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Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें
devbhumi:
चार आखरों की माया
चार आखरों की माया च
वा बाटो हेरदा.... हेरदा थकि जालि
जिकुड़ी ते बुते ..... बुते ...वा
राति -बै-राति जगै-सुलै -रुवै सरि जालि
पैल भंडया विन धीर देन
वे बाद विन अधीर कैन
क्या क्या छिन-बिन- विन कैन
घर-बार दुनियादारी सबि क्षीण वैन
चार आखरों की माया च ....
बुद्धी बोनी बौल्या रे तू
विल अबि परति कि कबि नि ऐण
विं ते मिलगै औरी गैण
जिकोड़िळ तबै बि विंकी फिकर कैन
चार आखरों की माया च ....
हैरि जाळु अफि से ज्ब
यकूल रै जाळु जग्वाळ कनू
भैर से भीतर देखिले अफि
जंतर मंतर सबि देखि जाळू
चार आखरों की माया च ....
यन उन हताश होळू अफि से तू
अफि अफ मा तू बिरडी जाळू
सूद-बुध ख्वै जाली ते से अफि
चार आखरों की माया तू पै जालि
चार आखरों की माया च
© बालकृष्ण डी. ध्यानी
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devbhumi:
कुछ लिखे पन्ने
बस यूँ ही पढ़ लेना उनको
और तुम फिर बिसरा देना
किंचित सुख मिलेगा नैनों को
पर उन्हें ना तुम बिसरा देना
बस यूँ ही पढ़ लेना ...
यहाँ वहाँ मिलूंगा बिखरा
हवा संग उड़ता फिरता रहूंगा
वक्त है तो बटोर लेना उन्हें
फिर शायद! इन हात आऊंगा
बस यूँ ही पढ़ लेना ...
फुरसत ना मिलेगी
देख खुद से फिर पछताने भर की
अफ़सोस रहेगा सदियों भर
खुद को खुद से आजमाने भर की
बस यूँ ही पढ़ लेना ...
कुछ लिखे पुराने पन्ने ही थे वो
लगे क्यों वो अपने अपने से
बरसों की धूल झड़ी उन पर से
आतुर खड़े मिले थे मिलने को वो
बस यूँ ही पढ़ लेना उनको
और तुम फिर बिसरा देना
© बालकृष्ण डी. ध्यानी
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माया गीत
तेर माया ऐ मेर माया
मिल ऐ गीत रचाई-बणाई
तिल ऐ गीत गेकि
ऐ गीत ते कख पौछैई
तेर माया.....
बरखा न ऐकि चट
जन हम ते तरबितर भिजैई
कळेजी मां सियां भाव ते
झट ऐकि विन इन जगैई
तेर माया.....
तबै जिकुड़ी का खोल मां
मिन त्वे ते खोजैई
साक्ष दिना कुई नि यख
वै उमाळ ते मिन कन लुकेई
तेर माया.....
तू ही बोलदयँ दगड्यों
यन मे दगडी क्या व्हाई
मेर मन मां लूकि ऐ बात आज
कन ऊंटड़यूं गीत बन ऐई
तेर माया.....
बालकृष्ण डी ध्यानी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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devbhumi:
गीत
ब्य्खोंण अब जाणि
ब्य्खोंण अब जाणि
जून कि रात आणि
मेर प्रित म्याली ...
देक तेर खुद आणि
जन तेर खुद आणि
तू बि ऐजादि... तू बि ऐजादि
ब्य्खोंण अब जाणि
जून कि रात आणि ...
पैरी तेर पैजण
घैल हुंयूं च .... ऐ मन
ग्लोडि तेरा गुलाब
माया कु उमड्युं सैलाब
ना कैर देर चट व्है जला अब सबेर .. झट
तू ऐजादि... तू ऐजादि
ब्य्खोंण अब जाणि
जून कि रात आणि ...
तेर क़ानूडी कि बाली
वै परी गढ़वाली पाड़ी सारी
वा तेर नाका कि नतुलि
तू कब बणेली मेर ब्यौली
ना बणा अब मि बौल्या
बाणि कि बैथ्यू छू मि ब्यौला .. झट
तू ऐजादि... तू ऐजादि
ब्य्खोंण अब जाणि
जून कि रात आणि ...
बालकृष्ण डी ध्यानी
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