न वेगान्धारणीय (मल मूत्र, वीर्य , पाद वेग रुकण ) , व्यायाम अध्याय
चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , सतों अध्याय , १ बिटेन ३८ तक
अनुवाद भाग - ५६
गढ़वाली म सर्वाधिक अनुवाद करण वळ अनुवादक - आचार्य भीष्म कुकरेती
( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों वर्जणो पुठ्याजोर )
- विरेचन द्रव्यों
!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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मल मूत्रादि वेगों रुकणो हेतु " न वेगान् धारणीय' नामौ अध्यायौ बखान (व्याख्यान ) करे जाल। जन भगवान आत्रेयन बोली। १, २ ।
बुद्धिमान मनिख तैं आयीं मूत या उपस्थित हुयुं मल वेग नि रुकण चयेंद। इनि शुक्र , अपान वायु, वमन , छींक , डंकार, जमै , भूक, तीस, हर्ष या दुःख से अयां आंसू , नींद , थकानै कारण दुस्वासी वेगों तै बि नि रुकण चयेंद। यूं अयां वेगों तै रुकण से जु जु बि रोग हूंदन उन्कुण अलग अलग चिकित्सा च तो सूणो। ३ -५।
आयूं मूत तै रुकण से बस्ती (मूत्राशय ) अर लिंग पर डा हूंद , मुतणम कष्ट हूंद , मुंडर हूंद , शरीर झुकद जां से पेडु पर जकड़न या फुलाव हूंद। यि लक्षण मूत रुकण का छन। ६।
पसीना लीण , गर्म पाणी नांद /टब म बैठण , तेल मालिश , घीयक नस्य लीण , तीन प्रकारौ बस्ति (निरहण ,अनुवासन, अर उचर बस्ति ) मूत वेग रुकणो प्रतिकार छन। ७।
मल वेग रुकण से नाभि तौळ डा अर मुंडर हूंदो। पाद अर मल बंद ह्वे जांदन। पिंडलियों म ऐंठन अनुभव हूंद। पुटुक उगाण याने पुटुक फुलण मिसे जांद। ८।
इनमा पसीना दीण , गरम पाणी नांद म बैठण चयेंद , फलवर्ति अर बस्तीकर्म करण चएंदन। विरेचन द्रव्यों कु घी अर तेल आदि द्वारा चूर्ण , क्वाथ , कल्कादि रूप म बणै दीण चयेंद। अर वात तै अनुलोमन (गाँठ /गोता ढिलो करणै क्रिया ) वळि औषधि रुक्यूं मलम हितकारी हूंद। ९।
आयुं वीर्य तै रुकण से लिंग अर दाणों (अंड कोष ) म डा हूंद , अंग टुटणो अनुभव हूंद , चेतना स्थान म वेदना हूंदी ,अर मूत बि रुक जान्दो। १०।
तेलमर्दन , द्रोणस्नान , सुरापान , कुखड़ो शिकार, हेमन्तिक धान्य ,दूध , बस्ती कर्म अर मैथुन कर्म यी वीर्य रुकण से हुयी व्याधि क चिकित्सा च। ११।
पाद रुकण से पाद , मूत अर हॉग /पुरीष रुक जांदन। पुटुक उगै जांद , थकान लगद, पेट पीड़ा अर हौरि वातजन्य रोग ह्वे जांदन। १२।
तेल -पसीना दीण चयेंद। फलवर्तियाँ , वातनाशी खान पान अर बस्तिकर्म उत्तम छन। १३।
वमन रुकण से खज्जि , कोढ़ , भोजन अनिच्छा, झाईं , मुख पर काळ -काळ दाग , सूजन , पाण्डु रोग , जौर, वमन रूचि, ज्यू मचलाण जन व्याधि हूंदन,। १४।
खाणो देकि उल्टी कराण चयेंद , धूम्रपान , उपवास/लंगड़ , शिरोव्यधन से रक्त निकाळण चयेंद। रूखो अन्न पान , व्यायाम , विरेचन यी उपाय उत्तम छन। १५।
छींक रुकण से गळम जकड़, मुंडर , मुख पर लकवा , अधस्वासी, आँख आदि इन्द्रियों म दुर्बलता आयी जांद। १६।
चिकित्सा - गौळ का आस पास मालिश , पसीना दीण , धूम्रपान , नस्य, वातनाशी भोजन अर भोजनो परांत घी पिलाण हितकारी छन। १७।
डकार रुकण पर हिचकी /डक्की आंदन , स्वास , भोजन अनिच्छा, मुंड अर छाती कमण, जिकुड़ रुकण जन व्याधि ह्वे जांदन। डकार रुकण से उतपन्न व्याधि कुण हिचकी समान औषधि करण ठीक च। १८।
जमै रुकण से सरैल झुकद , हाथ खुटुं कमण , पर्वसन्धियों म आकुंचन, अंगुं से जाण , कम्पण -हलण आदि हूंदन। चिकित्सा कुण वातनाशी उपचार करण चयेंद। १९।
भूक रुकणन दुर्बलता, मुखौ रंग बदलण , अंग -प्रत्यंगो म डा , भोजन अनिच्छा , चक्कर आण जन व्याधि हूंदन। चिकित्सा स्निग्ध , हळको भोजन लीण चयेंद। २०।
तीस रुकण / भौत देर /दिनुं तक पाणि नि पीण से गौळ अर मुख खुश्क ह्वे जांद , बैरोपन / बहरापन, थकान , श्वास, दम चढ़ण , हृदय स्थल म डा, जन लक्षण छन। चिकित्सा - ठंडो जल , तृप्ति करण वळ खान पान उत्तम च। २१।
आंसू रुकण से नाकुंद पाणि आंण ,कफ हूण , आँखूं रोग , हृदय रोग , भरम , अनिच्छा आदि हूंद। चिकित्सा - नींद , मदिरा पान , ांददायी बातचीत करण। २२।
नींद रुकण से जमै , अंग टूटण , मुंडरु , आँख भारी ह्वे जांदन। चिकित्सा - नींद लाण , हथ खुट दबाण कल्याणकारी च। २३।
थकौटो उत्पादित निस्वास रुकण से गुल्म रोग , हृदय रोग , मूर्छा हूंद। यांकुण विश्राम अर उपचार आवश्यक च। २४।
उपस्थित वेगों तैं रुकण से उत्पन्न रोगुं बाराम बुले गे। रोग वचाव का सौंग कार्य च वेग न रुके जाय। २५।
युलोक अर परलोक की हित कामना करण वळ तैं चयेंद कि वो यूं वेगों तैं धारण कारो - जन अयोग्य अनुचित साहस अर मन , वाणी अर सरैलो निन्दित कर्म का उपस्थित वेगों तै रोके।
मन का निन्दित कार्य जन लोभ , अनुचित विषय म प्रवृति, धन बांधवों कारण दुःख म मन की प्रवृति, भय , क्रोध (ईर्ष्या म जळण ) द्वेष, बैर , दूसरौ अपकार करणो मनम प्रवृति , मान , महत्व , अभिमान म मन की प्रवृति , दुसरै निंदा , लज्जा आभाव , कुढ़ण , दुसरौ द्रव्य लीणै बुद्धि प्रवृति (चौर्य ), इन मन की नकारात्मक वेगो तै रुकण चयेंद।
वाणी क निन्दित कर्म जन - कर्कश , कठोर , दूसरौ निंदा हानि करण संबंधी झूठी वाणी तैं रुकण चयेंद।
सरैलौ निन्दित कर्म -दुसर तै दुःख दीणो शारीरिक चेष्टा , पर स्त्री गमन, चोरी , हिंसा, आदि शारीरिक वेगों तै रुकण चयेंद।
अपण आत्मा प्रतिकूल जो भी कार्य होवन वो दुसरा कुण नि करण चयेंद। मनिख मन।, वचन , कर्म /शरीर से पापरहित ह्वेका इ पुण्य भागी हूंद। वैमा पुण्य तबि सार्थक हूंद जब वो धर्म , अर्थ अर काम से बि पुण्य हो अर तबि सुखो भोग कर सकद। २६- ३०।
व्यायाम -
जु सरैलो चेष्टा सरैल तै स्थिरता , दृढ़ता बान करे जांदन वूं तैं 'व्यायाम ' बुल्दन। ये व्यायाम तै मात्रा म इ करण चयेंद।
व्यायाम क गुण -
व्यायाम करण से सरैल हळको , काम करणो शक्ति वृद्धि, सरैल अर यौवन म टिकाऊपन , दुःख सैणै सक्यात, वात आदि दोष शमन हूंद अर जठराग्नि प्रदीप्त हूंद। ३१-३२।
बिंडि व्यायाम से हानि -
शरीर की थकान , मन व इन्द्रियों म थकान , धातुओं कु क्षय , रक्तपित्त रोग , प्रतमक, संगीक स्वास, खांसी , ज्वर, अर वमन बिंडी व्यायाम से हूंदन। ३३।
अधिक परिश्रम, हंसण , ऊंचो या बिंडि बुलण , बिंडी चलण , बिंडी मैथुन , बिंडी रात भर बिज्युं रौण , यूं उचित कार्यों तै बि मनिख तै अधिक नि करण चयेंद। हानि इनि हूंद जन हाथी शेर तैं खैंचद। इलै बुद्धिमान मनिख तै चयेंद कि वो इन दुखदायी कार्यो से दूर ह्वे जावो। ३४-३५।
हितकारी कार्यों सेवन करण चयेंद , अब इखम कर्म से बताये जाल। छुड़न लाइक कार्य तै चौथाई करी कर्म से करण चयेंद। फिर द्वी अर फिर तीन भाग छोड़ि ग्रहमं करण चयेंद। अर्थात छुड़न वळ अर संचय करण वळक चार चार भाग करण चयेंद। छुड़न वल एक भाग छोड़ी संचय वळ एक भाग ग्रहण करण चयेंद। तब द्वी भाग छोड़ी द्वी भाग ग्रहण करण चयेंद। तब तीन भाग छोड़ि तीन भाग ग्रहण करण चयेंद। पुनः सरा छोड़ि सरा ग्रहण करण चयेंद। ग्रहण करद दैं द्वी चार दिनों अंतर् हूण चयेंद। छुड़न योग्य कर्म का चौथो भाग छोड़ि ग्रहण करण योग्य तै चौथो भाग ग्रहण करण। तिसर दिन आधा छुड़न अर अदा ग्रहण करण चयेंद। तब हैंको दिन तीन भाग छोड़ी तीन भाग ग्रहण करण चयेंद। हैंक दिन सरा छोड़ि सरा ग्रहण करण चयेंद। उपरोक्त विधि से हानिकारक कर्मों क दोष समाप्त हूंदन अर लाभदायी फल ज्यों का त्यों रौंदन। हितकारी पदार्थ बि अचाणचक लीण से अरुचि अर अग्निनाश करदन इलै यूं तै बि कर्म से इ लीण चयेंद। सरैल की प्रकृति ज्ञान बि आवश्यक च किलैकि एककार्य / पदार्थ कैकुण हानिकारक हूंद टी हैंकाकुण लाभदायी बि। ३६-३८।
*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , सही वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस पृष्ठ ९४ से शुरू १००
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
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