१५२ विकार नाशी पदार्थ (अवश्य याद राखो )
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , 25 th, पचीसवां अध्याय ( यज: पुरुषीय अध्याय ) पद ३८ -३९ तक
अनुवाद भाग - २००
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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अब तक सब प्रकारौ हितकारी , अहितकारी मुख्य द्रव्यों बाराम बुले गे। अब अगनै वस्ति आदि कर्मों म अर औषधियोंम मुख्य रूप से अनुबंध सहित द्रव्यों व्याख्या करला-
शरीर की स्थिति करण वळ द्रव्यों मदे अन्न सर्वश्रेष्ठ च। धीरज , उलार -उछाह , पैदा करण वळ सब पदार्थों म जल , थकान मिटाण वळ सब पदार्थों म शराब , जीवन दीण वळ पदार्थों म दूध, बृहण करण वळम मांश , अन्नद्रव म रूचि करण वळम लूण , हृदय तै पसंद आण वळो म अम्ल रस , बलकारक द्रव्यों म कुखुड़ , शुक्र वर्धक द्रव्यों म मकर/घड़ियाल क वीर्य , कफ नाशक वस्तुओं म शहद , वातपित्तनाशक द्रव्यों म घी, वातकफनाशकों म तेल, कफनाशकों म विरेचन , वातनाशकों म वस्तिकर्म , कामलता करण वळोंम स्वेदन , स्थिरता पैदा करण वळोंम व्यायाम , पुरुषत्व नाश करण वळोंम क्षार , अन्न से अरुचि पैदा करण वळोंम तेन्दु , आवाज खराब करण वळोंम कच्चो कैथ , हृदय कुण अप्रिय , ग्लानि कारकों म ढिबरक घी; शोधनाशक दूधौ कुण हितकारी दोषनाशक , रक्त बंद करण वळोंम , रक्त पित्तनाशकों म बखरौ दूध , कफवर्धक द्रव्यों म मड़क दही , कमजोर करण वळोंम गवेधुक या बैजंती , कफ व पित्त बढ़ाण वळोंम ढिबराक दूध , निंद लाण वळुंम भैंसौ दूध , विरुक्षता पैदा करण वळोंम बणकोदो , मूत लाणम गन्ना , मल लाणम वळोंम जौ , वात पैदा करण वळोंम फळिंड , कफ -पित्त पैदा करण वळम टिल क तेल म पकायां पकोड़ी , अम्ल पित्त पैदा करण वळोंम कुल्थी /गहथ , कफ पित्त करणम उड़द ; वमन , आस्थापन अर अनुवासन कुण मदे मैनफल , सुखपूर्वक विरेचन करणम निशोथ , मृदु विरोचकों म अमलतास , तीक्ष्ण विरोचकों म थोर क दूध , शिरविरोचनों म चिरचिटा क चौंळ , कृमिनाशकों म वायविडिंग, विषनाशकों म सिरीस , कुष्ठ रोग नाशकों म खैर , वातनाशकों म रास्ना, आयु स्थिर करण वळु म औंळा , पथ्य हितकारी वस्तुओं म हरड़ , वृष्य , वातनाशकों म वस्तुओं म अरंडी जड़ ; दीपन , पाचन , गुदा शोथम , बबासीर अर शूलनाशक वस्तुओं म चित्रक मूल; हिक्का , श्वास , कास अर पार्श्वशूल नाशक द्रव्यों म पुष्करमूल ; संग्राहक , दीपन , पाचन वळ गुण वळि वस्तुओं म नागरमोथ ; दाह कम करण वळ , दीपन , पाचन , वमन , अतिसार खतम करण वळो म नेत्रबाला ; संग्राहक , पाचन , अर दीपनीय वस्तुओं म टेंटू ; संग्राहक , रक्तविनाशक , वस्तुओं म गिलोय ; संग्राहक , दीपन , वातकफ नाशक वस्तुओं म बेलगिरी , दीपन , पाचन , संग्राहक सर्व दोष नाशकों म अतीस ; संग्राहक , रक्त पित्तनाशक वस्तुओं म नीलकमल , श्वेत कमल , कमल केशर ; पित्तकफ नाशकोंम घमासा ; रक्त पित्तक अतियोग कम करण वळ वस्तुओं म घेउला ; रक्त-पित्त रक्त संग्राहक रक्त पित्त नाशकों , शुष्क करण वळ वस्तुओं म कूड़े की छाल ; रक्तसंग्राहक , रक्त पित्त नाशकों म गंभारी फल ; संग्राहक , वातनाशक , दीपनीय अर शुक्राणुवर्धक वस्तुओं म पृश्निपर्णी ; वृष्य अर सर्व दोष नाशकों म खरैंटी; मूत्र कृच्छ्र , वायु नाशकों म गोखरु ; छेदनीय , दीपनीय , अनुलोमिक (मल मूत्रक लोमिक ) , वाट नाशक वस्तुओं म अम्लवेतस , मल निसारक , पाचनीय अर्श नाशक वस्तुओं म यवक्षार ; गृहणी दोष , अर्श , घृत जन्य रोगों म रोगुं शान्ति कुण , तक्र क सतत सेवन ; ग्रहणी , शोथ , अर्श नाशक वस्तुओं म व्याघ्र आदि मांश खाण वळ पशु मांश ; रसायनोंम दूध अर घीक सतत सेवन ; उदावर्तनाशक अर वृष्यकारक वस्तुओंम घी अर सत्तू बराबर खाण; दांतुं बल अर रुचि , चमक , कांटी पैदा करणम तेल से गागल करण ; जलन शांत करणों कुण चंदन अर गूलर लेप ; ठंड दूर करणों लेपुं मदे चंदन अर अगरक लेप ; जळण म त्वग रोग , पसीना दूर करणम क्त्रीण अर खस लेप; वातनाशक मर्दन अर लेपम कूट ; आंख्युं कुण हितकारी , वृष्य , केश्य कंठ का हितकारी वर्ण बल , रंग जनक , अर रोपण जनक म मुलैठी ; प्राण दिँदेर वस्तुओंम वायु ;आम विकार , मल मूत्र अवरोध , ठंड , शूल , कम्पन दूर करणो आग तपण ; स्तम्भक पदार्थों म जल ; तीस कम करणो कुण गरम पाणी (गरम पत्थर से बुझायुं पाणी ) पिलाण ;आम रोग कारकों म अधिक खाणा खाण ; अग्निवर्धकों म जठराग्नि वृद्धि क वास्ता शरीर अनुसार व प्रकृति अनुसार भोजन ; आरोग्यकारकों म समय पर भोजन करण ; अनारोग्य उत्पादक पदार्थों म वेग रुकण (मल मूत्र , वीर्य , आदि रुकण ); मन की प्रसन्नता कारियोंम मद्य ; बुद्धि , धैर्य , स्मृति नाशकोंम मद्य को अधिक सेवन ; पचणम कठिन वस्तुओंम गुरु , गरिष्ठ भोजन ; सुगमता से पचण वळ वस्तुओंम एक समय भोजन करण ; शोथ (सूजन ) अर क्षय कारी वस्तुओंम अधिक स्त्री संग; नपुंसक कारी वस्तुओं म वीर्य वेग रुकण ; अन्न म अश्रद्धा पैदा करणम बधस्थल ; वायु ह्रास कारणों म नि खाण ; क्षीण , निर्बल करण वळम कम खाण ; ग्रहणी रोग करण वलोंम भोजन का ऊपर भोजन करण; अग्नि तै विषम करणों कारणोंम समय पर नि खाण (कुसमय खाण ); कुष्ठ रोग पैदा करणम वीर्य विरुद्ध खाण (जन मछली अर दूध का सेवन ) का सेवन ; सब पथ्योंम शांति; सब अपथ्योंम थकान /परिश्रम ; व्याधियों म मुख्य वमन, विरेचन , आहारम मिथ्यायोग; दारिद्र या अमंगल कारणोंम रजस्वला स्त्री से संभोग; आयुवर्धक वस्तुओंम ब्रह्मचर्य; रोग वर्धकोंम शोग; वृष्य वस्तुओंम संकल्प ; अवृष्य वस्तुओं म मन की अप्रसन्नता; प्राणहारक कारणोंम सीमा से भैर कार्य करण; शर्म नाशकोंम नयाण ; पुष्टिकारक वस्तुओंम प्रसन्नता; सुकाण वळ वस्तुओंम सोग; पुष्टिकारकों म संतोष; नींद लाण वळुंम पुष्टि ; आलस्य करण वळोंम निंद ; बलकारी वस्तुओंम सब रसोंक हभ्यास; निर्बल करण वळ -एकि रस सेवन ; खैंचि निकळण वळ अयोग्य वस्तुओंम गर्भ रुपी शल्य; भैर निकाळण वळ वस्तुओंम; कोमल औषधि उपचारम बालक ; याप्य रोगोंम बिर्ध ; तीक्ष्ण वेग की औषध अर व्यायाम त्यागण वळोंम गर्भवती; गर्भ स्थिर कराण वळोंम मन की प्रसन्नता; दुष्चिकत्स्य रोगों म सन्निपात जन्य रोग ; कठिन चिकित्सा म आम जन्य रोग ; सौब रोगोंम जौर ; दीर्घ रोगुंम कोढ़; रोग समूहोंम राज्य क्षमा , आनुषंगिक रोगुंम प्रमेह; अनुशास्त्रुंम , जोंकम , तंत्रोंम , वस्ति: औषध भूमिम हिमालय; आरोग्य क्षेत्रोंम मरुभूमि ; अहितकारी देशोंम जल युक्त जलवायु ; रोगिक चारोंगुणों म वैद्य आदेशानुसार काम करण; चिकित्सा क चरी अंगु म वैद्य ; स्वास्थ्य वस्तुओंम मस्तिष्क; दुखदायी कारणोंम लोभ ; अरिस्ट अर्थात मृत्यु कारणों म नि चलण; रोग लक्षणोंम मन दुश्चिंता; शोक , संदेह मिठाण वळुम वैद्य समूह; वैद्य का गुणोंम देस काल अनुसार चिकित्सा करण ; औषधियोंम यथार्थ ज्ञान ; ज्ञानसाधनोंम तर्क सहित शास्त्र; काल ज्ञान समयानुसार कार्य करण ; व्यवसाय नि करण ,समय क नाश करण वळो कारणोंम कर्म क दिखण संदेह मिटाण वळम ; भय करण वळ कार्योंम असामर्थ्य ; बुद्धि वृद्धि वळ कारणोंम विद्या जणगरुं दगड़ दगुड़ अर बातचीत ; शास्त्र का तत्व जणनो कुण आचार्य; अमृतोंम आयुर्वेद; कर्तव्योंम सत्य वचन; सबसे अहितकारी वस्तुओंम असत्य सेवन; सौब प्रकारौ सुखम संन्यास श्रेष्ठ तर या श्रेयकर हूंदन। १३८।
ये प्रकारन १५२ (एक सौ बावन ) श्रेष्ठ पदार्थ बोल दिए गेन जु विकार समाप्त करदन । ३९।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ २८२ -२८८
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
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