Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 232849 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ फ़ैलयुं भ्रष्टचार
 
 घार घार फ़ैलयुं भ्रष्टचार
 दूँण णी मार पहली बाण
 गद्दी मा बैठयुंच सरताज
 गढ़ का  हूँयांच बुरा हाला
 
 पल्याँन मार से गढ़च परेशान 
 गामा खाली पड़यां छन अब ये धाम
 कामणी धणी मार्ग बंद छन 
 जाण हमुला जाण कैका घार
 गढ़ का भी हूँयांच बुरा हाला
 
 महंगाई बडगे ना रहगे कुछ काम
 उजड़ा पडी डंडी बंजा पुंगडी गढ़ धाम
 सरकार पडी सीयीं च हमरी
 घुस  खैणी बगैर कुछ ना अब कम   
 गढ़ का भी हूँयांच बुरा हाला
 
 लुट माची च लुट याखा अब
 जावा जख भी अब ये धाम
 बिता दीणु याद रेगै बीती वो बात
 बल कब आलो पहाडमा ये प्रभात
 गढ़ का भी हूँयांच बुरा हाला
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
 मेरा ब्लोग्स
 http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ ना बणी
 
 ड़णड़ टुक सडकी गैनी
 ना बणी कुछा भी काम
 काम धाम ध्याड़ी नीच
 नीच अब कुछा भी काम
 
 उजाड़ धड पुंगड़ होयां 
 सारीयुं मा नीच धान
 तीसा रुल्याँ गद्न्यान
 तीसा अब ये गड धाम
 
 ऊँचा ऊँचा शिखर हमरा
 वख हमरु देबतों को धाम
 देवभूमी हे उत्तरखंड
 ना मिली यख हम थै काम
 
 रीटा गों गोठ्यार वहयेगै
 डाणड़ तार तार वहयेगै
 बची छे जै खेती जै सायरी
 सुन्घरों बंदरों अधिकार वहयेगै
 
 बची कसर दगडी सरकार मोरीगै
 गों का विकास योजना देखा
 कपड दगडी लगुली मा सुखी गै
 अब बथों मा भी देख कर लगी गै
 
 यला छाला पल छाल
 सब सब टुंडा पड्यांण छन
 घार घार मा मेरो दिदो
 छुटा भूलह भूली भुक्या सीयां छन 
 
 पल्याँन समस्या ग्रस्त होयां छन
 उन्दारों बाटा मा रुडया छन
 उकाला विपदा का खैरी मा
 अब फिनका पड्या छन
 
 ड़णड़ टुक सडकी गैनी
 ना बणी कुछा भी काम
 काम धाम ध्याड़ी नीच
 नीच अब कुछा भी काम
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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 मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत..

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ ये वतन
 
 जो भी उठे हाथ मेरा
 तेरा ही हो सहारा
 मै हों मचलता एक  सागर
 तु है मेरा कीनार
 
 डगमग डोले है कश्ती
 मौजों की है तु धारा
 भटक ग़र जाओं लक्ष्य से
 तु खड़ा बनकर धुर्व तारा
 
 नतमस्तक मेर शीश रहे
 शीश पर रहे अंचल तुम्हारा
 गर्वन्तीत मै रहों हमेशा
 भारत देश है तु मेरा
 
 कुर्बानीयों की है गाथा
 सरहद पर तु ने जब भी पुकार
 शीश हमरे कट भी गये गम नहीं
 भारत हमारा भग्या विधात
 
 जो भी उठे हाथ मेरा
 तेरा ही हो सहारा
 मै हों मचलता एक  सागर
 तु है मेरा कीनार
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ मोको हाथ आयूँ च
 
 रण को शंख गरजी गै
 नेतओं की नींद हर्ची गै
 विधान सभा चुनवा को
 बार गढ़ मा तैया हौयगे
 रण को शंख गरजी गै
 हरच्यां हरच्यां फिरण छंण सब
 
 ३० जनवरी को बेलच
 गढ़ा मा चुनवो को खेल च
 खाणी पीणी सब हर्ची गैणी   
 विपदा उनकी उपरी ऐणी
 हरच्यां हरच्यां फिरण छंण सब
 
 जाग ये जन अब जगी जावा
 अब तुम्हरी बेल च उठाव अपर मुदा
 खिली दयावा तुम भी अब खिंड
 जीतणु हमण गैरसैण,पालयन और भ्रस्टाचार
 हरच्यां हरच्यां फिरण छंण सब
 
 उठा दिदो भुल्हा भुल्ही
 कसा दे अपरी अपरी कमर
 ये मुओका अब मीलाणु च हम थै
 ना छुड़ा ना छुड़ा ये आंयी बात
 हरच्यां हरच्यां फिरण छंण सब
 
 रण को शंख गरजी गै
 नेतओं की नींद हर्ची गै
 विधान सभा चुनवा को
 बार गढ़ मा तैया हौयगे
 रण को शंख गरजी गै
 हरच्यां हरच्यां फिरण छंण सब
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ माया
 
 हाथ मा हाथ धरी जोंला
 गीत माया का लगोंला
 सात जन्मों साथी
 हम दियु  बत्ती
 हाथ मा हाथ धरी जोंला
 
 फुल पत्ती दीखोंला
 गढ़  माटी मा मीसी जोंला
 उकाला उन्दारू ये बाटा मा सुवा
 अपरी विपदा थै भूलीं जोंला
 हाथ मा हाथ धरी जोंला
 
 दोईयों की छुयीं सुवा
 डाली डाली भी अब लगी लाग्यांण
 गदानीयुं  रुल्युं साणी सुवा
 गीत थै हमरी लगी बखाण
 हाथ मा हाथ धरी जोंला
 
 हाथ मा हाथ धरी जोंला
 गीत माया का लगोंला
 सात जन्मों साथी
 हम दियु  बत्ती
 हाथ मा हाथ धरी जोंला
 
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ ये डाली
 
 मेरा गढ़ देशा की ये डाली
 कंण मटमोटी बिगरली ये बाली
 ब्थों मा कंण लह लहल्ह्यंद या
 बात मेर उत्तरखंड की बथंद वा
 ये डालियुं मा( झुम्पा खेल हम ...२) ...२
 
 ये डंणडी मा ये सरीयुं मा
 घुघूती हीलंसा भी ये डालियुं मा
 ये जीकोड़ी मा ये दगडी मा
 माया प्रीत लगे ये डालियुं मा
 ये डालियुं मा( झुम्पा खेल हम ...२) ...२
 
 प्योंली बुरंसा खिला डालियुं मा
 विपदा खैरी कंणड़ लगा डालियुं मा
 कीन्गोड़ काफल पक्की डालियुं मा
 खूब चखी चखी खाई ये डालियुं मा
 ये डालियुं मा( झुम्पा खेल हम ...२) ...२
 
 जख भी मी जंदु वख वो दिखंद वा
 मेर दगडी चुप कैकी बचाण वा
 डाणडों मा हरैली पस्रयंद वा
 यकुली  यकुली दूर खडी लाज्यंद वा
 ये डालियुं मा( झुम्पा खेल हम ...२) ...२
 
 मेरा गढ़ देशा की ये डाली
 कंण मटमोटी बिगरली ये बाली
 ब्थों मा कंण लह लहल्ह्यंद या
 बात मेर उत्तरखंड की बथंद वा
 ये डालियुं मा( झुम्पा खेल हम ...२) ...२
 
 मी थै याद बहुँत अंद वा
 मेरा गढ़ देशा की ये डाली
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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मी नवलाई मा.....
 
 हरैगै हरैगै  नवलाई मा
 मन्ख्युं की बुराई मा
 कपडै की धुलायी
 नुँनाओं की पड़ई मा
 हरैगै हरैगै मी नवलाई मा.....
 
 रोजा की लडाई
 अपरी ये परछाई मा
 महंगै की गहराई मा
 जीवन की कठनाई मा
 हरैगै हरैगै मी नवलाई मा.......
 
 दशा मेरी णी बदली
 णी बदली मेरा लोगों की
 कंण लगाणी मया मयल्दी
 ये उजाडा डाणड़ कणडी मा
 हरैगै हरैगै मी नवलाई मा.......
 
 सब हारू हारू दीखे
 ओ नोटों का बाणडल मा
 मेर वाख ही हर होयैगै
 जब पडू मी यी माया चक्कर मा
 हरैगै हरैगै मी नवलाई मा.......
 
 कण दिसा भूल व्हैगे
 ये देवभूमी तेरा गढ़ दर्शन मा
 कण छुडी की चला जांदी
 रुँदी रुअडी उदास उकालों  मा
 हरैगै हरैगै मी नवलाई मा.......
 
 हरैगै हरैगै  नवलाई मा
 मन्ख्युं की बुराई मा
 कपडै की धुलायी
 नुँनाओं की पड़ई मा
 हरैगै हरैगै मी नवलाई मा.....
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ ना बणी
 
 ड़णड़ टुक सडकी गैनी
 ना बणी कुछा भी काम
 काम धाम ध्याड़ी नीच
 नीच अब कुछा भी काम
 
 उजाड़ धड पुंगड़ होयां 
 सारीयुं मा नीच धान
 तीसा रुल्याँ गद्न्यान
 तीसा अब ये गड धाम
 
 ऊँचा ऊँचा शिखर हमरा
 वख हमरु देबतों को धाम
 देवभूमी हे उत्तरखंड
 ना मिली यख हम थै काम
 
 रीटा गों गोठ्यार वहयेगै
 डाणड़ तार तार वहयेगै
 बची छे जै खेती जै सायरी
 सुन्घरों बंदरों अधिकार वहयेगै
 
 बची कसर दगडी सरकार मोरीगै
 गों का विकास योजना देखा
 कपड दगडी लगुली मा सुखी गै
 अब बथों मा भी देख कर लगी गै
 
 यला छाला पल छाल
 सब सब टुंडा पड्यांण छन
 घार घार मा मेरो दिदो
 छुटा भूलह भूली भुक्या सीयां छन 
 
 पल्याँन समस्या ग्रस्त होयां छन
 उन्दारों बाटा मा रुडया छन
 उकाला विपदा का खैरी मा
 अब फिनका पड्या छन
 
 ड़णड़ टुक सडकी गैनी
 ना बणी कुछा भी काम
 काम धाम ध्याड़ी नीच
 नीच अब कुछा भी काम
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ बीत दिणु छुंयी लगाणु
 
 
 बीत दिणु छुंयी लगाणु
 आणु वाला दीण ......२
 कदग राती गैणी यानी
 स्वामी जी तेर बीण 
 बीत दिणु छुंयी लगाणु...
 
 जीकोड़ी मा थग्ल्या पडी
 बरखा का वो दीण.......२
 कदगा राती रोयी रोयी
 स्वामी जी तेर बीण 
 बीत दिणु छुंयी लगाणु...
 
 जाडु का मैहना गैरू
 गैरू सा ओ छाला पडों
 रीटा जीकोड़ी मा मेरी
 डरु का वो जाला गैरू
 बीत दिणु छुंयी लगाणु...
 
 घामा का छेलु म्युरु
 स्वामी जी वो गेलु मयारू
 दोपहरी का घाम स्वामी
 तुम्हरी झण निर्दयी व्हालो
 बीत दिणु छुंयी लगाणु...
 
 घुगती वो हीलंसा
 हे प्योंली ओ बुरंस
 ओ रोल्युं ओ डंडा
 यादा दिलाण तुम्हरी ही बाता
 बीत दिणु छुंयी लगाणु...
 
 बीत दिणु छुंयी लगाणु
 आणु वाला दीण ......२
 कदग राती गैणी यानी
 स्वामी जी तेर बीण 
 बीत दिणु छुंयी लगाणु...
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
 
 शुभ रात्री दागडीयुं
 
 नव वर्ष का हार्दीक शुभेछा
 (०१-०१ -२०१२  ) रविवार  मा जब रात खुलाली तब आपकी ओर हमरी भेंट वहाली तब तक बाण ,जय बद्री -केदार भगवान आप सब थै सुकुशल राख्यां ,धन्यवाद आप सभी का इतगा माया और प्रेम देण वास्ता दागडीयो
 
 आपरू
 
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