Author Topic: भरत नाट्य शास्त्र का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Bharata Natya Shast  (Read 13797 times)

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
 
नाट्य मंचन हेतु नाट्यमंडपै  स्थापनाs  अर  रक्षा आवश्यकता

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय १ , पद /गद्य भाग   ७६  बिटेन    ९५   तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   ८५
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार -   स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
-
गढ़वळि  म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक   आचार्य  – भीष्म कुकरेती   
-

तब  इंद्र महोत्सव / ध्वज महोत्सव का अवसर पर  दुबर  नाट्य प्रयोग का अवसर पर वो बिघ्नी पुनः बिधन डाळण  अर  मेरी हत्त्या करणों ध्येय से त्रास दीण मिसे गेन।  तब वूं  दैत्यों कार्य तै बिघ्नकारी जाणी  मि  बरमा श्री म ग्यों।  ७६-७७।
तब मीन ब्रह्मा श्री कुण  बोलि -भगवन ! यी बिघ्नी  नाट्य बिणास  करण पर लग्यां छन।   इलै हे भगवन तुम रक्षा प्रबंध करणै कृपा कारो। ७८ । 
( तब मेरी प्रार्थना सूणि ) बरमा श्रीन  विश्वकर्मा से बोली - हे महामते ! तुम सबि लक्षणों से युक्त एक नाट्यशाला निर्माण कारो। तब विश्वकर्मा न थुड़ा समौ म यि शुभ , महाविस्तृत अच्छा लक्षण वळ नाट्यग्रिग रची अर वो बरमा श्री क सभा म उपस्थित ह्वे हथ जोड़ि  बुलण लगिन - हे देव ! नाट्य ग्रह तैयार च , तुम वै  तै देखि ल्यावो। ७९ -८१ । 
तब बरमा श्री , इंद्र अर  हौर  सबि देव गण नाट्यमंडप दिखणो शीघ्र से शीघ्र उना  ऐना।   तब तै नवा नाट्यगृह देखि बरमा  श्री  डिवॉन से बुलण लगिन - तुम सब तै अपण अपण  अंशों से ये नाट्यमंडपौ  रक्छा करण चयेंद। ८२, ८३ । 
अर  नाट्यमंडपौ रक्छा  बान  जूनि (चन्द्रमा ) विशेष रूप से नियुक्त करे गे।  चर्री दिशाओं रक्छा कुण वीं दिशा का लोकपालों  अर विदिशाओं (कोण दिशाओं ) रक्छा कुण मरुद्गणुं  तै नियुक्र कार।  नेपथ्य भूमि रक्षा कुण मित्र अर शून्य /खाली स्थान  रक्छा कुण  वरुण नियुक्त कार । वेदिका (रंगभूमि ) रक्षा कुण अग्नि,अर  वाद्य यंत्रों रक्षा कुण सबि दिबता नियुक्त करे  गेन।  स्तम्भों निकट का वास्ता  सबि चतुर्वर्ण (ब्रह्मण , क्षत्रिय , वैश्य व छुद्र ) तै विशेष रूप से नियुक्त करे गे। स्तम्भों मध्यवर्ती भागों  रक्षा बान आदित्य अर  रूद्र देव स्थापित ह्वेन।  बैठकों रक्छा कुण भूतगण , मथ्या अटारी कुण अप्सरा अर शेष स्थलों की रक्छा कुण यक्षणियूं , अर  भ्यूंतल  (floor ) की रक्छा कुण  सागर तै नियुक्ति कार।   नाट्यसालों रक्छा कुण कृतांत काल अर पैथरा  द्वारों कुण अनंत अर  वासुकि की नियुनाट्य प्रारम्भ म रंगमंच मध्य क्ति करे गे।  देळी  पर यमदण्ड की नियुक्ति करे गे अर वांको ंथी शूल स्थापित करे गे।  नियति अर मृत्यु द्वी देवता द्वारपाल का रूप म नियुक्त ह्वेन। रंगपीठ रक्षार्थ महेंद्र  अफु स्थित ह्वेन।    मताचरणी म दैत्य नाशी विद्युतै  स्थापना ह्वे , अर मताचरणी  क  चर्री स्तम्भों  की रक्षार्थ भूत , यक्ष , पिशाच अर गुह्यकों नियुक्ति ह्वे।  जर्जरम दैत्य नाशी बज्र स्थापित करे गे अर वैक खुट्टों म अपरिमित शक्तिसंपन देवगण  की स्थापना ह्वे। जर्जरै  पैलो शीर्षम बरमा की , दुसरम शिव की , तिसरम विष्णु की , चौथ म स्कंध अर पंचों म शेष ,  वासुकि अर तक्षक  जन महासर्प स्थापित करे गेन।  ये प्रकार विघ्न नाशौ  बान विभिन्न भागों म देवगण की स्थापना करे गे. ८४-९४ । 
रंगमनवः का मध्यम स्वयं बरमा स्थित ह्वेन।  इलै नाट्य शुरुवात म रंगमंच मध्य (बरमा  की पूजा बान ) पुष्प चढ़ाये जांदन।  ९५ । 
-
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

नाटकों लक्षण , लाभ
भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय १ , पद /गद्य भाग   ९८  बिटेन  ११०  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   ८६
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार -   स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
-
गढ़वळि  म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक   आचार्य  – भीष्म कुकरेती   
-
इथगाम  शरीर मध्य देवोंन बह्मा श्री से बोलि - तुम तै विघ्न तै समझायी बुझैक शांत करण  चयेंद।  ये शाम  विधि बाद दाम (प्रलोभन आदि )  अपनाये जांद ।  अर यदि यि  विधि असफल होवन तो दंड विधि अपनाये जांद। ९८, ९९। 
दिबतैं सलाह सूणि  ब्रह्मा श्रीन  दुष्ट आत्मा बुलैन अर पूछ बल -तुम नाट्य मंचन तै नष्ट किलै करणा  छा ? १००। 
ब्रह्मा बथ सूणि विरिपक्षा, दैत्य अर विध्न दगड़ी बुलण मिसे गेन - तुमन जु नाट्य कला  देवों  क बुलण  पर पैलो  बार परिचय कराई वे नाट्य कलान हम तै असहज स्थिति म लै दे।  अर यु तुमन देवों  बान कार जबकि तुम पितामह छा  डिवॉन अर हमर बि।  १०१ , १०३
विरिपक्ष  द्वारा यी शब्द बुलण पर ब्रह्मा श्रीन बोली - भौत  ह्वे गे रोष , हे दैत्यों ! अपण परिवेदना /शिकैत  छ्वाड़ो, यु नाट्यवेद देवों कुण  ही ना भाग्यशाली होलु अपितु दैत्यों कुण बि उनी होलु।  १०४, १०५।
ये मा (नाट्य ) अकेला देवों  या दैत्यों विषय नी अपितु तीन संस्कारों अभिव्यक्ति च।  १०६।
ये मा  कुछ म  कर्तव्य वोध च , कुछम खेल छन , कबि धन , कबि शान्ति छ्वीं , तो कबि हौंस /खौंकळ्याट , कबि   द्वन्द ,-युद्ध , कबि प्यार तो कबि हत्त्या दिखाए जांद।  १०७।
यु (नाट्यवेद ) कर्तव्य वोध सिखांदु , जु प्रेम करण  चांदन प्रेम (विधि ) सिखांद , अर वूंको विरोध /दंड दीणो प्रवाधान बि सिखांद  जो  असत्य वाचन /विधि से अनुशं विरोधी या सत्य विरोधी छन।  कायरों तै शक्ति दिंदेर , वीरों तै उर्जा देंदेर च, हीनबुद्धि वलों तै आत्म प्रकाशितकरद, अर बुद्धिमता लांदो/सिखांदो ।  १०८ , १०९। 
यु राजा तै विविधता दीन्दो, जु दुखी  छन ऊँ तैं  मानसिक स्थिरता दींदो।  जौ तै धन चयेणु  च , जौंक मन उच्चाट  हुयुं  च उख  शान्ति दींदो।  ११०। 


-   
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1


नाटक परिभाषा व उद्देश्य

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय १ , पद /गद्य भाग  १११  बिटेन   १२१ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - ८७   
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार -   स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
-
गढ़वळि  म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक   आचार्य  – भीष्म कुकरेती    
-

मीन जु नाटक उरयाई  वु लोकुं  क्रिया अर चरित्रौ  प्रतिरूप /नकल च, जु भावों से भरपूर च , अर जु  भिन्न भिन्न स्थितियां  बि दिखांद।  यु  भल मनिखों  बुरा अर  तटस्थ मनिखों संबंधित च  अर सबि  लोकुं  तै साहस ,आनंद , प्रसन्नता अर मंत्रणा दीण वळ च।  १११ , ११२। 
इलै नाटक  सब्युं  कुण   इखमा क्रियाओं से, भावों से युक्त व  बोधप्रद होलु  , अर ये से भाव संचार होला। ११३। 
 यु (नाटक)  निर्भाग्युं तै शान्ति देलु  जु दुःखी  अर  शोकाकुल छन , अर धर्म राह पर लिजंदेर  व प्रसिद्धि दिंदेर , लम्बो जीवन, बुद्धि  दिँदेर, अन्य सकारात्मक अर शिक्षा दायक होलु।  ११४, ११५। 
क्वी इन  प्रसिद्ध कथ्य (कै पणि  बोल ) नी , क्वी इन शिक्षा नी , क्वी इन कला -कौंळ  नी , युक्ति , कार्य नी  जु  नाटक म नि पाए जावो।  ११६। 
इलै , मीन नाटक इन बणाई जैमा  भिन्न भिन्न ज्ञान  , भिन्न कला , अर  विभिन्न कर्म  समाइ जांदन, प्रयोग हूंदन।  इलै  हे दैत्य ! तुम तै दिबतौं प्रति क्रोध की आवश्यकता नी , नाटक म सप्तद्वीप अर संसार की प्रतिकृति होलु , नकल होलु।  ११७, ११८। 
वेद या पुराणों /इतहासों से कथा  लिए गेन ऊं  तैं अलंकृत करे  गे जां  से वो आनंद दे सौकन।  ११९। 
नाटक,  ये जग म  देवों , दैत्यों व मनिखों  अद्भुत कार्यों प्रतिरुपीकरण /अनुकरण /नकल,  कुण  बुले जांद। १२०। 
 अर  जखम जब मानवीय प्रकृति  की  प्रसन्नता या दुःख   भावों , संकेतो या अन्य क्रियाओं (जन शब्द , झुल्ला , गहना  आदि ) से  दिखाए जावन /प्रतिनिधित्व करे जाव तो वै  तै नाटक बुल्दन।१२१।   

-
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

नाट्य मंच  देव- पूजा  विधान

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय १ , पद /गद्य भाग  १२२   बिटेन  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   ८८
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार -   स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
-
गढ़वळि  म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक   आचार्य  – भीष्म कुकरेती    
-
ब्राह्मणन  सबि दिबतौं कुण  बोलि," नाट्यगृह म पूजा करण चयेंद (गजना ), अर मंत्र व  भोजन /पौधा अर्पित करण चयेंद व होम जप करण चयेंद।  अर्पणों कु  भोज्य पदार्थ  ठोस व कोमल (भोज्य व भक्ष्य ) हूण  चयेंद।  १२२-१२३। 
तबि ये नाट्यवेद तै जग म प्रसिद्धि /प्रशंसा मीलली।  नाट्य मंचन बिन  नाट्य मंच  देव पूजा शुरू नि  हूण चयेंद।  १२४। 
जु बिन मंच देव पूजा का  मंचन  करदो वै  तै समुचित फल नि  मिल्दो , वैक ज्ञान निष्फल ह्वे जांद अर  आगवाड़ी जन्म म जंतु को निम्न  योनि  (त्रिजया   मिल्द।  १२५।
इलै नाट्य निर्माता तैं सबसे पािल मंच देव की पूजा करण चयेंद।, या पूजा वेदों म अर्पण /बलि जन  इ पुण्यकारी च।  १२६।
जु  सूत्रधार अर अधपति (financer ) यीं पूजा नि करदन वूं  तैं  हानि हूंद।  १२७।
जु  नाट्य मंच देव पूजा तै नियमानुसार पुअर करदन वूं तैं  पुण्यकारी धन मिल्द अर  स्वर्ग प्राप्ति हूंद। १२८। 
तब  ब्राह्मण अर  अन्य  दिबतौंन मेकुण  बोली , " िनी हो , मंच म पूजा  संस्कार  /कर्मकांड पूरा कारो " .। १२९।   
-
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
         नाट्यगृह विवरण

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय २  , पद /गद्य भाग   बिटेन  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -  ८९ 
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार -   स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
-
गढ़वळि  म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक   आचार्य  – भीष्म कुकरेती   
-
ब्राह्मण का यी बचन सुणनो उपरांत ऋष्यूंन  पूछ , "  हे पुण्यात्मा!  हम  तै मंच पूजा कर्मकाण्डौ विषयम बि  बथाओ। "  अर भविष्य मनिख कनो  नाट्य मंच/नाट्य गृहम पूजा कर सकदन अर पूजा विधानौ  परिषद विवरण द्यावो" १-२
"चूँकि नाटकुं   मंचन  नाट्यग्रहों' म हून्द तो यांक पूरो विवरण द्यावो "  I ३।
           तीन प्रकारा नाट्यगृह
यूं शब्दोंसुणनो उपरांत  भरतन बोलि, " हे ऋषिगण ! नाट्यगृह विवरण अर  ततसंबन्धित पूजा संबंध म  सूणो" । ४।
 "घरम अर  बगीचों  निर्माण म  दिबतौं  थरपण   जनि   हूंद , किन्तु  रचनाधर्मी मनिख  तै रचना करद  दैं  शास्त्रनुसार नियमों पालन हूणी  चयेंद।  अब नाट्यगृह निर्माण अर निर्माण स्थल म पूजा विधान का संबंध म सूणो" .I ५ , ६। 
"चतुर विश्वकर्मा द्वारा  ये शास्त्र म तीन प्रकारा नाट्यगृह   रचित विवरण च।    उ छन - विक्रिष्ट, चतुरस अर त्र्यस्र /व्य स्र नाट्यगृह"। ७-८। 
    तीन प्रकारा नाट्यगृह आकार
यूंक आकार परिवर्तन वळ छन . यी लम्बा (ज्येष्ठा ), मध्यम , अर छुट (अवर ), लम्बाई बि  निश्चित च (हाथ अर डंड  इकाई ) , अर  चौड़ाई बी निश्चित च (हाथ अर दंड   इकाई ) लम्बा /ज्येष्ठ नाट्यगृह दिबतौं  कुण, मध्य राजाौं  कुण अर अन्य लोगुं कुण  छूट नाट्यगृह  निश्चित हूंदन।  ८ -११। 


   


-

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
        नाट्य गृह नाप इकाई व  उपयुक्त रंगमंच

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय २  , पद /गद्य भाग   १२ बिटेन  २३ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -  ९० 
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार -   स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
-
गढ़वळि  म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक   आचार्य  – भीष्म कुकरेती   
-
अब यूं   विश्वकर्मा द्वारा  सम्पादित   यूं  सब नाट्यगृहोंनापणो विषयम सूणो।  नापणो इकाई छन - अनु , राजा,बाला , लिक्स , यूका  , युवा, अंगुल, हाथ , डंडा।
तालिका -
८ अनु = १ राजा
८ राजा = १ बाला
८ बाला = १ लिक्स
८ लिक्स = १ यूका
८ यूका = १ युवा
८ युवा = १ अंगुल
८ अंगुल = १ हाथ
८ हाथ = १ डंडा
अब नापणो  तालिका उपरान्त मि भिन्न भिन्न नाट्यगृहों  विवरण बतौल।  १२- १६। 
विकृष्ठ / आयताकार (नाट्यगृह, रंगमंच  ) का आकार  ६४ हाथ लम्बो अर ३२ हाथ चौड़ हूण  चयेंद।  १७। 
 अति लम्बा रंगमंच से असुविधा -
कैतै  बि   मथि वर्णित से  लम्बा  रंगमंच /नाट्यगृह  निर्माण नि करण  चयेंद।   लम्बा/बड़ा नाट्यगृह परिपूर्ण भाव बाहक या अभिव्यक्ति बाहक नि  हूंदन।  लम्बा नाट्यगृहों म जु  बि बुले जाल  तो श्रुति मधुरता ही समाप्त नि  होलु अपितु  श्रुति वाधा बि  होली (जु  दिखंदेर  मंच से बिंडी  दूर होला ) ।  १८ - १९। 
(यांक अतिरिक्त ), जब रंगमंच बड़ो हो तो  नाट्यकर्मी क मुख (जखम ) रस अर  भाव अभिव्यक्ति दिखेंद , नि  दिखयाली।  २०। 
इलै  मध्यम आकारौ  नाट्यगृह इ न्यायोचित आकर च जां से बल नाटक म गीत , संगीत हो तो भल प्रकारन  सरलता से सुणै  सक्यावन।  २१। 
  देव आदि  की बगीचा घरों म थरपण / रचना ऊंकी  इच्छा पर निर्भर हूंदी।  जबकि मनिखों तैं   यूं  तै थरपण /रचण म  सावधानी पूर्वक परिश्रम  करण चयेंद , यूंक  थरपणम मनिखों तै द्वेष /शत्रुता /पर्तिस्पर्धा नि  करण  चयेंद।  अब मि  मनिखों कुण उपयुक्त प्रक्षागृह /रंगमंच /नाट्य गृह पर   चर्चा करुल।  २२,-२३।   
-
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natya Shastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

नाट्यगृह भूमि नापणो   विधान व सावधानी

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय २  , पद /गद्य भाग २४   बिटेन  ३५ तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -   ९१ 
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार -   स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
-
गढ़वळि  म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक   आचार्य  – भीष्म कुकरेती   
-
    नाटकगृह हेतु योग्य स्थल चुनौ -
नाट्यगृह निर्माता तैं सबसे पैलि  भूमि स्थलौ ( plot  of land ) निरीक्षण  करण  चयेंद अर तब  भवन भूमि हेतु नापणो कार्य करण चयेंद। २४। 
भवन निर्माता   तै  नाट्यगृह इन भूमि पर चिणन चयेंद जु सैण हो , दृढ भूमि ( चट्टानी पत्थर मथि हो (  )   हो  अर माटो  सफेद या काळो हो।  २५। 
पैल स्वच्छ करे जावो ,  फिर हळेण  चयेंद , फिर हड्डी , पत्थर , कांड,  खौड़ -कत्यार , घास अलग करण चयेंद। २६। 
जब भूमि स्वच्छ ह्वे जावो तब भवन का वास्ता नाप लीण  चयेंद।  २७ अ । 
 पवित्र पुष्य राशि म वै  तै नापणो सफेद डुडड़  जु  मूँज या कपासौ  धागो  या कै  वृक्षौ बक्कल से बण्यू  हो तै पसारण  चयेंद। २७ , २८। 
चतुर मनिखुं  तै इन डुडड़ो चुनौ करण  चयेंद  जु टुटण्या नि  हो।  यदि डुडड़  द्वी भागों टूट तो अवश्य इ संरक्ष की मृत्यु ह्वेलि।  जु डुडड़  तीन भागों म टूटो तो  भूमिम राजनैतिक उपद्रव होलु, जु डुडड़  चार भागों म टूटो  तो नाट्य क्रिया संरक्षक कु नाश हूंदो , जु डुडड़  हथों  से चूक हो तो कुछ ना कुछ हानि ह्वेलि।  इलै  भूमि नाप क डुडड़  निटुटण्या हो अर   नपद  दै अति  सावधानी धरे  जाव।  यांको  अतिरिक्त नपद  दै  बि  सावधानी हूण  चयेंद।  २८- ३१। 
अर तब ब्राह्मण का बतायुं दिन , तिथि , बार म शुभ मुहर्त  ( ब्राह्मण तैं दक्षिणा अवश्य ) म   भूमि व डुडड़  पर पवित्र जल छिड़काव कु  उपरान्त पसारण  चयेंद। ३२ - ३ ३ ।   
नाट्य गृह  भूमि स्थलौ  उपरोक्त  पूजा  पैथर वै तै  ६४  हाथ लम्बो अर 32 हाथ चौड़ाई म भूमि नपण  चएंद।  जु भूमि वैक  पैंथर हो वा बि  द्वी  सम भागों म नपे जाण  चयेंद।    युं माडे वे आधा भाग तैं पुनः आधा भागम बंटण  चयेंद।  एक आधा भागम मंच निर्माण होलु व एक आधा भागम  विश्राम कोष्ठ या सिंगार गृह/नेपथ्य  आदि कुण  होलु।  ३३  -३५
-   
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natya Shastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

नाट्यगृह भवन की पौ धरनों विधान

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय २  , पद /गद्य भाग   ३६ बिटेन  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग - ९२   
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार -   स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
-
गढ़वळि म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक   आचार्य  – भीष्म कुकरेती   
-

  नाट्यगृह पौ धरण म कर्मकांड /पूजा विधान -
नियमानुसार भूमि आबंटन   का उपरान्त वै तै  नाट्यगृहौ पौ /नींव धरण चयेंद।  अर ये समय /पौ धरणो समय शंख दुंदभि , मृदंग , पण्व आदि वाद्य बजण  चयेंदन। ३५-३७। 
अर ये कार्यस्थल से अवांछित व्यक्ति जन विधर्मी , काळ -लाल चोगा पैर्यां लोक , रोगी व्यक्तियों तै  पूजा स्थल से भैर  कर दीण  चयेंद। ३७-३८। 
राति म सबि दस दिशाओं म आहुति /भेंट   दीण चयेंद।  आहुति। भेंट म मिठो सुगंधी /इत्र , पुष्प , अर नाना प्रकार का नैवेद्यम हूण  चएंदन।  ३८-३९। 
चार दिशाओं पूर्व , पश्चिम , दक्षिण अर   उत्तर  म भेंट का खाद्य पदार्थ /नैवैद्य  क्रमशः सफेद , नीलो , पीलो अर लाल रंग का हूण  चएंदन।  दसों दिशाओं म नैवैद्य व आहुति दींद  दैं मंत्रोचारण हूण  चएंदन।  ३९-४१। 
पौ धरद  दैं  ब्राह्मणों तैं घी , खीर ार राजा तै मधुपाक, अर स्वामी तै शीरा म मिलायुं भात  भेंट करण  चयेंद। ४१-४२। 
पौ  पुण्य तिथि कुण मळ  नक्षत्र छाया म   कुण  धरण  चयेंद। ४१-४२। 
 .
-
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
नाट्य गृह स्तम्भ उठाणो  /निर्माणो   नियम

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय २  , पद /गद्य भाग  ४४   बिटेन  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -  ९३
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार -   स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
-     
गढ़वळि म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक   आचार्य  – भीष्म कुकरेती   
-
नाट्य गृहै   दिवाल, स्तम्भ   चिणनो  धरणौ विधान -
पौ धरणो उपरांत , दीवाल  चिणन चयेंद अर तब जब पूरो ह्वे जावन तब  स्तम्भ (गांज ) उठाण  चएंदन।  स्तम्भ /गांज उठाणों  कार्य  रोहिणी या श्रावणी नक्षत्र म हूण  चयेंद ।  ४३-४५। 
 नाट्य कला  स्वामी तै तीन राति अर तीन  दिन व्रत रखिक  स्तम्भ  तै व्यणसिरिक म  शुभ क्षणम निर्माण करण  चयेंद।  ४५-४६। 
ब्राह्मण स्तम्भ की  पूजा  शुरुवात म    घी व सरसो बीज से सिद्ध सफेद वस्तु से करण  चयेंद अर  ब्रह्मणों तै खीर बंटे  जाण  चयेंद । क्षत्रिय स्तम्भ की पूजा लाल रंग का वस्तुओं   जन लाल कपड़ा  लाल माला , लेप से हूण  चयेंद अर  गुड़ म चौंळ पकायुं द्विज तै  दीण चयेंद।  वैश्य स्तम्भ उत्तर पश्चिम  दिशा म बैठाण  चयेंद अर पूजा म पीलो रंग वस्तु से हूण  चयेंद अर  ब्राह्मण तै चौंळ  अर  गुड़ दीण  चयेंद।  पूर्व उत्तर दिशा म शूद्र स्तम्भ उठाण म नीलो रंग प्रयोग हूण  चयेंद अर द्विज तै क्रसर्ड  दीण  चयेंद। ४६-५०। 
ब्राह्मण स्तम्भ सफेद माला अर लेप का साथ कर्ण आभूषण क सोना स्तम्भ जड़ म डाळण  चयेंद तो  चांदी ,  लोहा अर ताम्बा  क्रमशः क्षत्रिय , वैश्य अर  शूद्र स्तम्भ क जड़म  धोळण  चयेंद।  यांक अतिरिक्त सभी स्तम्भों म  सोना धोळण  चयेंद।  ५०-५३। 
स्तम्भों म माला , आम पत्तियां आदि  थरपण /  अर्पण/प्रदर्शन  का पश्चात इन बुले जये  जाण  चयेंद ," सब ठीक होलु " " यु    एक शुभ दिन हो"।  ५३-५४। 
ब्राह्मण तै भेंट जन गहना , वस्त्र , गौ  दीणो पश्चात स्तम्भ  इन उठाण  चएंदन कि  ना तो वो खपचावन ना ही घूमन ।  स्तम्भ उठांद  दे बुरी आत्मा  आणो  कुछ  बुरु हूंद जन कि स्तम्भ  खसकण  से  सूखा पड़न , स्तम्भ  गोळ घुमण  से मृत्यु अंदेशा ,
 स्तम्भ हलण  से शत्रु द्वारा आक्रमण या हानि अंदेसा हूंद।  अतः  स्तम्भ उठांद/निर्माण   दैं  तौं सबि  बत्थों  ध्यान रखण  आवश्यक च।  ५४-५७। 
नाट्य कला स्वामी तैं ब्राह्मण स्तम्भ का वास्ता गौ दान /दक्षिणा , अन्य स्तम्भों वास्ता भोजन दक्षिणा दिए जाण  चयेंद।  भोजन तै मंत्रों से पवित्र करण चयेंद , तब हि  स्वामी तै लूण वळ भोजन करण चयेंद।  ५८-६०।
जब सब मथ्याक  नियम को प्रयोग करे जाव तब इ स्तम्भ उठाये जावन अर उठांद  /निर्माण दैं  उपयुक्त मंत्रोचार करे जाण चयेंद अर  बुले जाण  चयेंद " जन मेरु अर  हिमालय शक्तिशाली पर्वत छन तनि  तू बि शक्तिशाली अर अति स्थिर ह्वेका राजा कुण  जीत लैली।  " तब ही विशेषज्ञ तै स्तम्भ , द्वार अर  दिवार , आराम गृह आदि नियमानुसार निर्माण करण  चयेंद।  ६०-६३। 

-   
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1


मत्तवारणी अर रंगपीठ चिणनो   विधान

भरत नाट्य शाश्त्र  अध्याय २  , पद /गद्य भाग  ६७   बिटेन  तक
(पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्रौ प्रथम गढवाली अनुवाद)
  पंचों वेद भरत नाट्य शास्त्र गढवाली अनुवाद भाग -  ९४ 
s = आधा अ
( ईरानी , इराकी , अरबी  शब्द  वर्जना प्रयत्न )
 पैलो आधुनिक गढवाली नाटकौ लिखवार -   स्व भवानी दत्त थपलियाल तैं समर्पित
-
गढ़वळि म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक   आचार्य  – भीष्म कुकरेती   
-
मत्तवारणी -
रंगपीठौ द्वी  ओर  रंगपीठs लम्बै समान चार खम्बों से युक्त मत्तवारणी की रचना करे जाव।  यीं मत्तवारणी उंचै डेढ़ हाथ रखे जाय अर यूं मत्तवारण्यूं  समान इ रंगपीठक ऊंचै  हूण  चयेंद।  ६७-६९। 
मत्तवारणी क निर्माण (मुहूर्त ) क समय भूतों तै ईष्ट पदार्थों बळि अर अनेक वर्णों पुष्प, माळा, वस्त्र , अनेकापरकारौ धूप , सुगंधित पदार्थ, अर्पण करण चयेंद।  ६९-७० । 
ब्योंतदार ओडुं /  शिल्प्युं  तै खम्बों आधार म लोखर रखण  चयेंद, अर बामणों  तै खिचड़ी खलाण  चयेंद। ७१ । 
यूं  नियमों  अनुसार भौं भौं दिबतौं  तैं वस्त्रादि अर्पण करद  मत्तवारणी निर्माण करण चयेंद। ७२। 
रंगपीठ -
यांको पश्चात  वास्तु विधानुसार रंगपीठ चिणे  जाण  चयेंद।  ये रंगपीठ तै 'षडदारुक ' (द्वी खड़ , द्वी पड़  अर  द्वी तिरछा डंडा /स्तम्भ युक्त  संरचना )  युक्त निर्माण हूण  चयेंद।  निकटवर्ती नेपथ्यगृहों म  द्वी द्वार  हूण  चयेंद। ७३। 
ये रंगशीर्ष तै भरणो  कुण हळजोत  का माटो ढिंड, घास , पत्थर रहित काळु माटु  डळण  चयेंद।  हळपर सफेद बळ्द जुतण चएंदन अर हळ्या  तैं   विकलांग नि   हूण चयेंद।  यु माटो शक्तिशाली मनिखों  अर  जु  विकलांग नि  होवन द्वारा लिजाये जाण चयेंद।  ये अनुसार ध्यान पूर्वक रंगपीठs  चिणे  जाण  चयेंद।  ७४-७७। 
यु रंगशीर्ष ना तो कछुवा पीठ (बीच म उच्चो )  जन ना ही माछौ पीठ तरां (बीच म लम्बो उभार ) बणन चयेंद।  रंगशीर्ष  शुद्ध दर्पण जन ही  सैण  / समतल हूण  चयेंद।  ७७-७८। 
ब्यूंतदार ओडुं  द्वारा ये पुटुक   रत्न बि धरण  चयेंद।  पूर्व म हीरा, दक्खिनम लहसुनिया, पच्छिम म स्फटिक त उत्तर म मूंगा धरण  चएंदन।  जब रंगशीर्ष चिणे  जाव तब इ  काष्ठ/दारु  कार्य शुरू करण चएंदन।  ७८- ८०। 

-
 भरत  नाट्य शास्त्र अनुवाद  , व्याख्या सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती मुम्बई
भरत नाट्य  शास्त्रौ  शेष  भाग अग्वाड़ी  अध्यायों मा   
  भरत नाट्य शास्त्र का प्रथम गढ़वाली अनुवाद , पहली बार गढ़वाली में भरत नाट्य शास्त्र का वास्तविक अनुवाद , First Time Translation of   Bharata Natyashastra  in Garhwali  , प्रथम बार  जसपुर (द्वारीखाल ब्लॉक )  के कुकरेती द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का गढ़वाली अनुवाद   , डवोली (डबरालः यूं ) के भांजे द्वारा  भरत नाट्य शास्त्र का अनुवाद ,


 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22