Author Topic: चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita  (Read 18944 times)

Bhishma Kukreti

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छै रसों लक्षण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद  ७०  बिटेन  ७६  तक
  अनुवाद भाग -  ३०८
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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एक अगनै  छह रसों का लक्छण बुले जाल।
 जु रस स्निग्धता , प्रसन्नता , आल्हाद , अर मृदुता उतपन्न करद ;  मुख म धरण से चिकस भरे जाव , लिसलिसा आयी जावो , यु मधुर रस च। 
जु रस दांत खट्टा कर द्यावो , मुक बिटेन लाळ चुवाओ , पसीना आवो , मुख म जागृति उतपन्न कर द्यावो , मुख अर गौळ म जळन पैदा कारो स्यू अम्ल रस च। 
जु  रस मुख म रखण से घुलण  लग  जावो , लाळ चुवाओ , मुखम हळकोपन आंद , मुखम विदाह हूंद , वै  तैं लवण  रस बुल्दन। 
जै  रसन  जीब  स्पर्श म ही  चुरचुराट ह्वावो , स्यूण जन चुभन ह्वावो , मुख बिटेन नाक तक जळावो , आंख्युं म ाबसु बगावो स्यु  कटु रस च। 
जु रस जीब पर स्पर्श पर जीब तै जड़ कौर द्या , कुछ अच्छा नि लग , मुख साफ़ करद , आल्हादित करद स्यु तिक्त रस हूंद।
जै रस खाणन जीब स्वच्छ , जड़ , अर स्तम्भित ह्वे जावो , गळ  ताऊ रोक द्यावो ,  , हृदय तै पीड़ित कर द्यावो वु 'कषाय' रस हूंद।  ७० - ७६। 

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   -३१४ -३१५
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना


Bhishma Kukreti

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विरुद्ध  आहार प्रभाव
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद ७७   बिटेन ७९   तक
  अनुवाद भाग -  ३०९
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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इन बुलद अग्निवेश न महर्षि आत्रेय कुण ब्वाल - हे भगवन ! आपन द्रव्य गुणक कर्म विषयुं म जु बि अर्थपूर्ण बचन बुलीन वु सूण ऐन।  किन्तु विरुद्ध आहार क बारा म सुणनै इच्छा च , इलै आप प्रतिपादन कारो श्री। 
यां पर महर्षि आत्रेयन बोलि - सरैलक रसादि सात धातु या वातादि दोष , यूंक प्रकृति विरुद्ध दूषित करण से सरैल का धातु बिगड़ जांदन।  यूं द्रव्युंम परस्पर संयोग से , कुछ संस्कार से , कुछ स्थान , कुछ काल से ,मात्रा से , कुछ स्वभाव से दूषित करण वळ हूंदन।  परस्पर विरुद्ध कण माछक दगड़ दूध  सेवन।  संयोग विरुद्ध जन बढ़ल अर उड़द  दगड़ सेवन। संस्कार विरुद्ध जन कबूतर तैं राईक तेल म भूनि सेवन। देश /स्थान द्वी प्रकारक हूंदन भूमि अर सरैल ।   भूमि विरुद्ध जन रंगुड़ अर धूळ भर्यून भोजन करण. सरैल विरुद्ध जन गरम  अवस्था म मधु सेवन।  समय विरुद्ध जन बासी मकोय सेवन।  मात्रा विरुद्ध जन मधु अर घी क एकि मात्रा सेवन।  स्वभाव विरुद्ध जन विष आज का विरुद्ध हूंद।  यूं  मदे कुछ व्यवहार म प्रयोग  हूंदन जनकि - माछ अर दूध क दगड़ सेवन नि हूण  चयेंद।  किलैकि  द्वी मधुर रस व मधुर विपाक क हूंदन।  दुयुंक एक दगड़ सेवन से कफ वृद्धि हहूंद।  दूध शीत वीर्य हूंद अर माछ उष्ण वीर्य हूंदन।  इलै रक्त दूषित करदन अर महा भिस्यंद हूण से सब सत्र बंद ह्वे जांदन ।  ७७ - ७९।     
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३१५ -३१६
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना


Bhishma Kukreti

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विरोधी अन्न जु दगड़ी  नि खाण
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विरोधी अन्न जो  साथ साथ सेवन नहीं करने चाहिए

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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )  ८०   पद   बिटेन ८२   तक
  अनुवाद भाग -  ३१०
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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महर्षि आत्रेय क बचन सुणि भद्रकाप्य मनु न अग्निवेश कुण बोलि - चिलचिम माछ छोड़ि  हौर माछ दूधक दगड़ खये सक्यांद च।  यिं चिलचिम माछक चरि ओर लाल धारी हूंदन अर रेगिस्तान म हूंदन।  यूं माछों दूध क दगड़ सेवन से रक्तजन्य या अवरोध (मल मूत्र ) रोग ह्वे जांदन अर मिरत्यु बि  ह्वे जांद।  ८०।
भगवान आत्रेयन बोलि - यि  ठीक नी।  क्वी बि  मछली दूधक दगड़  नि खाण चयेंद विशेषकर चिलचिम त ना।  किलैकि यु माछ चिलचिम   भौत अभिष्यंद  करंदेर हूंद।  इलै भयंकर रोग अर आम विष उतपन्न करद।  ग्राम्य , आनूप , अर जलचर प्राणियों मांस मधु , तिल   गुड़ , दूद , उड़द , मूली , भैस , नाल , अंकुरित धान्यों दगड़ एक दगड़ी नि खाण  चयेंद।  यूंक  दगड़ दगड़ सेवन से बैरोपन , अन्धत्व , कम्पन , जड़त्व , मिनमिन , गूंगापन , गूनापन , ह्वे सकद अर मिरत्यू बि।  पुष्कर रत्न , अर कटु रोहणी शाक तैं , कबूतरौ मांस तेन राई तेल म भूनि  दूध अर मधु दगड़ नि खाण चयेंद।  यूंक खाणन रक्तभिष्यन्द ,सिराजन्य ग्रंथि रोग , अपस्मार , शंख कसूल , गळगंड , कंठरोहणी , मदे एक रोग ह्वे सकद त  मिरत्यू बि ह्वे  सकद। 
मूळी , ल्यासण , शोभांजन की भुज्जी , अर्जक , तुलसी खैक दूध नि पीण  चयेंद कुष्ठ रोग क अंदेशा हूंद।  बंशपत्रिका क दूध , बड़हल तै शहद क दगड़ नि खाण चयेंद किलैकि या त मिर्त्यु हूंद या व्रण , वीर्य नाश हूंद, नपुंशकता बि  ह्वे सकद ।  ढयो या बड़हल फल तै उड़द दाल अर  घी दगड़ नि खाण  चयेंद किलैकि संयोग विरुद्ध च।  इनि आम फल , बिजौरा , बड़हल , करौंदा , क्याळा , बेर , कमरख , फळिंड , इमली ,
अखोड़ , कटहल , अनार , औंळा , मतलब तरल ठोस खट्टा पदार्थक दगड़ दूध सेवन नि करण यि  दूध विरोधी छन। 
इनि कंगू , जंगली मूंग , मोठ , गैथ (गहथ ) , उड़द या पीठि से बण्यां पदार्थ दूध विरोधी छन।  पद्योत्तरीका क शाक तै शक़्कर , मैरेय , मधु दगड़ नि खाण।  कबूतर क मांस तै राई तेल म भूटण से पित्त कुपित ह्वे   जांद।  सत्तू तै दूध या खीर म छोळी खाण विरुद्ध च किलैकि श्लेष्मा बढ़ जांद।  तिल कल्क दगड़  मर्सू पकयिं  भुज्जी अनीसार उतपन्न करद।  बालका पंछी , शराब व कुलमास दगड़ी  विरुद्ध छन।  इनि बालका पंछी तै सुंगरs  चर्बी म भुटण से मिर्त्यु भय हूंद।  मोरक मांस , एरंडी क कड़छी , एरंडी क आग से , एरंडी तेल म भुटण से तुरंत मिरत्यू डौर रन्द।  हळदा अर कबूतरs मांस हळदो क  कड़छी म पकायुं , हळदा लखड़म पकायुं अति हानिकारक हूंद (मिरत्यू बि )।  कबूतर क मांस तै रंगुड़ , माट मिलयूं शहद दगड़ सेवन हानिकारक हूंद शीघ्र मिरत्यू बि ।  एक मात्रा म मधु अर घी , मधु अर बरखापाणि , मधु अर कमल गट्टा , मधु पेकी गरम पाणि , भिलावा अर गरम  पाणि ; छाछ म सिद्ध कमीला , रात क धरीं बासी मकोय , अंगारों म शूलाकृत (कुकुड ) मॉस विरुद्ध छन।  प्रश्न अनुसार विरुद्ध अन्न या  भोजन बता येन। ८१ -८२ 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३१७   -३१८
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
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Bhishma Kukreti

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विरोधी भोजन से उतपन्न रोग
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद  ८३ बिटेन १०३   तक
  अनुवाद भाग -  ३११
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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जु भोजन दोषुं  तैं  कुपित कौरि  भैर  निकरदो  अर्थात भितर इ  रण  दींदन  यि सौब अहितकारी भोजन हूंदन।  इनि देस (स्थान ) , समय व वर्ग (व्यक्ति क प्रकृति )  , अग्नि , सात्म्य, वायु आदि दोष, संस्कार , वीर्य , कोष्ठ , अवस्था , क्रम , परिहार , उपचार , पाक , संयोग , हृत सम्पत  अर  विधि म जु  द्रव्य विरोधो ह्वावन सि अहितकारी हूंदन।  मारवाड़ आदि सुखो देस म रुखो , तीखो पदार्थ ; जल बहुल बंगालम स्निग्ध अर शीत सेवन स्थान विरुद्ध छन।  इनि शीत ऋतू म शीत अर  रुखो पदार्थ सेवन , उष्ण ऋतू म उष्ण अर कटु पदार्थ सेवन समय विरुद्ध हूंदन।  अग्निक विषम , मंद,  तीक्ष्ण या सम   यूं  चार जठराग्नि म विरोधी अन्न  पान विरोधी छन।  मधु अर  घी एकि मात्रा सेवन विरोधी छन।  जै पुरुष तै कटु , उष्ण आदि पदार्थों सात्म्य ह्वावो यदि मधुर अर  शीत पदार्थों सेवन कारो त यु सात्म्य विरोधी ह्वे। सामान गुणों विरुद्ध जु  भोजन हूंद वु  वायु विरुद्ध बि  हूंद।   एरंडी की कड़छी से पकायुं  मोर मांस विष सम  हूण से संस्कार विरुद्ध हूंद।  ज्वा  वस्तु शीतवीर्य ह्वावो वै तै उष्ण वीर्य  वस्तु दगड़ खये जावो त वीर्य विरोधी हूंद।  क्रूर कोष्ठ वळ पुरुष तैं थुड़ा मृदुवीर्य अथवा ारेचक पदार्थ दीण अर मृदुकोष्ठ  वळ पुरुष तै गुरु , भौत रेचक पदार्थ दीण कोष्ठविरोधी च।  परिश्रम , मैथुन , स्त्रीसंग , व्यायाम लग्युं पुरुष तैं वायुकोपक आहार दीण  या निद्रा शील या आलसी पुरुष तैं  कफकोपक भोजन दीण अवस्थाविरुद्ध हूंद।  मल मूत्र कर्यां बगैर , बिन भूकक खाण अथवा लाचार म खाण  क्रम विरुद्ध हूंद।  सुंगरौ  मांस खाणो उपरान्त गरम या घी खैक मथि बिटेन शीतल पदार्थ सेवन परिहार विरुद्ध हूंद।  दुष्ट लकड़ी से पकायुं , काचो -पाको , भौत पकयूं , जळ्यूं  भात खाण पाक विरोधी हूंद।  दूध -खटाई संयोग विरोधी ह्वे।  जु मन विरोधी भोजन ह्वावो स्यु  हृदय विरोधी बुले जांदन।  जैमा रस नि ह्वावो सि सम्यद् विरुद्ध हूंद।  जु भोजन एकांत म नि खये जाय स्यु शास्त्र हूंद।  ये प्रकारौ विरोधी अन्न स्वस्थ पुरुष तैं , जैक अग्नि दीप्त ह्वावो , युवा पुरुष तैं , सात्म्य बण गे हो , या अलप मात्रा म हुवावो , व्यायाम से बलवान हुयुं हो तै विरोध भोजन विशेष हानि नि  हूंद। 
विरोधी अन्न भों खाण से निम्न रोग उतपन्न हूंदन - नपुंसकता , अंधत्व , वीसर्प , जळोदर , विष्फोटक , उन्माद , भगन्दर , मूर्छा , मद , अकारा , गळरोग , पांडुरोग , आमविष , किलास , कुष्ठ , संग्रहणी , शोथ , रक्त पित्त , जौर , पीनस।  इनि संतति म पौंछण वळ दोषुं अर मृत्यु कारण बि विरोधी भोजन हूंदन।  ८३- १०३। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३२० -३२१
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
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Bhishma Kukreti

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विरुद्ध अन्न सेवन उपज्यां  रोगुं  निदान विधि
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 26  th,  छब्बीसवां  अध्याय   (  भद्र काप्यीय  अध्याय   )   पद  १०४  बिटेन  ११२  तक
  अनुवाद भाग -  ३१२
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ये प्रकारा विरोधी अन्न सेवन से उपज्यां रोगुं  चिकित्सा इन हूंद - वमन , विरेचन अर रोगुं  विरोधी द्रव्यों सेवन करण, विरुद्ध आहार , अन्य रोगुं  विरुद्ध द्रव्यों उपयोग से  सरैल संस्कृत करण  या रसायनुं  से  शरीर शुद्ध करण ।  १०४।
विरुद्ध आहार से उपज्यां रोगुं निदान विरेचन , वमन व  पूर्व बतायां रसायन शुद्धिकरण से ही हूंदन।  १०५।
रस निश्चय संबंधम महर्षियुं की भिन्न भिन्न मति , द्रव्यों  गुण कर्म , रसुं  संख्या , यूंमा भेद हूणौ  कारण , रस या अनुरस क लक्छण , पर आदि गुण अर लक्षण  , पंचमहाभूतुं से उपज्यां  रसुं संख्या , कु कु  द्रव्य उर्घ्वगामी या अधोगामी क्रिया करदन , छह रसुं  विभाग , रस -आधार भूत द्रव्यों सामन्य लक्षण , वीर्य प्रकार , छह रस लक्छण , परस्पर विरुद्ध द्रव्य (आहार ), योंक सेवनन हूंद रोग , व् यूं रोगुं निदान विधि , यी सब विषय 'आत्रेय -भद्रकाप्यीय ' अध्याय म आत्रेय ऋषिन बोलि देन।  १०६ - ११२।   
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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३२१ -३२२
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
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 हितकारी व अहितकारी अन्न -१
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )  १  पद   बिटेन   तक
  अनुवाद भाग -  ३१३
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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ये से अग्नै 'अन्नपानविधि ' अध्याय क व्यख्यान करला जन भगवान आत्रेयन बोलि।  १ -२। 
प्रिय हितकर वर्ण , गंध , रस , स्पर्शयुक्त विधि पूर्वक सेवन कर्युं अन्नपान प्राणीमात्र कु प्राण च।  अन्न प्राण च यु विद्वान् बुल्दन।  सब प्राणियों प्राण स्थिर रखणो मुख्य कारण अन्नपान च।  या बात प्रत्यक्ष प्रमाण से बि सिद्ध च।  ठीक प्रकार अन्न सेवन पर अन्न शरीर म  स्थित जठराग्निक आधार च।  अर यिं अग्निक आधार अन्न  ईंधन रुप च। अन्न सेवन से मनै शक्ति बढ़द ,  सरैलो धातुसमूह , बल वर्ण बढ़द अर इन्द्रिय निर्मल ह्वे जंदन ।  विधि विपरीत अन्न पान से विपरीत परिणाम आंदन। ३। 
इलै  हे अग्निवेश ! हितकारी अर अहितकारी विषयौ ज्ञान करणो  कुण अन्नपान विधि विस्तार से बुल्दु।  स्वाभाविक रुपसे जल क्लीनता  उत्पन्न करद।  लवण नरम करद, जलस्राव उत्पन्न करद ।  क्षार पाचन करद त शहद जुड़द च , घी चिपुळ करद ।  दूध जीवन दींद।  मांश वृहण पोषण  दींद।  रस क्षीणता तै पुष्ट करद।  यु सरैल तै जीर्ण करद।  मद्य सरैल जीर्ण करद।  सिरका सरैलो लेखन करद।  द्राक्षासव अग्नि बढ़ांद।  राव पित्त , वात , कफ बढ़ांद।  दही सूजन लांद।  तिलकल्क अर हौर शाक प्रसन्नता हरदन।  उड़द मल उतपन्न करद।  क्षार नेत्र अर शुक्र नाशी हूंदन।  अनार अर औंळा छोड़ि अम्ल पित्त कारक हूंद।  मधु , पुरण चौंळ जो , ग्युं छोड़ि  मधुर रस कफ कारक हूंद।  बेंतक अग्रिम भाग अर प्रबल छोड़ि  तिक्त रस वायुकारी व शुक्र नाशी हूंद।  पिपली अर सोंठ छोड़ि प्रायः सब कटु रस वायुकारी अर शुक्रणाशी हूंदन।  ४। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
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१२  अन्न वर्ग
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद ५   बिटेन   तक
  अनुवाद भाग -  ३१४
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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यांक अगनै वर्गक्रमानुसार पदार्थों व्याख्या करला - जनकि - शूकवर्ग ,शमीधान्य वर्ग , मांसवर्ग , शाक वर्ग , फलवर्ग , हरित वर्ग , मद्य वर्ग , अम्बु वर्ग , गोरस वर्ग , इक्षुविकार वर्ग , अर आहारयोग वर्ग।  यु १२ वर्गों म सभी द्रव्यों क रस , वीर्य , विपाक अर प्रभाव पर  छ्वीं बथ  ह्वेली।  ५ -७।

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३२४
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना


Bhishma Kukreti

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शूक धान्य
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  ८  बिटेन   २२ तक
  अनुवाद भाग -  ३१५
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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अब  शूकधान्य अन्न वर्ग -
रक्तशालि ,महाशालि , कलम , शकुनाहुत , तूर्णक , दीर्घाशूक  , गौर , पाण्डुक , लांगुळ , हंसराज , लोहवाल , शारिबा , प्रमोदक ,पतंग अर तपनीय , अर अन्य चौंळ , ठंड , रस अर विपाक म मधुर छन अर किंचित वातकारी , स्निग्ध , पुष्टिकरी , शुक्र व मूत्रवर्धक  छन ।  मल तैं थोड़ा उतपन्न करण वळ अर रोकु छन।  यूं सब चौंळुं म लाल चौंळ सर्वश्रेष्ठ हूंदन लाल चौळ  भुखनाशी व त्रिदोषनाशी छन।  यूं से  उतर   कैक  ,महान शालि फिर कलम फिर उत्तरोत्तर गुण  न्यून हूंद गेन।  सवक , हायन , पांसु , वाप्य , नैषध आदि चौंळ , लाल चौंळा विरोधी  गुण  वळ हूंदन।  अर्थात शीत , लघु , मधुर, त्रिदोष नाशी  व सरैल तै दृढ करंदेर हूंदन।  यूं मदे  सफेद चौंळ श्रेष्टतर हूंदन।  बाकी  काळ  जाति चौंळ हीन  हूंदन।
(४ ) वरक , उद्दालक , चीन , शरद , उज्वल , दुर्दुर , गंधक , अर कुरुविंद यी षष्टिक धान्यों जाति हूंदन।  यी गुणुं म हीन छन।  ( ५ ) व्रीहि (शरद म पकण वळ ) चौंळ , मधुर रस , अम्लपाकी  , पित्तकारक गुरु छन।  यूंम पाटल जाति धान्य मल मूत्र वर्धक अर त्रिदोषकारी छन। 
(५ ) कोदो , झंगोरा , यी धान्य कषाय , मधुर रसयुक्त , लघु , वायुकारक , कफ -पित्त नाशी , शीतवीर्य अर संग्राही अर शोषक  हूंदन। 
(६ ) हस्ति , सांवक , नीवार / देवभात , तोयवर्णी , गवेधुक , प्रशातिका , अम्भःश्यामक , लोहिताणु , कांग , मुकुंद , झिंटी , गरमुटि , चारुक , वरक , शिविर , उत्कृष्ट , जोनार सब झंगोरा /सांवक जन गुण वळ छन।  जौ  रूखा , शीत , गुरु , मधुर रस , वायु अर मलकारक , सरैल तै स्थिर करंदेर , कषाय रसी , बल कारी , अर कफ जन्य विकार नाशी हूंद।
वेणुयव  रूखो , मधुर , कषाय  अनुरस , कफ -पित्त नाशी , मेद , विष  अर  कृमि नाशी अर बलकारी च। 
ग्युं टूटयूँ तैं जुड़ण वळ, वातनाशी , स्वादु रस , शीतवीर्य , जीवनीय , वृहण कारक , वृष्य , शुक्रवर्धक , स्निग्ध , स्थिरकारी, गुरु हूंद।   
 नांदीमुखी  अर मधुलि यी द्वी मधुर , स्निग्ध अर शीतल हून्दंन । शूक धान्यों पैलो वर्ग समाप्त हवे।  ८ -२२। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३२४ - ३२६
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना


Bhishma Kukreti

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शमी धान्य वर्ग
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   २३ पद  ३४   बिटेन   तक
  अनुवाद भाग -  ३१६
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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शमीधान्य वर्ग -
(१ )- मूंग कषाय , मधुर , रुखा , शीत , विपाक म कटु , लघु , स्वच्छ , श्लेष्म पित्त नाशी , अर दाळुंम  व शमीधान्युं म सबसे उत्तम  च। 
(२) - उड़द - अति वृष्य, वातनाशी , स्निग्ध , उष्ण , मधुर अर  गुरु छन।  यी बलकारी अर बिंडी मल उत्पादक अर पुरुषत्व तै शीघ्र उत्पादी  छन।   
राजमाष - मलभेदक , रुचिकर , कफ , वीर्य अर अम्लपित्त उत्पादन करंदेर छन अर उद्द जन वायुकारी , मधुर , रुखो,कषाय , गुरु अर स्वच्छ हूंदन।
कुलथी  ( गहथ गैथ )
कषाय रसयुक्त , विपाकम अम्ल , कफ , शुक्र अर वायुनाशी , संग्राही अर  खासु , स्वास , हिचकी , अर्श रोगम हितकारी हूंदन। 
मोठ -
मधुर रसी , मधुर विपाक , संग्राही , रुखो , शीत , रक्तपित्त अर जौर म प्रशस्त करण वळ च।
चणा  आदि
चणा , मसूर , खंडिक फाफरा , अर मटर , लघु , वीतवीर्य , मधुर , कषाय रसयुक्त , रुखो , कफ पित्त म हितकारी हूंदन। यूंक उपयोग दाळ अर लेपम हूंद। यूंमा मसूर सबसे अधिक संग्राही हूंद अर मटर सबसे अधिक वायु कारी हूंद।
काळ तिल
काळ तिल , स्निग्ध , उष्ण , मधुर रसी , तीखो , कषाय , तीखो , त्वचा अर बाळुं  कुण हितकारी, शक्तिदायी , वात्तनाशि , अर कफ पित्त वर्धक  हूंदन।
उपरोक्त शामीधान्य छोड़ि जु  हौर गोळ जाति  धान्य हूंदन वो गुरु , मधुर , उष्ण , बलनाशी , रुखा , स्निग्ध , शक्तिशाली , पुरषों खाण लैक  हूंदन। 
सामन्य तः शिम्बीधान्य , रुखो , कषाय , कोष्ठम प्रकोप कारी , अदृश्य , नेत्रों कुण अहितकारी , अर पचण तक मल मूत्र अवरोधी हूंदन। 
अरहर (हरड़ )  कफ पित्त नाशी अर  वायुकारी हूंद। 
दाबची , चक्रमर्द क बीज , कफ वायु नाशी हूंदन।  सफेद लोबिया पित्त व वायु कारी हूंद। 
कौंच ,  अलसी , कौंच यूंक गुण  उड़द अनुसार हूंदन।  ये अनुसार भगवन आत्रेयन  शामी धान्य क दूसर वर्ग की चर्चा कार।  २३ -३४। 

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*संवैधानिक चेतावनी: चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३२६ -३२८
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना


Bhishma Kukreti

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प्रसह  अर  बिलसह मांस वर्ग 
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 27th  सत्ताइसवां  अध्याय   ( अन्नपान विधि   अध्याय   )   पद  ३५   बिटेन  ३८  तक
  अनुवाद भाग -  ३१७
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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अब मांस वर्ग -
गौड़-बल्द, घ्वाड़ा , गधा , ऊँट , खच्चर , चीता , सिंह , भालू , रिक , बांदर , भेड़िया , बाग़ , तरन्तु , बभ्रु , स्याळ , बिरळ , मूस , गीदड़ , बाज , कुकर , नीलकंठ , कौवा , चील -नाज , मधुआ , गिद्ध , उळकाणु , कूलिंग , धूमिका , कुरर यी प्रसह  जातिक पशु पंछी छन। ३६- ३७।
माल्या सर्प क चार वर्ग छन - सफेद , काळु , चितकबरा , अर कालक ; चियार , मिंडुक , शल्लक , गोह , गंडक , किदलु , न्योला , श्वावित सब बिलसह अर्थात बिल म रौण वळ पशु छन. ३७ -३८।   
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   ३२८ ३२९
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली  , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण   , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना


 

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