Uttarakhand > Utttarakhand Language & Literature - उत्तराखण्ड की भाषायें एवं साहित्य
चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita
Bhishma Kukreti:
बनि बनि यूथ (रस्सा , रस , सूप ): गुण व चरित्र
-
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , 27th सत्ताइसवां अध्याय ( अन्नपान विधि अध्याय ) पद २५६ बिटेन २६० तक
अनुवाद भाग -३३३
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
-
!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
-
भली प्रकार से धुयां , मांड गड्यां , गळायां चौंळ (भात ) लघु हूंदन। गळयां अर ठंड भात गुरु हूंद। कृत्रिम विष अर कफजन्य रोगम भून्युं चौंळुं भात हितकारी हूंद। पूर नि धुयां , बिन मांड उतार्यूं ,मांस , शाक , वसा , तेल , घी , मज्जा , अर फल मिलैक चौंळ बलकारक , संतर्पक , हृदय प्रिय , गुरु , अर पौष्टिक हूंद। इनि उड़द , तिल , दूध , मूंग क योग से बणयूं भात बि गुणकारी हूंद।
जौ थोड़ा पकायुं गुरु , रुखो , वायुकारी व रेचक हूंद। भाप देकि त्यार वस्तु , जु उड़द , मूंग , ग्युं , जौ क पीठ से बणये जाव त जै बि वस्तु से पकाये जावन स्यू इ गुण वे अंतिम वस्तु म हूंदन अर्थात अवयव का गन ही अंतिम वस्तु म गुण हूंदन।
बिन धन्य मसले से संस्कारित नि होयुं यूथ , मसलाअओं से संकरित यूथ , पतळो अर मांस से संस्कारित यूथ , मांस रस , खट्टी दाल /खट्टा सूप , यी उत्तरोत्तर भारी छन। तनुमांस रस से संस्कारित , मांस रस भारी च। अमलसूप से अनअम्ल रस भारी च। २५६ -२६०।
-
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ ३५९ -३६०
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम ,चरक संहिता कु एकमात्र विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म रोग निदान , आयुर्वेदम रोग निदान , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना। आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ
Bhishma Kukreti:
सत्तू, जौक बड़ी, पूरनपोली , मालपुआ
-
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , 27th सत्ताइसवां अध्याय ( अन्नपान विधि अध्याय ) पद २६१ बिटेन तक
अनुवाद भाग - ३३४
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
-
!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
-
सत्तू वायुकारक, रुखो , पुष्कल मल, उतपन्नकरण वळ। वायु क अनुलोमन, पीण पर त्वरित तृप्त करंदेर, त्वरित बलदायी हूंद। हेमंत धान्य से बण्यु सत्तू मधुर ,लघु शीतल हूंदन। यी संग्राही , रक्तपित्त , तृष्णा , वमन , अर जौर नाशी हूंदन। २६१- २६२।
जौक पूड़ा , जौक बड़ी, भुन्यां जौक चौंळ , यी उदावर्च , प्रतिश्याय , प्रमेह , अर गौळs रोग मिठांद । भुन्यां जौ लेखन अर कफ आदि उखाडन वळ हूंदन। सूखा हूण से तीस बढ़ांद। विष्टम्भी हूण से देर म पचद। अंकुरित धान्य , शष्कुली (चौंळ आटुम तिल मिलैक पकाण से ) , मधुक्रोड़ा ( चौंळ पकाइक पीठ मध्य शहद धौरी ) , सपिण्डिका क्रोड़ा (पूरनपोली ), पूड़े मालपूआ , यी गुरु अर पौष्टिक हून्दन। २६३ -२६५।
-
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ ३६०
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम ,चरक संहिता कु एकमात्र विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म रोग निदान , आयुर्वेदम रोग निदान , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना। आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ
Bhishma Kukreti:
मांस , फल ,वसा, , दुग्ध मिश्रित पेय ,गुड़ , शाक गुण व उपयोग
-
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , 27th सत्ताइसवां अध्याय ( अन्नपान विधि अध्याय ) पद २६६ बिटेन २६८ तक
अनुवाद भाग - ३३५
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
-
!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
-
फल , मांस , वसा , शाक , तिलौ चूरण , मधु क योग से बण्युं भोजन वीर्यवर्ध , बलकारी , गुरु अर पौष्टिक हूंदन। वेश वार या कीमा (बिन हड्डी मांस पत्थर पर पीसी , पीपली , मर्च , गुड़ , घी दगड़ पकायुं मांस पदार्थ ) गुरु , स्निग्ध , बल व शक्ति वर्धक हूंद।दूध अर गन्ना रस से तैयार पदार्थ , गुरु बलकारी, तृप्तकारी , वीर्यवर्धक हूंदन। गुड़ तिल , दूध , शक़्कर क योग से बण्युं पदार्थ वीर्यवर्धक , बलकारी , भौत गुरु हूंदन। २६६-२६८
-
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ ३६१
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
Bhishma Kukreti:
ग्युं क पंजरी, हलवा आदि विवरण
-
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , 27th सत्ताइसवां अध्याय ( अन्नपान विधि अध्याय ) पद २६९ बिटेन २७० तक
अनुवाद भाग - ३३६
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
-
!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
-
ग्युं क आटो म घी मथिक (मिलैक ) या घी म पकैक नाना प्रकार का जो भि पकवान पकाये जान्दन यी सब गुण तृप्तिकारी , वीर्यवर्धक व खाणम आनंददायी हूंदन। इनि ग्यूं आदि पदार्थुं तै बिंदी देर तक अग्नि संयोग से पकाये जांद त ग्युं गन गुरु से लघु ह्वे जांद। इनि ग्यूंकी पीठि (लोई ) . धान्य पर्पट , भारी हूंदन किन्तु संस्कार से लघु करे जांदन। इलै वैद्य तैं संस्कारों विचार कौरि गुणों निश्चय करण चयेंद। २६९ -२७०।
-
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ ३६२
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम ,चरक संहिता कु एकमात्र विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म रोग निदान , आयुर्वेदम रोग निदान , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना। आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ
Bhishma Kukreti:
चूड़ा /चिवड़ा /बुखणो गुण व लक्ष्ण
-
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , 27th सत्ताइसवां अध्याय ( अन्नपान विधि अध्याय ) पद २७१ बिटेन २७३ तक
अनुवाद भाग - ३३७
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
-
!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
-
पृथुका (चिवड़ा ) चूड़ा गुरु हूंद। भुन्युं चूड़ा कम खाण चयेंद। जौक चूड़ा पुटुकुंद अवरोध कोरी जीर्ण हूंद। अणभुन्युं जौ रेचक हूंद। सुप्या न्न अथवा मूंग , उड़द आदि से बणीं वस्तु (चबेना या बुखण ) वायुकारक , रुखा व शीतल हून्दन। यूं तैं घी /तेल (स्निग्ध वस्तु ) अर लूणौ दगड़ कम मात्रा म खाण चयेंद। जु धीमी आंच पर पकदन सि कठोर व स्थूल हूंदन (आग म सिकण बि )। यी भारी , देर से पचण वळ पुष्टिकारक बल दायी हूंदन। २७१ - २७३। .
-
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ ३६२
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम ,चरक संहिता कु एकमात्र विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म रोग निदान , आयुर्वेदम रोग निदान , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली , चरक संहिता का प्रमाणिक गढ़वाली अनुवाद , हिमालयी लेखक द्वारा चरक संहिता अनुवाद , जसपुर (द्वारीखाल ) वाले का चरक संहिता अनुवाद , आधुनिक गढ़वाली गद्य उदाहरण, गढ़वाली में अनुदित साहित्य लक्षण व चरित्र उदाहरण , गढ़वाली गद्य का चरित्र , लक्षण , गढ़वाली गद्य में हिंदी , उर्दू , विदेशी शब्द, गढ़वाली गद्य परम्परा में अनुवाद , सरल भाषा में आयुर्वेद समझाना। आयुर्वेद के सिद्धांत गढ़वाली भाषा में ; आयुर्वेद सिद्धांत उत्तराखंडी भाषा में, गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद तथ्य , गढ़वाली भाषा में आयुर्वेद सिद्धांत व स्वास्थ्य लाभ
Navigation
[0] Message Index
[#] Next page
[*] Previous page
Go to full version