Author Topic: भरत नाट्य शास्त्र का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Bharata Natya Shast  (Read 13830 times)

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
विभिन्न  देवगणों तै प्रसन्न करण  वळ  गीत -संगीत
-
भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  पंचों ५ वों  ( पूर्व रंग विधान)  , पद /गद्य भाग  ४५   बिटेन   ५५ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - १४६   
s = आधा अ
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित -
गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती   
-
( प्रत्याहारौ प्रयोगन रक्ष गण , गुरा सहित प्रसन्न हूंदन , अवतारणा द्वारा अप्सरा खुश हूंदन ,अर आरम्भक विधिवत प्रयोग से गंधर्व पुळेंदन )'आश्रावणा' का प्रयोगन  सदा दैत्य गण पुळेंदन।  वक्त्र पाणि' द्वारा सदा दानव अर 'परिघट्टना' पयोग से राक्षस प्रसन्न हूंदन।  'सङ्घोटन' प्रयोग से गुह्यक खुश हून्दन। 'मार्गसरिता' प्रयोग से यक्ष पुळेंदन।  गीतों  से  दिबता प्रसन्न हूंदन। 'वर्धमान ' क का प्रयोग से रुद्रदेव अनुचर सहित प्रसन्न हूंदन। 'उत्थापना' से ब्रह्मा प्रसन्न हूंदन  अर 'परिवर्तन ' प्रयोगन लोकपाल आनंदित हूंदन।  नांदी प्रयोगन चंद्रदेव प्रसन्न हूंदन। 'अवकृष्टा /ध्रुवा  ' से  नाग आनंदित हूंदन। 'शुष्कावकृष्ठा' से पितरगण प्रसन्न हूंदन।  'रंगद्वार'क प्रयोगन  विष्णु अर जर्जर प्रयोगन व्घ्नहर्ता गणेश प्रसन्न हूंदन।  'चारी' प्रयोग से उमा प्रसन्न हूंदन।  महाचारी ' प्रयोग से भूतगण खुश हूंदन।  ४५ -५२।
ये प्रकारन 'प्रत्याहार' से प्रारंभ  ह्वेकि 'महाचारी' पूर्ण ह्वेकि पूर्वरंग का बनि बनि अंग अर दिबतौं  पूजन विधि आप तैं  बताई।  ५३।
हे मुनियो ! ये पूर्वरंग विधि वर्णन करद  दैं दिबतौंक   जौं  अंगों से तुष्टि हूंद अर देवगणों तै जो अंग रुचिकर छन वु  सब तुम तैं  बताई।  ५४।
जां से सब दिबतौं  पूजा हो वो पूर्व रंग की या विधि दर्शकों अर  नाट्यप्रयोक्ताओं तै धर्म ,यश अर दीर्घायु दिंदेर  हूंद।  ५५। 

-
  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -   १६६   -१६८
-
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
विभिन्न  देवगणों तै प्रसन्न करण  वळ  गीत -संगीत
-
भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  पंचों ५ वों  ( पूर्व रंग विधान)  , पद /गद्य भाग  ४५   बिटेन   ५५ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - १४६   
s = आधा अ
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित -
गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती   
-
( प्रत्याहारौ प्रयोगन रक्ष गण , गुरा सहित प्रसन्न हूंदन , अवतारणा द्वारा अप्सरा खुश हूंदन ,अर आरम्भक विधिवत प्रयोग से गंधर्व पुळेंदन )'आश्रावणा' का प्रयोगन  सदा दैत्य गण पुळेंदन।  वक्त्र पाणि' द्वारा सदा दानव अर 'परिघट्टना' पयोग से राक्षस प्रसन्न हूंदन।  'सङ्घोटन' प्रयोग से गुह्यक खुश हून्दन। 'मार्गसरिता' प्रयोग से यक्ष पुळेंदन।  गीतों  से  दिबता प्रसन्न हूंदन। 'वर्धमान ' क का प्रयोग से रुद्रदेव अनुचर सहित प्रसन्न हूंदन। 'उत्थापना' से ब्रह्मा प्रसन्न हूंदन  अर 'परिवर्तन ' प्रयोगन लोकपाल आनंदित हूंदन।  नांदी प्रयोगन चंद्रदेव प्रसन्न हूंदन। 'अवकृष्टा /ध्रुवा  ' से  नाग आनंदित हूंदन। 'शुष्कावकृष्ठा' से पितरगण प्रसन्न हूंदन।  'रंगद्वार'क प्रयोगन  विष्णु अर जर्जर प्रयोगन व्घ्नहर्ता गणेश प्रसन्न हूंदन।  'चारी' प्रयोग से उमा प्रसन्न हूंदन।  महाचारी ' प्रयोग से भूतगण खुश हूंदन।  ४५ -५२।
ये प्रकारन 'प्रत्याहार' से प्रारंभ  ह्वेकि 'महाचारी' पूर्ण ह्वेकि पूर्वरंग का बनि बनि अंग अर दिबतौं  पूजन विधि आप तैं  बताई।  ५३।
हे मुनियो ! ये पूर्वरंग विधि वर्णन करद  दैं दिबतौंक   जौं  अंगों से तुष्टि हूंद अर देवगणों तै जो अंग रुचिकर छन वु  सब तुम तैं  बताई।  ५४।
जां से सब दिबतौं  पूजा हो वो पूर्व रंग की या विधि दर्शकों अर  नाट्यप्रयोक्ताओं तै धर्म ,यश अर दीर्घायु दिंदेर  हूंद।  ५५। 

-
  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -   १६६   -१६८
-
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
शुद्धपूर्व म गीत विधान
-
भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय  पंचों ५ वों  ( पूर्व रंग विधान)  , पद /गद्य भाग  ५६  बिटेन  ६५ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   १४७
s = आधा अ
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार - स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
-
गढ़वळिम सर्वाधिक  पढ़े जण वळ  एक मात्र लिख्वार -आचार्य  भीष्म कुकरेती   
-
ये पूर्व रंगम विहित निर्गीत अर  संगीत प्रयोग जथगा दैत्यों तै प्रसन्न करदन  तथगा इ देवगन बि  संतुष्ट हूंदन।  ५६।
ये जगत म जु विद्याएं , शिल्प , गतियां व चेष्टाएँ छन अर  जो प्राणियों व जड़ प्रकृति स्वरूप छन वो बि नाट्याश्रित  ह्वेका पूर्वरंग म स्थिर रंदन।  ५७।
आप तै मि येमा अयाँ निर्गीत , संगीत अर वर्धमानक लक्षण अर प्रयोग ध्रुवविधान बतौल।  ५८।
शुद्धपूर्वरंग म गीत विधान -
गीतों क विधि अर वर्धमानक क प्रयोग उपरान्त 'उत्थापनी' ध्रुवा प्रयोग हूण  चयेंद।  ५९।
उत्थापनी ध्रुवा -
ये ध्रुवा क पाद म ११ अक्षर हूंदन। अर येमा  आदि क द्वी चौथो अर ११ वों अक्षर दीर्घ /गुरु हूंद। एक चार पाद हूंदन अर  चौताल हूंद। चार सन्निपात अर तीन प्रकारै लय (द्रुत , मध्य अर वलम्बित ) हूंदन। यु तीन यतियों(समा ,स्रोतोंवहा , गोपुच्छा )  से युक्त हूंद। येमा  चार 'परिवर्त '(पादमागादि,ताल को दुहराव  )  हूंदन अर  तीन पाणि (सम , अवर ,उपरि पाणि ) हूंदन। येमा  जातिवृत (मात्रावृत ) म विश्लोक छंद हूंद अर उनी  चौताल प्रयोग हूंद।  ५९-६२। 
येमा हूण  वळि तालक जो योजना च वो द्वी कला की प्रमाण वळि शम्या ,फिर दो कला की ताल फिर एक कला की शम्या  अर आखिरैं  तीन कला क सन्निपात हूंद। ६३ । 
ये हिसाबन एक सन्निपात तै आठ कलाओं वळ जाणो अर चार सन्निपातों से एक परिवर्त बणद।  ६४ ।
नाट्यवेताजन ये प्रथम परिवर्तक को विलबित लय अर स्थित लय म प्रयुक्त कारन अर तिसर सन्निपात का समय परिवर्त म भांड वाद्य का ग्रहण करे जाय। ६५ ।

 


-
  सन्दर्भ - बाबू लाल   शुक्ल शास्त्री , चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी , पृष्ठ -   १७०
-
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22