महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत
चरक संहितौ सर्वप्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम
अनुवाद शीर्षक - सूत्रस्थानम प्रथम अध्याय - १ -१५
अनुवाद भाग - २
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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अब इख बिटेन ' दीर्घ जीवतीय ' (लम्बो जीवन ) नामौ अध्यायौ व्याख्यान करदां। ( च स. सू . स्थ 1 , 1 )
इन भगवान आत्रेय न बोली छौ। ( च स. सू. स्थ 1, 2 )
दीर्घ काल तक जीणै उग्र इच्छाधारी तपस्वी भारद्वाज मुनि देवराज इंद्र तै योग्य जाणि ऊमा गेन ( च स. सू. स्था. 1, 3 )
पैली पैल ब्रह्मान आयुर्वेदक उपदेश दे अर वै उपदेश तै प्रजापति दक्षन पूर ढंग से ग्रहण कार। दक्ष से द्वी अश्विनीकुमारोंन अर अश्विनी कुमारों से इन्द्रन ग्रहण कार। इलैइ भरद्वाज मुनि इंद्रम ऐना । ( च स. सू. स्थ 1 , 4 -5)
जब तप , उपवास , ब्रह्मचर्य, अध्ययन, व्रत अर आयु यूंमा बिघ्नकरंदेर रोग उतपन्न ह्वे गेन; तब प्राणियों पर दया करी पुण्यात्मा महर्षिगण पवित्र हिमालय क पार्श्व म कट्ठा ह्वेन ( च स. सू. स्थ 1 , 6, 7 )
अंगिरा,जमदग्नि,वसिष्ठ,कश्यप,भृगु, आत्रेय,गौतम ,सांख्य, पुलस्त्य, नारद,असित, अगस्त्य,वामदेव,मार्कण्डेय,आश्वलायन,पारीक्षि ,भिक्षु, आत्रेय, भारद्वाज, कपिंजल, विश्वमित्र,आश्वरध्य, भार्गव, च्यवन,अभिजित, गार्ग्य,शांडिल्य, कौण्डिन्य, वार्क्षि ,देवल, गलब, सांकृत्य, वैजवपि ,कुशिक,बादरायण ,वडिश ,शरलोमा,काप्य, कात्यायन, कांकायन,कैकशेय ,धौम्य,मरीचि, काश्यप,शर्कराक्ष, हिरणाक्ष ,लोकाक्ष, पैंगी, शौनक,शाकुनेय, मैत्रेय, गैमतायनि, वैखानस, वालखिल्प, अर हौरि ब्रह्मज्ञान,यम , नियम ,अर तप से चमक्यां ,आहुति से उज्व्वल हुयीं अग्नि स्वरूप तेजस्वी, महर्षि लोग, सुख से बिराजिक यीं पुण्यशाली कथा तै इन बुलण बिसे गेन। ( च स. सू. स्थ 1, 8 -15
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
चरक संहिता कु एकमात्र विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद ; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
First ever authentic Garhwali Translation of Charka Samhita, Translation of Charka Samhita by Agnivesh and Dridhbal , First Ever Garhwali Translation of Charka Samhita