शुद्धपूर्व म गीत विधान
-
भरत नाट्य शाश्त्र अध्याय पंचों ५ वों ( पूर्व रंग विधान) , पद /गद्य भाग ५६ बिटेन ६५ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - १४७
s = आधा अ
पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
-
गढ़वळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एक मात्र लिख्वार -आचार्य भीष्म कुकरेती
-
ये पूर्व रंगम विहित निर्गीत अर संगीत प्रयोग जथगा दैत्यों तै प्रसन्न करदन तथगा इ देवगन बि संतुष्ट हूंदन। ५६।
ये जगत म जु विद्याएं , शिल्प , गतियां व चेष्टाएँ छन अर जो प्राणियों व जड़ प्रकृति स्वरूप छन वो बि नाट्याश्रित ह्वेका पूर्वरंग म स्थिर रंदन। ५७।
आप तै मि येमा अयाँ निर्गीत , संगीत अर वर्धमानक लक्षण अर प्रयोग ध्रुवविधान बतौल। ५८।
शुद्धपूर्वरंग म गीत विधान -
गीतों क विधि अर वर्धमानक क प्रयोग उपरान्त 'उत्थापनी' ध्रुवा प्रयोग हूण चयेंद। ५९।
उत्थापनी ध्रुवा -
ये ध्रुवा क पाद म ११ अक्षर हूंदन। अर येमा आदि क द्वी चौथो अर ११ वों अक्षर दीर्घ /गुरु हूंद। एक चार पाद हूंदन अर चौताल हूंद। चार सन्निपात अर तीन प्रकारै लय (द्रुत , मध्य अर वलम्बित ) हूंदन। यु तीन यतियों(समा ,स्रोतोंवहा , गोपुच्छा ) से युक्त हूंद। येमा चार 'परिवर्त '(पादमागादि,ताल को दुहराव ) हूंदन अर तीन पाणि (सम , अवर ,उपरि पाणि ) हूंदन। येमा जातिवृत (मात्रावृत ) म विश्लोक छंद हूंद अर उनी चौताल प्रयोग हूंद। ५९-६२।
येमा हूण वळि तालक जो योजना च वो द्वी कला की प्रमाण वळि शम्या ,फिर दो कला की ताल फिर एक कला की शम्या अर आखिरैं तीन कला क सन्निपात हूंद। ६३ ।
ये हिसाबन एक सन्निपात तै आठ कलाओं वळ जाणो अर चार सन्निपातों से एक परिवर्त बणद। ६४ ।
नाट्यवेताजन ये प्रथम परिवर्तक को विलबित लय अर स्थित लय म प्रयुक्त कारन अर तिसर सन्निपात का समय परिवर्त म भांड वाद्य का ग्रहण करे जाय। ६५ ।
-
सन्दर्भ - बाबू लाल शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ - १७०
-
भरत नाट्य शास्त्र अनुवाद , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य शास्त्रौ शेष भाग अग्वाड़ी अध्यायों मा
भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of Bharata Natyashastra in Garhwali , प्रथम बार जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक ) के कुकरेती द्वारा भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,