देव भूमि बद्री-केदार नाथरैबार
घुघूती उड़ उडेकी
कखक भाटे ऐ तू परदेश
आपरा गढ़ देश छुडीकी
कीले छे तु उदास क्या वहाली बात
क्या लायुंच रैबार मेरा घरबारै की
रैबार दै जा घुघुती पहाड़ की.........
कंण छीण देश अपरू कण छीण ड़णडा काठी
उकाला बाटा अब भी हीठण छीन क्या
घस्यारी गीतोंण वहाली गूंजती ड़णडी
गवलो गूअर हक़ण बजाण वहली घंडी
रैबार दै जा घुघुती पहाड़ की.........
काफल कीन्गोड़ पक्याँ व्हाला
बोरंस प्योंली खिल्यां व्हाला
गद्न्युं का छाला हीशोंला टीप्यां वाहला
वख मयारू खुटु का छाप छपयाँ वाहला
रैबार दै जा घुघुती पहाड़ की.........
गामा का बात बता ये घुघूती पहाड़ की
घ्यापोलू बाराड क्या हाल छीण
मित्र -दागडया का क्या रैबार छीण
बाब बोई को लाई आशीर्वाद छीण
रैबार दै जा घुघुती पहाड़ की.........
देख्णु दै तेरे अन्ख्युं मा ये घुघूती पहाड़ की
मेर सोंजडया की मुखडी देखीगै
ओ लगान्दी मै दगडी माया ये घुघूती
ये निर्दयी अन्ख्युमा मेर आसुं केले भुरी गै
रैबार दै जा घुघुती पहाड़ की.........
घुघूती उड़ उडेकी
चल उड़ जा आपरा गढ़देश
आपरा देश छुडी कीणी रैंदु ये परदेश
मेरु ऐ रैबार दे दै मेरा देश
तु अगणे अगणे जा मी पीछणे आन्दु
मेरा रैबार मेरा गढ़वाल थै सुणा
ये घुघुती मेर पहाड़ की
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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