Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 232203 times)

devbhumi

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अपनों को मनाने की कोशिश में
हरबार असफल क्यौं हो जाता हूँ
जितना मैं पास आना चाहता हूँ
उन से बहुत दूर क्यौं हो जाता हूँ

ऐसा क्यों होता है....ध्यानी

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मैने आज अपने देश की मिट्टी से बने दिये जलाये और आपने ?

ध्यानी बस वो अपना था

devbhumi

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जब मैं बदलते समय को देखता हूं, तो मुझे खुशी का अनुभव होता है और ऐसा लगता है कि मेरा देश वास्तव में बदल रहा है।

ध्यानी सुख कि अनुभूती

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जब पहाड़ रोता है

प्रत्येक सेकंड वह हार गया
उससे कुछ
वह बस खड़ा था और वो उसे देखता रहा
वह नहीं जानता कि उसे क्या करना चाहिए

पहाड़ के चोर ने
पूरे दिन और रात जागरण किया
वृक्षों को नष्ट करना सौंदर्य खराब किया
कीमती सामान चोरी किया

उन्हें पता है कि क्या होगा
जब पहाड़ मिट जाता है
लेकिन वे फिर भी लूटपाट कर रहे हैं
उनके लालच के लिए

मुझे पता है विकास करना चाहिए
बेहतर और सूंदर भविष्य के लिए
लेकिन उनके बिना इस जहां में
बेहतर और सूंदर भविष्य कहाँ है

जब पहाड़ रोता है
उसके बगल में कोई नहीं बैठता है
उसे रोने से कोई नहीं रोकता है
यदि नहीं तो हम उसे खो देंगे जल्द

बालकृष्ण डी। ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
वा पूर्व प्रकाशित -सरवा अधिकार

devbhumi

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बहुत कुछ पाने की चाह में बहुत कुछ छुट रहा है।
समझा तो बहुत कुछ ना समझा तो भी कुछ नही

बस ध्यानी की मनमानी

devbhumi

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पूरा दिन गया,पूरी रात गई
बस कुछ सांस खींची,कुछ सांस चली गई
सब फिजूल था, कुछ ना पास रहा
बस कौन था वो ,वो जिसके लिऐ लगा रहा

ध्यानी बस लगे रहो

devbhumi

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कैसे अपनी उदासी पर काबू पाऊँ?
माँ को आज भी मैं चुपके आवाज लगाऊं

ध्यानी बस महसूस होता है

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वक्त लिखता रहा और मैं उसे मिटाता रहा
कारवाँ आगे बढ़ता रहा बस मैं यूँ ही धूल उड़ाता रहा

ध्यानी बस लिख देता है

devbhumi

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अपने को रोज यूँ ही मारता हूँ
जागता हूँ और सो जाता हूँ

ध्यानी .... ऐसे ही

devbhumi

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अपने से ही

कुछ भूलने चला हूँ
कुछ भूल चुका हूँ
याद था जो कुछ मुझको
उसको जब भुगत चुका हूँ

ना जाने कहाँ से चला था मै
कहाँ पहुँच चुका हूँ
कितना सीधा साधा था कभी मै
उस सादगी को अब मार चुका हूँ

जब कुछ भी ना था पास मेरे
तब बहुत खुश था मैं
अब सब कुछ है पास मेरे, ना जाने
किस ख़ुशी के लिए तड़प रहा हूँ

अपने में ही खो जाने का मन
अब मन क्यों खुद से करने में लगा
कभी स्वछंद होकर विचरता था कहीं
अब चुप बैठ एक कमरे में खोने लगा

अपने से ही सावल जब मैं पूछने लगा
अपना ही कोई पास आ मुझे रुलाने लगा
परछाईयों से भी अब मन मेरा ऊबने लगा
मुझको वो बिता पल खूब खलने लगा

अपने से ही

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
http://www.merapahadforum.com/
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