पंचायत चुनाव आये हैं
पंचायत चुनाव आये हैं
फिर पहाड़ों पर आजकल
सोचता हूँ तब ही तो मैं
क्यों भीड़ उमड़ी गाँवों में फिर आजकल
विकास खोजता अब भी
फिर विकास को ही
देखो दावेदार विकास का झूठ दवा
करने आये हैं फिर आजकल
खामोश पड़ा था
फिर खामोश शोर फिर गूंजने लगा
कोई तो मिलेगा अपना लगता है
सोई आस जगने लगी फिर आजकल
समस्यों का सदैव
फिर यंहाँ पर अंबार लगा हुआ
ना जाने कौन से गड्ढे में ढूंढे
विकास दुबक बैठा फिर आजकल
पहाड़ ढूंढ रहा पहाड़ को ही
फिर सर पैर के उन आडंबर हातों को ही
प्रधान बन अंतर्धान हो गये थे जो
सेवा भाव उभरा है उनमे फिर आजकल
पंचायत चुनाव आये हैं
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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