भिन्न भिन्न सूजनों /शोथुं लक्षण
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , अठारवां अध्याय ( त्रिशोथीय अध्याय, ) पद ५ बिटेन १० तक
अनुवाद भाग - १४२
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
यूंमा इथगा विशेष च कि -शीत , रूखा ,लघु , विशद अन्न , खानपान , परिश्रम , उपवास , वामन , विरचनादि क भौत करणन अर अति वर्त धरणन वायु कुपित ह्वेका त्वचा , ल्वे (रक्त ) ,अर मेड आदि धातुओं पर अधिकार करि शोथ उतपन्न कर दीन्द। यु वाट जन्य शोथ जल्दी उतपन्न हूंद अर उनी जल्दी समाप्त बि ह्वे जांद। एक रंग काळो , या लाल -काळो या स्वाभाविक रंगक रौंद। यु शोथ गतिशील , धड़कन युक्त , कर्कश , कठोर , त्वचा फटण वळ , अर बाळ टुट जांदन। रोगी तै इन लगद जन क्वी चिरणु हो , दबाणु हो , मेदन करणु ह्वावो , स्यूण घुप्याणो जन डाउ , किरमळुं चलण जन स्पर्श , लया बुरकण जन चलमलाट सि हूंद , सिकुड़द अर फैलदो च। यी वायु जनित शोथ क लक्छण छन।
गरम , तीक्छ्ण , कड़ु , छार ,लुण्या , अर खट्टो पदार्थों खाणन , अजीर्ण अवस्था म भोजन करणन , आग , घामक अति सेवनन , पित्त कुपित ह्वेका त्वचा , मांस , रक्त पर प्रबल ह्वेक शोथ पैदा करद। यु शोथ जल्दी पैदा हूंद अर जल्दी शांत बि हूंद। एक रंग काळो , पीलो , नीलो , ताम्बा रंग जन हूंद , स्पर्श गरम अर कोमल बाल लाल भूरो या तांबौ रंग जन ह्वे जांदन। यु शोथ गरम हूंद अर जलन हूंद , पीड़ा दिंदेर अर तपाण वळ , गरम लगद, पसीना आंद । ना इ स्पर्श अर ना इ गरमी सहन कर सकद। यी पित्त जन्य शोथ क लक्छण छन।
भारी , मधुर , शीत , स्निग्ध , भोजनों से , ज्यादा सीण पर , व्यायाम नि करण पर , बलगम , कफ कुपित ह्वेक त्वचा , मांश , रक्त पर अधिकार कर लींद अर शोथ उतपन्न करद । इन शोथ देर से शुरू हूंद अर देर इ म शांत हूंद। एक रंग धुमैला या सफेद , स्नेहयुक्त (चिपुळ ) , भारी स्थिर , नि हलण वळ , गाढ़ो व बाळुं अगर भाग रंग सफेद ह्वे जांद। स्पर्श अर गरमी सहन ह्वे जांद। यु कफ /बलगम जनित शोथ लक्छण छन। अपण अपण कारणों द्वी दोष कुपित ह्वेका द्वी दोषुं लक्छण वळ शोथ उतपन्न करदन। ये हिसाबन संसजन्य शोथ तीन प्रकारौ छन।
तिनि दोषुं क मिलण से उत्तपन्न शोथ सन्निपातिक शोथ एक अलग शोथ च जाइका लक्छण तिनि दोषुं लक्छण हूंदन।
ये हिसाबन प्रकृति भेद से शोथ द्वी प्रकारक - बाह्य व शारीरिक ; तीन प्रकारौ - वातज , पित्तज अर कफज ; चार प्रकारक - वातजन्य , पित्तजन्य , कफजन्य अर सन्निपातजन्य; सात प्रकारौ - वातज , पित्तज , कफज अर वातपैत्तिक , वात श्लैष्मिक पित्तश्लैष्मिक , अर सन्नीपातक हूंदन। पर सूजन दृष्टि से एकि प्रकारौ हूंद अर्थात सब म सूजन सामन्य च। ५ - १०।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ २२३ बिटेन २२४ तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
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