पिंडीबँधो व्याख्या
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भरत नाट्य शाश्त्र अध्याय चौथो ४ (ताँडव लक्षण ) , पद /गद्य भाग २५४-२५५ बिटेन २६३- २६५ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - १२८
s = आधा अ
पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एक मात्र लिख्वार bhishma kukreti
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तब नंदी अर भद्र मुख प्रमृति गणोंन पिंडीबंधको तै देखि ऊंक लक्षण अर नाम धर देन। २५४-२५५।
यि पिंडीबंध जौंक नाम विभिन्न देवगण व देवियों नाम पर धरे गेन इन छन - ईश्वर की पिंडी तै ईश्वरी ,नंदी क पट्टसी , चंडिका की (पिंडी ) सिंघवाहनी, विष्णु की तार्क्ष्य , स्वयम्भू की पद्म ,शक्र की ऐरावती ,काम की झप , कुमार /स्कन्द की शिखी ,श्री की रूप ,जान्हवी की धारा ,यम की पाश ,वरुण की नदी , कुबेर की याक्षी ,बलराम की हल्ली , भोगियों की सर्प ,गणों की दक्षयज्ञविमर्दनी नामौ महापिंडों अर भगवान शंकर जौन अंधकासुरौ बिणास कार - ऊंको त्रिशूल की आकृति से अंकित रौद्री पिंडी हूंदी। इनि अन्य देवो -देवी भी ऊंको चिन्हों से चिन्हित अर ऊंको नामानुसार हूण चयेंद। २५६ -२६१।
ये प्रकार भगवान शिवन रेचक , अंगहार अर पिण्डिबंधों का सृजन कार्य पूरो करणो पश्चात वूं तै तण्डु मुनि तै दे दिनी। तब तण्डु मुनिन ऊं तै गाणा , भांड वाद्य से संयुक्त करी जै नृत्य की रचना करि वु 'तांडव' नृत्य नाम से प्रसिद्द ह्वे। २६१- २६३।
ऋषिगणों प्रश्न -
जब अर्थों का (गीत अर संवाद ) उपयोगा कुण विद्वानों 'अभिनय' की सृष्टि कर दे त ये नृत्य की सर्जना कै उद्देश्य पूर्ति कुण ह्वे ? अर प्रकृति (स्वरूप , स्थिति व लक्षण ) कै प्रकारन रखे गे ?
ये नृत्य की आसारित' गीतों से संबंद्ध करदा रचना किलै ह्वे ? किलैकि यु ना तो गीतों ना ही संवांदों से संबद्ध च। २६३-२६५।
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सन्दर्भ - बाबू लाल शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ - १३३ -१३६
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भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा
भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of Bharata Natyashastra in Garhwali , प्रथम बार जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक ) के कुकरेती द्वारा भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,