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Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
 लेबल: काव्य उत्तरखंड   शनिवार, १७ सितम्बर २०११   वा रामी बौराणी   
 
 

वा रामी बौराणीरामी सी खडी वहाली वा सोंजडया मेरीबौराणी बटा हेराणी वहाली वा सोंजडया मेरीकदगा दिण कदगा रैण कदगा बरखा कदगा मास सारे गैनीआंखी टाप टाप करणी वहाली वा संगनी मेरीकब त्यार हे नारी व्यथा ये खतम वहाली कब त्यार स्वामी आला तू कब हसली वा म्यार पहाडा की नारी दगड़यूँ दगडी कब झुमली तेर आमा की डाली कब घुघुती घुउराली कब तू लसका-डासक लागली वो खुदा खुदैणी मेरी बच्चों दगडी खेल सास-सासुर मा मेल पुगडी मा सवेर सवेर करदी सारा कम वा मेरा वो ब्वारी मेरी रामी सी खडी वहाली वा सोंजडया मेरीबौराणी बटा हेराणी वहाली वा सोंजडया मेरीबालकृष्ण डी ध्यानी देवभूमि बद्री-केदारनाथ मेरा ब्लोग्स http:// balkrishna_dhyani.blogspot.comमै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
 कवी बालकृष्ण डी ध्यानी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
देव भूमि बद्री-केदार नाथ
अंधीयारी

जुन्यली मुखडी
चकोर सी की थै खोज्यनी वोहली
ईं अंधीयारी रात मा
अखां की पुतली कीले संणकाणी होली

जुगीन सी कीले झागमाण होली
जल बुझी की क्या जात ण होली
माया का फैरा दगड़ लगण वहाली
यकुली यकुली केले बाचाण वहाली

राता का प्रहार येरे दगडया मेरा
काखक बाटी साराण येरे दगडया मेरा
सजै की बैठी च कुअलण येरे दगडया मेरा
सारी रात यानी कटण येरे दगडया मेरा

पखीं पाखं सी कतरण ये मेर जगरण
बीता दिनों की यादों की अब रहेगे भ्रमण
कीले च उदास केले च ये तड़पण
अंशों का आँखों मा लगीरैंदी दाडमण

जुन्यली मुखडी
चकोर सी की थै खोज्यनी वोहली
ईं अंधीयारी रात मा
अखां की पुतली कीले संणकाणी होली

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
मेरी व्यथा

आज रूठी होई हो
खुद से खींजी होई हो
अपने अंतर मन से ही
आज तुम भीडी होयी हो
आज रूठी होई हो .........

जीवन पथ मई आये
रोडै से अड़ी होयी हो
देखे होये सपनों के
को टूटने से उखड़ी होई हो
आज रूठी होई हो .........

बैचनी बढती जा रही है
कठनईयां घिरती जा रही है
असमान के काले काले बादल
छठ नहीं रहे व्याकुल हो तुम
खुद ही खुद मै घुली जा रही हो
आज रूठी होई हो .......

बहती नदी के बहवा से
कंही कटी जा रही हो तुम
सूरज की रोशनी की तरह
बादोलों की आड़ मै छुपी जा रही हो तुम
आज रूठी होई हो .........

पर्वतो की उंचाइयां
की चाह नै तुम
जंगलों मै खोयी जा रही हो तुम
चाँद की चांदनी की तरह
खुदा से शिकयत कीये जा रही हो तुम
आज रूठी होई हो .........


आज रूठी होई हो
खुद से खींजी होई हो
अपने अंतर मन से ही
आज तुम भीडी होयी हो
आज रूठी होई हो .........

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
हीलंसा

हे उड्जा ये हीलंसा
उडी की देख जर सा
हे उड्जा ये हीलंसा....

आकाश भाटे कण लगदु
म्यार तेडा मेडा सड़की का बाटा
हे उड्जा ये हीलंसा....

कदगा रुअडी गैनी
ये सड़की का बाटा
हे उड्जा ये हीलंसा....

जो यख रहे गैनी
देख बता उनका हाला
हे उड्जा ये हीलंसा....

केले रोणी ये हीलंसा
विपदा णी सहेणी आजा
हे उड्जा ये हीलंसा....

देव भूमी च ये
मेर देबतो का आशा
हे उड्जा ये हीलंसा....

बोउडी कब आला ओ
कब आला अपर घारा
हे उड्जा ये हीलंसा....

तो सोचणी केले आज
सुरक उडैकी तु मीथै बथैगै आज
हे उड्जा ये हीलंसा....

हे उड्जा ये हीलंसा
उडी की देख जर सा
हे उड्जा ये हीलंसा...

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
एक लकीर

एक लकीर खिंच दे
इस दिल पर
इसके दो टुकडे कर दे
एक मै जुदाई
दुजे मै मिलन
इसके हिस्से भर दे
एक लकीर खिंच दे................

दो आँखों का देखना
दो हातों का मिलना
दो लबों का मुश्कराना
दो कानो का सुनना
एक लकीर खींच दे
इस तन पर
इसके दो टुकडे कर दे
एक मै खुशी और
दुजे मै गम भर दे
एक लकीर खिंच दे................

बहार का हसना
पतझड़ का रोना
कलियों का खिलना
पल बाद मुरझ जाना
नदीयों का बहाना
बहकर सागर से मिलना
एल लकीर खींच दे
इस प्रक्रती पर
इसके दो टुकडे कर दो
एक मै रूप
दुजे मै रंग भर दो
एक लकीर खिंच दे................

चाह की चाहत पर
दिल बेकरार है
हम ये कैसे कहदे
हमे आप से प्यार है
एल लकीर खिंच दे
इस मोहबत पर
इसके दो टुकडे करदे
एक मै वफ़ा और
दुजे मै बैवाफाई भर दे
एक लकीर खिंच दे................

नन्हा सा बचपन
और वो लड़कपन
जवानी की दहलीज़ और
बुडपे की तकलीफ पर
एक लकीर खींच दे
इस जीवन पर और
दुजे मै मरण भर दे
एक लकीर खिंच दे................

एक लकीर खिंच दे
इस दिल पर
इसके दो टुकडे कर दे
एक मै जुदाई
दुजे मै मिलन
इसके हिस्से भर दे
एक लकीर खिंच दे................

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com

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