विरेचन अतियोग लक्छण
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , सोळवां अध्याय ( चिकित्सा प्राभृतीय अध्याय ) पद ९ बिटेन २३ - तक
अनुवाद भाग - १२३
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
-
!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
--
विरेचन का अतियोग का लक्छण -
गुदा बिटेन प्रथम कर्मानुसार मल , पित्त , कफ अर वायु भैर आंदन पर पैथर रक्त चढ़दो। यु ल्वे , मेद मिश्रित , या कफ मिश्रित या पित्त मिश्रित , जल जन ,लाल , या काळो जन हूंद। रोगी तै वायु कारण मूर्छा ऐ जांद। यी अति योगक लक्छण छन। ९ -१०।
वमन अतियोगम बि विरेचन अतियोग का यी लक्छण हूंदन। पर शरीर का कटिभाग से मथि यि लक्छण -वातरोग अर जबान रुकण बिंडी सि हूंदन। इलै रोगी तै कार्य कुशल वैद्य म जैका आयु अर सुख युक्त करण चयेंद , पाखंडी म नि जाण। ११ -१२।
संशोधन योग्य व्यक्ति - अपचन ,अरुचि , मोटापा ,पाण्डुता , निस्तेज ,पीलापन , शरीर कु भारीपन ,बिन कुछ कर्यां थकान महसूस हूण ,उदासी , शरीर पर छुटि छुटि फुंसी आण , कोठ (छप्पे ) उठण (दांत सिल्ल ) ,खज्जी हूण , आलस , थकान , निर्बलता, शरीर बिटेन दुर्गंध आण ,मन बैचैन , सुस्ती ,कफ या पित्त बढ़न , निंद नि आण ,या निंद बिंडी आण ,नपुंसकता , निरुत्साह ,भयानक सुपिन आण ,बल कांति नाश हूण , खाणा खाण पर बि पुष्ट नि हूण , जैमा यि लक्छण बढना होवन वै तै संशोधन करण चयेंद। इलै अधिपाक आदि लक्छणों देखि बल अर दोष अनुसार वमन , विरेचन रूपी संशोधन दीण हितकारी च। १३ -१६।
संशोधन का फल -उपरोक्त विधि से कोष्ठ (उदर ) साफ़ हूण पर जठराग्नि बढ़ जांद ,रोग शांत ह्वे जांदन ,शरीर वास्तविक स्तिथि म ऐ जांद। इन्द्रियां मन बुद्धि निर्मल ह्वे जांदन। शरीर म बल, शक्ति सामर्थ्य , संतान अर पुरुसत्व पैदा ह्वे जांद। बुढ़ापा देर से आंद अर रोगी देर तक ज़िंदा रौंद। इलै मनुष्य दोष -संचय कालम अर संशोधन कालम वमन विरेचन कार्य की युक्तियुक्त रूप म कारो। लंगड़ अर पाचन रुपी संशमन क्रिया द्वारा बशम कर्यां दोष कबि फिर बि प्रकट ह्वे सकदन; परन्तु दोष संशोधन करे जांदन वो फिर कबि प्रकट नि हूंदन। किलैकि दोष या वृक्षों अवशेष रौण पर रोगों उतपति संभव च। औषध द्वारा रोग क जड़ कटण पर संशुद्ध हुयां व्यक्ति तै पथ्यकारक व सरैल बढ़ण वळ भोजन दीण चयेंद। जनकि घी , मांसरस, दूध ,हृदय कुण हितकारी अर मन तै अछू लगण वळ यश दिए जाय। सरैल पर तेल मालिश ,उबटन लगाण , नयाण ,निरुह वस्ति ,अनुयासन वस्ति क प्रयोग करण चयेंद। यांसे सुख मिल्दो अर व्यक्ति चिरंजीवी हूंद। १७ -२३।
-
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ १९७ बिटेन २०० तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
चरक संहिता कु एकमात्र विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म रोग निदान , आयुर्वेदम रोग निदान , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद