Author Topic: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....  (Read 26358 times)

हेम पन्त

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #80 on: July 15, 2010, 04:08:53 PM »
वर्मा ज्यू महाराज भौत भलि कविता लेखि राखि तुमले... धैं आब तुमरि कविता के चमत्कार देखालि त आज बरखा ऐ ई जालि रुद्रपुर में...

ओ बादल
 

 
ओ बादल,अझ्यालूँ तुम चुनावी नेता जस है गो छा,
घुमड़ भेर ऊँछा,गरज भेर आश्वासन दिंछा,न्है जाँछा.
 

 
 

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #81 on: July 15, 2010, 04:18:19 PM »
nan aei jaan to bhal hun ho dajyu.

हेम पन्त

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #82 on: July 15, 2010, 04:21:18 PM »
आब इतु दिन तड़पै भेर नान आयो त कि फैद.. आब त खूबे ऊंन चैं..

dramanainital

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #83 on: July 15, 2010, 04:33:47 PM »
kain haryaana punjaab jas jai ni hai jau.

हेम पन्त

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #84 on: July 15, 2010, 04:35:24 PM »
तुमोर हमोर त ठीके भ्यो... इत्ती बठे पहाड़ चड़ि ज्यूंला

kain haryaana punjaab jas jai ni hai jau.

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #85 on: July 16, 2010, 04:28:50 PM »
                               "गढवाली हो या कुमाऊनी"

मे गढवाली हु या कुमाऊनी हु कहने का अर्थ यह नही समझना चाहिए की हम अलग अलग है यह तो मात्र हमारे बीच के एक एरिया कोड को दर्शाना भर मात्र है. जैसे आपने पुछा कहां के हो मैने कहा उत्तराखण्ड आपने कहा उत्तराखण्ड कहा से मैने कहा रानीखेत आपने पुछा रानीखेत कहा पडता है मैने कहा अल्मोडा आपने कहा अल्मोडा किस जगह पडता है कुमाऊ मे या गढवाल मे मैने कहा कुमाऊ मे.
वैसे भी हम खुद एक ही एरिया के होने बावजूद भी यह पुछते है अल्मोडा किस गांव से हो गांव का क्या नाम है मैने कहा दियालेख किसके पास पडता है रानीखेत के पास तो दोस्तो इसे मात्र एरिया कोड ही समझना चाहिए न कि अलगाव या एरिया पक्षपात.

इसका मतलब हमे यह नही समझ लेना चाहिए कि हमारी यह पहचान अलग-अलग विघटनकारी है.

सुन्दर सिंह नेगी 16 /07/2010.

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #86 on: July 16, 2010, 04:32:47 PM »
हेम जी मेरा कहने का मतलब है कि बादल आघे के दरवाजे से घुसकर पिछे के दरवाजे से बाहर निकल जाता है.
हा हा हा

पंकज सिंह महर

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #87 on: July 16, 2010, 05:13:09 PM »
                               "गढवाली हो या कुमाऊनी"

मे गढवाली हु या कुमाऊनी हु कहने का अर्थ यह नही समझना चाहिए की हम अलग अलग है यह तो मात्र हमारे बीच के एक एरिया कोड को दर्शाना भर मात्र है. जैसे आपने पुछा कहां के हो मैने कहा उत्तराखण्ड आपने कहा उत्तराखण्ड कहा से मैने कहा रानीखेत आपने पुछा रानीखेत कहा पडता है मैने कहा अल्मोडा आपने कहा अल्मोडा किस जगह पडता है कुमाऊ मे या गढवाल मे मैने कहा कुमाऊ मे.
वैसे भी हम खुद एक ही एरिया के होने बावजूद भी यह पुछते है अल्मोडा किस गांव से हो गांव का क्या नाम है मैने कहा दियालेख किसके पास पडता है रानीखेत के पास तो दोस्तो इसे मात्र एरिया कोड ही समझना चाहिए न कि अलगाव या एरिया पक्षपात.

इसका मतलब हमे यह नही समझ लेना चाहिए कि हमारी यह पहचान अलग-अलग विघटनकारी है.

सुन्दर सिंह नेगी 16 /07/2010.
बहुत सही बात लिखी है आपने, क्षेत्र विशेष से अपनी पहचान को जोड़ना चाहिये, संकीर्णता को नहीं। जैसे मेरा देश भारत है, उससे मेरी पहली पहचान है तो मैं सबसे पहले भारतीय हूं , फिर मेरी प्रादेशिक पहचान में मैं उत्तराखण्डी हूं, आंचलिक या मण्डलीय पहचान के लिये मैं कुमाऊंनी (मण्डल- कुमाऊं) हूं, जिले की पहचान के लिये सोरयाल (जिला पिथौरागढ़) हूं, पट्टी की पहचान के लिये बारबीसिया (पट्टी-बाराबीसी) हूं और गांव की पहचान के लिये खोल्याल (गांव-खोला) हूं। लेकिन यह सब मेरी स्थानीयता को जोड़ने वाले कारक ही हैं, क्योंकि इन्हीं छोटी-छोटी क्षेत्रीयताओं से ही राष्ट्रीयता सुनिश्चित होती है, संकीर्णता के लिये इनमें कोई जगह नहीं है।

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #88 on: July 16, 2010, 05:17:42 PM »
हेम जी
हमारे उत्तराखण्ड मे जितने गांव है लगभग उतनी ही भाषा भी बोली जाती है मै पहले भी इन भषाओ कि विविधता पर लिख चुका हु सायद हमारे सदस्यो मे से कई सदस्यो ने पढा भी होगा.
भाषाओ कि विविधता मेरी "उत्तरांचल डायरी" से.
जो सायद अब यंग उत्तराखण्ड के फोरम से पुर्ण रूप से हटा ली गई है.

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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Re: From My Pen : कुछ मेरी कलम से....
« Reply #89 on: July 16, 2010, 05:27:13 PM »
पंकज जी आपने बहुत अच्छी तरहै समझाया है मुझे समझाना सही तरीके से नही आता है क्योकी मै सोचता जायदा हु लिखता उससे भी जायदा हु और गलतियां सबसे जायदा करता हु क्योकी मुझे डांट खाना आलोचना सुनना अच्छा लगता है. क्योकी मै गलतियो से ही कुछ सही कर बैठता हु.

 

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