देव भूमि बद्री-केदार नाथगढ़देशा गढ़वाला
बस यादों को आपने सीमट ने मे लगा हों
दुर जा चुके उन्हे पास बोलाने मै लगा हों
एक कोशिश है उसको निभा रहा हों
अपने आप से मै खुद को मिला रहा हों
रिक्त गढ़ देख देख कर अंशुं बहा रहा हों
पैरो को खुद आपने मैदान ओर भागा रहा हों
पल पल अपनी बैचनी खुद ही बड़ा रहा हों
सत्य दमन छुड असत्य को पंनपा रहा हों
वेदना कैसी क्यों अकेले ही छटपट रह हों
एक कोने बैठे बैठे खुद से बड बाड रहा हों
चिंता पर बडे बड़े भाषण मै पड़ रट रहा हों
पडने के पश्चात ही दूजे पल मै भुल रहा हों
कथनी और करनी मै कैसा द्वुंद मचा आज
गढ़ देश मेरा मुझे दुर खड़ा खड़ा देखा रहा है
पलायन के प्रश्न पर सब मचल मचल रहा है
अंतकर्ण दुर जाकर अब अकेला विहल पड़ा है
धुंदली सी परछाई अब साथ साथ चलती है
गीले तकिये मै अब मेरे साथ साथ बहती है
देवभुमी तेरी याद बस इस दिल मे बस्ती है
पर अपनी बस्ती गढ़ से दुर ही क्यों सजती है ?
इस बात पर मै भी आज निर उत्तर हो जाता हों
युवा को ओर उनके मन को आज मै टटोलता हों
भगीरथी सा मै अब उस गंगा को खोजता हों
मेरे पापों का त्रर्पण कैसे उस आत्म ढोंहणडता हों
बस यादों को आपने सीमट ने मे लगा हों
दुर जा चुके उन्हे पास बोलाने मै लगा हों
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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