Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 233206 times)

devbhumi

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 805
  • Karma: +0/-0
कशिश ना रही अब मेरे तलब में राब्ता
रास्ते बैठ जब सस्ते हर्फ़ मै बेचने लगा
तोहमत लगा रूठ गई महफ़िल ध्यानी
तवक्को रूहानियत में तवज्जों ना रही

ध्यानी ना समझ

devbhumi

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 805
  • Karma: +0/-0
सोहबत में देखो उनकी

सोहबत में देखो उनकी
वो कितना बदल गया
उस क़मर पर कई दाग थे
उन्हें मै बदसूरत कह गया

सुना है उन्होंने आज कल
पासबान रखें हुये
नज़ाकत में उनके आज कल
खुमार चढ़ा हुआ

शरर बन गई है वो
जलाने को आतुर है
मसला है बस इतना सा
माज़ी की वो अदावत है

फितूर था मेरा बचपन का
अफ़सानो के कई मामले हैं
कैसे निपटार करुँ उनका
जो इजहार आशिकी का हो

सोहबत में देखो उनकी

(क़मर अर्थात चाँद ,शरर अर्थात चिंगारी ,पासबान अर्थात चौकीदार ,अदावत अर्थात दुश्मनी ,फितूर अर्थात पागलपन)

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

devbhumi

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 805
  • Karma: +0/-0
अपने अक्स से जाकर जब मैं उन्हें पूछने लगा
क्या तूने दिखया क्या छुपाया है मुझ से ये बता
मेरी तरहं तू भी दायरों में सिमट गया है क्या
अश्क ढलते नहीं देखे तेरे कभी मैंने क्यों ये बता

ध्यानी ना समझ

devbhumi

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 805
  • Karma: +0/-0
पंचायत चुनाव आये हैं

पंचायत चुनाव आये हैं
फिर पहाड़ों पर आजकल
सोचता हूँ तब ही तो मैं
क्यों भीड़ उमड़ी गाँवों में फिर आजकल

विकास खोजता अब भी
फिर विकास को ही
देखो दावेदार विकास का झूठ दवा
करने आये हैं फिर आजकल

खामोश पड़ा था
फिर खामोश शोर फिर गूंजने लगा
कोई तो मिलेगा अपना लगता है
सोई आस जगने लगी फिर आजकल

समस्यों का सदैव
फिर यंहाँ पर अंबार लगा हुआ
ना जाने कौन से गड्ढे में ढूंढे
विकास दुबक बैठा फिर आजकल

पहाड़ ढूंढ रहा पहाड़ को ही
फिर सर पैर के उन आडंबर हातों को ही
प्रधान बन अंतर्धान हो गये थे जो
सेवा भाव उभरा है उनमे फिर आजकल

पंचायत चुनाव आये हैं

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

devbhumi

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 805
  • Karma: +0/-0
ऐसा लगता है

चेहरे की तेरी कशिश में
गुजर जायेगी ऐ शब
ऐसा लगता है

अर्श से टूटे तारों की
मन्नतों की मांग
क्या पूरी होगी ऐ रब

बढ़ जाती है तलब
सर्दियों के मौसम में
शिद्दतों सबब चलता है

रफ़्ता रफ़्ता ही सही
मंजिलों पहुँच जाएंगे
चलें साथ तो नजर आएंगे

शुमार तुम्हारा दिल
धड़कता रहा ,धड़कनों
ऐ अहसास होता रहा

अफ़सुर्दा हूँ मै
लिखा वो अधूरा रहा
करवाँ आया खाली गुजर गया

ऐसा लगता है

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

devbhumi

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 805
  • Karma: +0/-0
क्यों प्यास मेरी बुझी नहीं

मैं मुश्किलों से लड़ा नहीं
दुनिया में अकेला सा खड़ा रहा

घर की खिड़कियाँ वो दरवाजे
क्यों कदम मेरे लौट आते नहीं

किसी का ना हुआ ना कोई मेरा
जो अब हुआ वो कल हुआ

बुझ गये हैं सारे दिप थक कर
कल तक बसेरा था जँहां मेरा

बस यही है जो बचा है मेरा
राख के ढेर सा वो उड़ रहा

ढूंढता रहा जिसे उम्र भर
वो साथ मेरे क्यों ना चल सका

क्यों प्यास मेरी बुझी नहीं
सारा समंदर जब मेरे पास था

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

devbhumi

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 805
  • Karma: +0/-0
इतना एहसान तेरा काफी था

इतना एहसान तेरा काफी था
ना हो तेरी पहचान काफी था

चंद रोज़ जो मेरा साहिल था
वो ही निकला मेरा कातिल था

क्यों ले आये साथ यादें उनकी
इतना जहर क्या नाकाफी था

धुँदलाता ना यूँ चेहरा मेरा
रोज़ गर्द आईने से उतार देता

चूर कर चुके सारे शीशे हम
फिर भी चोट खाते रहे हम

इतना एहसान तेरा काफी था

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

devbhumi

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 805
  • Karma: +0/-0
मेरे गांव में

बहुत शोर है मेरे गांव में
मेरे गांव में बहुत शोर है

कौन आया यहाँ किसलिए
वो बाँट रहा है कुछ ओर है

कुछ नजर आता नहीं अब
धुंधला व्यापार हर ओर है

किस मोड़ पर रोके उस को
वो रहता दूर कहीं ओर है

वो कह रहा लाया अपनापन
उसका रहता अपना कहीं ओर है

बहुत शोर है मेरे गांव में
मेरे गांव में बहुत शोर है

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

devbhumi

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 805
  • Karma: +0/-0
अब इतना भी वक्त नहीं है

अब इतना भी वक्त नहीं है
दो आंसूं मैं बहा लेता

बहने दो बह जाते हैं व्यर्थ हैं
वो ना काम किसी के आते हैं

खिलखिलाते अगर खुद से ही
खुद से ही आ हाथ मिलाते वो

तब वक्त को अपना तकिया बना
दो घड़ी सुख से सो लेता

वो आ छू कर निकल जाते हैं
हाथ किसी के ना आते हैं

मै छूना चाहता हूँ उनको
उनसे खुद को दूर ही खड़ा पाता हूँ

अब इतना भी वक्त नहीं है

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

devbhumi

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 805
  • Karma: +0/-0
अब्सार लेकर अपनों को जब ढूंढ ने निकला
अबस रहा ढूंढना क्यों कर उनको ले निकला

ध्यानी
अब्सार-आंखें , अबस - बेकार

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22