Uttarakhand > Utttarakhand Language & Literature - उत्तराखण्ड की भाषायें एवं साहित्य
भरत नाट्य शास्त्र का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Bharata Natya Shast
Bhishma Kukreti:
भयानक रस अभिनय /भयानक रसौ पाठ खिलण
भरत नाट्य शास्त्र अध्याय - 6: रस व भाव समीक्षा -15
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद शास्त्री – भीष्म कुकरेती
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करचरणवेपथुस्तम्भगात्रहृदयप्रकम्पेन।
शुष्कौष्ठतालुकंठैर्भयाको नित्यंभिनेय: ।। (6. 72)
गढ़वाली अनुवाद
भयानक रस को पाठ खिलणो (अभिनय करण ) कुण हथ -खुट कमण , सरैल कु स्तम्भित ह्वे जाण जिकुड़ीक कमण , ऊंठ -तळुक अर कंठक सुकण क करतबों से करे जांद।
उदाहरण
गढवाली लोक नाटकों / में भय रस
वायु मसाण को भयो वर्ण मसाण
वर्ण मसाण को भयो बहतरी मसाण
बहतरी मसाण को भयो चौडिया मसाण
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वीर मसाण , अधो मसाण मन्त्र दानौ मसाण
तन्त्र दानौ मसाण
बलुआ मसाण , कलुआ मसाण , तालू मसाण
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डैणी जोगणी को लेषवार , नाटक चेटको फेरवार
मण भर खेँतड़ी , मण भर गुदड़ी , लुव्वाकी टोपी बज्र की खंता
(रौख्वाळी गीत
भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा
Bhishma Kukreti:
बीभत्स रस अभिनय/बीभत्स रसौ पाठ खिलण
भरत नाट्य शास्त्र अध्याय - 6: रस व भाव समीक्षा 16
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद शास्त्री – भीष्म कुकरेती
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मुखनेत्रविकूणनया नासाप्रच्छादनावनमितास्यै :
अव्यक्तपादपतनैर्बीभत्स: सम्यगभिनेय: I I
(6 . 74 )
बीभत्स रसौ पाठ खिलणौ कुण मुक अर आंख तै संकुचित करण, नाक ढकण से , मुंड झुकाण से , अर उल्ट -सुल्ट हिटण से अभिनय हूंद।
उदाहरण -
मार्ग गुंवड़ को छौ। मार्ग पर जांद वैकि दृष्टि गू पर पोड़ अर वैक पुटुक तौळ अर उन्द ह्वे गे अर वु उखम इ उकै करण मिसे गे , कुछ सुंगर ऊना ऐन अर बड़ा रौंस से गोओ अर उल्टी चटण मिसे गेन। वैकि उल्टी बंद ह्वेइ छे कि तबि एक खाज वळ कुकुर ऊना आयी जैक सरैल पर लुतुक भैर अयुं छौ अर खून व पीप बगणु छौ। घीण क मारन वाई तै दुबर उल्टी आण मिसे गे।
(भीष्म कुकरेती क ' अजाण दुनिया म ' कथा से ( गढ़ ऐना म प्रकाशित )
भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा
Bhishma Kukreti:
अद्भुत रस अभिनय : अद्भुत (खौंळेणो पाठ खिलण )
भरत नाट्य शास्त्र अध्याय - 6: रस व भाव समीक्षा - 17
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली
अनुवाद शास्त्री – भीष्म कुकरेती
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स्पर्शग्रहोल्लुकसनैर्हाहाकारैश्च सादुवादैश्च I
वेपथुगद्गदवचनै: स्वदेाद्यरभिनयस्तस्य I । 6 . 76 ।
अद्भुत रसौ पाठ खिलण कुण कै वस्तु तै देखिक खौंळेण से , अचाणचक हाहाकार करण से , कै तै साधुवाद दीण से या बड़ैं करण से , सरैल म कम्पन पैदा करण से , गौळ गदगद करण से , या स्वेद आण से दिखाए जांद।
भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा Definition of Raptures nd Emotions in Garhwali
Bhishma Kukreti:
स्थायी भाव अध्याय -1
Sthaayi Bhava
भरत नाट्य शास्त्र अध्याय - 6: रस व भाव समीक्षा - 18
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद शास्त्री – भीष्म कुकरेती
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रतिहसिसश्च शोकश्च क्रोधोत्साहौ भयं तथा ।
जुगुप्सा विस्मयश्चेति स्थायी भावा: प्रकीर्तिता: ।
अध्याय 6 , 17 ।
स्थायी भाव आठ छन - रति, हास्य शोक , क्रोध , उत्साह , भय अर विस्मय।
भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा
The Permanent Sentiments in dramas and Poetries a Garhwali Translation of Bharat Natya Shastra
Bhishma Kukreti:
रति भाव व अभिनय / रति भाव का पाठ कनै खिलण
Performances of Pleasure Emotion
भरत नाट्य शास्त्र अध्याय - 6: रस व भाव समीक्षा
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद शास्त्री – भीष्म कुकरेती
तामभिनयेत्स्मितवदनमधुरकथनभ्रूक्षेपकटाक्षदिभिरनुभावै:
(7 .8 को परिवर्ती भाग )
रति पाठ खिलणोकुण मुख पर मिठास , मुस्कान, कोमल भंगिमा , मिठ बोल
, भृकुटि विक्षेप / धनुष चढ़ाण जन प्रतिक्रिया , कटाक्ष आदि क्रियाओं क अनुसरण करण पड़द।
एक गढ़वाली लोकनाटक स्त्रियों द्वारा गीतुं (चैत ) म खिले गे छौ। नाटक एक सत्य घटना पर आधारित छौ अर तब लक गीत बि प्रचलित ह्वे छौ।
घटना छे बल एक अध्यापक का ब्यौथा स्त्री से अवैध संबंध ह्वे गे तो प्रेमालाप -
अध्यापक (प्रेमिका तै प्रसन्न करणो पर्यटन करदो ) -हे बांद ! तू आज भौति बिगड़ैलि लगणी छे।
प्रेमिका ( लज्जायुक्त , सरैल तै ट्याड़ करदी जन बेल हूंद ) - ह ह ! किलै झूठ .. अं .. अं ?
अध्यापक (ुतः, ुलार, ढाढ़स , प्रेम युक्त मिठ भौणम ) - सच्च ! तू तो आज औँसी रातै जून (चाँद लगणी छे।
भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा
raptures emotions in Garhwali dramas and Poetries and in miscellaneous Garhwali Literature
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