Author Topic: चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita  (Read 18988 times)

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

सोळा मूलनी  अर  यूंक औषधियों म प्रयोग

Root Based herbs described in Charak Samhita
चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पैलो अध्याय  बिटेन ७७ -८०   तक
  अनुवाद भाग -   १०
अनुवादक - भीष्म कुकरेती

  (अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
-
हस्तिदन्ति (रतनपुरुष ) , हैमवती (श्वेत बच ), श्यामा (त्रिवृत ), त्रिवृत् (लला जड़ )  , अधोगुडा (विधारा ), श्पटला (शिकाकाई ),  श्वेतनामा , प्रत्यक  श्रेणी (जमलगोटा ), गवाक्षी (इन्द्रायण ),  ज्योतिष्मती , बिम्बी, शणपुष्पी , विपाणिका , अजगन्धा , द्रवन्ती, क्षीरणी  सोळा  मूलनि छन। ७७ , ७८
मथ्या सोळा  मूलनियों  औषधियों  मदे शंखपुष्पी ,  बिम्बी ,अर  हेमवती , यी तीन उकै  (वमन ) म प्रयोग करण  चयेंद।  श्वेत अपराजिता , ज्योतिष्मती यी द्वी शिरोविरेचन म ,  अर  शेष अग्यारा मूल विरेचन म प्रयोग लीण  चयेंद।  सब कार्यों म यी प्रयोग हूण  चएंदन।  ये प्रकार से यूं  सोळा 'मुलवळि '  वनस्पतियों नाम  अर  कर्मों विवरण बोली दे।  अब फलनि वनस्पतियों वर्णन सूणो।  ७९ , ८० 

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

 फलनि पादप अर  ऊंक  कर्म

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पैलो अध्याय ८१  बिटेन  - ८५ तक
  अनुवाद भाग -   ११
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
-
 फलनी  पादप -
शंखनी , बिडंग , त्रपुष (ककड़ी , खीरा ), मदन , आनूप   क्लीतक, सतलज क्लीतक ,(मुलैठी ), धमर्गव ( बड़ी  , तोरई ), इक्ष्वाकु, (कड़ी तोरई ), जीमूत , कृतवेधन (तोरई )  , प्रकीर्या व उदकीर्य्या , प्रत्यक पुष्पा , अभया , अन्तःकोटरपुष्पी , शारदा हस्तपर्णी , कम्पिल्ल्क, आरग्व ध , कुटज  ये १९ फलनि वनस्पतियां  छन।  ८१ -८३
फलनि पादपों कर्म -
धामार्गव , इक्ष्वाकु , जामूत , अमलतास , मैनफल , कुड़े फल, खीरा , अर  शरद हस्तपर्णी  यी  आठ शरद ऋतू क फल , उकाई/उल्टी , आस्थापन्न म अर  निरुह  करण   चयेंद।
 आपामार्गौ  फल नस्य कर्मों म प्रयोग हूंद।  अर  शेष फलनियुं  प्रयोग विरेचन कार्यों म करण  चयेंद।  ये प्रकार से १९  फलनि अर  यूंक  कर्म क बड़ा म बुले  गे  . ८४- ८५ 
 

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

स्नेह /चर्बी  , लूण   प्रकार अर  यूंक  कर्म

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पैलो अध्याय ,  ८६ बिटेन  - ९२  तक
  अनुवाद भाग -   १२
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
-
 
 चार स्नेह -
घी , तेल , वसा /चर्बी, अर  मजा  यी चार स्नेह  छन।  ८६
यूं स्नेहों कर्म -
यी चर्री  स्नेहों  सरैल म मुख मार्ग से दीण, मालिश करण , गुदा या उप स्थानों म दीण  अर  नाक से दीण  पर  प्रयोग हूंदन।  यी स्नेह सरैल तै  कोमल  करदन, सरैल तैं  जीवन दींदन , बल अर  शक्यात  वृद्धि करदन।  यी स्नेह बात , पित्त अर  कफ नष्ट करदन।  ८७
लवण -
पांच प्रकारो लूण  हूंदन - सैंधव (सर्वश्रेष्ठ लूण ) , सैंचल।  काळो  लूण , काचो लूण  अर  समोदरो  लूण।  ८८
लवणों कर्म -
यी लूण  स्निग्ध , उष्ण , तीक्ष्ण , अर  अग्नि वृद्धि करण  (दौंकार )  वळ  हूंदन।  यी लूण  आलोपन (humidity ) , स्नेहन (चिकनाई ) म ,  पसीनाम , अधोभाग विरेचन ,  ऊर्घ्व  विरेचन (दस्त )  द्वारा दोषों तैं  भैर गडणम , निरुहण , अनुवासन म ,अभ्यंगम , भोजनम ,ार शिर विरेचनम ,शस्त्र कर्मम फल वर्ति आदिम, अंजनम , उबटनम , अजीर्णम ,अफारेम , वायु रोगम , गुल्मम ,शूल रोगम, उदर रोगोंम काम आंदन।  ८९-९२ 

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;  चरक संहिता में चर्बीयुक्त पदार्थों का पयोग , चरक संहिता में नमक पदार्थं का प्रयोग
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita, Types  and  Uses  of  Fats  and  Salt  in  Charak Samhita translated  by  Bhishma  Kukreti


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

भौं भौं प्रकारा  मूत  गुण  अर   उपयोग

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पैलो अध्याय ९३  बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -   १३
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
s= आधी अ
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
-
 आठ मुख्य मूत्र -
अब जु मुख्य मूत्र आत्रेय  ऋषिन बतैन   ऊ  छन -
ढिबरौ मूत , बखरौ मूत , गौड़ी मूत , भैंसौ मूत , हाथीs मूत , ऊंटौ मूत , घ्वाड़ा मूत ार गधा मूत  I  ९३
यि  आठ प्रकारौ मूत गरम , तीक्ष्ण , रूखा , कड़ु रस , लूण्या रस युक्त छन।  अठी प्रकारा मूत उपसादनम , आलापन म, लेपम , आस्थापनम , निरुहम , विरेचनम ,स्वेदनम , नाड़ीस्वेद (स्वेद =पसीना ) , अनाड़ म (अफरा ), विषनाशम उपयोग हूंदन। 
उदर रोगुंम , अर्श रोगम , गुल्म , कुष्ठम अर  किलासम , उपनाहम ,पुलटिस आदि सेचन कार्यम , उपयोग हूंदन।  यी मूत अग्निदीपक, विषनाशक, अर कृमिनाशक बुले जांदन।  यी पाण्डु रोगियूं  कुण पीणो , आहार अर  भेषज आदि म , उत्तम , हितकारी छन।  पियूं  मूत कफौ  शमन करद।  वायु कु अनुमोलन (पेट क गाँठ  सही  करण )   म उपयोग अर  पित्त तै अधोभाग म खैंचद अर पित्तौ  विरेचन करदन।  ९४ - ९९

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

 आठ मूतों /मूत्रों  गुण व कर्म अर   दूधों गुण

Properties and Uses  of  Urine  and  Milk
चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पैलो अध्याय  १००   बिटेन  १११ - तक
  अनुवाद भाग -   १४
अनुवादक - भीष्म कुकरेती

  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
-
 आठ मूतूं  मध्य अलग अलग मूत्र  क गुण  इन छन -
ढिबर /भेद मूतो / मूत्र  गुण - ढिबरो  मूत  थोड़ा तिक्त , स्निघ्ध , अर  पित्त क अवरोधी (रुकण वळ )  होंद , वु  ना तो पित्त कम करदो ना इ  वृद्धि।
बकरी मूत्र , बखरौ मूत - कसैला अर  मिठु रस वळ , स्रान्तों  कुण  हितकारी हूंद ार त्रिदोष निवारक च। 
गौड़ी मूत , गाय मूत्र - कुछ मिठो , दोष नाशक , कृमिमारक , हूंद।  ये तैं  पीण  से खज्जी /पीत  समाप्त हूंदन।  गौड़ी मूत वायु उत्पादित रोगों शमन म हितककारी च।
भैंसो मूत , भैंसो मूत्र - भैंसो मूत बबासीर , शोथ , उदर रोग शमन म  हितकारी हूंद . थोड़ा  खारो व मलभेदक च।
हाथी मुर , हस्ती मूत्र - हाथी मूत लुण्या , कृमि अर कुष्ठ रोगम पुरुषों कुण  हितकारी हूंद . अवरुद्ध मल-मूत्र /कब्ज , ॉस्क रोग , विष रोग , श्लेष्मा  जन्य रोग ,  बबासीर  म श्रेष्ठ च।
ऊँटो  मूत /मूत्र - थोड़ा तिक्त , कड़ो , स्वास , कास , अर्श रोगम  हितकारी च।
घ्वाड़ो  मूत तिक्त , कटु अर  कोढ़ , विष , ार व्रण  जन रोगों उपयोगी।
गधौ मूत /गधा मूत्र - गधा मूत मिर्गी , हिस्टीरिया , उन्माद म हितकारी हूंद .  १००- १०४
ये प्रकार से ये शास्त्र म सामन्य अर विशेष द्वी प्रकारों अर्थात मूत जन छन तन्नि  बताये गे।  अब  ान आठ प्रकारौ दूधों  कर्म अर गुण  पर बुले जाल - (१०५ ) -
अब आठ प्रकारौ  दूध -
भेड़ /ढिबरौ , बखरौ , गौड़ी , भैंसौ , ऊंटनी , हाथी, घोड़ी अर  स्त्रियों दूध (१०६ )
 
सब दूध प्राय: मधुर रस /मिठु , स्निग्ध , शीत , (माओं कुण )  दूध वृद्धिकारक , पुष्टिदायक ,  वृद्ध्य  (बाढ़ दायक ), वीर्य वर्धक , वृद्धि कुण  हितकारी , बदलदायक, मन प्रसन्न करंदेर ,  श्रमहारी (थकौट मारक ), खास , कफ छोड़ि  अन्य  कासों  तै मिटाण .  वळ . हूंद  I   दूध रक्त पित्त नाशक, टूटयां  तै जुड़न वळ हूंद।  सब प्राण्युं सात्म्य दोष नाशक , तीस नाशी , तपन वर्धक , क्षीण व कष्ट रोगियों कुण हितकारी , पांडु रोग , वात पित्त , शांप , गुल्म , अतिसार जौर , डाह , शोथ रोगों म विशेष कर  पथ्य च।  यौन रोगों , मूत्र कृच्छ , मलावरोध म  पथ्य हितकारी च।  दूध वात पित्त रोगियों कुण  बि  पथ्य च।  (१०७ - १११ )


संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

  दूध व छाल  उपयोगी वृक्ष

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पैलो अध्याय ११२  बिटेन  - ११९  तक
  अनुवाद भाग -   १५
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
-
 
दूध कर्म्म -
यु दूध नस्य कर्मंम , अवगाहन (चिंतन मनन )  क्रिया म, आलेपन म ,उकै (वमन ) म , आस्थापन  म , बस्ति म , विरेचन म , स्नेह म , वाजीकरण आदि म उपयोग हूंद।  िखम आठ दूधों समय गुण कर्म्म  तै सामान्य रूपम बताये गे  अगवाड़ी प्रत्येक दूध क बारे म  कर्मानुसार बताये जाल ( सूत्र स्थान अध्याय  २७  ) I ११२ , ११३
अब शोधन म बुले गे छह वृक्षों मोदी तीनुं  दूध अर  तीनूं त्वचा ग्रहण करे जांद। यूं  मेड प्रथम तीन वृक्ष फलनि अर  मूलनी वनस्पतियों से भिन्न छन।   ऊंक नाम -  स्नुही (धोर, सेहुंड  ) , अर्क ( आक ) अर  अश्मंतक (मूँज जन )। अश्मंतक कु  दूध उल्टी (वमन ) म , स्नूही क दूध विरेचन म ार आक  को दूध द्वी -विरेचन व वमन म उपयोग करे जाण  चयेंद।  ११४ - ११५
दुसर  तीन वृक्ष छन  जौंकि छाल (त्वचा ) हितकारी  छन।   वूं  वृक्षों नाम - पुतीक (करंज ), कृष्णगंधा, अर तिल्वक (लोध्र ) छन ।  यूं मादे  करंज अर  लोध्र की  छाल विरेचन म उपयोग हूंद।  अर  कृष्णगंधा की छाल परिसर्प (वीमर्ष , एक्जिमा , त्वचा रोग ) म शोथ , अर्श रोग , दद्रु (दाद ), विद्रधि , गण्डमाला , कोढ़ , अर अल्जी  नाना रोगों उपयोग हूंद।  ११६- ११७ , ११८
यी मथ्याक वृक्षों  तैं शोधनकारक जाणो।
उपसंहार -
फलनि १९ , मूलनी १६ , स्नेह ४ , लवण ५ , मूत ८ , दूध ८ , अर  शोधन वृक्ष  ६ (परिष्करण म उपयोग ), जौंक दूध व छाल का आंद वु  बुले गेन ।  ११९
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

वास्तविक वैद्य को च ?  झोला  छाप वैद्य पछ्याणक

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पैलो अध्याय  १२०  बिटेन १३०   - तक
  अनुवाद भाग -   १६
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
-
 बखर , ढिबर, गोर चराण वळ अर अन्य  तपस्वी या भील  जु  बौण -वासिन्दा छन  यी औषधि नाम अर आकृति पछ्याण दा  छन।  १२०
मात्र औषध्यूं  नाम , रूप , योग -प्रयोगों जणन से बि क्वी  औषधि क सम्यक प्रयोग नि  जाण सकद।  इलै  स्जास्टर म यांक वर्णन हूंद। 
जु  वैद औषध्यूं  नाम रूप अर ऊंको योग - प्रयोग  जणदु  च वु तत्वविद् छैं  इ  च, जु  वैद औषधयूं  तै सबि  भांति  समजद  वैकुण  त क्या बुले जाव ? अर  जु व्यक्ति प्रत्येक पुरुषक बल , सरैल , आहार , स्तर , सात्म्य , सत्व , प्रकृति , अर वे को विचार करिक देश (क्षेत्र )  , काल अर अर  मात्रानुसार औषधयूं तै जणदु  हो वो वेदों म श्रेष्ठ च।  १२१ , १२२ , १२३ ,
अजाण औषध्यूं  से हानि -
जै प्रकार अजाण विष , जै प्रकार शस्त्र , जै प्रकार आग , जै प्रकार बज्जर /बिजली  , मृत्यु कारण बणदन  उनी  नि जणि औषधि बि मृत्यु कारण ह्वे सकद अर नाम रूप अर गुणुं  से जणी  औषधि अमृत तुल्य च।  नाम , रूप अर गुण  से अनभिज्ञ औषध या देश -काल आदि विचार न करि देण  से अनिष्ट हूंद, वा भारी अनर्थ मचांदी ।  १२४ , १२५
तीक्ष्ण  प्राण नाशी विष बि सम्यक प्रकार से प्रयोग करण पर उत्तम औसधौ काम करद।  औषध बि अनुचित  प्रकार प्रयोग पर तीक्ष्ण  प्राण नाशक विषौ काम करदी।
इलै अनुचित रूपम प्रयोग करे जाण  वळि  औषधि  विषौ  सामान हूण   से आयु अर आरोग्य चाही बुद्धिमान व्यक्ति  तै देश , काल व मात्रा क विचार नि  करीं   औषध मूढ़ वैद्य से कबि  बि  नि उपयोग करण  चयेंद। १२६ , १२७
इन्द्रक हाथ से छुट्युं  बज्जर मनिखों मुंडम पोड़ जावो तो वैक बचण सम्भव च , किन्तु मूर्ख वैद्य दियीं  औषध रोगी तै समाप्त कर दींदी, वै  से बचण  असम्भव च। १२८
जु प्राज्ञमानी अफु  तै बुद्धिमान वैद्य गणन  वळ , औषध से अजाण  यदि दुखी , अचेत पड़्युं , वैद्य म श्रद्धा करण  वळ रोगी तै औषध द्यावो तो इन अधर्मी , विश्वासघाती , मृत्य सम  साक्छात  ज्यूंरा /यमराज अर दुर्मति , अज्ञानी व मूर्ख वैद्य दगड़  बचळ्याण बि मनिख नरकगामी ह्वे  जांद, तथापि स्पर्श /भिड़याण   से क्या नि होलु।   १२९ , १३०



संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1

वैद्य  तैं  क्या करण  चयेंद ?

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पैलो अध्याय १३१  बिटेन  -१३५ तक
  अनुवाद भाग -   १७
अनुवादक - भीष्म कुकरेती

  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
-
 गुरौ विष या ताम्बा उबाळि  पीण  , गरम लाल लोखर खाण , बिंडी  भलो च ,  वनस्पत वैद्य भेषम  शरणम अयाँ  रोगी से अन्न , पान या धन ग्रहण भलो नी  च।  १३१, १३२
वैद्य तै क्या करण  चयेंद -
इलै  वैद्य बणनो इच्छाधारी व्यक्ति तैं वैद्य गुणों तै प्राप्त करणो अत्तयधिक प्रयत्न  कारो , जां  से  वो मनुष्योंक रोग दूर करणम प्राणदायक सिद्ध ह्वे जावो।  १३३
जु  औषध रोग शांत करणम समर्थ हो वै इ सही औषध च।  जु  रोग्युं  तै रोगमुक्त कारो वी इ   वैद्यों म श्रेष्ठ वैद्य च।  १३४
सब प्रकारै कर्मों सिद्धि व सफलता वूं  कर्मों म  सम्यक प्रयोग  ह्युं बतलांद।  सफलता इ  सब गुण युक्त वैद्य की श्रेष्ठता बतलांद।  अर्थात सफलता से इ  वैदो  नाम चमकद।  १३५ 

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
दीर्घज्जीवितीय अध्याय सारांश


चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पैलो अध्याय १३६  बिटेन  -  १४० तक
  अनुवाद भाग -   18
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
-
 आयुर्वेद क मर्त्य लोक म आण , हेतु रोगों  उत्पन्न हूण , भारद्वाज मुनि द्वारा मर्त्त्यलोक म प्रचार , अग्निवेशादि  कु  तंत्र बणान , अग्निवेशादि द्वारा बणायूं  तंत्रो कुण  ऋषियों द्वारा दियीं आज्ञा , हिताहित आदि लक्षण रुप सामान्यादि छह कारण, कार्य्य धातुओं तै सामन्य समान करण आयुर्वेद प्रायोजन च , संक्षेप म रोगुं कारण , काल , बुद्धि , इन्द्रियार्थ  क अतियोग , अयोग , मित्थ्ययांग दोष , बात , पित्त , कफ , यूंकि  औषध , आकाश , तीन , द्रव्य , जल अर पृथ्वी , यूंक दगड़  रस मधुर आदि , द्रव्य संग्रह; शमन आदि ; एवं जंगम आदि म भेद से  ; मूलनि हस्तिदन्ति आदि सोलह ; फलनि -शंखनी आदि उन्नीस , स्नेह घी अदि चार ; महासनेह ; लवण- सौबर्चल अदि पांच ; मूत्र आठ ; क्षीर आठ , दूध वळ वृक्ष , छल वळ स्नेही पुतिक आदि छह वृक्ष; यूंको वमनविरेचन  आदि कर्म्म ;  औषध कु  सम्यक गुण अर असम्यक योग से जु दुर्गुण छन; मूर्ख वैद्य की निंदा अर सब गुणों से युक्त श्रेष्ठ वैद्य लक्षण ; यी सब 'दीर्घज्जीवितीय' अध्याय म महर्षि भगवान आत्रेय न सम्यक प्रकार से बताई। 

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita


Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1


 शिरोविरेचन,  वमनकारक द्रव्य , दस्त कराणवळ  द्रव्य

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  दूसरो  अध्याय श्लोक   १   बिटेन  10  - तक
  अनुवाद भाग -  १९ 
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
-
 अपामार्ग (लटजीरा , चिरचिटा ) का  बीजों  तैं  बूसो /छुक्य्ल रहित कौरि तंडुल बणैक कामम लाण चयेंद।  यी बताणो कुण 'अपामार्ग-तण्डुलीय' अध्याय च।  यु भगवान आत्रेय बुल्युं च।   १ , २ 
अपमार्गौ तंडुल (चौंळ ). पिप्पली/लौंग, काळी मर्च, वायडिंग, संहजना क बीज , सफेद राई (सरसों ) क बीज , तेजवल  का बीज , जीरु , अजमोदा /तिलवन , पीलू , छुटि इलैची , मेंहदी बीज , कळौंजी , काळि तुलसी , अपराजिता, कुठेरक/स्ग्वेट तुलसी , फणिजक (तुलसी भेद ), सिरस  बीज , ल्यासण , हल्दी अर दारुहल्दी/किनग्वड़ , द्वीइ  लूण  ( सैंधव अर सौंवर्चल ), मालकंगनी ,  अर  सोंठ (अदरक सुख्यूं ), यी शिरोविरेचन कुण उपयोगम लाण चयेंद।
श्वेता (अपराजिता ) अर ज्योतिष्मती द्वी  मूलनि वर्ग की औषधि छन।  यूंको मूल इ ग्रहण करण  चयेंद अर  अपामार्ग क तंडुल उपयोग म लाण  चयेंद । 
शिर-शूल (सर भारीपन ) , मुंड दुखणम , नाक बिटेन दुर्गन्धयुक्त सींप आण  , कफ आण , अधकपाळी हो , कृमिव्याधि, मिर्गी म , गंध वास  नाश हूणम ,अर प्रमोहक/मूर्छा  हूण जन रोगों म शिरोविरेचन क रूपम प्रयोग करण चयेंद।  ३ -६
वमन कर्क द्रव्य -
मदन (मैंनफल, करहर  ), मधुक /मुलेठी , नीमौ बक्कल  , कड़ी तुरई , कड़ु तुम्बा , पिप्पली , कुट्ज , कड़ु घिया (इक्ष्वाकु ), छुटि इलैची , कड़ी तुलीण चयेंद।  नीम क बक्कल रई , यी दस वस्तु कफ -पित  जन्य व्याधि या आमाशय म पीड़ा , शरीर तै बिना पीड़ा दियां बिन वैद्य वमन /उल्टी करणो  दे द्यावो।
यूं मध्ये मदन , मधुक , जीमूत , कृतवेधन ,कुट्ज , इक्ष्वाकु , कड़ी तुरई का फल लीण चयेंद अर पिप्पली व इलैची का बि फल लीण चयेंद , नीमक बक्कल लीण चयेंद।  ७, ८
विरेचन/दस्त लाण वळ  द्रव्य -
त्रिवित (निशोथ ), त्रिफला (हरड़ , बयड़ अर औंळा ), दंति (जमालगोटा ),  नीलनी/नील   मूल ,सप्तला (शिकाकाई ), वच , कम्पिल्लक , इंद्रायण , हिरवी , छुट करंज , पीलू फल , अमलतास , बड़ो जमालगोटा,निचुल फल , यूं वस्तुओं तै दोष पक्क्वाशय म हूण पर दीण चयेंद (बाकी स्थान म हो तो ना )
यूं मध्ये त्रिवृत , नागदंति , सप्तला , क्षीरणी /हिरवी अर , बड़ो जमालगोटा मूल लीण  चयेंद  छन , नीलनि व वच बि मूल उपयोग करण  चयेंद।  शेषों  म  फलों उपयोग करण  चयेंद।  ९ , १०

सावधान - कृपया पढ़िक  अफु वैद नि बणन अपितु वीडी म जाण ही चयेंद

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
शिरोविरेचन,  वमनकारक द्रव्य , दस्त कराणवळ  द्रव्य , चरक संहिता में - शिरोविरेचन,  वमनकारक द्रव्य , दस्त कराणवळ  द्रव्य
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  First-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita


 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22