Author Topic: Garhwali Poems by Balkrishan D Dhyani-बालकृष्ण डी ध्यानी की कवितायें  (Read 231638 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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राटा एक बटा

एक ही राटा एक ही एक ही बटा
कण छापलाट को मदमाखी को छाता
विधान सभा को चुनवी अखाडा
गरीबा पहाड़ की जनता को बस्ता
एक ही राटा एक ही एक ही बटा ......

काबा आलो कब जलो ये खेला
पांचा बरसा को ये मेला दीदा
अब आलो अब आलो ये पहाडा
मारा दे फैर मार दे फैर दीदा
एक ही राटा एक ही एक ही बटा ......

हर बेल एक ही बाता हे दीदा
कट दियां हाथ अन्घंठा अब दीदा
विस्की रमा ठार की बरखा दीदा
मर ले दीदा बखरों रंगमा हाथ दीदा
एक ही राटा एक ही एक ही बटा ......

कुछ भी वहालो गढ़ देश की बात दीदा
ग्यारा बरस मा छाह मुख्यामंत्री की बात दीदा
खैरी विपदा की बात अब लगा दीदा
ग्यारा बरस ग्याई और ग्यारा बरसा की बात दीदा
एक ही राटा एक ही एक ही बटा ......

अब मी सुच्णु क्या वही बात दीदा
जनता सीयीं चा अब आयी जगा दीदा
तैथाई सच्नु पड़लो अब मार्ग दीदा
पैंसा दारूला णा बनेल अब तयारी बात दीदा
एक ही राटा एक ही एक ही बटा ......

एक ही राटा एक ही एक ही बटा
कण छापलाट को मदमाखी को छाता
विधान सभा को चुनवी अखाडा
गरीबा पहाड़ की जनता को बस्ता
एक ही राटा एक ही एक ही बटा ......

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

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बेटी- बावरी

एक एक ग्यारा मा
जेकोडी जी का गेडा मा
को भैर को घैर मा
सब सबैर सबैर माँ.......

डैर डैर डेरामा
मन्ख्युं का घेरामा
सप्नियुनो आंदी तो
काणी चक्र च्लान्दी तू
एक एक ग्यारा मा.........

हेरी हेरी तु
कण लगाणदी फैरी तु
सात जन्माणु संगी तु
केले हुये बैरी तु
एक एक ग्यारा मा.........

गढ़ देश की बावरी तु
कैंकी दीदी कैंकी भूली
कैंकी जी की राणी तु
बल कब बाणली रामी तु
एक एक ग्यारा मा.........

नारी तु भवानी तु
भगवती की आदी तु
पहाड़ की हे बेटी- बावरी
भली लगदी स्वाणीतु
एक एक ग्यारा मा.........

एक एक ग्यारा मा
जेकोडी जी का गेडा मा
को भैर को घैर मा
सब सबैर सबैर माँ.......

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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हीमा मयारू हिमखंड

हीमा हिटले हिटले हीमा
ठंडी बथों मा ठंडी बथों मा
माया का जड़ोंमा हीमा
खुदी का पराणु मा हीमा
हिमा हिटले हिटले हिमा.........

दूर डंडा देखा हीमा.....२
हीमाखंड कोयेडी छाई
बुअडी दुआड़ी देखा हीमा....२
रुअडी रुअडी रूडी आयी
हिमा हिटले हिटले हिमा.........

मयारू उजाड़ू पहाड़ो हीमा
कंटीली कांडयुं का झाडूं ....२
बांदा नखरायली रसली हीमा
जसी नारंगी की दाणी
हिमा हिटले हिटले हिमा.........

सड़की तिरी घसैरी हीमा
कसैरी पाणी ख्तैली ....२
पंतैद्र पुंगड़ का बाटा हीमा
गीता पैजाण लगेदी ......२
हिमा हिटले हिटले हिमा.........
हीमा मयारू हिमखंड

हीमा हिटले हिटले हीमा
ठंडी बथों मा ठंडी बथों मा
माया का जड़ोंमा हीमा
खुदी का पराणु मा हीमा
हिमा हिटले हिटले हिमा.........

बालकृष्ण डी ध्यानी
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युवा है हम
आज हम खुश हैं
जीवन के इस दोअड मै
कोई नहीं छोर है अब
दूर खिली देखो ओ भोर है
चीडेयों की चहक से
मन आनंद विभोर है
रवि की कीरणों से
प्रकाशीत आँखों की कोर है
छुने को असमान मेरे
हम अहविहल इस और हैं
उत्तरखंड के हम है सानी
युवा है हम नया दूस्ट्री कोण है
गंगा है वो तो भगीरथ हम है
अवतरीत करेंगे इस मन मै
ये हमरा आत्मा का प्रण है
मोक्ष की तरहं बाहेंगे हम
मतरूभूमी के कण कण मै
विचारों की गंगा कहलायेंगे
और एक नयी क्रांती लायेंगे
सुखसमर्धी फैलायेंगे हर और
एक नयी दिशा भारत को दिखयेंगे
चलो हम सब मिलकर
अपना उताराखंड सजायेंगे
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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शब्द
अपने शब्दों को बाँधना चाहत हों
गीत के माध्यम से सजना चहता हों
संगीत मीले ना मीले मुझे
अपनी रीत निभाना चाहता हूँ
अपने शब्दों को बाँधना चाहत हों ........

प्रेम की बेबसी को पाना चाहता हों
मीरां बाण बावली सा गाना चाहता हों
श्याम छेडै ना छेडै मुझे ये राधा
जमुना की मोंजों मै उन्हें पाना चाहत हूँ
अपने शब्दों को बाँधना चाहत हों ........

मिथ्या शब्दों को त्यागा ना चाहत हूँ
लोओ की तरंह जलना बुझना चाहता हूँ
मेरी रहा ना देखे कोई इन वीरानो मै अब
कईयूँ की तरह अब खो जाना चाहता हूँ
अपने शब्दों को बाँधना चाहत हों ........

मेरे इस पन को दिवनापन ना समझो
झोंका दिया है मैने अपने आप को इस मै
मुझे तपता होवा तप्तकुदन ना समझो
भुल जाओ मुझ को तुम याद आऊँगा सबको
अपने शब्दों को बाँधना चाहत हों ........

पल पल के बाद पल आऊँगा
तुम्हरे साथ हर पल पाओंगा
श्याद बीखरे शब्दों मै कभी कभी
मै तुम को कंही दीख जऊँगा
अपने शब्दों को बाँधना चाहत हों ........

अपने शब्दों को बाँधना चाहत हों
गीत के माध्यम से सजना चहता हों
संगीत मीले ना मीले मुझे
अपनी रीत निभाना चाहता हूँ
अपने शब्दों को बाँधना चाहत हों ........

बालकृष्ण डी ध्यानी
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देखा सपनीयुं  का उत्तरखंड
 
 दीदी मेरी भूली मेरी
 देखा सपनीयुं  का उत्तरखंड
 क्या सोच लडै हमल
 आजाद करैं अपडु गढ़
 देखा सपनीयुं  का उत्तरखंड ......
 
 क्रांती मा लड़ खपा गैनी
 ऊँ कुँ छे ये उत्तराखंड
 जब बाण गैनी मयारू खंड
 हरची गैनी मयारू जन
 देखा सपनीयुं  का उत्तरखंड ......
 
 गयार बरस बीती
 विपद णी सरैणी
 मुलभुत सुविधा छुडा
 राजधानी अधरतल लटकैणी
 देखा सपनीयुं  का उत्तरखंड ......
 
 बेटी बावरी की खैरी
 दीण दीण दूँण बडेणी
 हाथ को कम को अभाव 
 मैदानी और दोडैणी
 देखा सपनीयुं  का उत्तरखंड ......
 
 छह गढ़ को  नारेणा
 आयी बस देख ग्याई
 चोदहा जिला सत्रह
 खेल खेल खेलल्याई
 देखा सपनीयुं  का उत्तरखंड .....
 
 दुरु का ठेका ठेका
 गाम गाम खुलेणी
 सड़की णी रोऊडी
 पर दारू गंगा बोगैनी
 देखा सपनीयुं  का उत्तरखंड ......
 
 छुटा नणुना देखा
 सकोला को छुडैणी
 रोल्युं मा देख सुठा
 बल मजदुर बनेणी
 देखा सपनीयुं  का उत्तरखंड ......
 
 येच मेरु उत्तराखंड
 दीदा येच हमरु खंड
 बाल हठ चलेल दीदा
 इन लोगो थै णी जमैणी
 देखा सपनीयुं  का उत्तरखंड ..........
 
 दीदी मेरी भूली मेरी
 देखा सपनीयुं  का उत्तरखंड
 क्या सोच लडै हमल
 आजाद करैं अपडु गढ़
 देखा सपनीयुं  का उत्तरखंड ......
 
 ये तो नहीं सपनों का उत्तराखंड
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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राटा एक बटा

एक ही राटा एक ही एक ही बटा
कण छापलाट को मदमाखी को छाता
विधान सभा को चुनवी अखाडा
गरीबा पहाड़ की जनता को बस्ता
एक ही राटा एक ही एक ही बटा ......

काबा आलो कब जलो ये खेला
पांचा बरसा को ये मेला दीदा
अब आलो अब आलो ये पहाडा
मारा दे फैर मार दे फैर दीदा
एक ही राटा एक ही एक ही बटा ......

हर बेल एक ही बाता हे दीदा
कट दियां हाथ अन्घंठा अब दीदा
विस्की रमा ठार की बरखा दीदा
मर ले दीदा बखरों रंगमा हाथ दीदा
एक ही राटा एक ही एक ही बटा ......

कुछ भी वहालो गढ़ देश की बात दीदा
ग्यारा बरस मा छाह मुख्यामंत्री की बात दीदा
खैरी विपदा की बात अब लगा दीदा
ग्यारा बरस ग्याई और ग्यारा बरसा की बात दीदा
एक ही राटा एक ही एक ही बटा ......

अब मी सुच्णु क्या वही बात दीदा
जनता सीयीं चा अब आयी जगा दीदा
तैथाई सच्नु पड़लो अब मार्ग दीदा
पैंसा दारूला णा बनेल अब तयारी बात दीदा
एक ही राटा एक ही एक ही बटा ......

एक ही राटा एक ही एक ही बटा
कण छापलाट को मदमाखी को छाता
विधान सभा को चुनवी अखाडा
गरीबा पहाड़ की जनता को बस्ता
एक ही राटा एक ही एक ही बटा ......

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From - Bal Krishan Dhyani.

Riषिकेश से कर्णप्रयाग जाली वा
 
 देख देख तू भी देख भारतीय रेल तू भी देख
 कण चलणीच देख अब ये रेल
 पहड़ों मा लास्का दस्का लगाण
 होली वा नाखर्याली जाण बांद
 देख देख तू भी देख भारतीय रेल तू भी देख
 
 सपना अब पूरा वाहला
 जो हमारा आँखोंल देख
 आली वा बेटी बाण या
 लागली बावरी सी वा
 देख देख तू भी देख भारतीय रेल तू भी देख
 
 गोचार५ नवम्बर २०११ को आली वा
 पहाड़ों को करणी देख-रेख
 अपरा हाथों सजली वा
 छुयीं हमरी लागली वा
 देख देख तू भी देख भारतीय रेल तू भी देख
 
 बथों मा ठंडी बायरा लाहली वा
 ऋषिकेश से कर्णप्रयाग जाली वा
 उत्तरखंड की महीमा अब गाली वा
 बद्री-कदर धाम कब आली वा ?
 देख देख तू भी देख भारतीय रेल तू भी देख
 
 दीदी बेटी ब्वारी तुम भी आवा
 दादा भूलह बाडा तुम भी गाव
 चल झट कर ना हो जाये देर
 देर-सवेर अब देव भूमि मा येगे रेल
 देख देख तू भी देख भारतीय रेल तू भी देख
 
 देख देख तू भी देख भारतीय रेल तू भी देख
 कण चलणीच देख अब ये रेल
 पहड़ों मा लास्का दस्का लगाण
 होली वा नाखर्याली जाण बांद
 देख देख तू भी देख भारतीय रेल तू भी देख
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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खुदैडी

 आंशूं म्यार मै दगडी

 चूल्हों जंण जलदी बोझ्दी
 धोंयेंडी मन मा कोयेड़ी
 खुदमा च ये खुदैडी
 आंशूं म्यार मी दगडी ............

 ये मुल्क हमारा

 ऊँचा ये हीमाला
 कणडीयूँ का झाड़ा
 गदनीयुं का रोला
 आंशूं म्यार मी दगडी ............

 तिबारी- डंडाली मेर भुली

 घुघूती -हीलंसा ये रे सखी
 दूर दूर हीट बाटा ये रे भूलह
 दे दे दिलासा मीथै ये पहाडा
 आंशूं म्यार मी दगडी ............

 बुरंस प्योंली ये हमजोली

 किन्गोड़ा काफल की टोली 
 ओ आमा की डाई ओ झुल्ह
 ओ पंतैद्र का बाटा हम भुल्हा
 आंशूं म्यार मी दगडी ............

 गयाँ परदेश जी

 भुलह आपरा देश
 मनखी चा आज उदास
 लागी माया की ठेस
 आंशूं म्यार मी दगडी ............

 आंशूं म्यार मै दगडी

 चूल्हों जंण जलदी बोझ्दी
 धोंयेंडी मन मा कोयेड़ी
 खुदमा च ये खुदैडी
 आंशूं म्यार मी दगडी ............

 बालकृष्ण डी ध्यानी

 देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ सवेरा
 
 लो आ गई
 नयी प्रभात
 चलो उठो मित्रवर
 आवाज लगये कोई
 देखो ओ रवि पुकारे
 सुनहरी कीरणों
 को वो बिखरे
 असमान को संवारे
 एक नयी अंगाडाई
 हाथ लिया कलम
 करैं कुछ इशारें
 कविता के बोल लिया
 वृक्ष रह था डोला
 अकेला खड प्रतीक्षा मै
 पाने को यहाँ भोर
 हो रहा अतिभोर
 व्यकुल खड इस पार
 मन मै आये विचार
 प्रेम की परिभाषा
 तनिक सरल
 तनिक कठोर
 राधा और मीरां
 के फूटे ये बोल
 आयी कैसी भोर
  जैसे प्रीतम से मीले
 मुझे चाहूं और
 हो गयी दर्शन
 मेरे मालिक
 जब जगी ये भोर
 मचा उठा शोर
 उठा जगा मित्रवर
 आ गई नयी भोर
 
 बालकृष्ण डी ध्यानी
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