Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 232206 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
मेर श्रीमती जी
 
 कण भली लगदी,कैकुण वा सजदी
 मेर श्रीमती जी, मेर धर्मपत्नी जी
 
 छुयीं छुयीं मा याद वा आंदी
 दोई घड़ी मेर दगडी साथ छुयीं लगान्दी वा
 पीछणे की सब बीती बात बतान्दी वा
 सर रर मेर आंखी भीगे जांदी वा
 
 कण भली लगदी,कैकुण वा सजदी
 मेर श्रीमती जी, मेर धर्मपत्नी जी
 
 खडी वहाली तिबारी मा वा
 हेरती दोई आंखी क्या,क्या हेरती सड़की मा वा
 बस की पम पम मा कीले आंखी फर फरंदी वा
 कुछ बेल बाद क़ीले उदास हो जांदी वा
 
 कण भली लगदी,कैकुण वा सजदी
 मेर श्रीमती जी, मेर धर्मपत्नी जी
 
 म्यार पहाड़ की बेटी ब्वारी
 त्यारू याकुल जीवण यख कसैरी सी घरी
 उकाला उन्दारू का पाटा मा पीसु
 गढ़ देशा मा बस्यु तेरु च सरू कीसु
 
 कण भली लगदी,कैकुण वा सजदी
 मेर श्रीमती जी, मेर धर्मपत्नी जी
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
आज ओर कल
 (२०११ अलविदा २०१२ )
 
 पुरना साल जा रहा
 देकर अनेक सवाल
 
 क्या आप है तैयार
 जैसा है अब देश का हाल
 
 महंगाई की मार
 उस पर ये भ्रस्टाचार
 
 कमर तुड रही
 ये अपनी चुनी सरकार
 
 २००९  से २०१० तक का रिश्ता
 छुट रहा है २०११ का फरिश्ता
 
 २०१२ की खिलेगी कली
 महकेगी लगता अब गली गली
 
 कोई ना भुखा अब सोयेगा
 लगता है ऐसा साला आयेगा
 
 मेरे भारत अब
 अमन शांती का तिरंगा फैरयेगा
 
 नेता को कब जाकर अकाल आयेगी
 आम जनता जब जाग जायेगी
 
 जन लोकपाल पास हो जायेगा
 क्या पपु इस बार मीठा खायेगा
 
 चलो मिलकर विदा करें इस वर्ष को
 स्वागत करें आने वाले कल को
 
 भाईचारा ये फैलायेगा
 २०१२ हम सबको सुखद मंगलमय जायेगा
 
 आंखें भी छालकी बीती यादों से
 आशा की किरण बंधी उन बत्तों से
 
 पुरना साल जा रहा
 देकर अनेक सवाल
 
 क्या आप है तैयार
 जैसा है अब देश का हाल
 
 आप ओर सहपरिवार नव वर्ष की शुभ कामनायें ओर ये साल आप कई लिये उन्नती हर्ष उल्लाहस  भरा ओर  मंगलमय हो  जय बद्री-केदार
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
चाह
 
 एक चाह थी
 छुपी बात थी
 अहसास की वो गुमसुम रात थी
 बस वो ही मेरे पास थी
 दर्द दरस दर्पण
 तम तमस तर्पण
 ओ अकेली अर्पण की रात थी
 बस वो ही मेरे पास थी
 जलती बुझती रात थी
 नैना ओर बरसात थी
 बस दो अन्खीयुं की ओ बात थी
 बस वो ही मेरे पास थी
 अँधेरा उजाला अब साथ था
 सपनो का वो जाल था
 रात की नींद ना जाने कहं आबाद थी
 बस वो ही मेरे पास थी
 जुगनु की तरह चमका
 अंधेरे मै वो खनका
 बस कांच चुडीयों की वो बात थी
 बस वो ही मेरे पास थी
 एक चाह थी
 छुपी बात थी
 अहसास की वो गुमसुम रात थी
 बस वो ही मेरे पास थी
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
भटकण लग्युं
 
 घार दुंण झटकण लग्युं
 भांड भांड पटकण लग्युं
 लात घुसा धमकण लग्युं
 रात दिन भटकण लग्युं
 
 सवेर सवेर अब बड बडण लग्युं
 चुलह जणी मी अब जलण लग्युं
 गुड गुड गुडगुडी सी चौकमा अब गड गडण लग्युं
 नुँना नुँनी दगडी अब खिलंण लग्युं
 
 दोपहरी का घामाण मी गालण लग्युं
 डाला का छलु मी अब बैठाण लग्युं
 गोउरों का पीछा अब मी हक़ण लग्युं
 उनकी गाल घंटी सी अब मी  बजण लग्युं
 
 शाम का शैलु घाम अब पैटण लग्युं
 दिन भरा को कम से अब मी थकाण लग्युं
 अपर घार की ओर अब मी चलण लग्युं
 थका थक खुटी थै अब मी मश्ल्याण लग्युं
 
 राती की बाती थै अब मी बलण लग्युं
 खाण खै की बिस्तर अब मी पड़ण लग्युं
 आपर दगडी रात बेली मी अब बचाण लग्युं
 सप्नीयुं मा बस मी अब हस्याण लग्युं
 
 घार दुंण झटकण लग्युं
 भांड भांड पटकण लग्युं
 लात घुसा धमकण लग्युं
 रात दिन भटकण लग्युं
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
भुर रींगा
 
 भुर रींगा रींगा रीगण लाग्यां
 कपाली भुयां खुँट आकाश गयां
 
 एक दुई एक दुई सरपट गयां
 मुखी लोगों की बाग बाग़ गयां
 
 एक रेघा एक रेघा मा खोजी लियां
 गढ़ छुडना पैले जर सोची लियां
 
 खुदमा खुद लागै की खुदाण वहाली
 जीकोड़ी तुम्हरी तुम थै झुराण वहाली
 
 सारी मा गथोडी,ककडी लगी वहाली
 चूल्हा मा दुधी का सागा बाडी पक्की वहाली
 
 अन्ख्युओं मा चित्र रीटण वहाला
 गद देशा की याद वा गीणना  व्हाला
 
 कली पत्ती वा खाडू की सयाई
 ओ बचपन मेरु  झट अंगोल आयी
 
 बोई बोई की मील हाक दयाई
 मील बोई यख कखक णी पाई
 
 जी की बात ये जी दगडी ही वहाई
 वींक साथ सप्नीयुं दगडी ही ये रात गयाई
 
 हर कुल्हण चुपके की बरखा वहाई
 नुँना नुँनी जब जब याद आई
 
 भुर रींगा रींगा रीगण लाग्यां
 कपाली भुयां खुँट आकाश गयां
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
कैसा है ये प्रीत है ?
 
 क्या ऐसा भी होता है
 एक रिश्ता चुप चाप रोता  है
 दर्द ऐसे ही रिसता  है
 दिल बीच रहा तडपत है
   
 क्या ऐसा भी होता है
 एक रिश्ता चुप चाप रोता  है .......
 
 बचपन से पलता है
 अपने तन ढलता है
 मन मन पर बदलता है
 सुख दुःख की जंग वो लड़ता है
 
 क्या ऐसा भी होता है
 एक रिश्ता चुप चाप रोता  है .......
 
 जब वो बड़ा होता है
 एक नया रिश्ता पलता है
 प्रेम का गुल खिलता है
 पुराना रिश्ता काटों सा तब लगता है
 
 क्या ऐसा भी होता है
 एक रिश्ता चुप चाप रोता  है .......
 
 कैसे छुड जाते अपने अपनों को
 कैसे तोड़ जाते है सब सपनो को
 क्या पुरानी याद वंह खो जाती
 प्रीत के लिये परायी हो जाती है
 
 क्या ऐसा भी होता है
 एक रिश्ता चुप चाप रोता  है .......
 
 माँ बाप को दर्द वो रुलता होगा
 जब भी दिल से तुम्हे पुकार होगा
 जीवन के आखरी मोड़ के छोर पर
 तुम को भी वो दिन याद आता होगा
 
 क्या ऐसा भी होता है
 एक रिश्ता चुप चाप रोता  है .......
 
 क्या ऐसा भी होता है
 एक रिश्ता चुप चाप रोता  है
 दर्द ऐसे ही रिसता  है
 दिल बीच रहा तडपत है
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
अलबेला
 
 गाज गिरी दमनी सी
 चमकल गमनी सी
 बाहय बहै धमनी सी
 जल विरह कमनी सी
 
 अछाधीत विरह का
 गछाधीत वो प्रेम था
 विलक्षण आभा सी
 कांती का वो केद्र था
 
 एक नयी रचना का
 संजोग सा मेल था
 विश्व रचयेता का
 रचाया सा खेल था 
 
 गुल के संग खिला
 काटों क वो रेल था
 खड़ा खड़ा ही रहा मै
 अचम्भीत वो सेज था
 
 बातों मै फंसा वो अकेला था
 सुली पर चड़ा एक झमेला था
 कवी वो बड़ा अलग अलबेला था
 सात रंगों का देखो कैसा  मेला था
 
 गाज गिरी दमनी सी
 चमकल गमनी सी
 बाहय बहै धमनी सी
 जल विरह कमनी सी
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ
बीत दिणु छुंयी लगाणु
 
 
 बीत दिणु छुंयी लगाणु
 आणु वाला दीण ......२
 कदग राती गैणी यानी
 स्वामी जी तेर बीण 
 बीत दिणु छुंयी लगाणु...
 
 जीकोड़ी मा थग्ल्या पडी
 बरखा का वो दीण.......२
 कदगा राती रोयी रोयी
 स्वामी जी तेर बीण 
 बीत दिणु छुंयी लगाणु...
 
 जाडु का मैहना गैरू
 गैरू सा ओ छाला पडों
 रीटा जीकोड़ी मा मेरी
 डरु का वो जाला गैरू
 बीत दिणु छुंयी लगाणु...
 
 घामा का छेलु म्युरु
 स्वामी जी वो गेलु मयारू
 दोपहरी का घाम स्वामी
 तुम्हरी झण निर्दयी व्हालो
 बीत दिणु छुंयी लगाणु...
 
 घुगती वो हीलंसा
 हे प्योंली ओ बुरंस
 ओ रोल्युं ओ डंडा
 यादा दिलाण तुम्हरी ही बाता
 बीत दिणु छुंयी लगाणु...
 
 बीत दिणु छुंयी लगाणु
 आणु वाला दीण ......२
 कदग राती गैणी यानी
 स्वामी जी तेर बीण 
 बीत दिणु छुंयी लगाणु...
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ मी नवलाई मा.....
 
 हरैगै हरैगै  नवलाई मा
 मन्ख्युं की बुराई मा
 कपडै की धुलायी
 नुँनाओं की पड़ई मा
 हरैगै हरैगै मी नवलाई मा.....
 
 रोजा की लडाई
 अपरी ये परछाई मा
 महंगै की गहराई मा
 जीवन की कठनाई मा
 हरैगै हरैगै मी नवलाई मा.......
 
 दशा मेरी णी बदली
 णी बदली मेरा लोगों की
 कंण लगाणी मया मयल्दी
 ये उजाडा डाणड़ कणडी मा
 हरैगै हरैगै मी नवलाई मा.......
 
 सब हारू हारू दीखे
 ओ नोटों का बाणडल मा
 मेर वाख ही हर होयैगै
 जब पडू मी यी माया चक्कर मा
 हरैगै हरैगै मी नवलाई मा.......
 
 कण दिसा भूल व्हैगे
 ये देवभूमी तेरा गढ़ दर्शन मा
 कण छुडी की चला जांदी
 रुँदी रुअडी उदास उकालों  मा
 हरैगै हरैगै मी नवलाई मा.......
 
 हरैगै हरैगै  नवलाई मा
 मन्ख्युं की बुराई मा
 कपडै की धुलायी
 नुँनाओं की पड़ई मा
 हरैगै हरैगै मी नवलाई मा.....
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ ना बणी
 
 ड़णड़ टुक सडकी गैनी
 ना बणी कुछा भी काम
 काम धाम ध्याड़ी नीच
 नीच अब कुछा भी काम
 
 उजाड़ धड पुंगड़ होयां 
 सारीयुं मा नीच धान
 तीसा रुल्याँ गद्न्यान
 तीसा अब ये गड धाम
 
 ऊँचा ऊँचा शिखर हमरा
 वख हमरु देबतों को धाम
 देवभूमी हे उत्तरखंड
 ना मिली यख हम थै काम
 
 रीटा गों गोठ्यार वहयेगै
 डाणड़ तार तार वहयेगै
 बची छे जै खेती जै सायरी
 सुन्घरों बंदरों अधिकार वहयेगै
 
 बची कसर दगडी सरकार मोरीगै
 गों का विकास योजना देखा
 कपड दगडी लगुली मा सुखी गै
 अब बथों मा भी देख कर लगी गै
 
 यला छाला पल छाल
 सब सब टुंडा पड्यांण छन
 घार घार मा मेरो दिदो
 छुटा भूलह भूली भुक्या सीयां छन 
 
 पल्याँन समस्या ग्रस्त होयां छन
 उन्दारों बाटा मा रुडया छन
 उकाला विपदा का खैरी मा
 अब फिनका पड्या छन
 
 ड़णड़ टुक सडकी गैनी
 ना बणी कुछा भी काम
 काम धाम ध्याड़ी नीच
 नीच अब कुछा भी काम
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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