Author Topic: चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita  (Read 19012 times)

Bhishma Kukreti

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वायु , पित्त व कफ मा  असमनता से विकार

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , सत्रहवाँ  अध्याय  ( क्रियन्तशिर सीय   अध्याय ) ४५   पद   ६१ बिटेन   तक
  अनुवाद भाग - १३२ 
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!

जै समौ  पित्त अपण स्थिति म हूंद अर कफ  हीण (क्षीण ) हूंद तब वायु पित्त तैं  लेकि  वायु शरीर का एक स्थान से हैंक स्थल तक दौड़नु  रौंद। जांसे फटणो सि  डा , जलन , थकान अर कमजोरी पैदा हूंद। शरीर म कफ  अपण प्रकृति म हूण व पित्त  हीण  हूण  पर कुपित बलवान वायु कफक दगड़ मिलिक वेदना , जड़ता , ठंडक अर  भारीपन शरीर म पैदा करद।  शरीर म कफ हीण   अवस्था म ह्वावो , पित्त कुपित ह्वावो अर  वायु प्रकृति स्थिति म ह्वावो त पित्त वायु की गति बंद करी जलन व डाउ उतपन्न करदो। कफ समानवस्था म ह्वावो ,पित्त कुपित अर वायु हीण ह्वावो त कफ तै रोकि पित्त आलस ,भारपन अर  जौर पैदा कर दीन्दो। वायु का क्षय ह्वावो ,पित्त  समानवस्था म ह्वावो ,कफ  बड्यूं    ह्वावो त कफ पित्त की गति बंद करि मंदाग्नि ,सर म जकड़न ,अनिद्रा ,आलस , प्रलाप ,पेट रोग ,भारी शरीर ,नंग , ऊंठ अर आंख्युंम पीलापन ,थूक म कफ अर पित्त आण मिसे  जांद। वायु हीण ह्वावो अर कफ व पित्त द्वी बढ्यां  होवन त सरैल ( शरीर  ) म अरुचि ,अपचन ,भारीपन , उकै ( वमन )रूचि ,मुख बिटेन लाळ आण ,पीड़ा , पीलोपन , नशा सि , मलत्यागम विषमता ,कबि भूक लगण कबि नि लगण जन लक्षण दिखेंदन। पित्तक क्षीण हूण से कफ अर  वायु मिलिक सरैल म जड़ता ,, ठंडक कबि यिं जगा कबि वीं जगा पीड़ा ,अग्नि की कमी ,खाणम अरुचि , कम्पन , नंग मुख ,  आँख म सफेदी ,  सरैलम रुखापन , ऐ जान्द. . कफ का हीण  हूण पर वायु अर  पित्त कुपित हूण से यि यि विकार हूंदन -सर म चक्कर ,  ऐंठन  की पीड़ा ,चुभन कु  सि दर्द ,जलन , सरैल क फटनण ,कम्पन , अंगों टुटण ,रूखोपन , इन  गरम लगद  या जलन हूंद जन घाम म बैठि हूंद।  वात अर पित्त क्षीण  होव अर कफ बढ्युं  ह्वावो त सब स्रोतों तैं  कफ रोकि दीन्द। ये से क्रियां बंद ह्वे जांदन ,मूर्छा , जीभ वाणी बंद पड़ जान्दन। कफ अर वात क्षीण हूण पर पित्त गति करदो सरैल क ओज कम कर  दीन्दो अर सरैलम ग्लानि,  कमजोरी , थकान , तीस , मूर्छा ,अर चेष्टाओं नाश ह्वे जांद।  पित्त अर कफ क्षीण हूण  पर वायु  मर्म स्थलों तै पीड़ित करदो  अर मनुष्य चेतना शून्य ह्वे  जांद अर्थात कंपदु  च।  ४५- ६१। 


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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २०९   बिटेन   २११   तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद ,


Bhishma Kukreti

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१८  क्षयों  कु  लक्छण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , सत्रहवाँ  अध्याय  ( क्रियन्तशिर सीय   अध्याय )  ६२   पद   बिटेन  ७३  तक
  अनुवाद भाग - १३३ 
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
बढ्यां  दोष अपण सक्यातानुसार अपण स्वाभाविक लक्छण उन्नति अवस्था म दिखान्दन। जनकि पित्तक स्वाभाविक लक्छण उष्णत्व (गर्मी ) च। बढ़णम तीब्र गर्मी पैदा करद। दोष कम हूण पर अपण स्वाभाविक लक्छण छोड़ दीन्दन , जन पित्तक  हीण हूण पर वा गरमी नि  रौंदी ।  समानवस्था म दोष अपण अपण काम करदन।  ६२।
१८ प्रकारा क्षय -वात , पित्त अर कफ तीन दोष; रस -रक्त आदि ,धातु , मल ,मूत्र , कंदूड़ो मल , इत्यादि , सात मल अर ओज यूं १८ कौं क्षीण हूणो लक्षण बतांदु।  यूं  मदे वात , पित्त अर कफ क क्षीण हूणो लक्छण बताई ऐन।  रसक हीण हूण पर माथा इन लगद जन  मस्तिष्क म छांछ छोळे गे हो। उच्ची आवाज सहन नि हूंदी। जिकुड़ी जल्दी जल्दी चलदी , पीड़ा हूंदी , ग्लानि हूंदी अर क्रिया कम हूंदी या इच्छा कम हूंदी अर हृदय म उद्गिवन्ता हूंद । रक्त हीण /क्षीण  हूण पर त्वचा कठोर हूंद अर फट जांद, झुर्री पड़ जांदन अर रूखी ह्वे जांद । मांश  क्षय हूण पर सरा सरैल कमजोर ह्वे जांद अर पूठ , गौळ , पुटुक बिंडी कमजोर/पतला  ह्वे जांदन।  अर्थात मेद -चर्बी कम हूण पर संधि टुटण लग जांदन। मजा क्षीण हूण पर हड्डी मुरझाई व गिरंद लगदन , हड्डी कमजोर व हळकी व  वात रोग  जोर पकड़न  मिसे जांदव निरंतर वात  रोग रौंद । शुक्र कम हूण पर सरैल म कमजोरी ,सुखो मुख , मुख पर पिलास ,पीड़ा , थकान ,पुरुष्वत की कमी , संभोग म शुक्र क अभाव हूंद।  मल क्षीण हूण पर वायु अंदड़ुं  तै दबांद लगद। सरैल भितर भैर रखो ह्वे जांद वायु पेट तै उठांद महसूस हूंद।  मूत्र कमजोर हूण पर मूत  धीरे धीरे आंद , मूतो रंग बदल जांद , तीस भौत लगद ,गौळ  अर मुख सुख जांद। कंदूड़ , नाक , आँखक, मुखक अर  त्वचाक  मल कम हूण से  ज्ञान म शून्यता ,रुक्षता अर हळको पन  ह्वे जांद।  ओज या कांटी क्षीण हूण पर  व्यक्ति डरण लग जांद, निर्बल ह्वे जांद , बार बार सुचण लग जांद ,चिंतित रौंद , इन्द्रियों ज्ञान नि रैंद ,पीड़ा रैंद , कांति बिगड़ जांद , मन विचलिर रंद अर सरैल रुखो व निर्बल ह्वे  जांद।  ६३-७३।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  २११   बिटेन  २१३   तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद ,


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ओज   लक्छण , क्षय   का कारण

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , सत्रहवाँ  अध्याय  ( क्रियन्तशिर सीय   अध्याय )  ७४  पद   बिटेन  ७६   तक
  अनुवाद भाग -  १३४
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ओजक स्वरूप - हृदयक अंदर जु निर्मल , लाल , थुड़ा सि पीलो धातु क सार रस हूंद वु ओज हूंद।  वैक नष्ट हूण से मनिख बि नष्ट ह्वे जांद।  जन भौंरा  फल , पुष्पों से मधु कट्ठा करदन तनि शरीर का गुणों से ओज कट्ठा करे जांद।  शरीर धारियों म शरीर म  सबसे पैल ओज पैदा हूंद। यु आज  रंग म घी जन , मधुर रस व धान क खील जन सुगंध वळ हूंद। ७४। 
क्षय का कारण - अधिक व्यायाम करण ,  उपवास करण , चिंता करण , रूखो , कम , एकि  रस कु  भोजन करण , वायु या घामक सेवन , भय , सोग (शोक ) ,रुखो गुण वळ पदार्थ पीण , रातम बिजण , कफ , रक्त ,शुक्र , मल कु  अधिक त्याग करण , वृद्धावस्था , भूत , कृमि  आक्रमण , यूं कारणों से १८ प्रकारौ क्षय हूंद , ७५- ७६। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  २१३   बिटेन  २१३    तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

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मधुमेह विकार कारण , पिड़का (फुंसी ) प्रकार

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , सत्रहवाँ  अध्याय  ( क्रियन्तशिर सीय   अध्याय )  ७७  पद   बिटेन  ८८  तक
  अनुवाद भाग -  १३५
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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मधुमेह का कारण - अति मात्रा म गुरु ,स्निग्ध ,खट्टा या लुण्या पदार्थ सेवनन , नवीन ऋतुक  अनाज सेवनन , नयो पाणी पीणन , बिंडी सीण से , आती आराम तलबी, विलासी  जीवन से ,व्यायाम व चिंता नि करण से ,वमन व विरेचन कार्य नि  करण  से , कफ , पित्त , मांश , मजा भौत बढ़ जांदन। यूंक बड़हन से मार्ग रुक जाण से   वायु ,ओज   धातु तै लेकि मूत्राशय म चल जांद। तब कष्ट साध्य मधुमेह रोग ह्वे जांद।  पैल पैल बढ्यां पित्त , कफ वात  का लक्छण दिखेंदन।  कुछ समय उपरान्त यूंको क्षय  लक्छण दिखेंदन।  फिर बढ्यां लक्षण दिखेंदन।    . इनमा  उपेक्षा करण से सात भयानक पिड़कायें अधिक मांश से युक्त जगौंम ,मर्म स्थानों म , संधियों म उतपन्न ह्वे जांदन। ७७  -८१।
सात पिड़कायें - शराचिका, कच्छपिका ,शालनी ,सर्पपी ,अलजी , विनता अर विदृधि सात प्रकारै पिड़का/फुंसी  उतपन्न हूंदन।
किनारों से ऊंची अर बीच म दबीं अर उदे रंग की, स्राव युक्त व दर्द यूलट  पिड़का कुण  शराविका पिड़का बुल्दन। 
गंभीर वेदना वळि ,दर्द युक्त , महावस्तु क आश्रय म रण वळि , मथि बिटेन चिपळी अर कच्छप /कछुवा  पीठ जन मथ्या तरफ उठीं  आकर वळि  तै कच्छपिका पिड़का बुल्दन।
जड़ (नि हलण वळ ), शिराओं जाल युक्त ,चिपुळ  स्रावयुक्त ,बड़  आशय म आश्रित ,दर्द व चुबणो जन वेदनायुक्त  अर  छुट छुट छेदों से घिरीं पिड़का कुण शालनी बुल्दन।
भौत बड़ी ना , जल्दी पकण वळि , सरसों आकार की , वेदनायुक्त  पिड़का  सर्पपी हूंद।
अलजी पिड़काम  , त्वचा जल्दी , तीस , मूर्छा व बुखार आंद। रात दिन दुखी करद।
जैक स्राव गाढो ह्वावो ,सख्त वेदना ह्वावो , पिड़का पीठ या पुटुकम ह्वावो , बड़ी , दबी नीलरंगक पिड़का  तै विनता बुल्दन।  ८२ -८८।   

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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  २१४   बिटेन   २१५  तक
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विदृधि फोड़ा  अर  स्राव प्रकार

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 खंड - १  सूत्रस्थानम , सत्रहवाँ  अध्याय  ( क्रियन्तशिर सीय   अध्याय )  ८९  पद   बिटेन   तक
  अनुवाद भाग -  १३६
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विदृधि द्वी प्राकारै हूंदी। - बाह्या अर आभ्यांतरी। बाह्य विदृधि त्वचा , सनयायु व मांश म  उतपन्न हूंद। एक आकार कंडारा आकारक हूंद अर भौत पीड़ा हूंद। अतः विदृधि निदान  बुल्दन -  शीतल भोजन , दाह करण वळ भोजन ,उष्ण , रुखो  भोजन खाण से ,भौत खाण से , अजीर्णवस्था म हौर भोजन से , विषम भोजन मिश्रित भोजन खाण से ,प्रकृति प्रतिकूल भोजन से , दूषित भोजन से , उपस्थित वेग रुकण ,भौत मद्यपान से , अति श्रम से , कुटिल व्यायाम से , ट्याड़ -म्याड़ सीण से ,भौत गर्रु उठाणन , बिंडी चलण , अति मैथुनन ,मल कु मांस अर रक्त म घुसण से ,वात पित्त अर कफ मांस व रक्त म घुसण से ;  गहरी व  कैड़ी (कठोर )  गाँठ हूण से गांठ क स्थान हृदय , यकृत , प्लीहा ,कुक्षि , गुर्दे ,नाभि जांघुं  संधि स्थल , अर मूत्राशय म गांठ हूण से तीब्र वेदना हूंद । रक्त दुष्ट हूण से अधिक दर्द हूंद (विदग्ध दर्द )।  विदग्ध दर्द कारण इ एक नाम विदृधि पोड़।
वातजन्य विदृधि म बिंदणो जन वेदना , कटण जन छेदण जन दर्द , चक्कर आंद , अफरा , शब्द सुण्यांदन , स्फुरण ,अर सर्पण हूंद। 
पित्त जन्य विदृधि म प्यास , जलन , मूर्छा , मद अर जौर हूंद। 
कफ जन्य विदृधि म जम्मै , वमन , भोजन से  अरुचि , शरीर म जड़ता अर ठंडक हूंद।  सब विदृधियूं  म भौत दर्द हूंद। इन लगद जन गरम लोहा शरीर म धरे गे हो।  विदृधियूं पकण पर बिच्छू जन कट्युं जन दर्द हूंद। 
अब स्राबक लक्छण बतांदुं - जु स्राब पतळु , रुखो , लाल  अर झागवळ ह्वावो , तो वै तै वातज विदृधि क स्राव , जु स्राव तल उड़द जन हो वो पित्तज विदृधि क  स्राव , जु  स्राव सफेद , घणो , चिपुळ अर बिंडी हो वु कफज विदृधि  क स्राव हूंद।  सन्निपात जन्य विदृधि म सब दोषों क लक्छण हूंदन।  ८९ -९९।
 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  २१५   बिटेन    तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
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स्थान जन्य विदृधियूं  (फुंसी ) लक्षण

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , सत्रहवाँ  अध्याय  ( क्रियन्तशिर सीय   अध्याय )  १००  पद   बिटेन   १०२ तक
  अनुवाद भाग -  १३७
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
अब यूं विद्रधियों क साध्य असाध्य जणनो कुण स्थान जन्य  विशेष लक्छण बतलाये  जाल। जन प्रधान मर्मस्थान हृदयम उतपन्न विदृधिम हृदय संघट्टन, तमक (आँखु समिण अंध्यरु ), सांस , मूर्छा ,कासा हूंद।  क्लोमजन्य विदृधि म तीस , गिच सुकण ,गौळ रुकण ; यकृत जन्य विदृधि म स्वास रुकौट  व मूर्छा ; कुक्षि म विदृधि हूण पर कुक्षि अर पार्श्व मध्य शूल  अर  वैई पार्श्व क कंधा म पीड़ा हूंद ; वृकजन्य विदृधिम पीठक अकड़न ,कमरक जकड़न ; नाभिजन्य  विदृधिम हिचकी; वक्ष्णजन्य विदृधिम जांघु म डा ; वस्तिजन्य विदृधिम मूतम कृच्छ्रता , दुर्गन्धयुक्त मूत्र  अर बदबूदार मल आंदो।  हृदय , क्लोम , यकृत , प्लीहा अर कुक्षि म विदृधियूं  फटण  पर  स्राव गिच बिटेन अर  नाभि क तौळ वंशभ व वस्ति क विदृभि फटण पर स्राव गुदा बिटेन  आंद अर नाभि विदृधि फटण से गिच्च अर गुदा द्वी जिना स्राव आंद।  यूं  विदृद्धियों म हृदय विदृधि , नाभि विदृधि अर  वस्ति विदृधि फटण मृत्युदायी हूंद।  शेष जगा की विदृधि कुशल चिकित्स्क की चिकित्सा से शांत ह्वे  जांदन। इलै जल्दी ही विदृधीयों क चिकित्सा हूण चयेंद। यूंकि गुल्मों तरां चिकित्सा हूण  चयेंद। १०० -१०२।   

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  २१७   बिटेन    तक
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पिडकाओं उपद्रव

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 खंड - १  सूत्रस्थानम , सत्रहवाँ  अध्याय  ( क्रियन्तशिर सीय   अध्याय )  १०३   पद  ११०  बिटेन   तक
  अनुवाद भाग -  १३८
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
 
यि पिडका /फुंसी मेदक दुष्ट हूण पर बिन परमेश क बि पैदा ह्वे जांदन।  अर जब तक यि स्थान तै चरी ओर से नि पकड़ लीन्दन पता नि चलदो।  शराविका , कछपिका अर जालनी कठिनाई से सहन हूंदन।  जॉंम कफ अर  मेद बिंडी हूंद वूंमा यि उतपन्न हूंदन अर बलवान हूंदन।  सर्पणी , चालजी , विनीता अर विदृधि यि पित्तक अधिकता से हूंदन।  यी साम्य छन व  थोड़ा चर्बी वळुंम हूंदन।  जै प्रमेह रोगीक मर्म (हृदय , वस्ति अर नाभि ) म कंधोंम ,गुदा , स्तन , हथ , संधियों अर अर खुटुंम पिडका  उतपन्न हूंदन वु प्रमेह रोगी नि बचद।  इनि दुसर बि पिडका का छन जु लाल , पीला , धूसर ,काळी , राख रंग की , काळ बाळुं छाया जन , कुछ मृदु , कुछ कठिन , कुछ बड़ी , कुछ छुटि , कुछ मंद वेग , कुछ तीब्र , कुछ कम वेदना वळि कुछ तीब्र वेदना वळि  हूंदन।  वात , पित्त , कफ की यूं विदृधियुं  तै पछ्याणि  उतपन्न हूण  से  पैलि  चिकित्सा कर लीण चयेंद।  १०३ -१०९
पिड़काओं उपद्रव - प्यास , श्वास , मांस सिकुड़न, मूर्छा , हिचकी , मद , जौर , बिसर्प अर हृदय जन मर्म म अवरोध पिडकाओं उपद्रव छन।  ११०। 
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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  २१८    बिटेन  २१९   तक
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तीन प्रकारै दोष गति
 
चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , सत्रहवाँ  अध्याय  ( क्रियन्तशिर सीय   अध्याय )  १११  पद   बिटेन  १२०  तक
  अनुवाद भाग -  १३९
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
 
दोषों गति तीन ढंगै हूंद - घटण , तय रौण , अर  बढ़न  अथवा मथि जाण , तौळ  जाण , तिरछा जाण से यी दुसर प्रकारै  दोष गति ह्वे।  विधि हिसाबन दोष गति  बता एन।  एक हौर  हिसाबन तीन प्रकारै गति हूंदन -    कोष्ठ (क्वाठा ) , शाखा , अर मर्मस्थि अर संधि यूंमा दोषुं संचय ,प्रकोप अर  शमन तीन गति ह्वे जांदन। जनकि  छह छह ऋतउं म एक एक दोष की तीन तीन जाति हूंदन , जनकि बरखा म पित्त संचय (कट्ठा ) , शरदम प्रकोप अर हेमंतम शमन।  हेमंतम कफ संचय ,वसंतम प्रकोप अर ग्रीष्मम शमन हूंद।  दोषों क संचय आदि की गति द्वी प्रकारै हूंद -प्राकृत अर वैकृत।  पित्तक बरखा म संचय हूण प्राकृत गति  अर वसंत म संचय हूण वैकृत गति च।  इनि कफक हेमंत म संचय हूण प्राकृत गति अर बरखा ऋतु म संचय  हूण  वैकृत गति च , वायु क ग्रीष्म म संचय हूण प्राकृत गति अर शरद ऋतुम संचय वैकृत गति ह्वे।  प्राकृत गति स्वास्थ्यवस्था  च अर वैकृत रुग्णावस्था च, ये हिसाबन पित्त आदि दोषों क बि द्वी द्वी प्रकारै गति ह्वे।  मनिखों पाचन पित्त की गर्मी से इ  हूंद अर यु पित्त वैकृत ह्वेका भौत सा रोग उतपन्न करद।  प्राकृत स्वास्थ्यवस्था म स्थित कफ शरीरौ कुण  बल व ओजपूर्ण  हूंद किंतु यी  कफ विकृत /रुग्णावस्थाम मल अर पाप्मा पैदा करद।  वायु कारण ही सब चेष्टा  अर  क्रिया हूंदन।  या वायु प्राणियों प्राण च। वायु क विकृत हूण से रोग उतपन्न हूंदन अर  रोगों से पैदा विकृत वायु से मृत्यु हूंद।  मनिख तैं समजण  चयेंद बल शत्रु (वैकृत पित्त , वायु , कफ दोष ) सदा समिण खड़ छन , इलै अपण कल्याणम मन लगैक प्रशस्त मन से परीक्षा करी नित्य ही दीर्घ आयु की कामना , कोशिस कार।  १११ -१२०। 
शिरा रोग , हृदय रोग दोषो परिमाण भेदन हूण  वळ रोग, दोषों क्षयन , पिडिकाउं , दोषुं गति यूं सब बातुं क तत्वदर्शी महर्षिन 'क्रियन्तशिर सीय'  अध्याय म वैद्यों ज्ञान अर प्रज्ञान की म्नहलकामना हेतु बताई।  ११९ -१२०
सत्रहवाँ अध्याय समाप्त
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  २१९   बिटेन   २२०  तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
 
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद ,

Bhishma Kukreti

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बाह्य जनित सूजन का कारण

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  अठारवां    अध्याय  (  त्रिशोथीय   अध्याय )  १  पद  ३  बिटेन   तक
  अनुवाद भाग -  १४०
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
 
ये से अगनै त्रिशोथिय अध्याय कु  व्याख्यान करला जन न बोलि  छौ।  १ -२।
शोथ या सूजन तीन प्रकारा  हूंदन - वातन , पित्तन , कफ़न जन्म्या सूजन।  यु तीन प्रकारौ शोथ फिर द्वी प्रकारौ हूंदन - १ शरीर म पैदा हूण  वळ निज  २ व  भैर से प्रभावित आगन्तु सूजन।  यूंमा आगन्तु शोथ छेदन , भेदन /फड़न , चूरा  करण ,भंजन या सर्जरी , भौत जोर कैक दबाण से , पीसण , लपेटन , चोट , मरण , बंधण , पीड़न आदि से हूंद।  या भिलाव क पुष्प रस से , कौंच की  फली से , रोंयेदार कीड़ा से , बिच्छू घास /कंडाळी पत्तों से , झाड़ -झंकारक स्पर्श से , आगन्तु शोथ पैदा हूंद।  अथवा विषयुक्त प्राणियों पसीना /मैल /मल से , शरीर पर चलण -फिरण से , विषैला  दाढ़ , ,सींग  नंग क प्रहार से , कृत्रिम विषयुक्त वायु से , वर्फ या ागक स्पर्श से हूंदन।  यी आगन्तु शोथ प्रथम कारणों से प्रकट होंदन।  आगन्तु शोथ से पैल लक्छण पैदा हूंदन अर बीमारी पैथर।  यी पट्टी , लेप , मंत्र ,ौषध प्रलेप , सेक आदि से या शोधन रोपणादि चिकित्सा से शांत हूंदन।  ३। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  २२०   बिटेन    तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
 
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Bhishma Kukreti

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शरीर जन्य  शोथ ) सूजन  कारण

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  अठारवां    अध्याय  (  त्रिशोथीय   अध्याय,   )  ४  पद   बिटेन      तक
  अनुवाद भाग -  १४१
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
निज अर्थात शरीर क शोथ - स्नेह ,स्वेद , वमन , विरेचन ,आस्थापन , अनुवासन , शिरोविरेचन के अति या हीन अथवा मिथ्या योगन यूं कर्मों पैथर अपथ्य , वमन , अलसक ,विसूचिका , श्वास , खास , अतिसार , शोष , पाण्डु रोग , जौर , पुटुकौ रोग , प्रदर , भगंदर , प्रदर , अर्श रोगन  , संशोधन कर्म से , कुष्ठ , खाज ,पिडका आदि से , छींक , डंकार , शुक्र , मल , वायु क वेग रुकण से , संशोधन कर्मों से उतपन्न रोगों से , उपवासन ,शरीर क अधिक कर्षणन , एकदम से भारी , खट्टा नमकीन भोजन खाण से , पीठि  से बण्यू    भोजन से ,  फल , शाक , राग (रायता ), खीर , दही हरी भुज्जी , मद्य , धीमा मद्य , अंगर्यां अन्न , शूक धान्य ग्युं आदि , शामी धान्य ,उड़द , मूंग , जलचर प्राणियों सेवनन ,मिट्टी , कीचड़ , खाण से , बिंडी लूण खाणन , गर्भ पर दबाब से , गर्भपात से , प्रसव पश्चात , उचित परिचरय्या नि हूण से , दोषों बढ़न से शोथ उतपन्न हूंद।  यी शरीर जन्य साथ क लक्षण छन।  ४।
 
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