आदर्श चिकित्सालय के लक्षण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , पंदरवां अध्याय (उपकल्पनीय अध्याय ) पद ६ बिटेन - तक
अनुवाद भाग - ११८
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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ये अध्याय म संशोधन का बनि बनि उपयोगी उपकरणों का संक्छिप्त म चर्चा होली। सबसे पैल कूड़ चिणन वळ ओड इन मजबूत कूड़ चीणो जैम खुली हवा समिण से नि आवो बल्कि पैथर बटे आवो। जखम रोगी आराम से घूम फिर साको , पाड़ या तराई म नि बण्यु ह्वावो , घाम अर धूळ नि ऐ साको ,मन बांछित विरोधी शब्द, स्पर्श , गंध नि आई सौकन। पाणी घौड़ , उरख्यळ -गंज्य ळ , झाड़ा करणो सुविधा , रुस्वड़ , स्नानघर दगड़ी हो। ६।
यांक उपरान्त पवित्र शुद्ध स्वभाव , निर्मल आचरण वळ , रोगी से प्रेम से बात करण वळ ,कर्मकुशल , सेवा कर्म कुशल ,अपण अपण कर्म म प्रशिक्षित , रुस्वै पकाण म कुशल रुसाळ ,नवांण वळ ,मालिश वळ , रोगी तै खड़ करण वळ -बिठाण वळ ,औषध दवा पिसण वळ ,सब कर्मों म कुशल सेवक , गाणा गाणम कुशल ,स्तुति पाठ करण वळ ,श्लोक -गाथा -कथा -आख्याकिका -बातचीत -इतिहाद -पुराण आदि सुणाण वळ ,इशारों से बात समजण वळ ,मालिकौ मन की बात समजण वळ ,जगह , काल तै समजण वळ मित्र , समाजक आदिम उख रौण चएंदन। इनि बटेर कबड़ा , खरगोश ,हिरण ,काळो हिरण ,बनि बनि हिरण , मेढ़ा यूं सब तै कट्ठा करण चयेंद। दूध दीण वळि , स्वस्थ बछर वळि, संत स्वभाव की गौड़ी रखे जाय ,यीं गौड़ी कुण रौण , घास पाणी इंतजाम हूण चयेंद। छुट भांड , आचमनी भांड ,मटका घड़ा , मजबूत कलसा ,कुंडा , उकोरा , थाळी , कड़ै ,ढक्क्न , कड़छी , बड़ो घौड़ ,चटाई , तेल पकाणो कड़ै , रई , साफ़ वस्त्र , सूट कपास , सुई ,रुई ,ऊन , खाट व सिरवण वळ दिसाण ,पास म गंगासागर , पीकदान ,सफेद चदर ,सिर वण वळ पलंग , गदा , आराम कुर्सी , स्नेहन , स्वेदन , अभ्यंग ,प्रलेप ,नयाणो , अनुलेपन ,वमन , विरेचन ,आस्थापन ,अनुवासन , शिरोविरेचन ,पिशाबघर ,संडास ,तै उत्तम व साधन युक्त बणाए जावन। शुद्ध , धुईं , चिपिळि ,खुरदरी ,मध्यम रूप की पठळि (पत्थर शिला ) (सिलवट ) , कैंची ,फाळु ,गंडासा , दरांती , आदि शस्त्र धरे जावन। धूमनलिका ,उत्तर बस्ति नलिका , झाड़ू , तराजू , द्रव मपण वळ यंत्र , घी तेल ,वसा , मज्जा ,मधु , राब ,नमक , लखड़ , पाणी , मधु , सीधु ,सुरा , कांजी ,तुषोदक , मैरेय ,दही ,दै क पाणी , छाछ , धान्य , कांजी ,आठ प्रकारौ मूत , हेमंत धान्य , साटि चौंळ , मूंग , उड़द ,जौ , तिल ,गहथ ,बेर , किशमिश ,फालसा , हरड़ , बयड़ , औंळा , बनि बनि स्नेह ,स्वेदन साधन ,वमन , विरेचन पदार्थ , संग्रहणीय ,दीपनीय ,पचनीय ,शामक , वातननाशक गण की ,दवै ,अर जु जु आवश्यक पदार्थ आपत्ति दूर करण वळ पदार्थ होवन। यूं सब तै कट्ठा करण चयेंद। ७।
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*संवैधानिक चेतावनी: चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ १८७ बिटेन तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
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