Author Topic: चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita  (Read 18937 times)

Bhishma Kukreti

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बल वर्धक, कंठ स्वर निदान , बबासीर नाशी आदि क्वाथ  पादप

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम , चौथो अध्याय (षडविरेचन ) ,  कषाय अध्याय   
  अनुवाद भाग -   31
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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एन्द्री, कौंच,शतावरी,माषपर्णी, विदारी,अश्वगंधा,शालपर्णी, कटुकी, खरैंटी, पीतबला ये दस बल वर्धक हैं II7 II
लालचन्दन,लाल नागकेशर, पद्मक, खस,मुलैठी,मंजीठ,अनंतमूल,विदारीकंद, सिता(सफेद दूब),प्रियंगु, यी दस वर्ण्यछन अर्थात वर्ण बढ़ान्दनI I ८II
अनंतमूल,गन्नामूल,मुलैठी,पिप्पली,किशमिश,विदारीकंद,नीम,ब्राह्मी,बड़ीकटेरी,छोटीकटेरी, यी दस कंठस्वर’ कुण हितकारी छन II९II
आम,अम्बाडा,डहु/बडहल,करंज,इमली,अम्लवेतस,बड़ोबेर,केर,दलिम,बिजौरा, यी दस ‘हृद्य’ अर्थात हृदय कुण हितकारी छन II१०II
यूँ चारुं से बणयूँ क्षय वर्ग ch II [२] II
सोंठ, चित्रक, चविका,विडंग,मोरवेल,गिलोय,वच,नागरमोथा,पिप्पली,परबल यी दस त्रिप्तिघ्न छन अर्थात श्लेष्माजनित तृप्ति नाश करदन II११II
कुटज,बेलगिरी,चित्रक,सोंठ, अतीस, बड़ीहरड़,धमासा,दारुहल्दी,वच,चविका यी दस औषधि अशोघ्न अर्थात बवाशीरनाशी छन II१२ II
खैर,जंगीहरड़,औंला,हल्दी,अरुष्कर,सातवन,अमलतास, कनेर,विडग,अरचमेली कौंळ पत्ता यी दस कोढ़नाशौ कुण हितकारी हून्दं II १३II .
लालचन्दन, जटामासी,अमलतास,करंज,नीमपत्ता,कुटज बक्कल,राई /सरसों,मुलैठी,दारु हल्दी (किनगोड़ा अर नागरमोथा कंडूघ्न अर्थात ख्ज्जीनाशी छन II१४II
सहजनकाळीमर्च,जिमीकंद,केबुक,विडंग,निर्गुन्डी,अपामार्ग,गोखरू,वृषपर्णी,मूसाकानी,यी दस कृमिनाशी छन II१५II
हल्दी,मंजीठ,निशोथ,छुटि इलैची,काळीनिशोथ, लालचन्दन, निर्मली फल (जल शोधक रूपम),सिरस,निर्गुन्डी,लसोड़ा, विषनाशी (विषघ्न ) छन II१६II
यी छ कषायवर्ग II[३[ II
 
 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  First-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita


Bhishma Kukreti

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  दूध वर्धक , दूध शोधक , शुक्र वर्धक व शुक्र शोधक औषधि पादप

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम , चौथो अध्याय (षडविरेचन ) ,   बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -   ३२
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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वीरण (खस ) , हेमत मा पकण वळ  सट्टी क चौंळ , पष्टिक (सट्टी चौंळ ), ईख, दाभ, कुशा, सरकंडा, होगला, इतकट , रोहिष तृण,  यी सब 'स्तन्य जनन' (दूध  वर्धक छन।   गिलोय छोड़ि सबुं क जलड़ प्रयोग करण  चयेंद।  १७
पाठा, सोंठ, देवदारु , नागरमोथा, मोरबेल, गिलोय, इंद्र जौ, चिरायता, कटुकी, अनंत मूल यी दस स्तन्यसंशोधक ' अर्थात दूध स्वच्छ करंदेर छन।  १८
जीवक , ऋषभक, काकोली , क्षीर, काकोली, मूंग पत्ती, उड़द  पत्ती, मेदा, शतावरी, जटामासी, उटांगण , यी दस शुक्रजनन' अर्थात वीर्य वर्धक छन।  १९
कूट , एल बलुक , कायफल/काफळ समुद्रौ  फ्यूंण , कदम्ब , गन्ना , म्वाट गन्ना, कोकीलाक्स /ताल मखाना , वसुक, खस जड़, यी दस शुक्रशोधक छन। २०
यी चारक निर्मित कसाय वर्ग च।  ४ । 

 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  First-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita


Bhishma Kukreti

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स्नेहोपग , स्वेदोपग , वमनोपग , वरोचनोपग ,आस्थापनोपग

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम , चौथो अध्याय (षडविरेचन ) ,   बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -   33
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  (अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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बड़ी दाख , मुलैठी, गिलोय, मेदा, बिदारीकंद, काकोली।, क्षीर  काकोली , जीवक, जीवंती, शालपर्णी यी दस 'स्नेहोपग' अर्थात सरैल म कोमलता  अर  चिपळाट    लाण  म सहायक छन।  २१
सहजन , एरंड, आक, वृश्चीर (पुनर्नवा) /सफेद गदहपूरना , लाल पुर्ननवा, जौ, तिल , गहथ, उड़द, झाडी बेर,यी दस औषधि /पादप स्वेदोपग (पसीना लाणम सहायक  ) छन।  २२
शहद, मुलैठी, लालकचनार, सफेद कचनार, कदम्ब, विदुल /जल बेतम , कंदरी, झनझनिया, आक, अपामार्ग /चिरचिटा , यी दस वमनोपग /उल्टी  लाण म सहायक छन।   २३
किशमिश,गंभारी, फालसा, जंगी हरड़ , औंळा, बयड़ , बड़ो बेर, बदर , झाडीबेर , पीलू यी दस औषधि पादप 'विरेचनोपग' अर्थात विरेचन म सहायक छन।  २४
निशोथ, बेलगिरी, पिप्पली, कूठ, सरसों /राई /लया , वच,वतस्कफल(इंद्र जौ ) , सौंफ , मुलैठी, मैनफल, यी दस  ' आस्थापनोपग ' रुक्ष बस्ति हेतु उपयोगी है।  २५

 

 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस

सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021

शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

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शिरो-विरेचनपग, छर्दिनिग्रहण,  तृष्णानिग्रहण',  हिक्कनिग्रहण,
  पुरीषसंग्रहण,  पुरीषसंग्रहणीय,  मूत्रसंग्रहणीय, ' मूत्रविरेचनीय 

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  अनुवाद भाग -  34 
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
s = अधा  अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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 ज्योतिष्मती। माल कंगनी , नकछिंकनी, मरिच ,पिप्पली, वायबिडंग, सहजन, सरसों , चिरचिटे  का चौंळ , श्वेता  (अपराजिता श्वेत कु क्वीला ), अर महाश्वेता दस 'शिरो-विरेचनापग , अर्थात शिरोविरेचनs  कुण कामक च।  २७
या च  सातौ  एक कषाय वर्ग। 
फळििंड (जमिण ) अर आम का पत्ता,बिजोरिया लिम्बु, खट्टाबेर, दळिम , जौ , मुलैठी, खस, सौराष्ट्रौ  माटो अर लाजा यि दस पादप छर्दिनिग्रहण  (वमन रुकण म सहयोगी ) छन।  २८
सोंठ, धमासा, नागरमोथा, पित्तपापड़ा , लाल चंदन , चिरायती , गिलोय , नेत्रबाला, धनिया,परबल, यी दस औषधि तृष्णानिग्रहण' वळ अर्थात तीस रुकण  वळ  छन।  २९
कचूर , पुष्करमूल, बदरबीज , छुटि कंटेरी, बांदा /बंदा , जंगी हरड़,पिप्पली, धमासा, काकड़ा सींगी, यी दस हिक्कनिग्रहण /हिचकी रुकण वळ  औषधि /पादप छन।  ३० I   
यी तीनुं   कषाय  वर्ग  च। 
प्रियंगु, अनंतमूल,आमौ हडयल , श्योनाकौ  बक्कल, पठानी लोध , सिम्बळो गूंद , मंजीठ, घाया फूल, भारगी , कमल केशर, यी दस पुरीषसंग्रहण (मल रुकण वळ )  औषधि /पादप छन।  ३१
फळिंड , कुंदरु /शल्लकी बक्कल, धमासा, मुलैठी, सिमुळु गूंद, विरौजा, अग्नि से जळयुं माटु , बिदारी कंद,नील कमल , तिल कण यी दस पुरीषसंग्रहणीय '  अर्थात मल कु दूषित रंग परिवर्तन करण वळ छन।  ३२
 फळिंड , आम , पिलखन, बौड़, पारस पीपल , तिमल, पिपुळ , भिलावा, अश्मंतक, सफेद खैर,यी दस 'मूत्रसंग्रहणीय'  छन अर्थात  मूत कम करदन।  ३४
बन्दार्क, गोखरू, पुर्ननवा, चिरचिटा, पाषाणभेद /पत्थरचूर, दाभ, कुश, सरकंडा,गुन्द्रा , ईकड़ी, इतकटौ जलड़ यी मूत्रविरेचनीय छन अर्थात मूत्र वर्धक छन।  ३५
यी पांच क  कषाय वर्ग च। 


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खांसीहर, श्वासरोगहर ,सूजनहर,जौरहर , थकौट हर औषधि

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  अनुवाद भाग -   35
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
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किशमिश, जंगीहरड़, औंळा, पिप्पली, धमासा, श्रृंगी,छुटि कटेरी, सफेद पुननेवा, लाल पुननेवा,भुई उगवंता (तामलकी ) यी दस खांसी हर छन।  ३६
कचूर, पुष्कर मूल, अम्लवेतल , छुटि इलैची, हींग , अगर,तुलसी, तामलकी, जीवंती,चोख, यी दस श्वासरोगहर छन।  ३७
पाढ़ल, अग्निमंथ,बेलगिरी,तेंडु, गंभारी,छुटि कटेरी, बड़ी  कटेरी , शालपर्णी, गोखरू यी दस शोथहर /सूजन कम करंदेर छन  । ३८
अनंतमूल,मिश्री,पाढ़ल,मजीठ,किशमिश, पीलु,फालसा,बड़ी हरड़,औंळा, बयड़  यी दस जौरहर छन।  ३९
किशमिश , खजूर,प्यालचिरौंजी,बदर/बेर ,दळिम ,बेडु,फालसा,ईख, जौ , साठा चौंळ यी दस शर्महर /थकौट हरी छन।  ४० 

 
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दाह प्रशमन,शीत प्रशमन, उदर्द नाशी, अंगमर्दप्रशमन, शूल प्रशमन   क्वाथ औषधि   
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 खंड - १  सूत्रस्थानम , चौथो अध्याय (षडविरेचन ) ,   बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -   36
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खील, सफेद चंदन ,गंभारी फल, मुलैठी, मिश्री, नीला कमल, खस, अनंतमूल,गिलोय, नेत्रवाला यि दस  दाहप्रशमन अर्थात जलन कम करदन।  ४१ । 
तगर, अगर, धणिया, सोंठ,जवाण, वचा,छुटि कटेरी, अरणी, टेंटू, अर पिप्पली  यी दस  शीत  कम करंदेर छन।  ४२ । 
तेंदू,, चिरौंजी, बेर, खैर, सफेद खैर, स्तवन, साल, अर्जुन,पीतसाल, इरिमेद यी दस उदर्द अर्थात शीतपित्त नाशी छन।  ४३ । 
शालपर्णी, पिठवन, बड़ी कटेरी,छुटि कटेरी, एरंड, काकोली, लाल चंदन, खस,छुटि इलैची, मुलैठी यी दस अंग मर्द प्रशमन अर्थात  अंगटुटण /अंग टणान कम करदन।  ४४ । 
पिप्पली,पिप्पली मूल, चविका,चीतीमूल, सोंठ, मरीच,जवाण, डूकू, जीरु,गंडीर यी दस शूलप्रशमन अर्थात पीड़ाहरी छन। ४५ । 
 यी पांचौ एक कषाय (क्वाथ ) एक वर्ग च।  ९ ।   
 
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  रक्त स्थापन (ल्वे रोको )  , वेदनास्थापन , संज्ञास्थापन  संतति स्था पन पन', वय स्थापन  कषाय (क्वाथ ) वर्ग

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 खंड - १  सूत्रस्थानम , चौथो अध्याय (षडविरेचन ) ,  ४६  बिटेन  - तक
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अनुवादक - भीष्म कुकरेती
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शहद, मुलैठी,केशर,सिमळौ  गूंद,माटो ठीकरा, पठानी लोध , गेरु, प्रियंगु फूल ,मिश्री,खील यी दस  शोणितस्थापन  अर्थात बगदो ल्वे रुकंदेर हूंदन । ४६
साल , कायफल,कदम्ब , पद्मक ,नागकेशर,सिमळौ गूंद,सिरस,जलवेतस ,एलबालुक,अशोक यी दस वेदनास्थापन ' अर्थात तीब्र वेदना कम करदन।  ४७
हींग, नीम ,रेवां,वच , चोरक,ब्राह्मी,दूर्बा,जटामासी,गुग्गुल,कुटकी यी दस संज्ञास्थापन या संज्ञा उत्मन्न करदन। ४८
ऐन्द्री, ब्राह्मी,शतावरी,महाशतावरी,औंळा ,गिलोय,हरीतकी,कुटकी,खरैटी ,प्रियंगु यी दस प्रजास्थापन' अर्थात संतान उत्पादक छन।  ४९
गिलोय, हरड़,औंळा,मुक्ता,अपराजिता,जीवंती,अतिरसा, शतावरी,मंडूकपर्णी ,शालपर्णी,अर पुनर्नवा 'वय स्थापन' अर्थात वय तै टिकाण वळ हूंदन।  ५०
 यी पांच से बण्यु क्षय वर्ग च।  १० 
 
 
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अध्याय 4औ  संक्छिप्तिकरण

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  अनुवाद भाग - 38   
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
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जौं द्रव्यों म से ( ६०० ) विरेचन योग हूंदन ऊंक  बाराम अर विरचन योगों छह आश्रयों बाराम  संक्छिप्त म बुले गे। 
लूण छोड़ि शेष  पांच रसों  की कषाय संज्ञा च। इलै   कषायों / क्वाथों की पांच योनि बुले जांद।  अर यूं पांच कषायों /क्वाथों की पांच ढंगै संरचना/ बणौट  बि बुले गे अर पचास प्रकारै महाकषाय (मुख्य क्वाथ ) बि बतलाई गेन।  क्वाथों ५०० प्रकार कु बि वर्णन ह्वे गे , ना तो लम्बो अर ना हि भौत छुट वर्णन।  थोड़ी बुद्धि वळों कुण पर्याप्त च।  इलै ना विस्तारम ना अति संक्छेप म।  मंन्द बुद्धि वळुं कुण  प्रतिदिन व्यवहारौ  कुण  अर बुद्धिमानों कुण प्रतिभा बृद्धि हेतु ५०० कषायों वर्ग बताये गे।  जु यूं क्वाथों बाह्य कर्म अर आंतरिक प्रयोगोंम ,संयोग अर प्रयोग तै जणदु वी उत्तम वैद्य च। 
 यो ही  भेषजौ    चौथ अध्याय च
 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  First-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita


Bhishma Kukreti

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कथगा खाण  चएंद?

 आहार मात्रा ( चरक संहितौ  पंचों   अध्याय की पवाण )
चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पंचों  ,  1  बिटेन  -  तक
  अनुवाद भाग -   39
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
s =आधी अ
-  !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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भेषज चतुर्थ व्याख्या उपरान्त अब 'मात्राsशितीय' अध्याय की व्याख्या करे  जाल।  ये प्रकार भगवान आत्रेयन बोलि।  १ , २ । 
आहार मात्रा म इ हूण  चयेंद।  आहार मात्रा जठर अग्नि से संबंधित च।  सही मात्रा म खायुं  भोजन शरीर व स्वास्थ्य तै हानि नि करदो  व सही समय म जीर्ण ह्वे जांद।  भोजन मात्रा जणन आवश्यक च।  ३ । 
किलैकि शालि ,हेमन्तिक धान्य,सटी -चौंळ ,मूंग , बटेर,काळो मिरग , खरगोश , आहार चार प्रकारौ हूंदन - भक्ष्य (हथन खाण वळ ) , चुसण वळ ,चटण वळ अर पीण वळ। 
एक मनिखौ शक्ति सद्यनी इकजनि  नि  रौंदी।  यौवनास्था म जथगा जठराग्नि समर्थ हूंदी तथगा  शक्तिमान बालयवस्था अर बृद्धावस्था म नि हूंदी।  इनि  हेमंत म अग्नि परवल हूंद तथगा बरखा मौसम म नई हूंदी।  इलै प्रत्येक मनिखौं कुण प्रत्येक समौ  एकि भोजन  मात्रा  निश्चित नि  करे सक्यांद।  इनमा सब्युं कुण  भोजन मात्रा निश्चित करण असंभव च।  इलै भोजन मात्रा निर्णय  व्यक्ति पर इ  छोड़े गे।  ४ । 
शाली , सांठी जन पदार्थ बिन मात्रौ खाण म अहितकर छन , अर पीठो -गुड़ से बण्या भोजन मात्रा म खाण हितकर हूंद।  यदि मात्रा क अपेक्षा यी द्रव्य हितकर या अहितकर हूंदा त द्रव्यों गुण अर लघु गुण ज्ञान हूण  व्यर्थ छौ। इन नी  च किलैकि द्रव्यों गुरु या लघु हूण बि अकारण /निष्प्रयोजन नी  च। 
वायु अर अग्नि   का गुणो अधिकता वळ पदार्थ लघु गुणी हूंदन।  पृथ्वी , जल गुणो की अधिकता वल द्रव्य गुरु हूंदन।  इलै लघु पदार्थ वायु अर अग्नि से बण्या  हूणो कारण अर अपर गुणों कारणों से जन वायु रूखो लघु,सूक्ष्म , कल ,विशद, खर , गुण वळ हूंद, यांसे बि लघु पदार्थ  जठराग्नि तै संदीपन /प्रबल करण वळ अर तृप्ति पूर्वक मात्रा क व्यतिक्रम /वाधा पर बि थ्वड़ा दोष वळ  हूंदन; यी अधिक दोष नि करदन।
गुरु द्रव्य अग्नि म  बृद्धि नि करदन। किलैकि यि अग्नि से विपरीत वळ गुण का छन अर्थात पृथ्वी अर जल का गुण वळ  हूंदन।  इलै तृप्ति पुर्बक खाण,  पेट भोरिक  खाण  से भौत अधिक  दोषकारी हूंदन।  व्यायाम व अग्निबल  कारण यी हेमंत ऋतू म विकार नि करदन अर अन्य  अवस्थाओं म विकार करदन। 
इलै  मात्रा अग्नि बल  की अपेक्षा /मांग करदी अर अग्नि गुरु व लघु द्रव्य से मात्रा की चाह  नि   करदी। 
 
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
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Bhishma Kukreti

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क्या खाण , क्या  नि खाण अर कथगा  खाण

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत )
 खंड - १  सूत्रस्थानम , पंचौं  अध्याय ,  ६  बिटेन  १२  तक
  अनुवाद भाग -   ४०
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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उचित मात्रा म खायुं खाणा सरैल अर स्वास्थ्य तै नि बिगाड़दो अपितु  उपयोग करण वळ मनिखौ बल ,वर्ण (काँटी रंग), सुख,अर आयु युक्त करदो। इलै भोजन  उचित मात्रा म इ करेण चयेंद। ६ । 
इलै खाणो उपरान्त भारी पिट्ठी से बण्यां चौंळ ,  चिवड़ा कबि नि खाण चयेंद।  उचित मात्रा म खाणा खाणो उपरांत बि यूं   पदार्थों तै नि खाण चयेंद।  भूक हूण पर बि यूं पदार्थों तै मात्रा म इ खाण चयेंद।
सुंक्यूं मांश,सुक्युं शाक कचरी /कमल कंद   व कमल ककड़ी निरंतर उपयोग नि करण  चयेंद।  किलैकि यि पदार्थ गुरु छन।  इनि रोगी पशु, दुर्बल पशु का मांश बि नि खाण चयेंद। कूर्चिक अथवा छांचौ  दगड़ पकायुं दूध,छाचौ दगड पकायुन दूधै मलै (किलाट ) ,  सुंगरौ- गोर -भैंसों  मांश ,माछ,दही, उड़द, शूक  धान्य (ऊर्जा दिंदेर ) ,जई यूं  तैं निरंतर नि खाण चयेंद। ७-९ ।
 साठी  चौंळ , शालि, मूंग,सैंधा लूण,औंळा , जौ,  बरखापाणि, दूध , घी , मिरग,शहद, को प्रयोग अग्नि बल  अनुसार  निरंतर प्रयोग करन्द तैं   उचित मात्रा ध्यान आवश्यक च। १० । 
रोगुं उतपति म प्राकृतिक नियमों अवहेलना (प्रज्ञापराध ) , परिणाम व आसात्म्येन्द्रियार्थ   ( एटीएम भोगी , आत्म निर्भर , घुन्ना , अलग, स्व केंद्रित   ) संयोग यी तीन कारण छन।  इलै यूं तैं  छोड़ि शेष सब करण  चयेंद।  यूंको सेवन नि करण  चयेंद, यूंसे बचण  चयेंद । इन करण से भावी रोग नि हूंदन। ११ । 
स्वास्थ्यो दृष्टि से  अंजन व व शारीरिक कार्य व गुण  की व्यख्या करला।  १२ । 




*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
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चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
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