरबान न पूछ ," मातबर बणनो कि ना ?"

फगुण्या न जबाब दे, " यीं दुन्या  मा  क्या गरीब क्या कुबेर बि हौर  अमीर होण चाणा छन. मी त एक गरीब मनिख छौं."

मेहरबान समजी गयो बल फगुण्या  लालच मा ऐ गे. मेहरबान न," मि त्वे तैं  इथगा मातबर बणै सकुद कि तुमारा

चालीस पुस्त बि कुछ नी कौरन तो बि  से-से  की जिन्दगी काटे जै  सक्याली ."

फगुण्या  क आंख्युं मा जैंगण जन उज्यळ देखिक मेहरबान न बोलि,"  पण  यांखुण मै तैं कैदखाना से भैर

हूण पोड़ल."

फगुण्या न लळसे क पूछ," मतबल?"

मेहरबान न बोली ,"हम कठैतूं मा हमर अर कटोचूं  क दबायूँ  खजानो  अबि बि च. जो खजाना पुरिया नैथाणी या हमर रिश्तेदार बर्त्वाल न

लूठी वैक समणि  जु अबि लुकायुं खजाना च कुछ बि नी च. मी बुलणु छौं तेरी चालीस पुस्त बगैर कुछ कर्याँ  खै सकदी. बस मै तैं भैर होण पोड़ल.

अर त्वे तैं मि तैं खजानों तलक लिजाण पोडल. जु तू  मि तैं खजानों तलक सही सलामत ली जैली त त्याई हिस्सा त्यार . अर जु हम वै खजानों

तैं हरद्वार ली जाण मा सफल ह्व़े जान्द्वां त खजाना अदा अदा. अदा खजानों क मतलब च तू सरा भाभर अर ड्याराडूण  मुले ( खरीद ) सकदी "

मेहरबान न जंगला क बीच क जगौं से फगुण्या क आन्खुं मा लोभ का गैणा द्याख . मेहरबान तैं भरोसा ह्वेगे बल फगुण्या वै तैं भगाण

मा अब अपणि जिन्दगी लगै दयालो.

फगुण्या न बोली ," धरती रस्ता त भगण कठण च  अर गंगा जी क जिना  भगणो मतबल सीदो रौड़ीक मोरण. पण भोळ  तक मी कुछ

सोचदू छौं कि ...!"

                    फगुण्या  मेहरबान तैं भगणो आस दिलैक  चली गे. मेहरबान तैं कुछ पता छौ बल अलकनंदा ज़िना जाण मतबल सीधा तौळ . यांक मतलब च

फगुण्या सीधो बाटो से इ वै तैं भगैक लिजालु ? पण इथगा सरल त नी ह्व़े सकदो. मेहरबान तैं याद आई बल जब कठैतगर्दी  क बगत पर

इख कैदखाना बिटेन कटोचूं एक समर्थक भाग त कैदखाना क समणि इ पकडे गे छौ अर कती गंगा ज़िना भगद  दै अलकनंदा जोग ह्वेन .

भागणै आस मा निंद हर्ची गे । फिर वै तैं डौर लग कि कखी पकडे गे त?? एक आस हैकि आस तैं  लांद अर एक  डौर हैंक डौर मन मा लांद.

              फगुण्या की मदद से  भगद दै पकड्याणो  डौर से मेहरबान तैं   टिहरी को सुबान सिंग कि मिरत्यु दंड याद आई. कनो मोरी होलू वो कठैतूं

समर्थक सुबान सिंग . छ्वटि सि  कुठड़ी अर जै  कुठड़ी  क अगल बगल मा कुठड़ी. दुई कुठड्यु दिवालूं मा दुंळ इ दुंळ.

मेहरबान कल्पना करदो गे कि  बीचै कुठड़ी मा सुबान सिंग तै ग्वडे गे होलू  अर फिर द्वी छ्वाड़ो  कुठड्यु मा तमाखू अर सुरै जळये गे होलू अर जैक धुंवा

बीचै कुठड़ी मा आन्द गे होलू. पैल पैली त सुबान सिंग खिराण न  खान्स्दो गे होलू. जिन्दगी क भीक मांगणो रै होलू. खांसद खांसद

ऐड़ाट भुभ्याट बि करदो रै होलू . फिर सुबान सिंग फगोसीन तड़फि होलू, फगोस से सुबान सिंगौ  द्वी आँखी भैर ऐ होली अर अंत मा तड़फि तड़फिक

 मोरी गे होलू. 

                  जब तलक कठैत  भायुं क मंत्री पद से मेहरबान क मजा रैन तब तलक मेहरबान न इन दुरजनी  सजा क बारा मा कबि नि सोची .

पण आज मेहरबान तै लगो कि राजकरणि मा इन निर्दयी सजा नि होण चयेन्दन. जब अपण खुटों  पर ब्युंछी   पोड़दन तबि ब्युंछीक

 डा या  दर्द पता चल्दो.

    मेहरबान फिर अपण मन तैं भागणो आस मा लायो.  अर वो सुपन्याण बिस्याई कि कन भागलु वो फगुण्या दगड . फिर खजानों से

खजाना बिजनौर ज़िना या हरद्वार ज़िना या.... हैं ! नेपाल ज़िना लिजाला अर फिर स्वतंत्र जिंदगी काटे जाली . 

  जब हैंक दिन स्याम दै फगुण्या  आई त फिर ऊ एक नई दैसत को बिरतांत बथाणो बिसे गे बल कठैतूं एक समर्थक रामप्रसाद बडोला तैं इगासुर चौन्दकोट लिजये गे

जख बल रामप्रसाद बडोला तै   शौलकुंडो सजा दिए जाली.  मेहरबान सुचदो गे बल जब बि क्वी बिरोधी पाळीदार कटोचगर्दी या कठैत गर्दी जन गर्दी खतम करदो त बिरोधी क समर्थकूं तै

देस का अलग अलग हिस्सों मा सजा दिए जांद जां से जनता मा नै पाळिवळु  दैसत  सौरी जावो ,  फ़ैली जवो। शौलकुंडो  सजा देवप्रयाग अर

इगासुर मा दिए जांद. यूँ जगा  एक कुठड़ी मा शौल पळे जान्दन अर जब बि कैतै शौलकुंडो सजा दीण ह्वाओ त वैक हथ पैथर बंधे जान्दन, वैका सरैल पर ग्यूं ,जौ,  झन्ग्वर या कोदो

बलड़ बंधे जान्दन अर मथि बिटेन शौलूं बीच डाळे ज्यान्द्। शौल तेजी से शौलकुण्डो  छुड़दन जो सजा पाण वाळक सरैल पर पुड़णा रौंदन .बिस, ल्वेखतरी से मनिख चार पांच दिनु मा मोरी जान्द.

या खबर बि दैसती खबर छे. मतबल पुरिया नैथाणी अर पाळी  पुरियागर्दी  फैलाणा छन .

    आण वळी सजा की डौर को डौरन मेहरबानौ   ल्वे मुंड मथि चौड़ी गे , कन्दूड़ लाल ह्व़े गेन, कंदुड़ो मा झमझम्याट हों बिस्याई ,

जीब खुसक ह्व़े गे.  मेहरबानौ  आँखी भैर जन आण बिसयाणा छ्या.अंख पंख कमण बिसे गेन. अबै दै  इ भगवान  बौणिक आई,

 वैन ब्वाल," मेहरबान जी! आप खजानों क अदा हिसा देल्या ना?"

 मेहरबानौ पराण पर  पराण ऐ , ल्वे मुंड से खुटों तरफ आण बिस्याई , कंदुड़ो झमझम्याट कम ह्व़े, जीब पर पाणी आण बिस्याई अर

 सबड़ाट मा मेहरबान न जबाब दे," बद्रीनाथ जी की कसम, मा धारी देवी की कसम, ग्विल्ल कि कसम उख पौंची गे त

खजानों क अदा भाग तुमारो."

 फगुण्या न बोलि , "ठीक च  भोळ काम शुरू होलू. तुम दिन मा बिटेन हरेक घड़ी झाड़ा जाणा रैन . इख सैनिकुं तैं लगण

चएंद बल तुमारो पुटुक चलणो च. अर हाँ जाण कना च? "

 मेहरबान न पूरो राजघरानों चोळा मा ऐक ब्वाल," फ़गुण्या जी !मेहरबानी तुमारी च ।तुम बि राजकरणि मा छंवां त .. कख जाण यो त मी तबी बतौल़ू

जब मी सिरीनगर से कुछ दूर भैर ह्व़े जौंलू ."

फगुण्या बि बात बिंगदो छौ,  समजदो  छौ.वैन ब्वाल,' ठीक च . जब कैदखाना से भैर जौंला त दिसा को होली?  चलो ठीक च नि बथाओ.

  यि ल्याओ मी सतेंदर अघोरी बाबा से कुछ टूण -टणमणो समान लै छौ. य़ी तीन पथरी छन यूँ तैं कुड़ी जन धौरिक , य़ी बि चार पटाळि छन  ,

यूं  तैं बि एकमंज्यूळया कुड़ जन बणैक अर  यी घासौ बुट्या  छन यूँ तैं बांधिक रात कुछ पूजा करी लेन.  मी त अघोरी बाबा क बड़ो च्याला छौं."

 अर फिर फगुण्या न खाणो दगड धरयां टूण -टणमणो समान मेहरबानौ तरफ सरकाई.

मेहरबान समजी गे बल फगुण्या  मातबर बणनो बड़ो सुपिन दिखंदेर ह्व़े इ गे. तबी त टूण -टणमणो इथगा समान लाइ.

  फगुण्या क जाणो परांत मेहरबान न उनि कार जन  फगुण्या न बोली छौ. आज मेहरबान तैं  डौर नि लग . भागणै आस आज दैसत पर हावी ह्वे गे।

इन नी च कि मेहरबान तैं दैसत वळि सजाऊं याद नि आई हो धौं !. कथगा इ कैडी दैसती, ड़रौण्या, भिलंकारी   सजौं  याद आई पण पण भाजणो आस 

क समणि सबि दैसत आँदी छे अर ख़तम हूंदा जांदी छे.. राजकरणी मा आस, अहम्, आन,बान,  शान इ राज करान्दन  अर यूँ मा आस सबसे बडी संजीवनी होंद.

आस मा इ स्वास च. 

   दुसर दिन दुफरा  इ बिटेन मेहरबान बार बार झाड़ा जाण बिसे गे अर गुदनड़ जोर जोर से इन किरांद गे जन बुल्यां बडी भारी करास लगी ह्वाऊ. सैनिक समजी गेन कि

मेहरबानौ  पुटुक चलणो च. एक न त बोली च ," घ्यू मा खाण वळ  थोकदार जौ क रुटि  खालो  त बिचारो तै करास होणि च."

             स्याम दै जब फगुण्या आइ त फिर दुयूंन सुरक फुरक कार अर    मेहरबान गुदनड़ ज़िना चल अर पैथर पैथर फगुण्या बि चौल.

 

              गुदनड़ भेळ मा छौ अर तौळ छे गंगा बौगणि. जूनी क उज्यळ मा  बि गंगा जी क फ्यूण रूंआ  जन सुफेद दिख्याणु छौ. गुदनड़ क  बगल मा लम्बा लम्बा

बबूलो (घास) बुट्या छ्या. दुयुंन  बबूलो घास पकड़ अर स्यें स्यें तौळ  रड़ण लगी गेन. इना उना गुओक पिंदका ऊँ फर लगणा छ्या  पण इन मा गुओक घीण कै तै छे.

तौळ  अटगणो छ्वटो सि जगा छे.बबूलो घास पकड़ीक उखमा ठौ ले. जरा बि इना उना  ह्व़े ना कि तौळ  सीदो अलकनंदा मा इ ग्वे लगाला. फिर पैल फगुण्या न

बबूलो घास झुळा बणाइ अर समां   झुळा झुळिक जरा दूर  हैंको अटगणो जगा मा खुट धौरिन अर फिर हैंको बबूलो बुट्या पकड़ी दे. फिर फगुण्या न एक दै हैंक झुळि ख्याल 

अर हैंको पथर मा चली गे. मेहरबान बि कम नि छयो  वो बि राजघरानो को इ छौ त  अयेड़ी खिल्दा दै रात बिर्त इन दुर्दांत काम करणो  हभ्यास त छें इ छौ. अर फिर

दैसती मिरतु डंड से त  जिंदगी क दगड इनो जुआ खिलण राजपूतों बान जादा भलो छौ. मेहरबान ण बि उनि झुळी ख्याल जन फगुण्या न बबूलो बुट्या से झुळि ख्याल .

झुळा झुळिक अर बबूल या हौरी घास या क्वी पथर पकडिक द्वी अब इन जगा पोंछी गेन जखम जमीन जरा सैणि छे अर उख बिटेन क्वी डांग, डाळ बूट या घास पकडिक

मथि तर्फां पौन्छिन जख से अलकनंदा मा रड़णो  कतै  डौर नि छौ. फगुण्या न सबसे पैल घासौ द्वी बुट्योँ  तै बाँध , द्वी  लखड़ी जमीन मा  धरीन अर फिर  कुछ मंतर ब्वाल.

  अब जूनो उज्यळ मा रस्ता त असान छौ पण राजाक सैनिकुं तैं अर मन्त्रियुं तैं कुछ इ देर मा दुयुंक भगणो पता चौलि इ जाण. बद्रीनाथ बाटो ज़िना जै नि  सकद छया

  किलैकि  सब्यून अन्थाज लगाण कि  मेहरबान अपण घौर ज़िना भाजी होलू. अर दिप्रयाग ज़िना जै नि सकदा छ्या किलैकि इख बिटेन त  सिरीनगर दिव्प्रयाग बाटो मा इ छौ .

फगुण्या न सल्ला डे बल चलो सीदो मथि जये जाओ. अर द्वी सीदो मथि घणघोर जंगळ मा उकाळि चढ़द गेन. फिर एक उद्यार सी मील  अर मेहरबानौ आँख तड्याण बिसे  गेन

जब वैन द्याख कि उख कुछ सामान पैली बिटेन धर्युं च. फिर फगुण्या न बताई कि इनी  समान वैन दिन मा बद्रीनाथ रस्ता अर दिबप्रयाग बाटो मा बि लुकायुं च. उड़्यार मथि

बिटेन पाणि छिन्छ्वड़ पोड़णो छौ इथगा  ठण्ड  मा बि दुयुन अपण सरैल साफ़ करी . अर फगुण्या न मेहरबान तै राठ ज़िना पैर्याण वळु कमळो लबादा दे आर अफ़ु बि भंगलो 

लबादा पैर. मेहरबान तै फगुण्या कि हुस्यारी पर कुज्याण किलै घंघतोळ जन भाव पैदा ह्वेन धौं.  जब अग्वाड़ी भजद दै लोक मेहरबान क मिर्जई -रेबदार सुलार दिखदा त 

साफ़ पता चौल जांद कि मेहरबान क्वी राजघराना को मनिख च. अर इनी फगुण्या क लारा बि बथै दीन्दा कि फगुण्या क्वी सैनिक च. फगुण्या न बथाई बल

अब सरासरी भगण पोड़ल  किलैकि बस कुछ इ घड्यू मा  जून अछल जाली. फगुण्या क द्वी भंगलो पिठू  लयां  छ्या जख मा बुखण /खाजा अर टूण टणमणो

सामान धर्युं छौ. ये उड़्यार से  जांद दै  फगुण्या न द्वी पथर जमीन मा धरीन  अर ऊं द्वी पथरूं अळग एक पटाळ  धार अर फिर वीं पटाळ पर पिठे लगाई. अर फिर कुछ पूजा सी कौर.

               फिर द्वी बढ़द गेन उभारी खुण . फगुण्या सैनिक इ ना हुस्यारुं हुस्यार मनिख छौ. वैन द्वी टिक्वा-लाठो  बि निड़याँ छ्या. टिक्वा क एक हिसा कील जन भौती

पैनो अर हैंको हिस्सा सपाट. फगुण्या क  सपाट टिक्वा जब भ्यूं  पोड़दो त माटो मा एक क्वी छाप बि छोड़दो थौ जन बुल्याँ मुहर लगी ह्वाऊ. सैत च यू टिक्वा सरकारी टिक्वा ह्वाऊ. 

जब धार मा को गैणा दिखेण लगी गे त फगुण्या न बोली, बस अब जून अछ्ल्याणि वाळ च  तख गदन पोड़ जांदवां . गदन मा एक डाळो तौळ फगुण्या न पैल अज्ञलू अर कबासलू से

आग जळाइ आर फ़िर् बुगुल्, लाइकेन, लिँगड़ खूंतड़ो घास पर आग लगै अर आग मा छ्वटि छ्वटि घंटि /लोड़ी धौरीन . द्वी आग टप न लगिन. जब आग बुजी गे  तो बि घंटि/लोडियूँ

तपन आग को काम करदी गे.

  जब ब्यंणस्यरिक होणि वाळ छे त फगुण्या न ब्वाल," जब सुबेर ह्व़े जाली  त इना उना राजा क बड़ा बड़ा ढोल दमाऊ से सबि जगा इख तलक कि रवाई , भाभर, माणा, बलपूर जनि जगा  रैबार

पोंछी जालो बल हम द्वी राज-भगोड़ा भागी गेवां.  त हम तैं सुबेर हूण से पैलि क्वी इन उड़्यार खुज्याण पोडल जख क्वी सोचि नि साको कि हम उख लुक्याँ छंवां. बस द्वी

फिर चलण बिसि गेन. 

             कुछ देर उपरान्त एक इन उड़्यार मील जै पर मथि बिटेन पाणी गिरणो छौ. कै बि मौसम मा इख मिनख एकाध घडि से जादा नि रै सकदो छौ. वु द्वी पैल भितर गेन . फिर फगुण्या

  भैर आई अर इना उना बिटेन बुगुल, लाइकेन, बांजौ  सुक्या लखड़ क्या क्याडा  लाइ. फिर भैर जैक वो घंटी/ लोडि लाइ अर फिर आग जळैक घंटी/ लोडियूं तै करदो  गे। आग बुझैक   घंटी/ लोडियूं

तैं फगुण्या न रंगुड़ तौळ दबाई दे. भितर सिलापौ उस्मिसि, ठंड , कीच छौ. द्वी कनि कौरिक  मथि ढीस्वाळि चिपक्यां . अबि आग से गरम वतावरण छौ. जनि सुबेर

घाम  आई कि दुयूँ  तैं  सिरीनगर से ढोल- रौंटळो बजण सुणे दे गे. इन बजण अर ताल  नयो इ छौ. अर फिर जब सिरिनगरौ ढोल-दमाऊ बन्द ह्वेन त न्याड ध्वारो

गौं क ढोल- रौंटळो  पैलि वळि  ताल की अवाज सुण्याण बिस्याई जांको मतबल छौ बल राजा  क रैबार थ्वड़ा देर मा चौ छ्वड़ी चली जालो. अब उड़्यार बिटेन भैर आण

खतरनाक छौ पण भितर भापो अर ठंड को अजीब प्रभाव छौ. गर्म घंटी/ लोडियूँ गर्मी से ठंड त कम होणि छे पण सिलापौ  कुछ नि ह्व़े सकद छौ. फगुण्या क लयां बुखण /खाजा

भूक मिटौणो काफी छया. थ्वड़ा देर मा एक बागौं डार पट उड्यारौ भैर आई.  सैत च बागुं तैं मनिखूं  गंध लगी ह्वेली  अर ले सबि बाग़ घुरण लगी गेन. द्वी हल्ला कौरी सकदा

 नि छया. फगुण्या न करामत दिखाई फटाक से बुगुल पर   अज्ञौ   कार अर बागूं  ज़िना चुलाण बिस्याई , अज्ञौ देखिक  बागुं डार भाजी गे.

                   अर बुल्दन बल  जब  दिन इ खराब ह्वाओ  त सबि जगौं  दिन मा परेशानी आन्द. कै हैंकि जगा अयेड्यू भगाण से या क्यां से धौं उना रिकुं डार भागदी  आई.

रिकुं से बचणो कि उपाय छौ उन्धारी खुण भजण पण फिर कखी हैंको धार, छाल, खाळ से  यि द्वी लोकुं नजर मा आई गे  त ? दुसरो उपाय छौ बल रिक समणि आई गे

त मुंड तौ ळ धरती मा गडे द्याओ अर साँस रोकी द्याओ.फगुण्या न सुरक ब्वाल बल भितर इ मुंड धरती मा गडे क रौण ठीक च. पण कुछ हौरी ह्व़े रिक उना बिटेन

जोर से भजण लगी गेन. दुयुंक साँस मा साँस आई.  अर उड़्यार से मथि ज़िना घ्वीड़ -काखड़ो आवाज औणि छे जन बुल्या वो ड़र्या होवन. याने कि न्याड़ ध्वार अयेडि

खिलयाणि छे. दुयूं तैं धुकधुकी लगीं छे बल  कखी  अयेडि खिलण वळ या घसेरी या लखड़ वळी इना ऐ गे ट कुज्याण क्य हुंद धौं!

         जब भौत देर तलक अब जैक दुयुंन  देखी बल  उड़्यार भितर सिपड्यू अर किरम्वळो लन्गत्यार लगीन छे. सिपड़ी , किरम्वळ भगौणो एकी तरीका छौ बल धुंआ, अज्ञौ

करे जाओ पण दुयूं तैं पता छौ कि अबि जु रिक, बाग़ अर भाजिक ऐन अर गेन त मतबल छौ मनिख आस पास छन.  बस दुयूं ध्

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
                            बिठुं पर भिड़याणो रौंस याने सवर्ण स्पर्श सुख


                             भीष्म कुकरेती

(शिल्पकार संघर्ष की एक मार्मिक कथा , a Garhwali story )



गुंडू तैं ना निंद ना चैन. तेरों दिन आण वाळ च अर गुंडू से वो नि होई जो वैको बुबा जी न कसम ल्हेकी बोली छौ.

गुंडू क बुबा जी तैं मोर्याँ दस दिन ह्व़े गे छया. मोरद दें गुंडू क बुबा जीन गुंडू से कसम ल़े छौ बल तिरैं से पैलि गुंडू बिठुं पर बिठुं क

मर्जी से भिड़यालू अर सवर्ण स्पर्श सुख ल्ह्यालू . जाँ से गुंडू क बुबा जी तैं सोराग मिली जाओ . . गुंडू न बुबा जी क सोराग पाणऐ ल्ह़ाळसा मा अपण मोरद बुबा क समणि कसम खै दे बल वु तिरैं से पैलि अवश्य ही सवर्ण स्पर्श सुख ल्ह्यालू .
 
बुबा को मोरणोऊ परांत द्वी चार दिन त गुंडू इन्नी ही राई . वैन समज इकीसवी सदी मा बिठुं / सवर्ण सुख भौत इ सरल होलू .पण वै तैं क्या पता की यूँ बिठुं / सवर्णों दुनया मा क्या क्या टुट ब्याग होंदन,

 सवर्णों क इख क्या क्या गोरख धंधा हुन्दन.
 
वै दिन ऊ बामण डाक्टर मा गे . गुंडू क हत्थ फर सौ रुपया कु नोट छयो . गुंडू न बोली " डाक्टर साब तब्यत खराब च नाडी द्याखो, स्टेथोस्कोप से

जिकुड़ी ( हृदय) क गती टटोल़ो ". बामण डाक्टर न गुंडू तैं इन द्याख जन बुल्यां कोढ़ी होऊ , बामण डाक्टर न एक स्योल़ू क डुडड़ा /डोर गुंडू क तरफ चुलाई/ फेंकी

अर ब्वाल, " ल़े ए डुडड़ा तैं अपण हथकुळी पर बाँध अर मी डुडड़ो दुसर छ्वाड़ पर स्टेथोस्कोप से नब्ज दिखदु ! "

गुंडू न बोली ," ना नब्ज डाइरेक्ट द्याखो "

बामण डाक्टर न करकरो जबाब दे, " डैरेक्ट नब्ज दिखाणे त कै आर्य/शिल्पकार क्लिनिक मा जा."
 
वै दिन गुंडू तैं बिठुं भिड़याणो (स्पर्श सुख ) सुख नि मील

इनी तीन चार दिन हौरी निकळ गेन

ब्याळी गुंडू त्रेपन सिंह टेलर मा झुल्ला सिलाणो गे . गुंडू तैं पूरो खात्री छे बल त्रेपन सिंग झुल्ला क नाप लींद दें गुंडू पर जरूर भिड्यालो.
 
त्रेपन सिंग न गुंडू तैं आदेस दिने बल आइना का समणी खडू ह्व़े जा अर त्रेपन सिंग बड़ो आइना मा गुंडू का नाप ल़ीण लगी गे .

गुंडू न विरोध करी अर बोल " म्यार गात को डाइरेक्ट नाप ल्ह्याओ ना की ऐना का छैल मा .. "
 
त्रेपन सिंग को कैड़ो जबाब थौ , " त्वे सणी डाइरेक्ट नाप को बड़ो रौंस च , शौक च त आनंदी लाल आर्य/शिल्पकार टेलर मा जा वो गात क्या सब्बी नाप ल्हें ल्यालो .."

गुंडू तैं त्रेपन सिंग से बि स्वर्ण स्पर्श सुख नी मील

आज गुंडू क बुबा जी मोर्याँ दस दिन ह्व़े गेन अर अबी तलक गुंडू तैं सवर्ण स्पर्श सुख नसीब नी ह्व़े .

आज गुंडू क बुबा जी मोर्याँ दस दिन ह्व़े गेन अर आज ही मकरैणी क दिन कठघर मा हत्थ गिंदी को म्याल़ा /मेला बि छयो .
 
घड़यांदो, घड़यांदो , सोचदो , सोचदो गुंडू तैं एक कौंळ/ विधि समज मा आई . गुंडू तैं सोळ आनो भरवस होई ग्यायी बल आज त भेमाता /ब्रह्मा बि

गुंडू तैं सवर्ण सुख से बंचित नि कॉरी सकदन , आज क्वी बि गुंडू तैं बिठुं पर भिड़याणो सुख से नि रोकी सकदो. गुंडू कठघर को गिंदी म्याल़ा तरफ चली गे

कटघर मा हाथ गिंदी अपण चरम उत्कर्ष मा छयी . सौ सी बिंडी लोक हथगिंदी का बान एक हैंकाक मथि मुड़ीन पोड़यां छया . लोकुं पिपड़कारो इनी छयो जन बुल्यां

म्वारूं पेथण मा म्वारूं पिपड़कारू ह्वाऊ . गुंडू तैं सूजी .
 
गुंडू लोकुं पिपड़कारो से भौत अळग उच्चो भींट /दिवाल मा गयो अर उख बिटेन किराई /चिल्लाई , " मी बि गिंदी खिलल़ू ' अर फिर अळग बिटेन गुंडू ना गिंदी खेलदा लोकुं क भीड़ / पिपड़कारो

मा फाळ मार दिने . तौळ गिंदी खेलदा बिठुं न गुंडू शिल्पकार /अछूत तै मथि /ऐंच बिटेन जनि आन्द देखी की सौब गिंदी से अलग ह्व़े गेन .
 
गुंडू सीदा कठोर ख़ड़ीजा जन पथरूं मा धम्म गिरी अर वैको कपाळ छटाक-खचाक से इन फूटी जन खीरा को दाणो फूटी गे हो धौं !

ल्वे का बीच गुंडू की खुली आँखी जन बुलणा होवन , "यीं इकासवीं सदी मा त मै तैं सवर्ण सुख द्याओ..!!!"
 
अर उख गिन्देरूं अर तमाशबीनुं की हक्क बक्क हुईं आँखी फिर बि बोलणा छयी , " सवर्ण सुख तुम शिल्पकारों तैं चयाणो च हम बिठुं तैं शिल्पकारूं पर भिड़याणो सुख थुका चयाणो च ...!!!"

 

Copyright@ Bhishm Kukreti

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
Nyo Nisab: Garhwali Story finding Reasons for Migration from Rural Regions

(Review of Stories of ‘Joni Par Chhap Kilai’ (1967) a story collection by Mohan Lal Negi)

                                                 Bhishma Kukreti

(Notes on Stories finding reasons for Migration; Asian Stories finding reasons for Migration; South Asian Stories finding reasons for Migration; SAARC Countries  Stories finding reasons for Migration; Indian subcontinent Stories finding reasons for Migration; Indian Stories finding reasons for Migration; North Indian Stories finding reasons for Migration; Himalayan Stories finding reasons for Migration; Mid Himalayan Stories finding reasons for Migration; Uttarakhandi Stories finding reasons for Migration; Kumauni language Stories finding reasons for Migration; Garhwali language Stories finding reasons for Migration )
                                 A Brief note about stories in Garhwali from 1913-till 1967
                ‘Garhwali That’ by Sada Nand Kukreti is the first modern Garhwali story published in 1913. Abodh Bahuguna mentioned that around 1936-1940, Parushram Nautiyal published Gopu and other stories in Garhwali. There is no mention of year of publication and periodicals by Bahuguna. In 1947, Professor Bhagwati Prasad Panthari published a Garhwali short story collection ‘Panch Phool’ . There are ‘Gaun ki Or’, ‘Bwari’, ‘Parivartan’, ‘Asha’, and ‘Nyay’.  There are Garhwali stories of Shiva Nand Nautiyal, Bhagwati Charan Nirmohi, Daydhar Bamrada, Kailash Panthari, Urvi Datt Upadhyay, and Mathura Datt Nautiyal  in special Fiction  issue of a Garhwali periodical ‘Raibar’ edited and published by Shakunt Joshi  in 1956.             
               Mohan Lal Negi published a story collection book’ Joni par Chhap kilai?’ in 1967
             Nyo Nisab: Garhwali Story finding Reasons for Migration from Rural Regions
           The story of ‘Nyo Nisab’ is that in a village a poor person struggle for living and by any means he lives in village. A poor or rich person requires s marriage. In old time men had to pay dowry to r girl side for marrying .The poor person had to borrow money for marrying a girl that he may live together with his beloved wife. However, to return back the debt the poor man had to leave village for city. The man had to work on daily wages for building construction or road construction for earning money. He took money from money lenders that he could get company of his wife but to return back money he had leave his wife and had to migrate.
       Dr Dabral states that the story ‘Nyo Nisab’ is influenced by Prem Chand era and all characteristics of stories of Perm Chand era are there in ‘Nyo Nisab’. The story line of ‘Nyo Nisab’ is similar to ‘Kafan’ of Prem Chand a great Hindi and Urdu story teller. The phrases are from real rural Garhwal and Mohan Lal Negi uses words very wisely to keep readers interest intact in the story. Mohan Lal Negi had been successful in keeping flow smooth in the story. Negi uses proverbs suiting the situation and are helpful in the characterization of characters or speed of story.
References:
1-Abodh Bandhu Bahuguna, 1975, Gad Matyki Ganga, Alaknanda Prakashan, Delhi, India
2-Abodh Bandhu Bahuguna, 1990, Garhwal ki Jeewit Vibhutiyan (PP287-290), Babulkar Bhavan, Muchhyali, Dev Prayag
3-Anil Dabral, 2007, Garhwal ki Gady parampara: Itihas se vartman
Copyright@ Bhishma Kukreti 3/6/2012
Notes on Stories finding reasons for Migration; Asian Stories finding reasons for Migration; South Asian Stories finding reasons for Migration; SAARC Countries  Stories finding reasons for Migration; Indian subcontinent Stories finding reasons for Migration; Indian Stories finding reasons for Migration; North Indian Stories finding reasons for Migration; Himalayan Stories finding reasons for Migration; Mid Himalayan Stories finding reasons for Migration; Uttarakhandi Stories finding reasons for Migration; Kumauni language Stories finding reasons for Migration; Garhwali language Stories finding reasons for Migration to be continued….

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
Gobru: A Garhwali Story subscribing the Honesty of Garhwalis

(Review of Garhwali Story Collection ‘Joni par Chhapu Kilai?’ (1967) written by Mohan Lal Negi)

                                                 Bhishma Kukreti

             Gobru’s mother took loan   money from money lender Gumanu Seth for the marriage of Gobru.  Gobru’s mother expired before repayment. Gobru was poor man and his poverty remains with him for long and could not repay money to money lender. Gumanu Seth took Gobru to the court.
     The rival of Gumanu Seth- Bacchu inspired Gobru to deny straight that his mother took loan from Gumanu Seth. Gobru agreed for denying in the court about his mother taking loan.
  When Gobru took oath for telling the truth Gobru remembers words of his mother about honesty. Gobru accepts that his mother took loan.
  The story is about our centuries back culture that Garhwalis are honest and don’t tell a lie after oath.
  The story deals with struggle for living and money being spent on marriage etc by a poor man. The story teller uses proverbs and daily life language. The words create images of village. Though, the story is about poor men of Garhwal struggling for living and is realistic one but the story is not leftist principle. The description shows the sensitivity of Mohan Lal Negi about the life in rural Garhwal. The story is successful in exploring socio-economical-spiritual aspects of rural Garhwal of old time.
References:
1-Abodh Bandhu Bahuguna, 1975, Gad Matyki Ganga, Alaknanda Prakashan, Delhi, India
2-Abodh Bandhu Bahuguna, 1990, Garhwal ki Jeewit Vibhutiyan (PP287-290), Babulkar Bhavan, Muchhyali, Dev Prayag
3-Anil Dabral, 2007, Garhwal ki Gady parampara: Itihas se vartman
Copyright@ Bhishma Kukreti 4/6/2012
Notes on rural Stories exploring Socio-Economical- Spiritual aspects; rural Asian Stories exploring Socio-Economical- Spiritual aspects; rural South Asian Stories exploring Socio-Economical- Spiritual aspects; rural SAARC Countries Stories exploring Socio-Economical- Spiritual aspects; Rural Indian Subcontinent Stories exploring Socio-Economical- Spiritual aspects; Rural Indian Stories exploring Socio-Economical- Spiritual aspects; Rural North Indian Stories exploring Socio-Economical- Spiritual aspects; rural Himalayan Stories exploring Socio-Economical- Spiritual aspects; Rural Mid Himalayan Stories exploring Socio-Economical- Spiritual aspects; Rural Uttarakhandi Stories exploring Socio-Economical- Spiritual aspects; Rural Kumauni Stories exploring Socio-Economical- Spiritual aspects; Rural Garhwali Stories exploring Socio-Economical- Spiritual aspects to be continued…

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
गाँव  मूसु  अर कस्बौ  मूस

 

                           मूल यूनानी कथा को कथाकार: ईसॉप   
 
 

                   अनुवाद : भीष्म कुकरेती

 

 

(ईसॉप  (६२०-५६४ इसवी पूर्व) -यूनान को महान लोक कथाकार ह्व़े, ईसॉप  एक गुलाम थौ.

 पंचतंत्र कि कथाओं से प्रभावित ईसॉप कि कथाओं मा जानवरूं  विषय छन.  जेम्स न सन

१८४८ ई. मा  गाँव मूसु अर कस्बौ मूस कथा क अनुवाद अंग्रेजी मा कार )

 

               भौत समौ पैलाक छ्वीं  छन. एक गांवक मुसौ दगड्या  कस्बा मा रौंद थौ. एक दिन कस्बा क मूस गाँव आई. गांवक मूसो क ड़्यार

बेतरतीब अर सब जगा गंज मंज छौ  अर वैन  कस्बौ मूसो बड़ी आदिर खातिर कार. कस्बौ मूसो तै गांवक मूसो रौण खाण (जौ आदि)  पसंद नि आई.

कस्बौ मूसन गांवक मूसौ  कुणि बोल," इन कन ! यार तू इन उज्जड अर उजाड़  जगा मा किलै रौंदी ? क्या तू त मिंडकौ  जन  दुंळ मा रौंदी.पाख पख्यड़ मा रौण बि

क्वी रौण ह्वाई. या बि क्वी जिन्दगी च चल म्यार दगड शहर चल. उखाकी जिन्दगी मजेदार च "

 गांवक मूस शहरौ मूसो बुलण मा ऐ गे.   अर शहर जाणो तैयार ह्व़े गे

                ऊं दुयूंन अपणि जातरा रत्या होंदी शुरू कार अर अदा रात मा शहर का मूसौ क्वाटर  मा पौन्छी  गेन . शहरौ मूसौ बड़ो झल्सादार घौर छौ.

कुर्सी , मेज, झालर, पर्दा, बढिया झुल्ला ,   सौब कुछ भव्य छौ.

             अब शहरौ मूसो बारी आदिर खातिर करणै छे ,शहर का मूसौ  न गांवक मूसु कि बडी आदिर खातिर कार. बढिया खाणक मेज मा बढिया थाळी, कटोर्युं मा दे.

गांवक मूस अपण बदल्यूं भाग पर पुळेण बिस्याई कि अब त शहर मा  जिन्दगी भलि राली. शहर मा बड़ा बड़ा ठाट राला. बस गांवक मूस खुश छौ कि अब त वैका

भाग जगी गेन.  वो अग्वाड़ी क मजेदार जिन्दगी क बारा मा सोचिक खुश होणु इ छौ कि भैर बिटेन धडाम से द्वार उघाडे गेन. ड्यारो मालिक  को दगड्या

देर रातौ पार्टी करणो मालिको दगड ऐन.अर यूँ लोगूँ डौरन द्वी मूस लुकणो भाजिन. जै तै जो बि कुण्या मील   वो उख लुकी गे. भौत   रात  तलक कमरा मा

पार्टी करण वाळु धमड्याट घमघ्याट मच्युं रै। गांवक मूस बेचैन होंद गे. फिर जब पार्टीबाजुं पार्टी ख़तम ह्वाई अर शान्ति क उम्मेद बंध त मालिकौ

 कुकुर भुकण  बिसे गेन.कुकरूं भुकण से वातवरण मा डौर, दैसत फ़ैली गे.

 

जब ब्यणस्यरक  से थ्वडा पैल कुकरूं भुकण बन्द ह्व़े अर जरा शान्ति दिख्याई त गांवक मूस लुकणो जगा से भैर आई अर वैन शहरो मूसौ ब्वाल,' भया त्यार शहर त्वेकूण मुबारक . पण

म्यार छ्वटो  दुंळ, उज्जड-उजाड़ गाँव, उज्जड-उजाड़ पाख-पख्यड़  अर जौ को म्वाटो खाणक  इ भलो च. जख शान्ति अर निडरता, दैसतहीणता, सुरक्षा, बचाव इ

   नि ह्वाओ त उख रैक क्या फैदा? मी त अपण  गौं  जाणो छौं, जख शान्ति च, सुरक्षा च, बचाव च "

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
अब अपण  ब्व़े-बुबा कुण रुणि छे ?

 



                         भीष्म कुकरेती

 



            अलग अलग सुनहरा पिन्जड़ो मा द्वी झंण कळु अर  कळुयाण   जोर जोर से झगड़ना छ्या. बिगळयाँ बिगळयाँ

पिंजड़ा  नी होंदा त जीतू तोता न तोत्याणिक  फंकर/पंख  चूंचन चूंडि चूंडिक उपाडि देण थौ. सरेला कळुयाणि तैं मौक़ा मिल्दो त



वीन अपण कजे   जीतू तोता  क सांक चूंचौ न पकडिक फगोसैक  चित्त मारी दीण थौ.   उन त कळु अर कळुयाण   मा अथा प्यार होंद

पण इख शहर मा पिंजडों  मा बन्द  होण से कळु- कळुयाणियूँ  ढब इ बदले गे.  अब ओ गांवक गँवड्या  बण्या/जंगळि  कळु/तोता  नि रै गेन. 



अब त ऊं   तैं अर्बन  पैरेट बोलीक भटये जांद. अब ट यूँ मा तोतारोळी नि होंदी बल्कण मा कवारोळी, कखड़ाट, कुकुर-बिरळु तरां झगड़ा होंद.

अब त बौटनी-जूलोजी क खुजनेर बि खौंळयाणा छन बल यो जानवरूं  मा बक्कि बनि बनिक अडेपटेसन /अनुकूलन  होणु च.



            जीतू कळु न ब्वाल," ये अपण बुबा क सैणि ! अब अपण बुबा कुण या ब्व़े कुणि रुणि छे ? जब हम गौंवूं  जंगळ मा क्या सुन्दर छ्या , मेनत से अपणि

जिंदगी  काटणा छया . त त्वे पर यि जळन्त हुंईं छे बल कन तेरी दीदी अर मौसी मजा से शहरूं मा सुनहरा पिंजडों मा ग्युं कि रुट्टी, बासमती भात,



शहरी अमरुद अर कुज्याण क्या  क्या खाणा छन! अर ले पोड़ी तू म्यार पैथर अर मी बि त्यार भकल्योणयूँ मा औऊं अर शहर ऐ ग्यों .सि छंवां पिंजडों मा बन्द."

 सरेला कळुयाणि न तोत्याणि भौण मा ना बिरळयाणि भौण मा चिडचिड ह्वेको जबाब क्या छकीक गाळी दे दिनी," ये अपणि बैणिक मैसो ! ह्यां  मुर्दा मोरल त्यारो.



मी त अजाण छौ. जानानी जाती छौ. तेरी ब्व़े  नि जैन कबि सोराग! तू त मरद मानिक छौ. त्वी बि त उठी अर मि तै लेकी सीधा ऐ गे इख ! "

  जीतू कळु न बि अपणि कज्याणि बांठकि धौरी दे,' ये खड्यरीं    करैन्क सोराग नि जैन तेरी ब्व़े, नरक जोग  इ रै  तेरी नानी जौन त्वे तैं भकलाई बल गौं का जंगळ से



भलु त शहरूं सुनहरा पिजड़ा छन."

सरेला कळुयाणि न बि अग्यौ बरखाई," हूं ! गाळी दींद तेरी जीब बि नि फुक्याणी ! अर जो त्यार बुबा इख पैलि  बिटेन ऐ गे छौ ? वांक क्या?"

जीतू कळु न ब्वाल," अरे पण मि बोलणु छौं बल क्या पाई हमन इख. बस खान पान   अर  अपण गोसीक ठाट बाट की बडै करण . बस हर द्फैं



गोसी, गोस्यणि अर मालिक मालिक्याणिक दगड्यो , रिस्तेदारूं चापलूसी करणो अलावा हमन द्याखी क्या च. जरा चापलूसी बन्द कारो त

 गोसी, गोस्यणि अर वूंको नौनू  हम पर कठगन न घचांग  लगै द्यावन. हमन बि सरा जिन्दगी शहरी  खान पानऐ खातिर  य़ी ब्वाल," माई  मास्टर्स  आर



द  बेस्ट मास्टर्स . दे आर लवली ह्युमन  बीइंग्ज .दे आल लव्ज अनिमल्स एंड पेट्स."

सरेला कळुयाणि न जोर से ब्वाल,' पण इखमा सरा दोष म्यारो त नी च ?"

जीतू कळु न ककड़ाटि जवान मा ब्वाल," अरे या बी जिंदगी कि टैम पर खाओ, टैम पर बिजो अर मालिक माल्किणो सलाम ठोको. इ त चलो



ठीक छौ. पण हम दुयूं तैं प्रेम करणो   बि मालिक माल्किणि न टैम फिक्श करी दे भै! अरे हम त्वाता-कळु छंवां क्वी मनिख थुका छंवां कि मनिखों तरा  इ .."

इथगा मा दुसरो कमरा से एक जवान त्वातो क गुसैली अवाज आई," मौम डैड ! यू ब्लडी ओल्ड पैरटस ! स्टॉप यौर क्वेरलिंग. माई मास्टर इज   



डिस्टरबड  एंड फीलिंग एक्युट  इरिटेसन. इथगा सालों से इख शहर मा छंवां  पण आदत वोई गंवड्या .अकल नाम की चीज  त यूँ ओल्ड लोगूँ मा छै नी च."

   सरेला कळुयाणि न रूंद रूंद बोली," एक यि  छौ हमारो वो बि मालिकौ नौनो दगड रैक  हमारि भाषा बोली बिसरी गे. "



जीतू कळु न रुणफति ह्वेक ब्वाल,' ह्यां! कमबख्त ! अपणि  भाषा बोली बिसरी जांद त क्वी  बात नि छे. ओ त अब हमारो मालिकौ नौनु दगड़   

बिगची बि गे. छ्वटो मालिक चरस पीन्दो अर यू हमारो राजकुमार बि अब चरस को धुंवा सुंगण ढबे ग्ये. अब त जब तलक यू  निर्भागी तै चरसौ



धुंआ  नि सूंगो त ए ऐबी तै निंद नी आन्द. ऊ द्याख नी च परसी   छ्वटो मालिक इख नि छौ त ये तैं चरसौ गंध नी मील त सरा रात कनो कणाणु राई.

द्वी तीन दै त ए पर बौळ बि पोड़. "

सरेला कळुयाणि न त रूंद रूंद ब्वाल," अर ये कुण कुछ ब्वालो त खाणै कटोरी अर पिंजड़ो दिवल्यूं पर  मुंड  फोडिक आत्महत्या करणो धमकी दीन्दो."



इथगा मा जीतू तैं भैर एक डाळ मा जणी पछ्यणी अवाज सुणै दे," ये जीतू! ये जीतू ! "

 जीतू बर बबराई बल या त वैको बुबा जी क अवाज च.जीतू न बोली," बुबा जी तुम अर...?"

सरेला कळुयाणि न  सिवा  लगान्द पूछ,' ए जी ! यि तुमर लटलूं अर फंकरूं रंग तै क्य  ह्व़े. त्वातों रंग कख हरची?"



 जीतुक बुबा गुंडू कळु न जबाब दे,' अरे बुड्या ह्व़े ग्यों अर क्या च! ये शहर मा अब त्वातों क रंग बि बेढंग ह्व़े जान्दन. "

जीतू कळु न पूछ," तुम त वो एक क्वी जू/चिड़ियाघर  मा गेट पर लोगूँ तैं बथान्दा छ्या बल " गो देयर, गो राईट .."



  गुंडू कळु न जबाब म ब्वाल ," अरे ऊं  जू वळु न निकाळि  दे बल अब मि बुड्या ह्वे गेऊं  त अब मेरो आकर्षण खतम ह्व़े गे. अर बस मी अब रस्ता मा

ऐ गेऊं .अरे जब मी छ्वटु छौ अर गाँ मा छौ त मनिख इनी अपण लाचार बुड्या बल्दुं तैं बौण  खदेड़ी दीन्दा छया कि उख बाग़-ढीराग बुड्या बल्दुं तै खै जावो."



जीतू कळु न पूछ,' अब ?"

गुंडू कळु न कळकळि भौण मा बोल," अब त तेरो इ सहारा च. "

जीतू कळु न त ना पण  वूंको चरसी नौनु न जबाब दे ," ग्रैंड  पा हमारे यहाँ तो जगह हो  ही नहीं  सकती बिकॉज माई मास्टर डज नॉट लाइक ओल्ड पैरट ऐट आल.



औन द कोंट्रेटरी  ही हेट्स ओल्ड पैरट्स. वो तो मैं नये नये  ढंग से अपने यंग  मास्टर की  चापलूसी करता हूं तो  तब जाकर मोंम-डैड यंहा रहते  हैं ..नो वे ! यू कांट लिव विद अस."

जीतू कळु न बि हुन्गरी पूज अर ब्वाल," हाँ स्यू सच बोलणु छ . हमी जाणदवां कि हम इख कै कुगति मा छंवां!"



 गुंडू कळु न रुंदी भौण मा बोल," अरे जौं त कख जौं ?"

सरेला कळुयाणि सल्ला दे, " ए जी ! इन कारो अपण मुलक चली जाओ . उख बड्या ससुर जी क नौन्याळ छन . गाँ वळ छन त कै डाळ मा जगा ह्व़े इ जाली. अपण डाळ छन अपण जगा च "



 गुंडू कळु न उड़दा द उड़दा  बोली," हाँ अब ड़्यारम  इ जगा बचीं च. पण अब मी गौं जोग रयुं बि नि छौं .पण क्या कन "

जीतू कळु न ब्वाल," ह्यां वो बडा जीक नौनु फत्तू दा खुणि सिवा बोली देन  अर स्वांरी बौ कुण बि .."



सरेला कळुयाणि न बोल,: अर स्वांरी जिठाण मा बुलिन बल मी वीं तै भौत याद करदू .."

गुंडू कळु अपण भतीजो फत्तू अर वैकी ब्वारी स्वांरी क बारा मा घड्यान्दो घड्यान्दो गौं तरफ उडी गे. अब फत्तू अर वैकी ब्वारी स्वांरी को इ सारा छौ.



उख गाँ क जंगळ मा फत्तू अर वैकी कज्याणि  स्वांरी मा महाभारत छिड्यू छौ.

फत्तू कळु न गाळी दींद दींद गुस्सा मा ब्वाल,' ए रांड ! चुप रौ हाँ . बिंडी नि बोल"

 स्वांरी कळुयाणि न बि फिटकारी बोल बोलिन, "रांड ह्वेली तेरी बैणि , तेरी ब्व़े , तेरी भतीजी.."



 फत्तू कळु न ककड़ाट कार," अरे पर इथगा साल ह्व़े गेन पण त्यार कुणकुण लग्युं रौंद बल शहर किलै नी गेवां.शहर किलै नी गेवां "

स्वांरी कळुयाणि न जबाब दे ," ह्यां जै पर बितदी त वो इ बोल्दो. अब जब मनिख गौं  छोड़िक भाजी गेन त अब मुंगरी, फल कख छन रयाँ गौंऊं  मा .



अर फिर गाँऊँ मा मनिख नी रयाँ छन त कथगा इ चखुलोँ साखी  (जनरेसन) इ ख़तम ह्व़े गेन त हमर लैक फलदार ड़ाळ इ ख़तम ह्व़े गेन. पैल गूणि बांदर 

बि कमी छ्या त फल मीली जांदा छया अब त गूणि बांदर  हम कळुऊँ खुणि कुछ छोड़दा इ नीन . फिर काण्ड लगीन ये लैंटीना घास पर हम कळुऊँ लैक



डाळ जमणी इ नि दीन्दो , अब त मीलों जैक  हम कळुऊँ लैक एक दाणि फल मिल्दन. त मैं  तै रोष नि आणों?. द्याखो ना कक्या ससुर जी, जीतू द्यूर, सरला द्युराणि   

शहर मा कनो मजा करणा छन. "

  फत्तू कळु तै अपण  कज्याणि  स्वांरी कळुयाणि क पित्याण पर दया बि आँदी पण  अब यीं उमर मा वो कारो त क्या करो. वैक  द्वी लौड़ छन त शहर मा पण दुयूंक भाग फूटीन  कि



गरीब गुरबों ड़्यार छन. अन्क्वेक खाणो  बि नि मिल्दो बल.  अर इख मनिखों जाण से त्वातों, घुघती अर कथगा इ चखुलोँ  साखी इ निपटण लगी गे जां  से

बौण जंगळ मा इन डाळ उपजण लगी गेन कि त्वातों जन चखुलोँ को खाणा मा कमी ऐ गे . मेनत से बि खाणो नि मिल्दो. पैल एक बात औरी छे इखाक कळुऊँ मा परिवार बाद अर सहकारौ



 जन गुण छ्या. पण अब खाणो कम होण से अनुकूलन क बल पर यूँ कळुऊँ मा बि व्यक्तिवाद  ऐ गे .

त इन मा स्वांरी कळुयाणि न पित्याणि छौ.

यूँ द्वी झणो मा   इन झगड़ा होणु  लग्युं इ रौंद .

स्वांरी कळुयाणि न  ब्वाल, ' शहर मा हुंद त मजा से रौंदा, ठाट  से रौंदा.."



इथगा मा गुंडू कळु ऐ गे. फत्तू न  अपण काका नि  पच्छ्याणि.  गुंडू कळु न फिर बताई  कि वै तैं क्य ह्व़े ग्याई.

फत्तू कळु न अपण व्यथा कथा लगाई कि अब गौंऊं  जंगळू  मा क्या कुहाल छन.

अर पैथराँ  स्वांरी कळुयाणि न करकरो ह्वेक तड़तड़ी भाषा मा  ब्वाल," द्याखो जी . अब ज्योर छंवां  पण बुलण तो पोडल इ. अब इख तुमारो क्यांको ल़ीण  दीण?.



इथगा सालुं से हम ये बांठो सैंकणा छंवां , जग्वळणा  त अब यीं जगा पर हमारो अधिकार च. तुमारि हिस्सेदारी त वै बगत इ खतम ह्व़े गे छे जब तुम

ईं जगा छोड़िक शहर चली गे छ्या. जाओ जख जाणै  जाओ। अब हिस्सेदारी बात करील्या त ल्वेख्तरी ह्वे जाली"



 गुंडू कळु समजी ग्ये बल  अब भयात की हिस्सेदारी बात करण बेकार इ च  .

अर बुड्या गुंडू कळु एक नई अंतहीन यात्रा पर  उडी गे .

 Copyright : Bhishma Kukreti

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22