जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
12 hrs · New Delhi ·
कल्पना मा देखणु छौं,
तीन सौ चौसठ दिन का बाद,
लाल दा बिष्ट जी बण्यां छन,
जन बोल्दन बाग,
पूजा होलि आज बिचारौं की,
खुलिग्यन तौंका भाग.....
जुन्याळि रात की जोन भी हैंस्लि,
खित खित हैंस्ला खूब बिचारा,
हंसमुख छन यी दगड़या हमारा,
हास्य की गंगा बगौन्दा,
जू मनखि कब्बि ना हैंसि हो,
वेकु तैं हैंसौन्दा.......
-जगमोनह सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
कविमन की कल्पना छ, नाराज नि होयां
दिनांक 30.10.2015