108 करण या शरीर हलण -चलण )
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भरत नाट्य शाश्त्र अध्याय चौथो ४ (तांडव लक्षण ) , पद /गद्य भाग ३४ बिटेन ५५ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - १०६
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी शब्द वर्जना प्रयत्न करे गे )
पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक अनुवाद करणवळ अनुवादक - आचार्य भीष्म कुकरेती
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करण १०८ छन - तलपुष्पपुट ,वर्तित , वलितोरु, अपविद्ध, समनख ,लीन, स्वस्तिकरेचित, मंडलस्वस्तिक,निकुट्टक ,अर्ध निकुट्टक , कटिछिन्न ,अर्द्धरेचित , वक्षःस्वस्तिक , उन्मत्त , स्वस्तिक, पृष्ठस्वास्तिक , दिक्स्वस्तिक, अलात , कटीसम ,आक्षिप्तरेचित , विक्षिप्ताक्षिप्तक , अर्धस्वस्तिक,अंचित,भुजंगत्रासित, उर्घ्वजानु, निकुञ्चित,मत्तल्लि , अधर्मतल्लि,रेचकनिक्कुट , पादपविद्धक, वलित, घूर्णित,ललित, दंडपक्ष , भुजंगत्रस्तरेचित,नूपुर,वैशाखरेचित , भ्र्मर,चतुर,भुजंगाचिंतक,दंडकरेचित,वृष्चिककुट्टित , वृश्चिक,व्यंसित ,पार्श्वनिकुट्टकम्, ललाटतिलक,क्रान्त, कुंचित,चक्रमंडल, उरोमंडल , आक्षिप्त, तलविलासित, अर्गल ,विक्षिप्त , आवृत,दोलपादक , विवृत,विनिवृत,पार्श्वक्रान्त,निशुम्भित,विद्युद्भ्रांत , अतिक्रांत ,विवर्तितक ,गजक्रीड़ित , तलसंस्फोटित , गरुड़प्लुतक ,गंडसूचि, परिवृत,पार्श्वजानु ,गृध्रावलीनक ,सन्नत ,सूची,अर्धसूची ,सूचीविद्ध ,अपक्रान्त,मयूरललित, सपित,दंडपाद,हरिणप्लुत, प्रेंखोलित, नितम्ब,स्खलित,करिहस्तक प्रसर्पितक ,सिंहविक्रीडित , सिंहकर्षित, उद्वृत्त,उपसृत,तलसंघट्टित , जनित, अवहित्थक , निवेश , एलकाक्रीडित,उरूद्वृत्त ,मदस्खलितक,विष्णुक्रांत,संभ्रांत,विष्कम्भ,उद्धट्टित,वृषभक्रीडित,लोलितक,नागासपिंत , शकटास्य, गंगावतरण
ये प्रकार से मीन १०८ करण (शरीर हलण -चलण ) बतायिन। ३४ -५५।
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सन्दर्भ - बाबू लाल शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ - ८९ -९३
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भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा
भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of Bharata Natyashastra in Garhwali , प्रथम बार जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक ) के कुकरेती द्वारा भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,