वायु की महत्ता
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चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , बारौं वातकलाकलाय अध्याय ( तिस्त्रैषणीय ) पद ७ बिटेन -८ तक
अनुवाद भाग - ९०
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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कांकयन ऋषि बचन सूणी बडिश धमार्गवन बोलि - आपन जु बोलि वु सै बोलि। आपक बतयां कारण इ वायु तैं कुपित या शांत करदन। जन सूक्ष्म अर निरंतर गतिशील वायु तै पैक यी रूखा गुण वायु तै कुपित करदन अर शांत करदन , यांकी व्याख्या करला। वायु तै कुपित करण वळ द्रव्य शरीर तै रुक्ष , लघु ठंडा दारुण कठिन ) , खरखरा अर दुंळदार (/छीजीक ) बणै दींदन। रुक्ष लघु आदि शरीर म आश्रय पैका कट्ठा हुईं वायु प्रकुपित ह्वे जांद। वात तै शांत करण वळ द्रव्य अर कर्म शरीर तै स्निग्ध /चिपुल ,गुरु , उष्ण ,श्लक्ष्ण (चिपुळ , सौम्य ) , कोमल , चिपचिपा अर गाढ़ा कर दींदन। इन शरीर म वायु आश्रय नि मीलिक शांत ह्वे जांद। ७।
बडिश का सत्य बचन अर ऋषिओं द्वारा अनुमोदित वे बचन सूणी राजर्षि आयुर्विदन बोलि -आपन जु बोली वो ठीक बोलि याने यूँ नियमों विरुद्ध एक बि उदारण नी च। 'अपवादौ' अर्थ निन्दामी हूंद। बुलणो मंतव्य च बल सब ऋष्यूं ये बाराम एकि मत च। कुपित अर शांत हुयां शरीर म संचार करण वळ अर शरीरो भैर संचार करण वळ वायु क शरीर म अर शरीर या शरीर क भैर जु कर्म छन ऊंक अवयवों तै प्रत्यक्षादि प्रमाणो से करि अर वायु तै नमस्कार करि यथशक्ति बुललु। वायु शरीर रूपी यंत्र तै धारण करण वळ च। तन्त्र शब्द से शरीस्थ धातुओं का अपण अपण नियम छन उन्सै अभिप्राय च। यंत्र कु अभिप्राय च जैका द्वारा शरीरस्थ धातुओं एक स्थान से दुसर स्थान जाणो आदि व्यापार हूंद। अर्थात तंत्र (नियम ) अर यंत्र दुयुं तै धारण करण वळ च।
वायु प्राणादि पांच रूप वळ च। सम्पूर्ण उच्च या नीच विविध प्रकारों का प्रवर्त्तक च , मन का नियामक अर लिजाण वळ च , यी वायु सब संपूर्ण इन्द्रियों विषयोंम प्रेरणा करद।
संपूर्ण शब्द आदि इन्द्रियों क विषयों क वहन करण वळ बि वायु ही च। शरीरस्थ धातुओं तै यथानियम अपण अपण स्थलों पर स्थापित करदो। शरीर जुड़न वळ बि वायु ही च , वाणी तै प्रवृत्त करण वळ स्पर्श अर शब्द की प्रकृति (कारण ) श्रीत्रिन्द्रिय अर स्पर्श इन्द्रिय कु मूल कारण वायु इ च।
यु वायु हर्ष अर उत्साह की योनि है (अभिव्यक्ति ) का कारण च। अग्नि क प्रेरक शरीरस्थ दोषों शोषण करण वळ। मन तै भैर गडण वळ , स्थूल अर सूक्ष्म स्रोतों को भेदन करण वळ ,शरीरोतपति क समय गर्भ की आकृतियों तै बणान वळ बि वायु च। यु वायु आयुक अनु वर्त्तन -परिपालन का कारणभूत हूंद। सि सबि कर्म शांत वायु का बुले गेन। शरीर म कुपित हुईं वायु त शरीर तै नाना प्रकार का रोगुं से पीड़ित करद , जां से वलवर्णादि क्षीण हूंदन ,मन तै दुखी करदन ,सम्पूर्ण इन्द्रियों तै नष्ट करदन ,गर्भ नाश करद , या जथगा देर तक गर्भाशय म रौण चयेंद वैसे अधिक देर तक गर्भाशय म ठैर जांद। भय , शोक , मोह , दीनता ,अतिप्रलाप , तै उतपन्न करद। अर मृत्युक बि कारण हूंद। प्रकृतिस्थ वायु क लोक म संचरण करण से यि कर्म हूंदन जन कि पृथ्वी धारण करण , अग्नि तै जळाण , सूर्य चंद्र , नक्छत्र ,अर ग्रहों तै बरोबर नियमपूर्वक गतिम रखण , बादलों तै बणान ,पाणी छुड़ण ,स्रोतों तै बगाण ,फल -फूलों तै उतपन्न करण ,वृक्षादि तैं भूमि से भैर गडण/ अंकुरण ,ऋत्युं क बंट्याण /ऋतुओं तै बंटण ,स्वर्णादि धातुउं आकार अर परिमाण व्यक्त करण ,बीजों म अंकुरण सक्यात पैदा करण , शस्यादि तै बढ़ान , वै तै लड़न अर सुखण नि दीण ,अन्य ज्वी बि प्रकृति कार्य छन ऊं तै करण ,जब या वायु प्रकुपित ह्वे संसारम संचरण करद ये से यी कर्म हूंदन - समुद्र तै उत्पीड़ित करण , तलाब जलाशय म जल उच्चो करण (तट तुड़ण ), नदियों। गदनों विपरीत दिशाम बगण , भूकंप कराण , बादलों गरजण ,पाख-पख्यड़ तुड़न , डाळों तै उखड़न ,नीहार , गर्जन , धूळी , बळु , माछ , मिंडक ,गुरा , छार /रंगुड़ ,ल्वै ,छुट छुट पत्थर ,अर अगास बिटेन बजर गिराण ,छै रितियुं बिणास करण , अन्न पैदा नि हूण दीण , प्राण्युं तै मरण , उतपन्न तै नाश करण ,चारो युगुं संघार करण वळ बादल , सूर्य ,अग्नि अर वायु की सृष्टि करण आदि हूंदन।
वो भगवान वायु उतपति का कारण छन , अविनाशी छन ,प्राणियों उत्पादक अर नाशक छन। सुख -दुःख दीण वळ , मृत्यु ,यम , नियंता,प्रजापति ,आदिति ,विश्वकर्मों ,विश्वरूप ,व्यापक ,सब नियमों ,कर्मों ,अर शरीर बणाण वळ , सब्युं विधाता , सूक्ष्म , व्यापक, विष्णु ,पृथ्वीआदिलकों , का आक्रमण करण वळ भगवान वायु च। ८।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ १५० बिटेन १५३ तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी फाड़ीम
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