शरीर जन्य शोथ ) सूजन कारण
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , अठारवां अध्याय ( त्रिशोथीय अध्याय, ) ४ पद बिटेन तक
अनुवाद भाग - १४१
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
निज अर्थात शरीर क शोथ - स्नेह ,स्वेद , वमन , विरेचन ,आस्थापन , अनुवासन , शिरोविरेचन के अति या हीन अथवा मिथ्या योगन यूं कर्मों पैथर अपथ्य , वमन , अलसक ,विसूचिका , श्वास , खास , अतिसार , शोष , पाण्डु रोग , जौर , पुटुकौ रोग , प्रदर , भगंदर , प्रदर , अर्श रोगन , संशोधन कर्म से , कुष्ठ , खाज ,पिडका आदि से , छींक , डंकार , शुक्र , मल , वायु क वेग रुकण से , संशोधन कर्मों से उतपन्न रोगों से , उपवासन ,शरीर क अधिक कर्षणन , एकदम से भारी , खट्टा नमकीन भोजन खाण से , पीठि से बण्यू भोजन से , फल , शाक , राग (रायता ), खीर , दही हरी भुज्जी , मद्य , धीमा मद्य , अंगर्यां अन्न , शूक धान्य ग्युं आदि , शामी धान्य ,उड़द , मूंग , जलचर प्राणियों सेवनन ,मिट्टी , कीचड़ , खाण से , बिंडी लूण खाणन , गर्भ पर दबाब से , गर्भपात से , प्रसव पश्चात , उचित परिचरय्या नि हूण से , दोषों बढ़न से शोथ उतपन्न हूंद। यी शरीर जन्य साथ क लक्षण छन। ४।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ २२० बिटेन तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
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