Sudesh Bhatt
July 17 at 9:22pm ·
चली ग्यों दीदों डयूटी
पुरी ह्वेगे छुटटी
याद आली तुम्हारी
जब द्योल रात की डयूटी
घुट घुट बडुली मा
याद तुम्हारी आली
जब दुर प्रदेस डांडियूं मा
डयूटी मेरी राली
बथौं बणी ट्रैन दीदों
छुटी ग्या हरिद्वार
जन जन यैथर छौं जाणु
याद आणा घर बार
मां की हथ की भयुं
रुटयुं की याद आंदी
घर म हंदु अबी त मां
मुंड मलासी क कबरी खलै दयांदी
घुट घुटी क बडुल्युं मा
जिकूडी च उदास
तुम्हारी समलोंण च दगडी
होर कुछ नी च खास
भुख लगीं दीदों खुद मा
खाण क ज्यु नी बुल्दू
दगडयों तै खुजण कुन
मोबेल की गैलरी खुल्दु
दीदों जाणा त छौं डयूटी
पर लगणा कुछ छुटी ग्यायी
एक दगडया छया मोबेल दगडी
वैकि भी बैट्री दगा दे ग्यायी
लिखदी लीखद दगडयो
मेरी रेल रुकी ग्यायी
भैर दयाखी मुंड निकाली क त
स्टेसन लक्सर यै ग्यायी
झट ओलु दीदों छुटी
फिर होली मुलाकात
फोन करना रैन दगडयों
करला यमकेश्वर की बात
सुदेश भटट(दगडया)