Uttarakhand > Utttarakhand Language & Literature - उत्तराखण्ड की भाषायें एवं साहित्य
Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें
devbhumi:
अपने से
अभी शांत नहीं बस मौन हूँ
पूछता हूँ अपने से कौन हूँ
सुलगाने दो जलेंगे देर तक
बुझती आग हूँ अभी शांत नहीं
तपिश है बस निराशा नहीं
मांगता हूँ हक़ हताश नहीं
मोम ने बस दरारें भरी
आंखें बंद है सोया नहीं
अभी कोई मेरा पता नहीं
ढूंढता हूँ खुद से खफा नहीं
ऐ तन्हाई मेरी अनमोल है
सुकून है मुझे तुम्हे संकोच है
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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devbhumi:
तेरी एक मुस्कान ही
यूँ तो किसी के भी संग
बैठकर दो पल
हँसना-बोलना
बचाना अच्छा लगता है
यूँ तो ....
अकेले हैं आए भी अकेले
जाना भी अकेले है
तो क्यों कर के अखरता है
ऐ अकेलापन
यूँ तो ....
खुशियों के संग जिंदगी के रंग
धरती पर बिखरें यंहा वंहा
सवाल है ऐ एकाकीपन
क्यों ना पाता वो निर्जनता पार
यूँ तो ....
चिर देती है
तेरी रुसवाई ऐ सीना
गले आकार जब तेरी मायूसी,
मुझ से गले मिलती है
यूँ तो ....
यूँ तो शिकायतें हैं
तुझ से सैंकड़ों मगर
तेरी एक मुस्कान ही
काफी है मेरे जीने के लिए
यूँ तो ....
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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devbhumi:
भिगो देती हैं .......
भिगो देती हैं
वो प्रेम की बौछारें तेरी
इस कदर..हमे इस कदर
पन्ने भी तेरे ऐ सोच भी तेरी
किताबें भी खुद ही खुद हो गई अब तेरी
इस कदर..इस कदर
सुना है इस दुनिया से
यूं असर डाला है तुम ने मैं रहा ना किधर
इस कदर..इस कदर
भिगो देती हैं .......
बहुत आसान है अब पहचान उसकी
उसने काह हम इंसान हैं किताब नही
इस कदर..इस कदर
वो कहानी थी, चलती रही,
ऐ किस्सा था, खत्म हुआ ही गया
इस कदर..इस कदर
अकेले में अकेले से यूँ ही लगा रहा
अकेल ही उनको अपना बताता रहा
इस कदर..इस कदर
भिगो देती हैं .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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devbhumi:
काफल टिपकर
चांद तारे तो तोड़कर
इतनी दूर से तो मैं नहीं ला सकता
अपने पहाडों से काफल टिपकर
इस बार ऐ पहाड़ी तुम्हे जरूर खिला सकता
चांद तारे तो तोड़कर .......
नारंगी बैगनी हरे रंग की
बस एक झुरमुट हो तुम
दिल में यूँ ही सदैव रहोगी तुम
तुमसे जो हमे इतनी उल्फत है
चांद तारे तो तोड़कर .......
गोल रसीली खटि- मीठी सी
ललचाते पुकार रही है आ जाओ मुझे टिप्ने को
'काफल' हूँ बचा लीजिए मुझे
मैं तो उत्तराखंड का ही फल हूँ
चांद तारे तो तोड़कर .......
जितने खूबसूरत यहां के मेरे पहाड़ हैं
उतनी ही खूबसूरत मेरे पहाड़ की संस्कृति है
यहां इन दिनों फिर काफल की बहार आई हुई है
चलो हम चलें उन्हें मिलकर चुनने को
चांद तारे तो तोड़कर .......
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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devbhumi:
बैठने दो
बैठने दो
दो घड़ी अपने पास
इतना हक दो कि
बस पूछ सकूं
तुम क्यों हो उदास ?
जो कुछ है
वो क्षणिक है
आया गुजर जाएगा
बहने दो उसे
बस अपने निशान
वो छोड़ जाएगा
रोक सकता नहीं
बस पूछ सकता हूँ
नन्ही कलियाँ तोड़
तुम्हारे बलों में
क्या मैं सजा सकता हूँ
प्यार यही है
मुस्कुराती रहो सदा
धूप आशाओं की
बनकर आँगन मेरा
यूँ ही खिल खिलाती रहो सदा
बैठने दो
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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