Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 285571 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ आज की बारात
 
 ऐजवा.......२ दिदो   
 बारात पुहंचगै गाम मा
 ऐजवा........२ पुआणु
 दाल भात खैणी कुण भोज मा 
 ऐजवा.......२
 
 पत्ता भी हर्ची गैनी
 कंकरालो घीयु लुकी गैनी
 तम्बा लुट्या बीके गैनी
 पुआणु पैली भोज खैयाली आज गाम मा
 ऐजवा.......२
 
 ढोलह दामु बिसरी गैनी
 मसोबाज हर्ची गैनी
 अपरी संस्क्रती बिसरी गैनी
 पोप डिस्को ताल मा
 ऐजवा.......२
 
 वैधी सजी चा बस केला पात्त्ता मा
 हवंन अग्नी जलण जब पंडो दक्षीण हाथ मा
 बाण देणारा कखक लुके अब ये गढ़ धाम मा
 दण बोढया जवान तुण्ड दारू की बरसात मा
 ऐजवा.......२
 
 बारात की बिदाई भी णी व्हाई
 गाम वाला पुन्ह्चगै अपर अपर घरमा
 कंण रीत आयींच अपर गढ़वाल मा
 अपरू अपरू कण कै की मत भेद व्हाई आज गाम मा
 ऐजवा.......२
 
 ऐजवा.......२ दिदो   
 बारात पुहंचगै गाम मा
 ऐजवा........२ पुआणु
 दाल भात खैणी कुण भोज मा 
 ऐजवा.......२
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
 मेरा ब्लोग्स
 http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

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फुटपाथ

आंखें करे बयाँ
दर्द है अब जवां
दुःख का पास है
अब अंशुं साथ है
आंखें करे बयाँ ........

माथे पर शिकन
कैसी है उलझन
तडपता बस मन
रूठा है हम से बचपन
आंखें करे बयाँ ........

नीर अब बहा ले
धीर अब बड़ा ले
उलझे सवालों मै
गेसुओं को सुलझा ले
आंखें करे बयाँ ........

चीख निकलती है
कहराती रहती है
सन्नाटे मै अकेले मै
खुद को समझती रहती है
आंखें करे बयाँ ........

कोई नहीं यंहा
ना कोई आयेगा यंहा
अकेले की यह जंग है
बस दुर खड़ा वो अब बचपन है
आंखें करे बयाँ ........

सीमा नहीं दुःख की
ना कोई अपनापन है
फुटपाथ पर बसेरा
सर पर खोला ये वतन है
आंखें करे बयाँ ........

आंखें करे बयाँ
दर्द है अब जवां
दुःख का पास है
अब अंशुं साथ है
आंखें करे बयाँ ........

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
एक
हम एक हैं
फिर घर क्यों अनेक हैं ?
एक को चार दीवारी
दुजे को दुनिया सारी
एक को छत ने घिरी
दुजे ने मारी आकाश फैरी

माँ और माई
क्या फर्क है भाई
एक ने गैस मै रोटी पकाई
दुजे ने चूल्हे मै रोटी सैकाई
हम एक हैं
फिर घर क्यों अनेक हैं ?

एक आगन का घेरा
दुजे का फुटपाथ का बसेरा
तेरा भी वो सवेरा
मेरा भी वो सवेरा
हम एक हैं
फिर घर क्यों अनेक हैं ?

दिल एक मंदिर
फिर भी वो संग दिल है
रहता है अलग अलग
पर धडकने पर भी बिल है
हम एक हैं
फिर घर क्यों अनेक हैं ?

कैसा है चलन
छलनी जैसा है गुलबदन
एक खुसबु मै महकता है
दुजा बदबु मै चहकता है
हम एक हैं
फिर घर क्यों अनेक हैं ?

एक
हम एक हैं
फिर घर क्यों अनेक हैं ?
एक को चार दीवारी
दुजे को दुनिया सारी
एक को छत ने घिरी
दुजे ने मारी आकाश फैरी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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  भूमि बद्री-केदार नाथ
माँ
 
 तेरे छुने का अहसास
 सदा मेरे साथ साथ
 वो पल छिन ओ बात
 आज भी मुझे याद
 माँ तो यंही कंही आस पास
 
 ९ महीने का साथ
 तेरे गर्भ की है बात
 अंकुर बन सींचा हों
 तेरे लहूँ के साथ
 माँ तो यंही कंही आस पास
 
 देख मैने ये जंहा
 तेरे आँचल मै आज
 तेरे दुध की धार के लिये
 रोया मै पहली बार
 माँ तो यंही कंही आस पास
 
 विश्व को देखा मै घबराया
 तेरे स्पर्श मात्र सै चैन आया
 जीवाह भी जब लप लपटाई
 तब माँ कहकर उसने आवाज लगाई
 माँ तो यंही कंही आस पास
 
 माँ सुनकर तु दुआडी आयी
 सीने लगाकर मेरी आत्म त्रिप्त कराई
 मै बड भागी की मैने माँ पायी
 माँ शब्द मै सारी स्रीशटी है समाई
 माँ तो यंही कंही आस पास
 
 बचपन मेर बना  मधुबन
 माँ जब तु है मेर  संग 
 उदास रहती ये आंखें तेरे बिन
 झलक मात्र से उगता है मेरा दिन
 माँ तो यंही कंही आस पास
 
 भविष्य की चिंता तेरे माथे गहराई
 हाथ पखाड़ गुरुकल रहा दीखाई
 पथ पथ पर अब तेरी ही याद आई
 निश्छल प्रेम की परीभाष कहलाई
 माँ तो यंही कंही आस पास
 
 तेरे ना होने का अहसास
 याद दिलता है मुझे  हर बार
 चाँद तारों मै बसी कहनीयाँ लेके  माँ
 आजा मेरे सपनो मै आज
 माँ तो यंही कंही आस पास
 
 आज बूढ़ा हो फिर मुझ को याद
 बच्चों के बच्चों मै ढहोंडों तेरा साथ
 आँखों मै बहती है अब गंगा की धार
 दिल मेर कहता माँ माँ माँ  अब भी बार बार
 माँ तो यंही कंही आस पास
 
 तेरे छुने का अहसास
 सदा मेरे साथ साथ
 वो पल छिन ओ बात
 आज भी मुझे याद
 माँ तो यंही कंही आस पास
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ मेरा माटा
 
 परदेस गायं भाई बंद जुगराज राया .....२
 देश छुड़ी परदेस गयां जुगराज राया .....२
 बिता दीणु बीती बात रहीगै बस याद
 वाख रहै रहै की क्या आणी वहाली मेरी याद
 परदेस गायं भाई बंद जुगराज राया .....२
 
 उकली की पीड़ा खैरी णी तोडी हमरु साथ
 घारा भविष्य की चिंता णी मोडी अपरी बाट
 उन्दारू सैणी बाटा मा चलगे साथ साथ
 माता और भुमी मा येगे माया की बात   
 परदेस गायं भाई बंद जुगराज राया .....२
 
 जग भी रयां  मेरा माटा खुब फ्लयां फुलं
 दें दूणी रात चुगाणी प्रगती प्रगती कारां
 मेर विपद खैरी दाणी आँखों थै भूली जयां
 अपर गढ़ मा  थै तुम ण कभी भुली जयां
 परदेस गायं भाई बंद जुगराज राया .....२
 
 परदेस गायं भाई बंद जुगराज राया .....२
 देश छुड़ी परदेस गयां जुगराज राया .....२
 बिता दीणु बीती बात रहीगै बस याद
 वाख रहै रहै की क्या आणी वहाली मेरी याद
 परदेस गायं भाई बंद जुगराज राया .....२
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ कदगा हीटा
 
 कदगा जण हीटा ये बाटा कदगा हीटा
 भुल्हो दिदों तुम भी हीटा ये बाटा तुम भी हीटा
 बाटा बाट हेराणु बाटा छुंयीं लगाणु
 तुम भी आव भुली दीदियो  तुम भी सुना
 ये गढ़ देश उत्तरखंड की बात
 
 कदगा जण हीटा ये बाटा कदगा हीटा.........
 
 बिसरी बिसरी बात अब अणी वहाली याद
 छुटा छुटा न्नाह कुठंण कैल होली शुरुवाह्त
 ओ छुटपन का दीण ओ बिता पलछिन
 आँखों मा उनका चित्र उभारणा व्हाला   
 क्या वा बाटा याद आणा वाहला 
 
 कदगा जण हीटा ये बाटा कदगा हीटा.........
 
 आण जाण कुठयुं की गुज़री यख बारात
 तू होलो भुलो मी थै सब छ याद
 स्कुल का दीण वो खेली खेली की बात
 ये माटा मा लुट लुँटैकी होये तो  आबाद
 एक बार मोडे की अब तक तू आयी णी घार 
 
 कदगा जण हीटा ये बाटा कदगा हीटा.........
 
 आणु याद मी थै तेर ब्योली भी आई ये बाट
 सुखी संसारा की यख व्हाई प्रभात
 कुछ दीण बाद तू चलगे ये उन्दरा बाटा
 जाकी इतागा दीण व्हागे ना आयी उकाल की याद
 दाणी अन्ख्युं मा अब बस दाडमण बरसात बरसात   
 
 कदगा जण हीटा ये बाटा कदगा हीटा.........
 
 कदगा जण हीटा ये बाटा कदगा हीटा
 भुल्हो दिदों तुम भी हीटा ये बाटा तुम भी हीटा
 बाटा बाट हेराणु बाटा छुंयीं लगाणु
 तुम भी आव भुली दीदियो  तुम भी सुना
 ये गढ़ देश उत्तरखंड की बात
 
 कदगा जण हीटा ये बाटा कदगा हीटा.........
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ एक
 हम एक हैं
 फिर घर क्यों अनेक हैं ?
 एक को चार दीवारी
 दुजे को दुनिया सारी
 एक को छत ने घिरी
 दुजे ने मारी आकाश फैरी 
 
 माँ और माई
 क्या फर्क है भाई
 एक ने गैस मै रोटी पकाई
 दुजे ने चूल्हे मै रोटी सैकाई
 हम एक हैं
 फिर घर क्यों अनेक हैं ?
 
 एक आगन का  घेरा
 दुजे का फुटपाथ का बसेरा
 तेरा भी वो सवेरा
 मेरा भी वो सवेरा
 हम एक हैं
 फिर घर क्यों अनेक हैं ?
 
 दिल एक मंदिर
 फिर भी वो संग दिल है
 रहता है अलग अलग
 पर धडकने पर भी बिल है
 हम एक हैं
 फिर घर क्यों अनेक हैं ?
 
 कैसा है चलन
 छलनी जैसा है गुलबदन
 एक खुसबु मै महकता है
 दुजा बदबु मै चहकता है
 हम एक हैं
 फिर घर क्यों अनेक हैं ?
 
 एक
 हम एक हैं
 फिर घर क्यों अनेक हैं ?
 एक को चार दीवारी
 दुजे को दुनिया सारी
 एक को छत ने घिरी
 दुजे ने मारी आकाश फैरी 
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ मी हरची
 
 परदेश जाकी हरची गयुं
 आपरा बाटा बिसरी गयुं
 गढ़ देश गढ़वाल थै भुली गयुं
 अपर भेसा मी बदली गयुं
 परदेश जाकी हरची गयुं ........
 
 रिती रिवाज मी भुली गयुं
 सुट बुट टै  हैट पहनीकी   
 कुर्ता सुलार झबा टोपलू
 रोलूं  गदनीयुं फैंकी गयुं
 परदेश जाकी हरची गयुं ........
 
 माया का बाथों इण झुली गयुं
 बिरण मुलुक मा इण अटकी गयुं
 चार दीवार मा भटकी की गयुं
 विस्की रम दगडी सुधरी गयुं
 परदेश जाकी हरची गयुं ........
 
 लेटा की चाकाचोंद मा
 फरेब का कला चस्मा पहैणी गयुं
 होटल की नोकरी कैकी
 अपर घार चुलह जलण बिसरी गयुं
 परदेश जाकी हरची गयुं ........
 
 अहंकार अभिमान दगडी
 अपर जीवन झुल्स्ही गयुं
 गंगा कण कैली अस्थी विसर्जन
 यखा का समोदर मा घुली गयुं
 परदेश जाकी हरची गयुं ........
 
 परदेश जाकी हरची गयुं
 आपरा बाटा बिसरी गयुं
 गढ़ देश गढ़वाल थै भुली गयुं
 अपर भेसा मी बदली गयुं
 परदेश जाकी हरची गयुं ........
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ हरी तेरी नगरी मा
 
 मण का तासुं
 रहेगे प्यासु
 हरी तेरी पीडी मा.......२
 ये जिज्ञासु
 अंतर आत्म तांसु
 देख हरीद्वार मा
 मण का तासुं............
 
 कण  मची च लुँट
 भक्त भक्त थै लुटाणा
 हरी तेरी नगरी मा
 पाप मा खिला फुल
 काण चढ़ाण तेरी पाडी मा 
 मण का तासुं.............
 
 गंगा मा बोग्याण पाप
 कंण कर्म कणड़ तेरी पीडी माँ
 फुल दीप संजी थाली दीदा
 माया का रुप्युं णी लजाणी तेरी पाडी मा 
 मण का तासुं.............
 
 देख जख तक त्रस्त
 जन जन तेरी नगरी मा
 कबैर सरकार कबैर पंडा
 कबैर दुकान कबैर दुकानदार
 सब की सब लुटण हरी तेरी नगरी मा
 मण का तासुं.............
 
 हरीद्वार मा हरी दर्शन हर्ची
 माँ गंगा कजल्याँण लगे
 देखा पाप अड़म्भर को गढ़
 ठेखेदर भी अब खादयाण लगे
 मण का तासुं.............
 
 मण का तासुं
 रहेगे प्यासु
 हरी तेरी पीडी मा.......२
 ये जिज्ञासु
 अंतर आत्म तांसु
 देख हरीद्वार मा
 मण का तासुं............
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ मी हरची
 
 परदेश जाकी हरची गयुं
 आपरा बाटा बिसरी गयुं
 गढ़ देश गढ़वाल थै भुली गयुं
 अपर भेसा मी बदली गयुं
 परदेश जाकी हरची गयुं ........
 
 रिती रिवाज मी भुली गयुं
 सुट बुट टै  हैट पहनीकी   
 कुर्ता सुलार झबा टोपलू
 रोलूं  गदनीयुं फैंकी गयुं
 परदेश जाकी हरची गयुं ........
 
 माया का बाथों इण झुली गयुं
 बिरण मुलुक मा इण अटकी गयुं
 चार दीवार मा भटकी की गयुं
 विस्की रम दगडी सुधरी गयुं
 परदेश जाकी हरची गयुं ........
 
 लेटा की चाकाचोंद मा
 फरेब का कला चस्मा पहैणी गयुं
 होटल की नोकरी कैकी
 अपर घार चुलह जलण बिसरी गयुं
 परदेश जाकी हरची गयुं ........
 
 अहंकार अभिमान दगडी
 अपर जीवन झुल्स्ही गयुं
 गंगा कण कैली अस्थी विसर्जन
 यखा का समोदर मा घुली गयुं
 परदेश जाकी हरची गयुं ........
 
 परदेश जाकी हरची गयुं
 आपरा बाटा बिसरी गयुं
 गढ़ देश गढ़वाल थै भुली गयुं
 अपर भेसा मी बदली गयुं
 परदेश जाकी हरची गयुं ........
 
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