Author Topic: भरत नाट्य शास्त्र का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Bharata Natya Shast  (Read 41458 times)

Bhishma Kukreti

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वीभत्स रस में प्रयुक्त भाव :  बीभत्स रसौ भाव

 (गढवाल म खिल्यां नाटक आधारित  उदाहरण )
   Sentiments of the  Abhorrence Rapture
( इरानी , अरबी शब्दों क वर्जन प्रयत्न )
 
 भरत नाट्य  शास्त्र  अध्याय - 6, 7 का : रस व भाव समीक्षा - ७५
  s  = आधी अ   
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद  आचार्य  – भीष्म कुकरेती
भावाश्वचास्यापस्मारोद्वेगावेगमोहव्याधिमरणादय:। । 
गढ़वाली अनुवाद व व्याख्या  - -
बीभत्स रस का भाव यि  छन -
जुगुप्सा
भय
मद
चिंता
मोह
आवेग
विषाद
अपस्मार
व्याधि
उन्माद
मरण

 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
गढ़वाली काव्य म  भाव ; गढ़वाली नाटकों म भाव ;गढ़वाली गद्य म  भाव ; गढवाली लोक कथाओं म  भाव
Raptures in Garhwali Poetries,   Sentiments  in Garhwali Dramas and Poetries and in miscellaneous  Garhwali  Literature,  Sentiments   in Garhwali Poetries,   Sentiments in Garhwali Proses


Bhishma Kukreti

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अद्भुत रस में प्रयुक्त होने वाले भाव : अद्भुत रसौ   भाव

 (गढवाल म खिल्यां नाटक आधारित  उदाहरण )
   Sentiment  of the Rapture
( इरानी , अरबी शब्दों क वर्जन प्रयत्न )
 
 भरत नाट्य  शास्त्र  अध्याय - 6, 7 का : रस व भाव समीक्षा -
  s  = आधी अ   
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद  आचार्य  – भीष्म कुकरेती

भावाश्चास्य स्तम्भाश्रुस्वेदगद्रोमांचावेगसम्भ्रमजडताप्रलयादय: । 
भरत नाट्य शास्त्र को  ६, ७४ को गढ़वाली अनुवाद व व्याख्या  - -
 स्वांग म अद्भुत रसम तौळक भाव प्रयोगेन्दन -

विस्मय
मोह
हर्ष
आवेग
जड़ता
वितर्क
स्तम्भ
स्वेद
रोमांच
स्वर भेद भंग
अश्रु
प्रलय

 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
गढ़वाली काव्य म  भाव ; गढ़वाली नाटकों म भाव ;गढ़वाली गद्य म  भाव ; गढवाली लोक कथाओं म  भाव
Raptures in Garhwali Poetries,   Sentiments  in Garhwali Dramas and Poetries and in miscellaneous  Garhwali  Literature,  Sentiments   in Garhwali Poetries,   Sentiments in Garhwali Proses


Bhishma Kukreti

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रसों  दिवता /देवता

 (गढवाल म खिल्यां नाटक आधारित  उदाहरण )
  Gods   of the Rapture
( इरानी , अरबी शब्दों क वर्जन प्रयत्न )
 
 भरत नाट्य  शास्त्र  अध्याय - 6, 7 का : रस व भाव समीक्षा - 77
  s  = आधी अ   
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद  आचार्य  – भीष्म कुकरेती
अथ देवतानि
श्रृंगारो विष्णुदैवत्यो हास्य: प्रथमदैवत:। 
रौद्रो  रुद्राधिदैवत्य: करुणो यम दैवत:। I
बीभत्सस्य महाकाल: कालदेवो भयानक:।
वीरो महेंद्रदेव: स्यादद्भुतो ब्रह्मदैवत:।  ।   
 (६ , ४४  ६ ४५ )
गढ़वाली अनुवाद व व्याख्या  - -
श्रृंगारो दिवता विष्णु मने गेन , हास्यौ दिवता प्रथम।  रौद्रो दिवता आदिदेव  रूद्र , करुण रसो दिवता यम , बीभत्सौ दिवता माहाकाल , भयानकौ दिवता काल , वीर रसौ दिवता इंद्र अर अद्भुतौ दिवता ब्रह्मा मने गेन।   


 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
गढ़वाली काव्य म  रसों दिवता , ; गढ़वाली नाटकों म रसों दिवता ;गढ़वाली गद्य म  रसों दिवता ; गढवाली लोक कथाओं म  रसों दिवता
Gods of Raptures in Garhwali Poetries,  Gods of Raptures   in Garhwali Dramas and Poetries and in miscellaneous  Garhwali  Literature, Gods of Raptures  in Garhwali Poetries,  Gods of Raptures  in Garhwali Proses


Bhishma Kukreti

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पंचम वेद 'नाट्य  शास्त्रम'   उत्तपत्ति  कथा

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय एक  ,  पद/गद्य खंड  १   बिटेन   १२  तक
  (भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद  आचार्य  – भीष्म कुकरेती
-
 पितामह ब्रह्मा अर महेश्वर तैं सिवा लगैक   मि  ब्रह्मा द्वारा  बुल्युं /बतायुं नाट्य शास्त्रौ सिद्धांत  क बारा म बतौलु।I 1   II
                                ऋषियुंन पूछि
पुरण  समौ  छ्वीं  छन , पवित्र आत्मा न जन ऋषि आत्रेय , अर हौर  बि    इन्द्रिय जीत ऋषि   नाट्य शास्त्र ज्ञाता भरत मुनि म गेन।  भरत न जप पुर इ कौर छौ अर चौछड़ि  अपण  नौनुं  से घिर्यूं  छौ ।  ऋषियूंन पूछि  बल हे ब्राह्मण !  वेद सम नाट्य शास्त्र की उतपति कनै  म ह्वे  जु तीमन संकलित कार।  अर यू कैकुण  च , एक कथगा  अंग  (भाग ) छन।  एको विस्तार कख तक छ अर ये  तैं  उपयोग म कनकै लाण, हम तै विस्तार से बथावा।   ।I  २- ५ II   
 ऋषियूं वचन सूणि भरतन नाट्य शाशत बारा म बताण  शुरू कार  ।I  ६  II 
 हे बामण लोको! मन तै स्वच्छ कारो अर ब्रह्मा कृत नाट्य शास्त्रो बाराम  ध्यान से सूणो।  हे बामणों ! जब कलयुग म मनु शासन छौ अर त्रेतायुग म मनोर्वै व्श्य  को राज छौ तो लोक इन्द्रियों भोगी  (व्यसनी ) ह्वे गे  छा , सब स्थलों म इच्छा अर लोभ कु  बोलबाला छौ , लोक ईर्ष्या व क्रोध का सेवक ह्वे गे  छा , अर दुःख तै इ सुख समजणा  छा।  तब जम्बूद्वीप लोकपालों, डिवॉन , दानवों , यक्ष , गन्दर्भों , रागसों, नागों ( मनिख जाति ) से भर्युं  छौ अर यूं  सब्युं  राजा महेंद्र ब्रह्मा म गे,   अर  ,बोली , " हम तैं इन मनोरंजन चयेंद जखमा  श्रव्य  बि हो अर दृश्य बि  हो। " चूंकि  वेदों तै  छुद्रों तैं पढ़ण , गुणन   वर्जित  च तो इन  वेद चयेणु च जु सब वर्णों कुण ग्राह्य हो।   ।I ७- १२   II
-
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natya Shastra  in Garhwali



Bhishma Kukreti

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नाट्यशास्त्र उद्देश्य -अंग , व नाट्य विधा प्रचार

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय १ ,  १३ पद/गद्य    बिटेन  २० तक
(पंचोवेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचम वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद  भाग -७९
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद  आचार्य  – भीष्म कुकरेती
-
दिबतौं तै एवमस्तु /इनि हो बोलिक अर देवराज तैं विदा करी , संपूर्ण तत्ववेता  ब्रह्मा श्री न समाधि म ह्वेक   एकाग्रचित  ह्वेकि चरि वेदों याद करि।  १३ । 
भगवान बर्मान सबि वेदों तै समळदि संकल्प /सौ -सौगंध ले बल मि 'नाट्य ' नामौ  इन पंचों वेदो रचना करणु छौं जु धर्म अर अर्थ प्राप्ति वळ, यशदिँदेर, सीखदिंदेर, अर संग्रह युक्त व अगवाड़ि  साख्यूं  कुण सबि कार्यों कुण मार्ग प्रदर्शक अर सबि शास्त्रों से भरपूर अर सबि शिल्पों तै दिखाण वळ होलु।  १४ , १५ । 
इनमा भगवान बर्मान संकल्प कौरि चरि वेदों तै समळ्द चरि वेदों क अंगों से जनित 'नाट्यवेद' की रचना कार। १६ । 
तब  (नाट्य का संवाद या गद्यपद्यात्मक -प्रथम भाग ) ऋग्वेद से , (नाट्यौ दुसर अंग ) गीत तैं  सामवेद से, (नाट्यौ तिसर अंग ) अभिनय यजुर्वेद से , (नाट्यौ चौथ अंग ) रसों तै अथर्वेद  से ले।  १७ । 
ये प्रकारन सम्पूर्ण तत्व ग्यानी बर्मा श्रीन वेद अर उपवेदों संबद्ध  ये 'नाट्यवेद'  की रचना कार।  १८ ।   
इन मा 'नाट्य वेद ' की  उतपत्ति करणो उपरान्त  बर्मा श्रीन  देवराज इंद्र से  बोलि -म्यार  द्वारा यो नाट्य कथा (काव्यकृति व इतिहास ) निर्मित कर लिए गे।   अब  तुम यांक प्रयोग दिबताओं से करवावो।  १९  ।
जु देवगण कार्य (अभिनय या पाठ खिलण ) म  चतुर, विदग्ध /तप्युं/निपुण हो ,  अर श्रम  तै जींदन अर्थात जौंकि आजीविका बि नाट्य कार्य हो , ऊं  तैं  तुम नाट्यवेद की शिक्षा द्यावो (या ऊं  तैं इ शिक्षण  द्यावो ) । २०   ।

-
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natya Shastra  in Garhwali   


Bhishma Kukreti

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नाट्य शास्त्र प्रयोग बान भरत मुनि  को इ चुनाव   किलै  ह्वे  ?

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय १ , पद /गद्य भाग २१   बिटेन  २५ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - ८०   
भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद  आचार्य  – भीष्म कुकरेती
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बर्मा श्री द्वारा यूं  बथों सूणी देवराज इन्द्रन सिवा लगाई अर बर्मा श्री  कुण ब्वाल   ।२१  । 
हे भगवन ! ये नाट्यवेद तै ग्रहण करणै ,याद करणै , ये विषय म यि कि उ जन प्रश्नों खुज्यांद  जणगरो हूणै , पाठ खिलणै  सग्यात/सक्यात दिबतौं म नी। इलै दिबता  नाट्यर कर्मी लैक नि छन।
किन्तु   वेदों गुह्य रहस्य जणगरा , उत्तम व्रतधारी  जु ऋषिगण   छन वो ये नाट्यवेद तैं धारण , ग्रहण  अर प्रयोग करणै  सामर्थ रखदन।  २२, २३ । 
इन्द्रौ वचन सूणी कमल से उतपन्न बर्मा श्री न मेकुण  (भरत )  बोलि बल हे निपापी प्रिय मुनि !तुम सौ पूत युक्त ह्वे ये नाट्य कर्मो क प्रयोग करता बणो।  ये अनुसार मीन बर्मा श्री आज्ञा पैक मीन येक  (नाट्य कर्म ) प्रयोग अपण सौ नौनूं  तैं पड़ाई।  २४ , २५ ।

-
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई

Bhishma Kukreti

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भरत मुनिs  सौ नौनुं  नाम

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय १ , पद /गद्य भाग  २६   बिटेन  ४०  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   ८१
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी शब वर्जित )
गढ़वळि  म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक   आचार्य  – भीष्म कुकरेती   
-

तब मीन बर्मा श्री आज्ञा व मनिखों चाह ध्यान रखि अपण  सौ नौनूं  तै जो जै लैक  छौ  वै कार्य पर लगै दे।  यूँ सौ नौनुं  नाम छन -शांडिल्य , वात्स्य,कोहल , दत्तिल, जटिल, अम्बस्टक , तण्डु , अग्निशिख, सैंधव, पुलोमा, शाडविल, विपुल,कपिञ्जलि, बादरि, यम , धूम्रायण, जम्बूध्वज,काक जंघ , स्वर्णक , तापस, केदार, शालिकर्ण, दीर्घगात्र, शालिक, कौत्स, तांडायनि , पिंगल , चित्रक, बंधुल, भल्लक, मुष्टिक, सेंधवायन, तैतिल, भार्गव , शुचि, बहुल , अबुध,बुद्धसेन, पाण्डुकर्ण, सुकेरल, ऋजुक,मंडक , शंबर, वज्जुल,मागध , सरल , कर्ता, उग्र, तुषार, पार्षद, गौतम , बदरायण, विशाल, शबल , सुनाम , मेष, कालिय, भ्रमर, पीठमुख,मुनि , नखकुट्ट , अश्मकुट्ट , षटपद , उत्तम , पादुक, उपानह, श्रुति , चाषस्वर, अग्निकुंड, आज्यकुंड, वितंड्य , ताण्ड्य,कर्तराक्ष,हिरण्याक्ष,कुशल , दु:सह, जाल , भयानक , वीभत्स, विचक्षण,पुण्डराक्ष ,पुण्ड्रनास,असित , सित, विद्दुज्जिह्व, महाजिह्व, शालंकायन, श्यामायन, माठर, लोहितांग,संवर्तक,पंचशिख,त्रिशिख, शिख,शंखवर्णमुख, षंड , शंकुकर्ण ,शक्रनेमि, गभस्ति, अंशुमालि, शठ, विद्युत्,शांतजंघच ,रौद्र अर  वीर। २६ -४०  । 

( सौ नाम दीणो  विशेष उद्देश्य च।  कलाकारों सम्मान दुसर कलाकार की नाट्य कर्म  विशेषता नाम से इ  बताण - अनुवादक )
-
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natya Shastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

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कौशिकी वृति (केश/बाळ  सजाण  संबंधी ) आवश्यकता अर योजना

    (अप्सराओं , स्याति , नारद की नियुक्ति )
भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय १ , पद /गद्य भाग ४१   बिटेन  ५१ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -  ८२ 
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न)
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार -   स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
-
गढ़वळि  म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक   आचार्य  – भीष्म कुकरेती   

-
अपण सौ पूतों तै प्रशिक्षण दीणो  उपरांत , हे मुनिजन !  मीन भारती , सात्वती ,अर आरमटी वृतियों पर आश्रित उपक्रमों प्रयोग कार  अर बर्मा श्री समिण ग्यों , सिवा लगाणो परान्त मीन अपण  पूरी तैयार बाराम बताई। कौशिकी वृति भीं अभिनय अर मेरी तैयार सूणी  बर्मा श्रीन  बोली बल अभिनय म तुम यूं वृतियों दगड़  कौशिकी वृति बि ज्वाड़ो अर जु बि  आवश्यक च वो बि  बताओ . तब मीन बोली बल हे भगवन ! कौशिकी वृति जुड़नो हेतु आवश्यक द्रव्य (शिक्षा /ज्ञान ) द्यावो। यीं कौशिकी वृति तैं -जु नृत ,अंगहारों से पूर्ण रस अर भावों का व्यापारवळि  सुनदर वेश भूषा से सुसज्जित तथा श्रृंगार रस से उतपन्न हूण वळि च- तै मीन भगवान शिव नृत  अवशर पर देखि छौ।  पर यीं  कौशिकी वृति म स्त्रीपात्र  का बिन  पाठ नई खिले सक्यांद।  ४१ -४६ ।
तब महातेजस्वी अर सर्व व्यापी बर्मा श्रीन मानसिक संकल्प द्वारा नाट्य प्रयोग अर शोभावर्धन म चतुर अप्सराओं रचना कार अर  अभिनयो मितै देन।  ऊं अप्सराओं नाम छन - मंजुकेशी,सुकेशी,मिश्रकेशी,सुलोचना , सौदामनी,, देकदत्ता,देवसेना,मनोरमा , सुदति , सुंदरी,विदग्धा,विपुला, सुमाला,संतति, सुनंदा,सुमुखी ,मागधी, अर्जुनी,सरला ,केरला,धृति,नंदा,सुपुष्कला , तथा कलमा।  ४७ -५०   । 
स्याति व नारदै  भरत की सौ -सायता बान नियुक्ति -
अर तब बर्माश्रीन  स्वाति मुनि तैं  शिष्यों  सह अवनत  वाद्य यंत्रों  बजाणों अर नारद मुनि व गन्दर्भों तै गाणों न्युयक्त कार।  ये प्रकार कौशिकी वृति व वाद्य -गीत आदि साधन मिलण पर नाट्य  की पूर्ण रूप से , तैयारी, अपण  सौ पूतों  दगड भली भाँती समजिक  वेद अर वेदांगों क्र कारणभूत सृष्टि क स्वामी  पितामह समिण  स्याति अर नारदौ  संग खड़ा हों , तब मीन प्रार्थना कार - भगवन नाट्यौ ग्रहण व सिखण  कार्य पुअर ह्वे गे अब ब्वालो कि अग्वाड़ी  क्या करण ?।  ५० -५१ । 

-
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई 
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


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अभिनेताओं तैं  पुरष्कार की संस्कृति

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय १ , पद /गद्य भाग ५३    बिटेन  ६३  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - ८३
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार -   स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
-
गढ़वळि  म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक   आचार्य  – भीष्म कुकरेती   
-
इन सूणी  बरमा श्रीन बोलि  बल अब पुनः अभिनय कुण भलो समौ  ऐ गे। महेन्द्रौ  ये समय 'ध्वज महोत्स्व' चलणु  च।  त  ये खौळ -म्याळ  म  ये नाट्यवेद को प्रयोग करे जाव।  ५३, ५४ । 
तब वै  ध्वज महोत्सव (असुरों पर सुरों जीत महोत्सव ) म मीन सबसे पैल आशीर्वादात्मक वचन युक्त नांदी पाठ कार। या नांदी वेदों से निर्मित विचित्र अर आठ पदों वळि छे। नांदी पाठौ  उपरान्त मीन डिवॉन द्वारा असुरों पर जीत को  इन अभिनय (नाटक ) खिलण  शुरू कार जखम क्रोधपूर्ण वचन , भगदड़, मारकाट आदि युद्धार्थ का वास्ता आह्वावन युक्त छा।  ये प्रदर्शन तैं देखि बरमा श्री अर देवगण  संतुष्ट ह्वेन अर तब प्रसन्नचित बरमादि देवोंन सबि प्रकारौ (नाटक हेतु ) उपकरण  देनि। ५५ -५८ ।
दिबतौं  द्वारा भरत मुनि तैं  पुरष्कृत उपकरण -
सबसे पैल  प्रसन्न ह्वेक  इन्द्रन धज , बरमा श्रीन कूटलिक (ट्याड़ो -म्याड़ो डंडा जु  विदूषक प्रयोग करदन ), दे।
 वरुणन झारी , सूर्यन छतर , शिवन  सिद्धि, वायुन पंखा,विष्णुन सिंघासन , कुबेरन मुकुट,  भगवती सरस्वतीन प्रेक्षणीय  (नाटकों तै सुणनो क्षमता )  दे।  यांक अतिरिक्त सभा म  जु बि  अन्य दिबता  , गंधर्व ,यज्ञ , रागस, पन्नग छा सब्युं न अति प्रसन्न हूंद म्यार  पुत्रों तैं  अपण अंशों से हूण वळ विभिन्न जाति व गुण  वळ रस , रूप , बल अर क्रिया  अर अनुरूप अलंकरण देनि। ५९ -६३ ।


-
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,

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  भरत को नाटकम बिघ्न बाधा

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय १ , पद /गद्य भाग   ६४  बिटेन ७६  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   ८४
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार -   स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
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गढ़वळि  म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक   आचार्य  – भीष्म कुकरेती    
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अब जब नाटक म दैत्यों  ार दानवों हत्त्या  संबंधी दृश्य मंचन शुरू ह्वे तो जु बिनबुलयां  दैत्य अपण  नेता बीरुपक्ष दगड़  अयां  छा ऊंन बिघ्न  आत्माओं तै  उकसाण  शुरू कर दे अर  वीरुपक्षन बोलि, "  अगनै  आवो ! हम  तै  ये नाट्य मंचन सहन  नि  करन।  ६४, ६५ . ।  .
 तब बिघ्न करण  वळ  आत्मा अर दैत्यों न  अभिनेताओं /नाट्य कर्मियों क  संभाषण, गति अर  यादास्त  तै  पक्षाघात करवाई दे ।  ६६  ।   
 यूं  घाटों /घावों तै देखिक  इंद्र ध्यम म बैठ अर क्या द्याख कि सूत्रधार अर  अभिनेता बेसुध  व जड़ पड्यां  छन जु   बिघ्न करता /बुरी आत्माओं से घिर्यां  छा।  ६७, ६८  । 
 तब इंद्र क्रोध म उठ अर  गहणो  से युक्त ध्वज उठायी अर तब  इन्द्रन दस्यु अर  बिघ्न कराउ  आत्माउं जु उख  पण  छा तो  तै  जरजरा से मार।  ६९ , ७०  । 
जब सब बिघ्नकर्ता आत्मा अर  दैत्य मारे गेन , तब देवताओंन पुळे क (प्रसन्न ) बोलि ," हे भरत ! त्वे तैं  एक दिव्य शस्त्र मिल गए ये से सब नाटक का दुश्मन मारे गेन  तो एक नाम बि  जरजरा नाटक बुले जाल।  ७१ -७३ । 
" अन्य शत्रु , ! जु  बि  अभिनेताओं तै  डराल ऊंक  बि  यी हाल होलु। " " देव गण !  यु जरजरा  शस्त्र अभिनेताओं रक्षा कारल "। ७५- ७६  । 

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 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,

 

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