भरत मुनि से हौर मुनि जनो पूर्व रंग बनिस्पत प्रश्न
भरत नाट्य शाश्त्र अध्याय पंचों ५ वां ( पूर्व रंग विधान) , पद /गद्य भाग १ बिटेन तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - १४१
s = आधा अ
पैलो आधुनिक गढवाली। नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एक मात्र लिख्वार -आचार्य भीष्म कुकरेती
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नाट्य विषय चर्चा तै जारी रखण वळ आचार्य भरत से प्रसन्न मन मुनि गणुन पूछी - मुनि हमन आपसे नाट्य उद्भव ,जर्जर उतपति , नाट्य बिघ्नों शमन ,देवताओ पूजा विधान सूण अर बींग। अब हम पूर्व रंग अर वैक भेद -प्रभेद अर लक्षण समेत बिंगण चांदा। कृपया इन सरलता से समजावो कि हम तै वांक ज्ञान ह्वे जावो। १-४।
मुनियों बचन सूणी भरतन पूर्व रंग विधान समजांद बोली , - हे महाभाग ! मि तुम तै पूर्व रंग , वैसे संबद्ध पादभाग कला अर पाद परिवर्तों (खूटों तै गोळ घ्यारा म गतिशील रखण ) क बारा म समजांद। आप यूँ विधानों तै सुणो। ५-६।
किलैकि यु रंगमंच पर नाट्य प्रयोग क समय सर्व प्रथम करे जांद। इलै एतै पूर्वरंग बुल्दन। ७।
पूर्व रंगक अंग - वीणा (तंत्री ) ,भांड (मृदंग ) ,अर संवाद क्रमशः प्रयुक्त हूण चएंदन। यी अंग छन -प्रत्याहार , अवतरण,आरम्भ , आश्रावणा ,वक्त्रपाणि ,परिघट्टना ,संघोटना ,मार्गसरित , अर जेष्ठ , मध्यम व कनिष्ठ आसारित। यी बहिर्गीत यवनिका क पैथर स्थित पुरुषों द्वारा वीणा व भांड वाद्य दगड़ संगत से करे जाव।
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सन्दर्भ - बाबू लाल शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ - १५१
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भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा
भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद ,