Author Topic: चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita  (Read 19066 times)

Bhishma Kukreti

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रसों योगुं   २० भेद
 
चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद  १४ 
  अनुवाद भाग -  २०८
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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तीन रसों क योग का भेद २० छन जन कि - १ -मधुर अम्लौ  दगड़ लवण आदि चरि का  बिगळ्यूं -बिगळ्यूं योग हूण से चार भेद।  २-  मधुर लवण का दगड़ कटु  क योग से तीन भेद।  ३- मधुर कटु का कटु , कषाय का  पृथक पृथक  (बिगळ्यूं) योग से द्वी भेद ४- अम्ल लवण का कटु आदि तीन क दगड योग से तीन भेद ५- अम्ल कटु का तिक्त कषाय से योग हूण पर एक भेद६- अम्ल तिक्त को कषाय से योग से एक भेद  ७ - लवण का कटु तिक्त व कषाय दो से योग से द्वी भेद ८- लवण तिक्त कु कषाय से योग हूण पर एक भेद जन -
१- मधुर अम्ल लवण
२- मधुर अम्ल कटु
३- मधुर अम्ल तिक्त
४- मधुर अम्ल कषाय
५- मधुर कटु तिक्त
६- मधुर लवण तिक्त
७- मधुर लवण कषाय
८- मधुर कटु तिक्त
९- मधुर कटु कषाय
१०- मधुर  तिक्त कषाय
११- अम्ल कटु तिक्त
१२- अम्ल कटु कषाय
१३- अम्ल तिक्त कषाय
१४- लवण कटु तिक्त
१५- लवण कटु कषाय
१६- अम्ल लवण कटु
१७- अम्ल लवण तिक्त
१८- अम्ल लवण कषाय
१९- कटु तिक्त कषाय
२०- लवण तिक्त कषाय।  १४।   
 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २९७ 
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
 
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद

Bhishma Kukreti

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15 प्रकारा रस (भोजन स्वाद )
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद  १५  बिटेन  १८  तक
  अनुवाद भाग -  २०९
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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चार रसुं  क भेद पंदरा छन यथा -  चार रसुं (स्वादु  , अम्ल , लवण , कटु ) म एक एक रस का ( कटु , तिक्त , कषाय )  संयोग हूण से छै रस बणदन।  इनम  स्वादु अर अम्ल स्थिर हून्दन।  १५-१६।
स्वादु अर लवण का दगड़ कटु , तिक्त , कषाय क योग से तीन अर लवण तैं छोड़ि स्वादु , कटु , तिक्त , कषायक योग से एक , ये हिसाबन दस भेद हूंदन।  अब स्वादु (मधुर ) रसक छुड़न से (अम्ल ,लवण यूंका कटु , तिक्त कषाय क योग से ) तीन , लवण छुड़न से अम्ल , कटु, तिक्त , कषाय क योग से ) एक , अर मधुर व अम्ल रस छुड़न से लवण , तिक्त , कटु व कषाय योग से एक , ये हिसाबन 15 भेद बण जांदन।  जनकि
१- मधुरआम्ललवणकटु
२-मधुराम्ललवणतिक्त
३-मधुराम्ललवणकषाय
४- मधुराम्लकटुतिक्त
५-मधुराम्लकटु कषाय
६- मधुराम्लतिक्त कषाय
७-मधुरलवणकटुतिक्त
८-मधुरलवणतिक्तकषाय
९- मधुरलवणकसायकटु
१०-मधुरकटुतिक्तकषाय
११- अम्ललवणकटुतिक्त
१२- अम्ललबनतिक्तकषाय
१३- अम्ल लवण कषायकटु
१४-अम्लकटुतिक्तकषाय
१५- लवणकटुतिक्तकषाय।  १७ -१८। 
 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २९७- २९८
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
 
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद

Bhishma Kukreti

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६३ प्रकारा  भोजन  रस
 
चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद  १९ बिटेन  २२ तक
  अनुवाद भाग -  २१०
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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एक एक रस छुड़न से छै रस बणदन जनकि मधुर (स्वादु )  छुड़न से अम्ल , लवण, तिक्त , कटु , कषाय ; अम्ल छुड़न से  स्वादु , लवण , तिक्त , कटु , कषाय ; इनि लवण ,  , तिक्त , कटु , कषाय छुड़न से  छै रस
१- अम्ललवणकटुतिक्तकषाय २-मधुरलवणकटुतिक्तकषाय ३- मधुराम्लकटुतिक्तकषाय ४- मधुरअम्ल लवणतिक्तकषाय ५- मधुराम्ललवणकटुकषाय ६- मधुराम्ललवणकटुतिक्त। 
एक एक रसक छै भेद हूंदन। अर यूंको मिलण से ६३ रस ह्वे जांदन। अर यूं तिरसठ परकारा रस भेद बुले गेन।  यूंमा अनुरस की कल्पना नि करे गे।  जु रस अर अनुरस मिलाये जावन त संख्या असंख्य ह्वे जाला।  फिर चिकित्सा आचार्युंन व्यवहारौ कुण ५७ )सत्तावन ) संयोग अर  मधुर , अम्ल , लवण, तिक्त , कटु , कषाय मिलैक ६३ भेद मानिन।  १९ -२२। 
 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २९८ -२९९
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
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Bhishma Kukreti

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वैद्यs  वास्ता रस लक्छण व प्रयोग कु महत्व

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद  २३  बिटेन  २५  तक
  अनुवाद भाग -  २११
s = आधी अ
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 जणगरु  व कुशल वैद्य  एवं सफलता चाहि  वैद्य सणि   कखिम एक रसै , कखिम मिळ्वाकी रसुं  की दोष , औषध आदि क भली भाँती विचार करण  चयेंद।  जनकि द्वि रसी द्रव्य (मूंग कषाय व मधुर हूंद ) , तिरसी द्रव्य , चार रसी द्रव्य (टिल- स्निघ्धोष्ण , मधुरतिक्त  कषाय, कटु  ), पांच रस वळ द्रव्य ( हरीतकी ), छै रसी द्रव्य (अव्यक्त जन  विष) , षडरससंयुक्तं जन  हिरण शिकार )।   अर द्वी रसुं की , मिश्रित द्रव्यों की  कल्पना अथवा एक एक रसै कल्पना रोग अनुसार करदन।  जु व्यक्ति रसुं भेद भली भाँती जणदु  स्यु रोगुं कारण द्रव्यों को ज्ञान बि जण लीन्दो /सकदो।  अर दोषुं (वातादि आदि ) लक्छणो तै बि भल प्रकार  पछ्याण  लीन्दो।  या जु  व्यक्ति भेषज द्रव्यों स्वरूप से व यूंको प्रयोग जणदु वु रोगुं कारण , लक्छण , व चिकित्सा म नि घबरान्द अर  चिकित्सा से भयभीत नि हूंद।  २३- २५
 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   २९९
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
 
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Bhishma Kukreti

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व्यक्त रस , अनुरस अर  १० गुण
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 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद  २६  बिटेन  २८  तक
  अनुवाद भाग -  २१२
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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अनुरस - सुखो या गीलो वक्त जब रस जीब स्पर्श से पता चलो तो वो 'व्यक्त रस' हूंद।  किंतु जु रस इनमा पता नि चौलु मतलब पैथर पता चलदो वो ' अनुरस' हूंदो।  जनकि पीपली दिलो अवस्था म मधुर व शुष्क अवस्थाम कटु हूंद।  अर्थात कटु व्यक्त अर मधुर रस 'अनुरस' च।  कांजी या टाक तै पीणम जु पता लगद वो रस  - 'रस व पैथराक रस 'अनुरस' हूंदन। सतों रस पृथक नि हूंद। २६.
दस गुण हूंदन - पर , अपर , युक्ति , संख्या , आयोग , विभाग , पृथक्त्व , परिणाम , संस्कार अर हभ्यास यि दस गुण छन।  चिकित्सा सफलता यूं दस गुणुंम आश्रित च।  अगनै लक्छण बुले जाल।  २७ -२८। 
 
 
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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३००
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
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Bhishma Kukreti

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पर व अपर दस गुणों लक्छण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद  २९  बिटेन  ३५   तक
  अनुवाद भाग -  २१३
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देश, मरुदेश पर अर अनूप अपर।  काल विसर्ग पर, आदान अपर।  वय तरुण पर ,बाल बृद्ध अपर I  मान शरीर कु बुल्युं पर, यांक अतिरिक्त सब अपर . पाक , वीर्य अर रस यि जै योग का प्रति होवन वैकुण पर दुसरों  कुण अपर।  देस , काल मान वय , वीर्य , रस आदि का अपेक्षा से छन।  जन मरु देस बंगालक अपेक्षा  पर छन।  बंगाल मरुदेश की अपेक्षा से पर च।  इनि वयम  बाल्यावस्था युवावस्था क बनिस्पत पर च अर  बाल्यावस्था अपर च ।  पर अपर अपेक्षा से च।  अथवा सन्निकृष्ट  अर विप्रकृष्ट भेदन पर व अपर भाव निर्मित हूंदन।  युक्ति , योजना दोषादि क अपेक्षा से औषध की भली भाँती कल्पना करण चयेंद।  संख्या , गणत , एक द्वी तीन आदि। 
संयोग - वस्तुओं परस्पर संयुक्त हूण।
यु संयोग तीन प्रकारौ हूंद १- द्वन्द -जन द्वी ढिबरों लड़ै; २ - सब्युं -जन भांडम उड़द दाळ         ३ -एककर्म जन्य - जन डाळम  बैठ्युं कवाक, यु संयोगजन्य कर्म  अनित्य च । 
विभाग - बंटण , भाग करण। संयोग कु  वियोग विभाग रूपम  विभाग हूंद। 
पृथकत्व - तीन प्रकार हूंदन - सर्वथा जन मेरु अर हिमाला कु , बिजात्यूं जनकि -भैंस अर सुंगर मध्य।  ३- विलक्षण जन्य जनकि विशिष्ठ जातियों क पृथकत्व।
अनेकता - एक जात्यूं संयोगम रौण वळ भिन्नता क नाम अनेकता च। जन उड़द म सब उड़द एकजनि नि हूंदन। 
परिमाण - मान , भार , तोल।
संस्कार - कै द्रव्य म जैं क्रिया से गुणान्तर करे जाव वो  वा क्रिया संस्कार हूंद।
हभ्यास - कै द्रव्य या क्रिया कु  निरंतर उपयोग करण , व्यवहार करण  हभ्यास हूंद। ये हभ्यास  सणि उर्दू म आदत बुल्दन।
इन म पर आदि  दस गुणों क लक्छण बुले गेन।
जु  वैद्य तैं यूं गुणों ज्ञान नि होलु त  चिकित्सा सफल नि  ह्वे सकद।
अब तलक रसुं परस्पर संयोगी गुणु बात ह्वे अब  स्निग्धत्वादि गुणो बाराम चर्चा ह्वेलि।  जु गुण बुले गेन वो गुण रूप , रस आदि म आश्रित नि हूंदन अपितु रसक आधारभूत द्रव्य पर आश्रित हूंदन।  इलै रसक गुणो तैं बि द्रव्यों गुण समजण  चयेंद रस का ना।  यथा -मधुर रस  स्निग्ध, शीत  अर  गुरु हूंद मतलब कि मधुर रस वळ द्रव्य स्निग्ध , शीत , गुरु  युक्त हूंदन।  गुण गुण क अभाव म नि रै सकद।  इन बुलण ग्रंथकारै  शैली हूंद।  प्रत्येक ग्रंथ तै  समजणो   कुण ग्रंथकारौ अभिप्राय  समजण  आवश्यक हूंद, प्रकरण , देस , काल तै  बि समजण  आवश्यक हूंद ।  जन क्षार म थोरक  दूध लीण  चयेंद, गौड़ -भैंसक दूध ना ।  देस - शिर शोधनम क्रिमिव्याधि अर्थात शिरोजन्य कृमि रोगम इनि समजण  चयेंद।  काल - वमन  काल म बुलणम बमन म वमन करणो  पात्र लावा।  इनि  भोजन समयम  सैंधवमानव बुलण  अर्थात लूण  लाण उचित हूंद नाकि  घ्वाड़ा ।  इलै ग्रंथकारक अभिप्राय से रसोंम गुणुं कथन समजण  चयेंद।  जखम प्रकरणगत देस काल आदि द्वारा ग्रंथकारौ स्पष्ट नि ह्वावो त उपायुं  द्वारा तंत्र युक्ति रूपी उपायुं  से अर्थ समजण चयेंद।  २९-३५






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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  ३००  -३०२
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शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

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 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद ३६   बिटेन  ३८  तक
  अनुवाद भाग -  २९४
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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पंच महाभूतुं से जनम्यां रसों क विभाग करी बुले जाल।  कै प्राकरन रस जन्मदन। सब रसुं जन्मस्थान पाणि च।  यु पाणि सौम्यगुणी , अंतरिक्ष बिटेन  उतपन्न हूण वळ , स्वभावन शीतल , लघु व अव्यक्त रस च।  यु पाणि अंतरिक्ष से तौळ पड़द  अंतरिक्ष म स्थित पृथ्वी आदिक परमाणुुं  से दूषित  ह्वेक पंच महाभूत से निर्मित जड़ व चल पदार्थों तै तर्पण करद।  यूं पदार्थुं तै स्वरूप दीन्द माने उतपन्न करद ।   यूं पदार्थुं से इ ६ रस अभिव्यक्त हूंदन। ३६ - ३७।
इखम अंतरिक्ष स्थित जल तैं रसोतपति क  मुख्य कारण मने गे।  यांसे पृथ्वी क स्थित  पाणि बि स्थावर व जंगम पदार्थों म रस उतपन्न करद।  यूं छह रसुंम  सोम गुण  बिंडी हूण से मधुर रस , पृथ्वी व अग्नि गुण की अधिकता से अम्ल , पाणि अर अग्नि क अधिकता से  लवण , वायु अर अग्नि की अधिकता से कटु , वायु व आकाश की अधिकता से तिक्त , वायु व  पृथ्वी क अधिकता से कषाय रस जन्म लीन्दन। इनम  पंच भूतों कम बिंडी हूण से रस पैदा हूंदन। जन सम्पूर्ण स्थावर व जंगम पदार्थोंम महाभूतों क कम व बिंडी नाना प्रकारक वर्ण , रंग , आकृति रूप आदि निर्मित हूंदन।  ऊनि रस बि पैदा हूंदन। इनि महाभूतों कम बिंडी हूण से काल , संब्तसर , छह ऋतुओं म विभक्त हूंदन। यथा  हेमंत म सोम गुण की अधिकता हूंद।  शिशिर ऋतू म वायु अर आकाश की अधिकता हूंद। अध्याय छै म बताये गे  बल बीजांकुरवत  कार्य कारण की भाँती संसारक अनादि हूण से पंच महाभूत अर ऋतुओं  कार्य कारण समजण  चयेंद।  ३८     । .


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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३०२ बिटेन ३०३
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रसुं  अधोगामी व उर्घ्वगामी गुण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद  ३९ 
  अनुवाद भाग -  २९५
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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यूं मदे अग्नि अर  वायु गुण क अधिकता  वळ रसयुक्त द्रव  प्रायः वमनकारी हूंदन।  किलैकि वायु उड़न वळ अर हळकी हूंद।  अग्नि स्वभाव मथि तरफ़ जळणो हूंद।  अग्नि मथ्या तरफ गति करद।  इलै इन गुण  वळ   द्रव्य ऊर्घ्वगामी हूंदन।  जल अर पृथ्वी गुण युक्त रस युक्त द्रव्य   प्रायः अधोगामी  (विरेचनकारक ) हूंदन।  किलैकि पृथ्वी गुरु हूंद त जल  गुण तौळ  बगण  च ।  जौं पदार्थों म चर्री तत्व मिल्यां  रौंदन।  तो उर्घ्वगामी व अधोगामी दुई हूंदन। ३९। 



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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३०३
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना


Bhishma Kukreti

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मधुर रस गुण व लक्षण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद  ४०
  अनुवाद भाग -  २९६
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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यूं छै रसुं मदे  एक एक रस क आधार द्रवानुसार गुण कर्मै  व्याख्या करला।  यूं मदे मधुर रस जन्म से इ सरैलका अनुकूल हूंद।  रस , रक्त , मांस , मेद , मज्जा , आज अस्थि अर शुक्र बढ़ान्दू, आयुवर्धक, श्रोत्र , वक , नासिका , चक्षु , रसना से पांच ज्ञानेनेन्द्रिय , मन यूं  सब तैं प्रसन्न अर निर्मल करद।  बलकारक , कांतिकारक , पित्तनाशक , विषनाशक , वायुनाशक , तृष्णानाशक , त्वचा , केश , अर स्वर कुण हितकारी , आल्हादजनक , अभिघात आदि से वेहोश व्यक्ति तै जिंदगी दिँदेर , तृप्ति  करंदेर , वृद्धि कारक , स्थिरकारक , छीण व कष्ट व्यक्ति तै शक्ति दायक , टूटयां तै जुड़न वळ , नाशिका , मुक , कंठ , ऊंठ अर जीब क आह्वाहन करण वळ , जळण अर मूर्छानाशी , भौंरा अर किरमळुं  प्रिय , स्निग्ध , गुरु व शीत च।  हालाँकि मधुर रस म इथगा  गुण छन किन्तु इखुलि भौत दिन तक खाण से कमजोरी , कोमलता , अळगस , नींद की अधिकता , भारीपन , भोजन से अरुचि , अग्नि की निर्बलता , मुक -गौळम मांस वृद्धि , श्वास , कास , प्रतिस्वास , अलसक , शीत जौर , अफारा , मुखक मधुरता , वमन , संज्ञा नाश , स्वर नाश , गळगंड , गण्डमाला , स्लॉपद , गौळै  उस्याण /सूजन , वस्ति , धमनी म मांस , चर्बी बढ़ सकद , नेत्र रोग ,अभिभयंद , कफ आदि रोग ह्वे जंदन।  ४० 


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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३०३ -३०४
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना


Bhishma Kukreti

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अम्ल रस गुण  व लक्षण 
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद ४० (२ )  बिटेन   तक
  अनुवाद भाग -  २९७
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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अम्ल रस अन्न म रूचि पैदा करद।  अग्नि बढ़ांद, शरीर बढ़ांद, तेज दींदो , मन जागृत / उत्तेजित  करदो , ।  इन्द्रियां बलवान करद।  वायु अनुलोमन करद।  हृदय कुण हितकारी च।  मुखम लाळ चुवांद।  खायुं भोजन तै भैर करद , सरैल गीलो करद।  खायुं  भोजन पचांद , मन प्रसन्न रखद . लघु , स्निग्ध अर उष्ण गुण वल हूंद। 
यू इ  रस अधिक मात्रा म प्रयोग ह्वे त दांत सिल्ल (खट्टा ) करद , भोजन म अनिच्छा पैदा करद , आँख बंद करद , शरीर क बाळ ुं  तै कम्पाई दींद।  रोमांचित करद , कफ पिघळांद , पित्त बढ़ांद, रक्त दूषित करद, मांस म जलन पैदा करद , शरीर सुस्त करद निर्बल रोग्युं म सूजन पैदा करद दांत टुट जांदन , जख्म तेज हूंद संधि भरंश हूंद ।  अम्ल मूट जन्य विष (जन मकड़ा क मूट ) तै , रगड़ लग्युं तैं , द्वी टुकड़ा जगा तै पकाइ दीन्द।  अग्नि गन हूण  से कंठ म , छातीम , हृदय म जलन पैदा करद।  ४० (२) । 

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३०४
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना


 

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