Uttarakhand > Utttarakhand Language & Literature - उत्तराखण्ड की भाषायें एवं साहित्य

चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita

<< < (2/50) > >>

Bhishma Kukreti:
'
आयु'  प्रकार अर  'आयु ' परिभाषा

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 
  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम  ४१ 
  अनुवाद भाग -   ५

अनुवादक - भीष्म कुकरेती
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
 
हित  , अहित , सुख व दुःख चार प्रकारै  'आयु'हूंदन।   ये 'आयु ' का  हित अहित,  पथ्यापथ्य ,अर  'आयु'  कु मान-परिणाम यु सब जै  शास्त्रम  ह्वावो अर  जैमा आयु लक्षण ह्वावन।   'वै  तै 'आयुर्वेद ' बुल्दन।  हित  आयु, अहित आयु , सुखी आयु , दुखी आयु चार प्रकारै आयु हूंदी। I   ४१  II
(सरैल )पांच महाभूतों से निर्मित , आत्मौ अधिष्ठान, भौतिक इंद्रियां, मन, ( आत्मा ) द्रष्टा, भोक्ता , जीव अर  ईश्वर,  यूंको  संजोगौ  नाम 'आयु'  च। 'आयु' निरंतर चलण वळ हूणन आयु बुले जांद। 
'आयु' अर्थात जीवनौ पर्यायवाची शब्द - सरैल तै धारण करदो , (जीवित ) प्राणो तै  धारण करदो, निरंतर चलणु रौंद , प्राणों दगड संबंधित च अर चेतनानुवृत्ति आदि क पर्यायवाची बुले जांद .

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद ;  चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ; जसपुर , ढांगू पौड़ी गढ़वाली द्वारा पहली बात चरक संहिता का अनुवाद
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita

Bhishma Kukreti:

आयुर्वेदौ  महत्ता  व आधार तथा  सामन्य व विशेषम भेद

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 
  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )

 खंड - १  सूत्रस्थानम  ४३ बिटेन - 53  तक
  अनुवाद भाग -   ६
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों तै स्थान  नि  दीणो पुठ्याबल )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!

  यु आयुर्वेद सबसे  बिंडी श्रेष्ठ पुण्यजनक च (किलैकि  बाकी ज्ञान परलोक  हित संबंधी छन ) I यु आयुर्वेद इहलोक अर  परलोक दुई हितों छ्वीं  लगान्द।  इन  जणगरों  मत  च।  ४३  । 
सामन्य अर विशेष -
सबि पदार्थों सब  कालोंम (समौ ) 'सामन्य' समान गुण धर्म इ वृद्धि क कारण हूंद, अर  विशेष ' अर्थत विभेद या विपरीत हूण  ह्रास कु कारण हूंद।  दुयुंक सरैलौ दगड संबंध सब पदार्थों वृद्धि अर  ह्रासौ कारण च।  यूँ समौम स्राईलो अंदर द्वी  धर्म इकदगड़ी  रै  सकदन।  इलै  सरैलम वृद्धि (metabolism ) अर सरैलम टूटन (ketabolism ) द्वी क्रिया प्रत्येक समौ हूणै  रंदन।  अर पृथक /बिगळयूं   धर्म 'विशेष च।  किलैकि समान धर्म ''सामन्य ' च त विपरीत धर्म विशेष ' च।  ४४ -४५ । 
(सत्व )मन , (आत्मा ) चेतना ,अर  सरैल यूं  तिन्युं से निर्मित तै 'लोक' बुल्दन।  यी तिनी तिपाई /तिकंटी क प्रकार से 'लोक' तै धारण कर्यां छन।  ये संजोग से निर्मित पुरुषम जन्म-मरण जन सब स्तिथ च।  यु सत्वादि समुदाय पुरुष बुले जांद अर  वु  चटन च।  यु ही आयुर्वेदौ आधार  /अधिकरण च अर  येकुण  इ  आयुर्वेद प्रकाशित करे गे।  ४६ -४७ । 
आगास आदि (पंच महाभूत -अगास , भूमि , वायु, जल , आग )  पांच महाभूतों, आत्मा , मन , काल , दिशा , यी द्रव्य का संग्रह छन।  इन्द्रियों संग द्रव्य चेतन च तो इन्द्रिय हीं अचेतन च।  ४८ । 
प्रयत्न  अर चेष्टा स्राईलो व्यापार कर्म बुले जांदन।  ४९ । 
पृथ्वी आदि द्रव्यों कु अपण  गुणों से नि बिगळयाण  ' समवाय' अर्थत नित्य संबंध  च।  (गुणों से हीं द्रव्य नी अर द्रव्य बिन गन नीन )। ५०  ।   
द्रव्य दगड़ 'समवाय ' संबंध वळ निष्क्रिय /निश्चेष्ट व कारणवान  गुण  च (गन निर्गुण च ) ।  ५१ । 
जु द्रव्यो   आसरो /आश्रय  रौंद अर  संजोग व विभाग म कारण /हेतु हूंद वो कर्म च।  कर्म कै  हैंको कर्मौ  अपेक्षा /आशा नि  करदो।  कर्तव्य कार्यो  अनुष्ठान /क्रिया रूप कर्म च।  ५२ ।
ये भांति सामन्य आदि छः कारणों वर्णन करे गे।  अब ऊँको कार्य बताये जाल।  ये शास्त्र म धातुओं क साम्य करण  इ कार्य च।  ये शास्त्रौ  उद्देश्य बि धातुओं तै समान रखण  च।  ५३ ।    .


संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद;  चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita

Bhishma Kukreti:
            व्याधि हूणो नुख्य कारण

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम   बिटेन ५४   -५८  तक
  अनुवाद भाग -   7
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जित करणो   पुठ्याजोर )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
      काल ( जड्डू , रुड़ी, बरखा अर परिणाम ) , बुद्धि , इन्द्रियुं (शब्द, स्पर्श, रूप , रस अर गंध ) यूं तिन्युं  अतियोग , अयोग अर मिथ्यायोग हूण  से दुइ भांति सरैले अर मानसिक व्याधियां उतपन्न हूंदन।  ५४ 
सरैल अर  स्वच्छ (मन ) यी द्वी  ( बिगळयां  या दगड़ी ) इ रोगुं  आधार भूमि छन .  .जन  यि  व्याधियों आश्रय स्थल छन तन्नि सुखौ  बि आश्रय स्थल छन।  ५५ 

         निर्विकार अर सूक्छम आत्मा , मन , शब्दादि गुण , इन्द्रियों चैतन्य म कारण छन , वु नित्य च , साक्छी च , किलैकि वु सब क्रियाओं तै दिखुद च।   अचित्यूं  (अचेतन )  सरैल अर  चितळ  (चैतन्य) मन कु कारण  आत्मा इ  च।   ५६

संक्छेपम सरैलो  दोषुं कारण वात , पित्त अर कफ हूंदन।  अर मानसिक रोगुं  कारण रज अर  तम छन।  सरैलौ  क्वी  बि रोग  वात , पित्त अर कफ  बिना   नि  ह्वे सकद।  ५७

             सरैलौ दोष  दैव व्यपाश्रय (शरण ) , अर युक्ति-व्यपाश्रय आषध्यूं से शांत हूंदन।  मानसिक व्याधि ज्ञान -विज्ञान (अध्यात्म , आत्मा ), शास्त्र ज्ञान , धैर्य (चित्त स्थिरता ), स्मृति (भली बातों  तै समळिक ), समाधि  (विहसयों से ध्यान हटाई क आत्मा म ध्यान ) आदि से शांत हूंदन।  ५८

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद;  चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita

Bhishma Kukreti:

 
              वायु, पित्त  अर  कफ   

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम
अध्याय १,  ५९  बिटेन  - ६६ तक
  अनुवाद भाग -   ८

अनुवादक - भीष्म कुकरेती

  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
 वायु का लक्षण -वायु रूखी, शीत , छुटि , सूक्ष्म , गतिशील , अविच्छिल , अर  कठोर च।  या एक विपरीत /विरोधी गुण  वळ स्निग्ध , उष्ण, गुरु , स्थूल, स्थिर , पिच्छिल , अर कुंगळ /मृदु द्रव्यों से शांत हूंद।  ५९ I
पित्त का लसखन -
पित्त थुड़ा स्निग्ध , गरम , तीक्ष /   शीघ्र कार्य करण  वळ ,  स्यूणो  टुपणा  जन तीक्ष्ण, द्रव , अम्ल/खट्टो , गमनशील व कटु  रस च।  ६० । 
कफ को लक्षण -
गुरु , शीत , मृदु , स्निग्ध, स्थिर अर  पिच्छिल यी कफौ  गुण  छन विपरीत गुण  वळ  पदार्थों से कफ शांत ह्वे   जांद ।  ६१ । 
विपरीत गुण  वळ द्रव्यों क देश (स्थान ), मात्रा अर  कालौ  अनुसार योजनाबद्ध रूप से औषधि दीण से साध्य व्याधि शांत ह्वे  जांद, असाध्य व्याधि  शांत नि  हूंदन।  अर  जु  रोग औषध्यूं  कुण  असाध्य छन ऊंकुण  औषधि उपदेस नि  दिए जांद।  यांक अगवाड़ी विस्तार से एक एक द्रव्यौ   गुण  कर्म क बाराम आचार्य ब्वालल।  ६२, ६३ ।   
रसनेंद्रियों से  ग्राह्य गुण  रस च।  ये रस्क आधार जल अर पृथ्वी छन।  ये रसौ  भेद करणम अगास , वायु अर  अग्नि यी तिन्नी  निमित्त कारण हूंदन।   वास्तवम रस कु उतपति स्थल जल च  अर  पृथ्वी एक आधार च।  ६४ ।
अर   संक्षेप म स्वादु , मधुर , अम्ल, लवण , कटु , तिक्त  /तीखो  अर कपाय  छह रस छन।  यूंक  विस्तार से यी  ६३   भेद /पृथक पृथक ह्वे  जांदन।  ६५ ।
स्वादु , अम्ल अर लवणौ  रस वायुक शमन करदन।  कपाय , मधुर अर तिक्त रस पित्त तैं , कपाय , कटु अर तिक्त  रस कफ तै शमन करदन।  ६६ । 


संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita

Bhishma Kukreti:


 द्रव्युं  विभिन्न प्रकार

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पैलो अध्याय  बिटेन ६७ - ७६  तक
  अनुवाद भाग -   ९ 
अनुवादक - भीष्म कुकरेती

  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
-
 
द्रव्य भेद -
द्रव्य तीन प्रकारै  हूंदन - कुछ द्रव्य वात  आदि दोषों शोधन व शमन करदन जन कि -तेल वायु कु , घी पित्त कु , शहद कफ  कु  शमन करदो ।  कुछ द्रव्य स्वास्थ्य रक्षण करदन, यी स्वस्थ  अवस्था कुण  हितकारी छन   जन कि - लाल चौंळ , सांटी चौंळ , जीवन्ति शाक।  ६७ I
द्रव्य  पुनः तीन प्रकारै  हूंदन - १- जंगम  - प्राणियों से उतपन्न २- औद्भिद - परितवहि से उगण  वळ  वनस्पति ३ -पार्थिव /खनिज
जंगम द्रव्य - शहद , गोरस , दूध , घी आदि , पित्त , वासा , मज्जा , रक्त , मांस , विष्ठा, मूत्र , चर्म  , वीर्य , अस्थि , स्नायु , सींग , नख, खुर , केश , रोम , आदि जंगम बिटेन  लिए जांदन।  ६८ -६९ । 
भौम द्रव्य -
स्वर्ण , स्वर्ण मल (शिलाजीत ), पांच लौह (सीसा , रांगा , ताम्बा , चांदी अर  सिकता ) , बळु , चूना , पार्थिव विष , मनशिला, हरताल (मणि ) , गेरू , अंजन , यी पार्थव औषध छन।  औद्भिद द्रव्य  चार प्रकारै हूंदन - वनस्पति, वोरुत ,वानस्पत्य ,अर औषधि।  ७० -७१ । 
जौंमा बिन पुष्प का फल आंदन वो वनस्पति छन जन - तिमल , बेडु , बौड़ आदि।  जौंमा पुष्प अर  फल द्वी आवन  वो वानस्पत्य छन जन - आम , फळिन्ड आदि।  जु फल आण  पर नष्ट ह्वे  जांदन वो औषध ह्वे  जन ग्यूं -चौंळ  आदि।  जु लता जन फैलणा रौंदन वो विरुध  ह्वे , जन गिलोय।  ७२ । 
मूल , खाल/छाल, अंदरौ  सार  भाग  (सार ), निर्यास - गोंद , नाळ , )स्वरस ), थींची/कूटिक द्रव्य से निकाळयूं  रस, आम जामुन पत्ता (पल्लव ), दूध थॉर आदि (छार ), आदि क फल , पुष्प, भष्म , तैल , मिलायुं आदि, कांड ,पत्ता , शुंग , जु डा ळ  पर हूंदन , कंद आदि औदभिद्धद  हूंदन।  ७३ । 
जौं  वृक्षों मूल प्रयोग म आयी सकदन वो मूलिन  ह्वे।  इन वनस्पति सोळा  छन।  जौं वनस्पति फल काम ांदन वो फलनि छन अर  उन्नीस छन।  चार महासनेह -घी , तेल वसा , मज्जा।  पांच प्रकारौ लूण , आठ प्रकारौ मूत्र  अर  आठ प्रकारौ दूध ,ार संशोधन हेतु छह वृक्ष पुनर्वसु आत्रेय न बताई।  जु  विद्वान् वैद्य रोगों म यूँ सब्युं  प्रयोग करण जणदु  ह्वावो वो आयुर्वेद तै भली भांति  जणदु।  ७४ , ७५ , ७६ ।   

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita

Navigation

[0] Message Index

[#] Next page

[*] Previous page

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 
Go to full version