Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 232147 times)

devbhumi

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हम अपनी राह से जरा क्या भटके
कोई भी आ आकर मुझे राह बताने लगा
जब मैं ठीक ठाक अपनी राह पर था
मुझे राह से भटकाने में भी वो ही हात थे

ना समझ ध्यानी

devbhumi

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शायद जीवन यही है

फिर भी लगता है
इस दिल को
एक दिन मेरा भी आएगा
दूर हूँ अपनों से
बहुत दूर हूँ मैं
वो अपना पास आकर
मुझे अपनों के
पास ले जाएगा
तुम कहा करते थे ना
मैं उसे बड़े ध्यान से
सुना करता था
नारज ना हो जाये तू कहीं
बीच में हूँ हूँ भरता रहता था
कितने अजीज थे हम दोनों
दिल दिल से कितने दूर होये
ध्यानी तो मजदूर बन गया
दिल से तू भी मजबूर हो गया
बातों में बात जब भी आती है
याद तेरी मुझे तेरे पास ले जाती है
गलतफहमी दूर न की जाए तो
वो नफरत में बदल जाती है
अपनों से दूर जाकर ही
अपनों की याद आती है
रोटी कच्ची पक्की जली
तब माँ की बहुत याद आती है
आँखों को कहना रोना नहीं
माँ को पता चल जाएगा
आज भूखा ही सो गया हूँ
माँ भी भूखी सो जायेगी
परदेश ने याद दिलाई है
देश में होली दिवाली है
मैंने भी रंग दिप जलाये हैं
शायद जीवन यही है

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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devbhumi

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मुझे पराया ना समझो

पहाड़ हूँ मैं सभी का
मुझे बेसहार ना समझो
मुझे पराया ना समझो

बैठे हैं मेरे पहारेदार सभी
देश विदेश में
हुक आती है उनकी मेरे पास
उनकी सीने से उठती टिस से
आंखों की बुँदे गिरती उनकी
बिलकुल गुजरती है मेरे दिल के बीच से
बैठे हैं मेरे पहारेदार सभी
देश विदेश में
मुझे पराया ना समझो

दूर हैं वो मजबूर हैं वो
मै उनको उतना ना दे पाया
जितना चाहते थे वो मुझसे
उनके लिये उतना ना कर पाया
बैठे रह गये मेरे अपने
मैं उनके सपने पुरे ना कर पाया
मुझे पराया ना समझो

पहाड़ हूँ मैं...पीड़ा हूँ मैं...
ये मैंने भी स्वीकार किया
पग पग कहाँ मिलेगी ऐसी चुनौती
जीवन के सुधार मैं
कड़े फैसले मैंने भी लिए थे
पर लगता है सब कुछ बेकार रहा
पहाड़ हूँ मैं सभी का
मुझे बेसहार ना समझो
मुझे पराया ना समझो

बालकृष्ण डी ध्यानी
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पुरानी यादें आ आकर फिर मुझे हौसला दे जाएंगी
एक नई सांस को फिर लड़ने का जज्बा दे जाएंगी

ध्यानी

devbhumi

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अपने को ढूंढ रहा हूँ
खुद में ही ग़ुम हो रहा हूँ
धुंद बिछी है इन राहों में
आँखों को मल रहा हूँ
कसम है मुझे उस वक़्त की
जब ज़िन्दगी शुरू की थी
आज भी वहीं खड़ा हूँ
ध्यानी आज भी वहीं खड़ा हूँ
अपने को ढूंढ रहा हूँ

ना समझ ध्यानी

devbhumi

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उस सांझ को

बार बार उसे देखा
ओझल होते हुए
अपने से रुक्सत होते हुए
(उस सांझ को ) .... २

इस बेकरारी को संभालों कैसे
दूर जा रही है वो उसे निहारों कैसे
काली रात आगोश उसे ले रही है
नयनो में उसको उतारों कैसे
(उस सांझ को ) .... २

तुझे ढूँढूता हूँ मैं परेशान होकर
ना जाओ तुम मुझे तन्हा छोड़कर
कैसे खुद को मै सँभाल पाऊँगा
जुदा हो तुझसे जीवन निभा पाऊँगा
(उस सांझ को ) .... २

फिर भी मानता हूँ मेरे नींदों में आओगी तुम
अपने साथ सपनो में ले जाओगी तुम
छोड़कर मुझे अकेले कैसे रह पाओगी तुम
जंहा छोड़ कर गयी मुझे वंही पाओगी तुम
(उस सांझ को ) .... २

बालकृष्ण डी ध्यानी
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मुझे सहारा मिले ना मिले
मैं दूसरों का सहारा बन पाऊँ
सपने देखे हैं सबने बड़े बड़े
बस मैं उन्हे हकीकत दे पाऊँ
बस यही हसरत रही ध्यानी
ये जीवन किसीके नाम कर जाऊँ

ध्यानी दिल से

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गाँव की ओर चल पड़ता है

अब लापता सा हो गया हूँ मै
ना जाने कौन सा पल था खो गया हूँ मैं

बुँदे भी गिरना अब बंद हो गयी हैं
बरसात आँखों से जब अझोल हो गयी है

तप रहा है फिर से देखो नीला आसमान
ना जाने हम से अब कंहा भूल हो गयी है

ठण्ड भी अब हम से दूर दूर जाने लगी है
अपनों के रिश्तों में जब बेईमानी आने लगी है

मर जाता हूँ गर्मियां जब आक्रमण करती है
मेरे चीथड़े चीथड़े कर मुझे खूब धो देती है

लापता को तब खुद का पता चलता है
मन कनस्तर धर गाँव की ओर चल पड़ता है

बालकृष्ण डी ध्यानी
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वो अब भी क्यों मुझे बुलाता रहा

बचपन में पर्वतों पर छुपा रखा था कुछ मैने
उसे ढूंढने में मैं अब भी अपनी उम्र गुजारता रहा

मचलता रहा वो फितूर बन वो कंही मेरे ही भीतर
उसे पाने की होड़ मुझे कंहा कंहा भटकाती रही

उसके प्रति अधिक चाह ने दूर किया मुझको
अब अकेले बैठ यादों में उन्हें अकेले गुनगुनाने लगा

पहले जूनून था मेरा वो या अब मेरा वो प्रयाश्चित
ना जाने अब भी किसे मै बहलाने फुसलाने में लगा

थक क्यों नहीं जाता हूँ मै अब इस उम्र में ध्यानी
वो छुपा रह रहकर अब भी क्यों मुझे बुलाता रहा

बालकृष्ण डी ध्यानी
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