Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 232975 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ जाडॉ मा   
 
 उजाड़ों उजाड़ों का
 ठंडो मा जाडॉ मा   
 डाणड मा रोल्युं मा
 कोयेड़ी छायी
 गढ़ओं मा पहाड़ो मा..............
 
 बुरंस मौली गैणी
 प्योंली बोउली गैणी
 जाड़ा का दीण सैणी
 जाड़ों राता ठीठोर गैणी   
 गढ़ओं मा पहाड़ो मा..............
 
 उकाला बाटा छुप गैणी
 उन्दारू मा भुर रररर गैणी 
 बिरला कुकरा कूल्हण लुक गैणी
 गढ़ की कहणी  मुक रैह  गैणी   
 गढ़ओं मा पहाड़ो मा..............
 
 विपदा का गाथा
 खैरी की कथा जाडॉ मा   
 रीटा बाटा ये स्याणी का पथ
 गढ़ की दुर्दश म्यरु मन स्तब्द
 गढ़ओं मा पहाड़ो मा..............
 
 उजाड़ों उजाड़ों का
 ठंडो मा जाडॉ मा   
 डाणड मा रोल्युं मा
 कोयेड़ी छायी
 गढ़ओं मा पहाड़ो मा..............
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
 मेरा ब्लोग्स
 http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत



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देव भूमि बद्री-केदार नाथ विभुषणम
 
 चादर छनी छनी
 गगन तनी तनी 
 प्रतीक स्थलतंम स्थलतंम
 भारतंम जयती जयती
 चादर छनी छनी..............
 
 जग जननी जननी
 भुमी गणणी गणणी
 भग्या विधाता विधाता
 मुखंम विभुषणम विभुषणम
 चादर छनी छनी..............
 
 हिन्दु स्थानाम  सुंदरम सुंदरम
 सुंग्धीत पुष्पीतम  पुष्पीतम
 समधुर विभूषितंम विभूषितंम 
 जल विनायकंम विनायकम
 चादर छनी छनी..............
 
 पहाडम विशालतम विशालतम
 चोटीनम पुजीयात्म पुजीयात्म
 देवभुमी गढ़वालम गढ़वालम
 उर्जाम  मुक्ततंम मुक्ततंम
 चादर छनी छनी..............
 
 चादर छनी छनी
 गगन तनी तनी 
 प्रतीक स्थलतंम स्थलतंम
 भारतंम जयती जयती
 चादर  छनी छनी..............
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ माया बिसरी
 
 बिसरी बिसरी गैण
 तीसलू  तीसलू रैण
 खुदमा बैठी खुदैड़ी
 छुंयीं लगा दे  डंडाली...२ 
 बिसरी बिसरी गैण
 
 घसा की गठरी गठरी
 पीड़ा की गोठरी
 मै दगडी माया लगे ये
 रोटी सगा की टोकरी...२
 बिसरी बिसरी गैण
 
 डंडा मा कोयेडी कोयेडी
 जीकोडी मा धोंप्यान्ली
 लोंप्यान्ली माया गढ़ की
 बाटों बाटों मा हेरा ली ....२
 बिसरी बिसरी गैण
 
 कुदु का बीज बीज 
 पुंगडु मा सखी पेराली
 बंजा  पड़ा मेरा भागा
 ग्दनीयु दगडी बोग्यली ...२
 बिसरी बिसरी गैण
 
 ये रास्ता याखाडु याखाडु
 उन्दारू वा उकलू
 छुडी गैना जो भी यख
 माया का जी को उधारु ...२
 
 बिसरी बिसरी गैण
 तीसलू  तीसलू रैण
 खुदमा बैठी खुदैड़ी
 छुंयीं लगा दे  डंडाली...२ 
 बिसरी बिसरी गैण
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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 देव भूमि बद्री-केदार नाथ
नचैडी
 
 कण नचणी....२ नचैडी वा 
 कण नचणी....२
 भुल्ह को ब्योच कण नचणी
 लस्का धसका लगाणी नचैडी वा 
 कण नाचणी....२
 
 जमा होयां गाम की बेटी ब्वारी आज
 चौका लगी कण ये  बहार
 गड्वाली गीतों की उधाण
 भुल्ह थै आज ब्योला बणाण
 कण नचणी   ....२
 
 एक दुई का मार ठुमका
 दीदी भुलीयुं तुम भी मार झम्पा
 दे दै साथ मेरा दगडीयुं
 हार णा माणा मेरा सखीयुं
 कण नचणी   ....२
 
 खैरी विपदा भुल्दै
 गढ़ देश मी थै बाथदै
 आपर अन्गोली मा बोई
 दुई घड़ी मी थै हसा दै
 कण नचणी   ....२
 
 मासों बाजा सुरीला
 ढोल दामू जरा छुंयीं लगा
 खूटी मेरी तु आज खीदा
 मेर पीड़ा थै भुल्ह 
 कण नचणी   ....२
 
 कण नचणी....२ नचैडी वा 
 कण नचणी....२
 भुल्ह को ब्योच कण नचणी
 लस्का धसका लगाणी नचैडी वा 
 कण नचणी   ....२
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
चौखम्बा चोटी मा

 चोपटा सुरम्य गांव

 केदार को बाट
 तुंगनाथ यात्रा को शुरुवात
 चंद्रशिला मंदीर
 नंदा देवी थाट बाटा
 चौखम्बा चोटी माँ
 माँ जन्ननी को वासा
 जय नंदा देवी माता जय केदार बाबा को पहला कपाटा
 चोपटा सुरम्य गांव ...........

 बर्फानी घटीयुं मा

 देवदार का घनघोर डंडा
 वख रहैणु माँ भगवती को बघा
 मंदीर मा सजी लाल पिला पताका
 सर झुके ले अश्रीवादा
 चल यात्र को  बाटा
 जय नंदा देवी माता जय केदार बाबा को पहला कपाटा
 चोपटा सुरम्य गांव .....

 माँ नंद माँ भगवती

 दैण हो जा गढ़ मा खोली को देवा
 गुप्तकाशी ओर गोपेश्वर का बाटा
 मठो मठो चल भक्त चोपटा का डंडा
 माँ बैठी च त्रिशोल ले हाथ
 कंण भलो लगदु मेरु पहाडा
 जय नंदा देवी माता जय केदार बाबा को पहला कपाटा
 चोपटा सुरम्य गांव .....

 चोपटा सुरम्य गांव

 केदार को बाट
 तुंगनाथ यात्रा को शुरुवात
 चंद्रशिला मंदीर
 नंदा देवी थाट बाटा
 चौखम्बा चोटी मा
 माँ जन्ननी को वासा
 जय नंदा देवी माता जय केदार बाबा को पहला कपाटा
 चोपटा सुरम्य गांव ...........

 बालकृष्ण डी ध्यानी

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
डगर
 
 डगर डगर
 पर एक खबर
 कुछ नयी सी है
 कुछ पुरनी है मगर
 यंह सबके सब रहा गुजर
 
 चला था वंह
 आकाश और क्षितिज 
 मीलते है जंहा
 दो बिंब मे छुपा ये जहाँ
 यंह सबके सब रहा गुजर
 
 क्या खोज रहा है
 क्या पायेगा यंह
 पल पल सोच रहा
 बस उलझन पायेगा वहं
 यंह सबके सब रहा गुजर
 
 शिवाले दरगह की
 दीवार टकरयेंगी
 ध्वनी नभ मे छायेगी
 जब टकराव की स्थीती आयेगी
 यंह सबके सब रहा गुजर
 
 जब खोना पाना नहीं
 बस सोना है जागना नहीं
 जब रोना है हंसना नही
 जग छुड़ना है खोजना नहीं
 यंह सबके सब रहा गुजर
 
 कैसी है ये डगर
 मेरे ईशवर मेरे खुदा
 आदमी आदमी से जुदा
 लगे यंह सब बुझ बुझ सा
 यंह सबके सब रहा गुजर
 
 खो गयी वो डगर
 ना जाने अब किधर
 कोहरे की घनी चादर ले
 सो गयी वो किधर
 यंह सबके सब रहा गुजर
 
 डगर डगर
 पर एक खबर
 कुछ नयी सी है
 कुछ पुरनी है मगर
 यंह सबके सब रहा गुजर
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ विभुषणम
 
 चादर छनी छनी
 गगन तनी तनी 
 प्रतीक स्थलतंम स्थलतंम
 भारतंम जयती जयती
 चादर छनी छनी..............
 
 जग जननी जननी
 भुमी गणणी गणणी
 भग्या विधाता विधाता
 मुखंम विभुषणम विभुषणम
 चादर छनी छनी..............
 
 हिन्दु स्थानाम  सुंदरम सुंदरम
 सुंग्धीत पुष्पीतम  पुष्पीतम
 समधुर विभूषितंम विभूषितंम 
 जल विनायकंम विनायकम
 चादर छनी छनी..............
 
 पहाडम विशालतम विशालतम
 चोटीनम पुजीयात्म पुजीयात्म
 देवभुमी गढ़वालम गढ़वालम
 उर्जाम  मुक्ततंम मुक्ततंम
 चादर छनी छनी..............
 
 चादर छनी छनी
 गगन तनी तनी 
 प्रतीक स्थलतंम स्थलतंम
 भारतंम जयती जयती
 चादर  छनी छनी..............
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
रींग रिंग
 
 छुयीं लगदे
 मी थै अपरी
 बात बथा दे
 प्रीत बिंगा दे
 ये मोबाईल जी दगडी छुयीं लग्दै
 
 रींग रिंग
 बज्दै कनु मा
 आवाज आइजादी
 ईण जीकोडी मा 
 ये मोबाईल मेर जी दगडी छुयीं लग्दै
 
 गला गलुआडी हंसी
 इण ना अब पिचका
 आंखी लजाणी येरै
 दात पट्टी तो छुपादे
 ये मोबाईल  जी दगडी छुयीं लग्दै
 
 रेशमी लाटोंलों थै
 बथों दगडी फर फरा दे
 लाली लगी अटुओं मा
 बंगडी हाथों मा पहन दे 
 ये मोबाईल जी दगडी छुयीं लग्दै
 
 पहाड़ की बबली छुं
 गढ़ देश की बेटी छुं
 रामी जसी जाणी युकुली णी
 अब मोबाईल दगडी छुं
 ये मोबाईल जी दगडी छुयीं लग्दै
 
 छुयीं लगदे
 मी थै अपरी
 बात बथा दे
 प्रीत बिंगा दे
 ये मोबाईल जी दगडी छुयीं लग्दै
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
गढ़देशा गढ़वाला
 
 बस यादों  को  आपने सीमट ने  मे  लगा  हों 
 दुर जा चुके उन्हे  पास बोलाने मै लगा  हों   
 
 एक कोशिश है  उसको निभा रहा हों
 अपने आप से मै खुद को मिला रहा हों
 
 रिक्त गढ़ देख देख कर अंशुं बहा रहा हों
 पैरो को खुद आपने मैदान ओर भागा रहा हों
 
 पल पल अपनी बैचनी खुद ही बड़ा रहा हों
 सत्य दमन छुड असत्य को पंनपा रहा हों
 
 वेदना कैसी क्यों अकेले ही छटपट रह हों
 एक कोने  बैठे बैठे  खुद से बड बाड रहा हों
 
 चिंता पर बडे बड़े भाषण मै पड़ रट रहा हों
 पडने के पश्चात ही दूजे पल मै भुल रहा हों
 
 कथनी और करनी मै कैसा द्वुंद मचा आज
 गढ़ देश मेरा मुझे दुर खड़ा खड़ा देखा रहा है
 
 पलायन के प्रश्न पर सब मचल मचल रहा है
 अंतकर्ण  दुर जाकर अब अकेला विहल पड़ा है
 
 धुंदली सी परछाई अब साथ साथ चलती है
 गीले तकिये मै अब मेरे साथ साथ बहती है
 
 देवभुमी तेरी याद बस  इस दिल मे बस्ती है
 पर अपनी बस्ती गढ़ से दुर ही क्यों सजती है ?
 
 इस बात पर मै भी आज  निर उत्तर हो जाता हों
 युवा को ओर उनके मन को आज मै टटोलता हों
 
 भगीरथी सा मै अब उस गंगा को खोजता हों
 मेरे पापों का त्रर्पण कैसे उस आत्म ढोंहणडता हों 
 
 बस यादों  को  आपने सीमट ने  मे  लगा  हों 
 दुर जा चुके उन्हे  पास बोलाने मै लगा  हों   
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
संस्क्रती
 
 नाका की नथुली देख
 कंण भली सजली......२
 माथा का मांग टीका बल
 कण भलो लगदो .....२   
 संस्क्रती मेर बांची चा
 गढ़ देशा बेटी बावरी मा
 नाका की नथुली ..........
 
 रीती रीवाज पहाडा का
 लोकगीत गढ़ देशा का
 बिंदी गढ़ की गोल गोल
 आंखी तो अब बल बोल
 गोलबंद गला हार देखा
 कनुडी झुमका बात देख 
 संस्क्रती मेर बांची चा
 गढ़ देशा बेटी बावरी मा
 नाका की नथुली ..........
 
 ढोल दमौं माशु बाजा
 तुर्री ढोलकी रणसिंघा गाजा
 दौर थाली भंकोरा  को साथ
 तबला हारमोनियम ताला
 उत्तराखण्ड लोक वाद्यय यन्त्र
 संस्क्रती को ये बाटा ये भुली
 संस्क्रती मेर बांची चा
 गढ़ देशा बेटी बावरी मा
 नाका की नथुली ..........
 
 मंगलस मार्तिअल
 खुदेड झोड़ा थड्या
 पंवारस मेलान्चोली मा
 जड़युं मोती को हारा
 गढ़ लोक  संगीत मा
 लगा दे अब चारचांदा ये बांदा
 संस्क्रती मेर बांची चा
 गढ़ देशा बेटी बावरी मा
 नाका की नथुली ......
 
 लंग्विर  नृत्य, बरदा  नाटी
 पांडव  नृत्य ,शोतिया  त्रिबल  लोक नृत्य
 को छाट़ा को ये प्रभात
 लगा दे रसा गढ़ा आजा
 मी थै भी नचा दे आजा 
 दागडीयुं अब साथ दे जरा
 संस्क्रती मेर बांची चा
 गढ़ देशा बेटी बावरी मा
 नाका की नथुली ......
 
 नाका की नथुली देख
 कंण भली सजली......२
 माथा का मांग टीका बल
 कण भलो लगदो .....२   
 संस्क्रती मेर बांची चा
 गढ़ देशा बेटी बावरी मा
 नाका की नथुली ..........
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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