Author Topic: भरत नाट्य शास्त्र का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Bharata Natya Shast  (Read 13823 times)

Bhishma Kukreti

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नृत , अभिनय अर  वाद्य वादन , गीतों सामजस्य सिद्धांत

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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    , पद /गद्य भाग २९९    बिटेन   ३०७ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   १३६
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 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती    
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अब अंगों म ग्रथित गीतक विधान सुणो।  जु लक्षण या विधि विषय वस्तु दगड़ नृत , अभिनय अर वादन म प्रयुक्त ह्वेन ऊं  तै इ अंगोंम निबद्ध छन्दको म बि संयोजित करण चयेंद। २९९। 
मुख अर उपोहन (क्रिया ) म 'वाद्यवादन' गुरु अर लघु अक्षरों भेद तैं पृथक निर्देशित करण  वळ हूण चयेंद।  जाँसे  वर्णों व्यवधान स्पष्ट परिलक्षित ह्वाव।  (अर्थात वाद्यवादन इन हो बल  वर्णों व्यवधान द्वारा लघु व गुरु
अक्षरों भेद स्पष्ट चितए  जाय ) . ३००।
जब गीतक प्रयोगौ कारण वैक  अंगुं  बार बार आवृति ह्वावो त प्रथम भाग तै मुद्राओं से अभिनीत करे  जाव अर शेष भाग तैं नृत्य  माध्यम से प्रदर्शित करे जाय । ३०१।
जब गीतs प्रयोगौ समय कुछ अंगों आवृति ह्वावो ,तो वांक वाद्य संगीत से बि संगत करे  जाय , जु तीन प्रकारौ पाणि (सम , अर्थ ,उपरिपाणि ) अर त्रिविघल (द्रुत , मध्यम अर बिलम्बित ) की विध्यों द्वारा संयोजित ह्वावो अर वादकों तै लयानुसार रखण  चयेंद। ३०२।
वाद्य संगीतम  तत्व ,अनुगत ,अर ओध करणों से युक्त रखे जांदन।  इनमा तत्वा प्रयोग बिलम्बित स्वर लयम , अनुगतक मध्यलयम अर ओधक प्रयोग द्रुतलयम करण चयेंद।  इख वूं वाद्यों क नियम छन जु प्रयोग करण चयेंद।  जब गीतक विभिन्न अंग छंदक अवस्था म ह्वावन त वूं  तै बार बार दुहराण चयेंद।  यु आवर्तनक नियम  नृत्य , अभिनय अर वादन म समान रौंद।  जु गीत एकी पद्यम निबद्ध ह्वाओ तो ऊंक अंत म ग्रह ( वाद्यों क विशिष्ट वादन )  क संयोजन आवश्यक रखे जाय; पर अंगों की आवृति हूण पर यह ग्रह तै उन्कि आवृति से पैलो भागम  रखण चयेंद।  अर यी नियम आसारित गीतुंम बि प्रयुक्त हूण  चयेंद। ३०४ -३०७।

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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ - १४३ -१४५   
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

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नृत्यक सही अवसर
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    , पद /गद्य भाग  ३०८   बिटेन   ३१२   तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -  १३७ 
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 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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सुकुमार नृत्य स्वरूप व विधि -
अब देवताओं वंदना से संबद्ध 'सुकुमरर' नृत्य तै बथांदु।  सुकुमार नृत्य श्रृंगार रस से युक्त हूंद।  ये माँ जनानी मर्दों प्रणयामिभूत अवस्था वळ इन कथन  हूंदन जु स्मर प्रेरित दशा म उद्भूत हूंदन।  ३०८।
हे मुनियो ! अब मि  ये समय की स्थितियों बारा म बथान्दु जख कि  गीत योजना हूंद।  ३०९। 
नाट्यवेताजन जब गीत की या विषय वस्तु का अंगों म अत्यंत समीपतर स्थिति  ह्वावो  या कै पात्रक अभ्युदयौ अवसर ह्वावो त यूं अवसरों पर ' नृत्य प्रयोग करण  चयेंद।  ३१०।
अर जख नायक -नायिका  (दम्पति ) का प्रन्याश्रित सामीप्य ह्वावो अतिशय हर्ष तै प्रदर्शन हेतु  नृत्य करे जाय।  ३११।
रूपकक ये दृश्यम जख नायक नायिका  क समीप हो, मन भवन ऋतू , या अनुकूल समय हो तब गीत अर्थ प्रदर्शक नृत्य की योजना हूण  चयेंद।३१२।
 

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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ  १४५ - १४६   
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

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कखम नृत्य नि करण? 
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    ,३१३  पद /गद्य भाग   ३१५ बिटेन  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -  १३८ 
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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नाटकौ  जै अंग म विप्रलब्धा या कलहान्तरिता  नायिका नायक से नियुक्त ह्वे  गे  हो तो तब नृत्य योजना नि करण। ३१३ ।
जु द्वी  सखियों संवाद चलणु  व्हावो , नायका समिण  नायक नि  ह्वाहो त  नृत्य योजना नि करण। ३१४।
जु  महिला रैबर्या  द्वारा ऋतू या समय वर्णन हूणु ह्वावो ,अर चिंता व औत्सुक्य अवस्था ह्वावो तो बि नृत्य योजना नई हूण चयेंद।  ३१५। 
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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -   १४६-१४७ 
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई

भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   

  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,

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Bhishma Kukreti

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प्रणय व देव स्तुति स्तिथिूँ  म नृत
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    , पद /गद्य भाग ३१६   बिटेन ३१९   तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   १३९
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 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य भीष्म कुकरेती    
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जो नाटकौ क्वी भाग देव स्तुति संबद्ध ह्वावो त उखम  महेश्वर द्वारा निर्देशित उद्धत या आवेगपूर्ण अंगारों से युक्त नृत  कु संयोजन करण चयेंद।  ३१७।
जख महिला अर पुरुष  पात्र  श्रृंगार  रस से संबद्ध होवन  या प्रणय युक्त सहगान हो उख मां भगवती पार्वती द्वारा रचित ललित  अंगहारों   से युक्त नृत्य क संयोजन हूण चयेंद। ३१८।
अब मि अवनद्ध वाद्यान्तर्गत भांड वाद्य वादन क नियम बथलांदू।  जांक अनुसरण चतुष्पदा ,नर्कुटक ,खंजक अर परिगीतक गीतों क संगत म हूंद।  ३१९।


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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -  १४७- १४८ 
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई

भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   

  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,

Bhishma Kukreti

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चतुष्पदा खंजक अर नर्कुटक  आदि प्रदर्शन

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  चौथो ४ (ताँडव लक्षण )    ,३२०   पद /गद्य भाग   बिटेन  ३२५   तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -  १४० 
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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जु  चतुष्पदा खंजक अर नर्कुटक से युक्त ह्वाओ ,जु सन्निपात ग्रह सहित ह्वावो ,त  वैक  अंतिम पद क स्थापन क अवसर पर वाद्य वादन आरम्भ हूण  चयेंद। ३२०। 
जु ध्रुवा (अपण ) छंदक लक्षणानुसार  वर्णों म समता अर खुटों डगों म सम ह्वावन , त  गाणाs प्रथम पाद की समाप्ति पर प्रादेशनी अंगुळी द्वारा वाद्यवादन हूण  चयेंद। ३२१। 
जब वी गीत पुनः उचित अभिनय या मुद्राओं क प्रदर्शनो साथ आवृत किये जाय , एक उपरान्त पुनः एइ  गीत गाये जावो अर अबहुंय क  प्रदर्शन क दगड़ दगड़ जब  यु ये गीत गयाणु  ह्वावो  तो वाद्यवादन शुरू कारो।  ३२२। 
जब गीतुं विषय वस्तु  अर  अंगु समाप्ति ह्वावो  वांको  रचना पूरी  ह्वे  जाव अर उपोहन  क्रिया ह्वावो त   वै समय भांड वाद्य वादन हूण  चयेंद।  ३२३।
जु तंत्रीवाद्यों , शब्द रचना अर करणों म   अवस्थित अंतर्मार्ग ह्वावो त प्रयोग -दिशाम 'तांडव' का दगड़ ' सूचीचारि' तै भांडवाद्य वादन क दगड़ प्रदर्शन करे जावो।  ३२४
ये प्रकार महेश्वर शिव द्वारा रचित ये 'तांडव' क जु प्रयोग करद वो शुद्ध हो शिव लोक प्राप्त करद।  ३२५। 

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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ - १४८-  १५० तक 
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई


Bhishma Kukreti

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भरत मुनि से  हौर मुनि जनो पूर्व रंग बनिस्पत  प्रश्न


भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  पंचों   ५ वां   ( पूर्व रंग विधान)    , पद /गद्य भाग १   बिटेन  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   १४१
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 पैलो आधुनिक गढवाली।   नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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नाट्य विषय  चर्चा तै जारी रखण वळ आचार्य भरत से प्रसन्न मन मुनि गणुन पूछी - मुनि हमन आपसे नाट्य उद्भव ,जर्जर उतपति , नाट्य बिघ्नों शमन ,देवताओ पूजा विधान सूण अर  बींग।  अब हम पूर्व रंग अर वैक भेद -प्रभेद अर लक्षण समेत बिंगण  चांदा।  कृपया इन सरलता से  समजावो कि हम तै वांक  ज्ञान ह्वे  जावो।  १-४।
मुनियों बचन  सूणी  भरतन पूर्व रंग विधान समजांद  बोली , - हे महाभाग ! मि  तुम तै पूर्व रंग , वैसे संबद्ध पादभाग कला अर पाद परिवर्तों (खूटों  तै गोळ घ्यारा म गतिशील रखण ) क बारा म समजांद।  आप यूँ विधानों तै सुणो।  ५-६। 
किलैकि यु रंगमंच पर नाट्य प्रयोग क समय सर्व प्रथम करे जांद। इलै एतै पूर्वरंग बुल्दन।  ७। 
 पूर्व रंगक अंग  - वीणा (तंत्री ) ,भांड (मृदंग ) ,अर  संवाद क्रमशः  प्रयुक्त हूण  चएंदन। यी अंग छन -प्रत्याहार , अवतरण,आरम्भ , आश्रावणा ,वक्त्रपाणि ,परिघट्टना ,संघोटना ,मार्गसरित , अर जेष्ठ , मध्यम व कनिष्ठ आसारित।  यी बहिर्गीत यवनिका क पैथर स्थित पुरुषों द्वारा वीणा व भांड वाद्य दगड़ संगत से करे जाव। 
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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -  १५१   
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

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पूर्वरंग का अंग
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  पंचों ५ वों  ( पूर्व रंग विधान)  , पद /गद्य भाग  १२   बिटेन १८  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   १४२
s = आधा अ
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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फिर यवनिका तै हटैक नृत्य व  पाठ (संवाद) का संयुक्त प्रयोग वाद्यों वादन का साथ किये जाय।  मुद्रक /लक्षणों गीतों म से एक गीतौ  या जब तांडव की योजना करे जाय त  वर्धमानक गीतों मा से एक  गीतों संयोजन करे जाय फिर क्रमश: पूर्वरंग म उत्थापन , परिवर्तन , नांदी, शुष्कप्रकृष्टा , रंगद्वार ,चारी , महाचारी ,त्रिक ,अर प्ररोचना कु प्रयोग करे जाय। १२- १५।
'पूर्वरंग' म यूं अंगों अवश्य प्रयोग करण  चयेंद। अब मि क्रमश: यूंक लक्षण बतांदो।  १६। 
प्रत्याहार - वाद्य यंत्रों उचित या निर्धारित स्थानों पर व्यवस्थित स्थापन 'प्रत्याहार' बुले जांद। १७।
अवतरण - गितांगों तै निश्चित स्थान म बिठाण  'अवतरण' हूंद। १७। 
आश्रावण - वादन से पैल वाद्यों की व्यवस्थापूर्वक  एकरूपता लाण  'आश्रावण' हूंद।  १८।
वक्त्रपाणि -वाद्यों कु विभिन्न वृत्यों का वादन की दशा म ध्यान से पुनः सुणन वक्त्रपाणि हूंद।  १८। 
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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ - १५४  बिटेन   १५७
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई

Bhishma Kukreti

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नाटक म बनि  बनि गीत संगीत की परिभाषा  भाग - १
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  पंचों ५ वों  ( पूर्व रंग विधान)  , पद /गद्य भाग  १९  बिटेन  २६  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   १४३
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 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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परिघट्टना  वीणा आदि तंतुवाद्यों वादन हेतु आस्फालन परिघट्टना  बुले जांद।  १९।
सङ्घोटना - हथों  से वाद्यों पर प्रहार कौरि फिर से ठीक करण पर सुणन तै सङ्घोटना  बुल्दन। २०।
मार्गसारित - वीणा अर भांड (अवनद्ध ) वाद्यों क मिश्रित ध्वनि प्रयोग कुण  मारगसारित  बुल्दन , २०।
आसारित - कला या मात्रा विभाग हेतु हूण  वळि वाद्यवादन क्रिया तै आसारित बुल्दन।  २१।
गीतविधि - दिबतों कीर्ति विस्तार /बड़ैं म प्रस्तुत गाणा  तैं  गीतविधि बुल्दन।  २१।
या विधि  नांदी पाठकों द्वारा सर्व प्रथम  रंगमंच पर काज शुरू करवांद इलै यिन विधि तै उत्थापना बुल्दन।  २२।
परिवर्तन - पूर्व आदि दिशाओं अधिपति लोकपालों की चरी तरफ घूमी वंदना करण 'परिवर्तन 'बुले जांद।  २३।
नांदी - चूंकि येमा  देव , द्विज अर  भूपालों की आशीर्वचन समन्वित स्तुति करे जांद  त ये तै नांदी संज्ञा दिए गे।  २४।
नांदी पाठ का अवसर पर वैक पादों म मध्य म चित्रपूर्वरंग ह्वावो त 'वर्धमानक ' क प्रयोग करण  चयेंद जांक लक्छण बताये गे छ।  कुछ आचार्य क प्रयोग पश्चात शुद्ध -चित्रपूर्वरंग  म 'वर्धमानक'प्रयोग  पक्ष म छन
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शुस्कावकृष्टाध्रुवा -
जब अवकृष्टा ध्रुवा अर्थहीन ध्वनि म संयोजन करे जांद त  ये तैं  शुष्कावकृष्टा ध्रुवा ' बुले जांद। यो  जर्जर  श्लोक  को अवसर पर प्रयोग हूंद। २५।
रंगद्वार - किलैकि सबसे पैल वाचिक व आंगिक अभिनय की शुरुवार यखी  बिटेन हूंद तो शब्द व शरीर क अभिनय से संयुक्त ये अंग तै रंगद्वार 'बुले जांद।  २६। 
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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -  १५७-  १६१। 
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

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नाटकुंम बनि  बनि गीत संगीत की परिभाषा  भाग - २
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  पंचों ५ वों  ( पूर्व रंग विधान)  , पद /गद्य भाग  २७  बिटेन  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -  १४४ 
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चारी  -महाचारी - श्रृंगार रसौ  भाऊँ  तै गति द्वारा प्रदर्शन करण चारी अर रौद्र रसौ  प्रदर्शन महाचारी बुले जांदन। २७।
त्रिगत - तीन पात्रों संभाषण जख सूत्रधार , पारपार्श्विक व विदक्षकौ  प्रलाप हो वो त्रिगत बुले जांद।  २८।
प्ररोचना -जु  सूत्रधार या नाट्यविशेषज्ञ द्वारा रूपक कार्य हेतु युक्ति की सयाता लेकि सिद्धसिदृश कथन  करे जाय त ' प्ररोचना' बुले जांद।  २९।
बहिर्गीत उतपति अर  कारण -
जब नारद मुनि आदि वाद्य विशारदों अर गंधर्वों द्वारा चित्र अर दक्षिण मार्ग से युक्त सप्तरुप सम्वनित उपोहन कार अर निर्गीत का साथ दिबतौं स्तुतियों से प्रशस्त स्वरूप वळ अर लय अर तालक उचित मेल से युक्त उस निर्गीत (धुन ) तै दिबतौं  अर दानवों  सभा म सुणाये गे। ३१ -३२।
तब ये सुखदायी अर   देबों स्तुति अर  अभिनन्दन से युक्त गीत सूणी सभी दैत्य व रागसगण  नाराज ह्वे गेन। ३३।
तब दैत्य गण  परस्पर विचार करदा  बुलिन -हम यूं  निर्गीत से सम्वनित  छा अर प्रसन्न छंवां अर ये तैं  इ ग्रहण करला। जु सप्तरूपों से युक्त गीत छन अर यूं देवगणों क कर्मों अनुवादक छन -ऊंसे देवगण खुश रावन अर ऊं  तैं  सुणदा  रावन। हम ये निर्गीत तै ली लींदा अर येसे संतुष्ट छंवां। ये तरां  से दैत्यों न निर्गीत  तैं  अपणायी अर विकि साधना व प्रयोग करण लग गेन।  ३४ -३६ । 
तब देवगण  रुसे गेन तब  पुनः  नारद जी से बुलण  लगिन - हे मुनि ! यी दानव केवल निर्गीत से संतुष्ट छन अर दुसर वस्तु नि  चांदन। इलै हम ये निर्गीत तै नष्ट करण  चाणा छा।  आपक क्या राय च ? ३६-३७।

 
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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ - १६१ - १६४ 
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


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निर्गीत , अर  बहिर्गीत परिभाषा
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भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  पंचों ५ वों  ( पूर्व रंग विधान)  , पद /गद्य भाग ३८   बिटेन  ४४  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   १४५
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 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती   
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दिबतौं  बात सूणी  नारद जीन  बोली - निर्गीत (केवल ट्यूनिंग )  जु कि  विस्तार आदि धातुवाद्यों पर आश्रित छन नष्ट नि हूण  चएंदन।  किन्तु यो ही उपोहन (क्रिया ) अर धातु वाद्यों से युक्त ह्वेकि सप्तरूपों तै प्राप्त होला। अर दैत्य /दानव  गण ये निर्गीत क आकर्षण से आवद्ध हूणो  कारण ये तै नि कौर साकला। ३८-४०।
हे मुनिजन ! इनि यी निर्गीत (ट्यूनिंग ) जु  दैत्यों वृथाभिमान  शांति   हेतु निर्मित करे गे जब देवगणों से सम्मान प्राप्त कारल त वहिर्गीत बुले जाल।  ४१।
ये निर्गीतौ धातुतंतु युक्त चित्रवीणा पर निपुण वादकों द्वारा वर्ण , अलंकार अर लघु -गुरु अक्षरों से युक्त प्रयोग करे जाय।  ४२। 
यु शब्द या पद रहित केवल निर्थक वर्णों से गाये जाणो कारण निर्गीत बुले जांद।  अर यी देवगणों असंतुष्टि कारण बहिर्गीत ह्वे जांद।  ४३।
जु निर्गीतौ  स्वरूप सप्तरूप युक्त मीन बताई तथा उत्थापनादि क मीन अभिघान कार वांक कारण बतांदु।  ४४। 
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  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ - १६४ -  १६५
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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


 

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