Author Topic: चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita  (Read 19004 times)

Bhishma Kukreti

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वायु की महत्ता
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,    बारौं  वातकलाकलाय  अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )   पद   ७ बिटेन  -८  तक
  अनुवाद भाग -  ९०
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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कांकयन ऋषि बचन सूणी  बडिश धमार्गवन बोलि - आपन जु  बोलि  वु  सै  बोलि।  आपक बतयां कारण इ  वायु तैं  कुपित या शांत करदन।  जन  सूक्ष्म अर  निरंतर गतिशील वायु तै पैक यी  रूखा गुण  वायु तै कुपित करदन अर शांत करदन , यांकी  व्याख्या करला। वायु तै कुपित करण  वळ  द्रव्य  शरीर तै रुक्ष , लघु ठंडा दारुण कठिन ) , खरखरा  अर  दुंळदार (/छीजीक ) बणै दींदन।   रुक्ष लघु आदि शरीर म आश्रय पैका कट्ठा  हुईं वायु प्रकुपित ह्वे  जांद। वात  तै शांत करण  वळ द्रव्य अर कर्म शरीर तै स्निग्ध /चिपुल ,गुरु , उष्ण ,श्लक्ष्ण (चिपुळ , सौम्य ) , कोमल , चिपचिपा अर  गाढ़ा कर दींदन। इन  शरीर म वायु  आश्रय नि  मीलिक शांत ह्वे  जांद।  ७। 
बडिश का सत्य बचन अर ऋषिओं  द्वारा  अनुमोदित वे बचन सूणी राजर्षि आयुर्विदन बोलि -आपन जु  बोली वो ठीक बोलि याने यूँ नियमों विरुद्ध एक बि उदारण  नी च।  'अपवादौ' अर्थ निन्दामी हूंद।  बुलणो  मंतव्य च बल सब ऋष्यूं  ये बाराम एकि  मत च। कुपित अर  शांत हुयां  शरीर म संचार करण वळ  अर शरीरो भैर संचार करण  वळ वायु क शरीर म अर शरीर या शरीर क भैर जु कर्म छन ऊंक अवयवों तै प्रत्यक्षादि प्रमाणो  से करि अर वायु तै नमस्कार करि यथशक्ति बुललु।  वायु शरीर रूपी यंत्र तै धारण  करण  वळ  च।   तन्त्र शब्द से  शरीस्थ धातुओं का अपण अपण  नियम छन उन्सै अभिप्राय च।  यंत्र कु  अभिप्राय च जैका  द्वारा शरीरस्थ धातुओं  एक स्थान से दुसर स्थान जाणो  आदि व्यापार हूंद।  अर्थात तंत्र  (नियम ) अर  यंत्र दुयुं तै  धारण करण  वळ  च।
  वायु प्राणादि पांच रूप वळ च।   सम्पूर्ण उच्च या नीच विविध प्रकारों का प्रवर्त्तक च , मन का नियामक अर लिजाण वळ च , यी वायु सब संपूर्ण इन्द्रियों विषयोंम प्रेरणा करद।
  संपूर्ण शब्द आदि इन्द्रियों क विषयों क वहन करण  वळ बि  वायु ही च।  शरीरस्थ धातुओं तै यथानियम अपण अपण स्थलों पर स्थापित करदो।  शरीर जुड़न  वळ  बि वायु ही च , वाणी तै प्रवृत्त करण वळ स्पर्श अर शब्द की प्रकृति (कारण ) श्रीत्रिन्द्रिय अर स्पर्श इन्द्रिय कु  मूल कारण वायु इ च। 
             यु वायु हर्ष अर उत्साह की योनि  है (अभिव्यक्ति ) का कारण च। अग्नि क प्रेरक शरीरस्थ  दोषों शोषण करण वळ।  मन तै भैर गडण वळ , स्थूल अर सूक्ष्म स्रोतों को भेदन करण वळ ,शरीरोतपति क समय गर्भ की आकृतियों तै बणान वळ  बि वायु च।  यु वायु आयुक अनु वर्त्तन -परिपालन का कारणभूत हूंद। सि सबि कर्म शांत वायु का बुले गेन। शरीर म कुपित हुईं वायु त शरीर तै नाना प्रकार का रोगुं से पीड़ित करद , जां से वलवर्णादि क्षीण हूंदन ,मन तै दुखी करदन ,सम्पूर्ण इन्द्रियों तै नष्ट करदन ,गर्भ नाश करद , या जथगा देर तक गर्भाशय म रौण  चयेंद वैसे  अधिक देर तक गर्भाशय म ठैर जांद। भय , शोक , मोह , दीनता ,अतिप्रलाप , तै उतपन्न करद।  अर मृत्युक बि  कारण हूंद।  प्रकृतिस्थ वायु क लोक म संचरण   करण से  यि   कर्म हूंदन जन कि पृथ्वी धारण करण , अग्नि तै जळाण , सूर्य चंद्र , नक्छत्र ,अर  ग्रहों तै बरोबर नियमपूर्वक गतिम रखण , बादलों तै बणान ,पाणी छुड़ण ,स्रोतों तै बगाण ,फल -फूलों तै उतपन्न करण ,वृक्षादि तैं  भूमि से भैर गडण/ अंकुरण  ,ऋत्युं क बंट्याण /ऋतुओं तै बंटण ,स्वर्णादि धातुउं आकार अर परिमाण व्यक्त करण ,बीजों म अंकुरण सक्यात  पैदा करण , शस्यादि तै बढ़ान , वै तै लड़न अर सुखण नि दीण ,अन्य ज्वी बि प्रकृति कार्य छन ऊं  तै करण ,जब या वायु प्रकुपित ह्वे संसारम संचरण करद ये से यी कर्म हूंदन - समुद्र तै उत्पीड़ित करण , तलाब जलाशय म जल उच्चो करण (तट तुड़ण ), नदियों। गदनों विपरीत दिशाम बगण , भूकंप कराण , बादलों गरजण ,पाख-पख्यड़  तुड़न , डाळों  तै उखड़न ,नीहार , गर्जन , धूळी , बळु , माछ , मिंडक ,गुरा , छार /रंगुड़ ,ल्वै ,छुट  छुट पत्थर ,अर अगास बिटेन  बजर गिराण ,छै रितियुं बिणास करण , अन्न पैदा नि हूण दीण , प्राण्युं  तै मरण , उतपन्न तै नाश करण ,चारो युगुं  संघार करण  वळ बादल , सूर्य ,अग्नि अर  वायु की सृष्टि करण  आदि हूंदन। 
     वो भगवान वायु  उतपति का कारण छन , अविनाशी छन ,प्राणियों उत्पादक अर  नाशक छन।  सुख -दुःख दीण वळ , मृत्यु ,यम , नियंता,प्रजापति ,आदिति ,विश्वकर्मों ,विश्वरूप ,व्यापक ,सब नियमों ,कर्मों ,अर शरीर  बणाण  वळ , सब्युं  विधाता , सूक्ष्म , व्यापक, विष्णु ,पृथ्वीआदिलकों , का आक्रमण करण  वळ  भगवान वायु च।  ८।     
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   १५०  बिटेन  १५३   तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charaka  Samhita, First-Ever Garhwali Translation of Charaka  Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charaka Samhita   


Bhishma Kukreti

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वायु , वात्त , कफ कु  जटिल सबंध
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,    बारौं  वातकलाकलाय  अध्याय   ( तिस्त्रैषणीय  )   पद  ९  बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -  ९१
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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वार्योविद  क बचन सूणी भगवान मरीचिन बोलि - उन  त जु  तुमन बोले स्यू ठीक च तथापि आयुर्वेदम ये विषय तै बुलण या उठाण निष्प्रयोजन च।  इखम त  चिकित्सा संबंधी कथा हूणी च।  ९। 
वार्योविदबी ब्वाल - चिकित्सा शास्त्रम 'वायु' भौत  बलवान , भौत कठोर ,अतिशीघ्रकारी ,अतिचपल ,अति दुखदायी छन। जु इन  ज्ञान  नि  ह्वावो त  अचाणचक  वायु कु कुपित हूण पर वैद्य  जै  हिसाबन  बिन  जण्यां पैल इ  ऐसे  बचणो  राय  देलु।  वायु बारम यथार्थ रूपम बुलण , जणन ,स्तुति करण  बि आरोग्यलाभ ,बल ,क्रान्ति  /चमक , तेज , शक्ति बढाण वळ , ज्ञान वृद्धि ,करण अर  दीर्घतम आयु प्राप्त करण  अर वृद्धि करणो हूंद। १०। 
मरीचिन बोले - शरीर म स्थित पित्त क अंदर पौंछी अग्नि ही कुपित अर अकुपित अवस्था म शुभ अर  अशुभ कर्मों तै क्रमशः करद।  यथा कुपित हूण  पर पाचन क्रिया तैं  (भ्राजक पित्त ) , स्वाभाविक रंग तै (रंजक पित्त ), शौर्य , हर्ष , प्रसाद , प्रसन्नता ,(साधक अग्नि )  तैं उतपन्न करद।  कुपित हूण पर पाचन क्रिया की जड़ता , मंद दृष्टि,उष्णता तै अयोग्य प्रमाणम , विकृत वर्ण , भय , क्रोध , मूर्छा उतपन्न करदो। इनि कुपित अकुपित अकूषित अवस्थाओंम  पित्त  हौर  दुन्दों तै उतपन्न करद। ११।
मरीचि शब्दों सूणि काप्यन बोलि - शरीस्थ कफम जल पौंछि कुपित अर अकुपित  अवस्था म शुभ व अशुभ कर्मों तै करद। अकुपित अवस्थाम शरीरा दृढ़ता वृद्धि ,कार्यों म उलार ,पुरुषत्व ,ज्ञान , बुद्धि ,जन उतपन्न करदो।  कुपित हूण पर शरीरम   ढीलापन ,निर्बलता नपुंसकता,आलस ,मूढ़ता, मूर्छा ,आदि उतपन्न हूंदन। ये प्रकार कुपित या अकुपित अवश्थाओं म हौर  द्वंदों तै उतपन्न करदन। १२। 
कॉपी ऋषि बचने सूणि पुनर्वसु आत्रेयन बोलि तुम सबुन जु  ब्वाल  वु ठीक च।  किन्तु जु  तुमन यु  बोलि कि इखुलि वायु या  इखुलि पित्त  या  इखुलि कफ इ  कुपित अर अकुपित अवस्थाम सब शुभ - अशुभ कर्म  करदन, यि बचन व्यभिचरित  हूण  से ठीक नी च।  सब इ वात्त , पित्त ,कफ (तिनि ) अकुपित  अर्थात स्वस्थावस्था म प्रकृति युक्त , स्वस्थ इन्द्रिय युक्त ,पुरुष तै बल , वर्ण , सुख ,अर दीर्घायु दींदन।  जै हिसाबन उचित रूप से सेवन कर्यां धर्म ,अर्थ , काम पुरुष तै ये लोकम अर  वैलोकम बड़ो भारी कल्याण  युक्त करदन , जै प्रकारन विकृत हुईं तिनि ऋतू (रूड़ी , बरखा ,जड्डू ) संसार तै प्रलय कालम कष्ट से पीड़ित करदन। इनि कुपित हुयां   वात्त ,  पित्त , कफ  पुरुष तै बड़ भारी विपरीत बल , वर्ण ,सुख से हीन अर  अल्पायु बणांदन। १३। 
भगवान आत्रेय का बचनों सब्युंन अनुमोदन कार।  जै हिसाबन दिबता इन्द्रक बचनों क बड़ैं करदन उनी ऋषियोंन भगवान आत्रेय की प्रशंसा कार। १४।
वायु /वात्त का छह गुण , दो प्रकारै  कारण , कुपित अर अकुपित , वायु का नाना प्रकार का कर्म , कफ अर पित्त का पृथक कर्म , महर्षियों अर पुनर्वसु आत्रेय क सम्मति , यि  सब 'वात-कलाकलीय' अध्याय म सम्पूर्ण रूप से बुले गे।  १२। 
इति निर्देशचतुष्कस्त्रीय।। .३  ।।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १५३   बिटेन    तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

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Bhishma Kukreti

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वैद्यकीम स्नेह संबंधी प्रश्न
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   तेरवां   स्नेह अध्याय    )   पद  १  बिटेन  -८  तक
  अनुवाद भाग -  ९२
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यांक अगनै  स्नेह-अध्याय क व्याख्यान करला जन भगवान आत्रेय न बोलि  छौ।  १-२।
जौं  तत्वज्ञानियों न जणन लैक बथों जाणि ले छौ इन मुनियों दगड़  बैठयां पुनर्वसु आत्रेय से , ऋषि अग्निवेशन अपण संदेह जगत कल्याणौ कुण  पूछ। ३।
  स्नेहों  उतपत्ति  स्थान कु छन ? स्नेह कतना  छन ? पृथक पृथक प्रत्येक स्नेहा गुण क्या छन ? प्रत्येक स्नेहो समय ,अनुपान क्या  च ? विचारणाएँ कतका परकारा छन ? मात्रायें कथगा  छन ? ऊंको परिमाण क्या  च ? अर कु परिमाण कैकुण बुले गे ? कु स्नेह कैकुण  हितकारी च ? स्नेहन  म कु  स्नेह उत्तम च ? स्नेहका योग्य को च ? स्नेहा अयोग्य को च ?  अस्निग्ध अर  अतिस्निग्ध का लक्षण क्या छन ? स्नेहपान से पैल क्या पीण अर  क्या नि पीण  चयेंद ? स्नेह का जीर्ण हूण पर क्या पीण हितकारी अर अहितकारी च ? मृदु , क्रूर अर कोष्ठ वळ कु  छन ? स्नेह से कु कु  रोग उतपन्न हूंदन ? उन्का उपचार क्या च ? कौं  कौं पुरुषों  म विचारणा कैं विधि से प्रयोग हूण  चयेंद ? हे प्रभो ! स्नेह संबंधी अनंत ज्ञान  जणै  मेरी इच्छा च।   ४ -८। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय  ,पृष्ठ   १५६  बिटेन   १५७  तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

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Bhishma Kukreti

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चरक अनुसार स्नेह (चिपुळ )  कारकों प्रकार
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   तेरवां   स्नेह अध्याय    )   पद   ९  बिटेन  - १३ तक
  अनुवाद भाग -  ९३ 
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अग्निवेशौ  संदेह दूर करण वळ भगवन पुनर्वसुन उत्तर दे - स्नेह उतपति स्थान द्वी प्रकारा हूंदन - स्थावर अर जंगम।  यूंमा तिल ,चरौंजी , चिलगोजा ,बहेड़ा , चीता ,हरड़ , बड़ी ,अरंडी , महुआ ,राय -सरसों ,कुसुम्भ ,बेलगिरी ,भिलवा , मूलक , अलसी , निकोटक , अखोड़ ,नाटो करंजुआ , सहोजन  यी स्नेह (तेल  जन चिपुळ पदार्थ ) का स्थावर जन्म स्थल छन।   माछ , मृग )पशु) , पक्षी अर  यूंको दूध , दही ,घी , मांस वसा ,अर  मजा यी  स्नेह का जंगम जन्म स्थल छन।  ९-११। 
यूं मधे तिलक तेल श्रेष्ठ च। बल अर  मृदुता लाणो सबसे गुणकारी टिल तेल च। विरेचनौ  वास्ता अरंडी तेल श्रेष्ठ च।  सब प्रकारौ स्नेहों  म घी , तेल ,  मजा , वसा यी चार श्रेष्ठ छन। यूँ चारों मदे  घी श्रेष्ठ च किलैकि घी अन्य पदार्थों गन अफुम  ले लींद।  १२ -१३। 

 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ    १५७  म
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

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    तेल  का हितकारी गुण
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 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   तेरवां   स्नेह अध्याय    )   पद  १४   बिटेन  -१६  तक
  अनुवाद भाग -  ९४
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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तेल वात  अर   पित्त वायुनाशी च  , रस , शुक्राणु अर आज वर्धक च।  बढ़ीं उष्णमिता  तै शांत करदो , शरीर म कोमलता पैदा करदो ,स्वर अर कांति बढंद।  १४।
तेल वायु नाशक च ,किन्तु कफ नि बढ़ांद ,बलबर्धक , त्वचा कुण हितकारी ,उष्णवीर्य , उष्णगुण ,टिकाऊ बणाण वळ ,अर गर्भाशय शोभन करण वळ हूंदन अर  तिलौ तेल म यी गुण विशेष छन।  १५। 
भाला आदिक  चोट पर ,हड्डी टूटण पर ,गर्भाशय  म अंग सरकण या गर्भ सरकण म , कर्ण रोग ,मुंड क रोग ,पुरुषत्व वर्धक ,शरीर तै चिपुळ  करणम , व्यायाम म हितकारी हूंदन। १६।   
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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   १५७   बिटेन  १५८   तक
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तैलीय पदार्थों उपयोग विधि
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 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   तेरवां   स्नेह अध्याय    )   पद २३   बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -  ९६
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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तैलीय पदार्थ (स्न्नेह ) उपयोग विधि २४ प्रकारै  छन।
१- ओदन - पांच गुणा  जल मा चौंळ  पकाण , २- विलेपि - दरकच  वळ  चौंळुं  तै पकैक मांडयुक्त यवागू  ; ३- ठीक तरां  से पकयूं मांश रस ४- छह गुणा पाणी म दृक्च वळ चौंळ ु  यवागू ; ५ -
 -सूप - दाळ तै १४-१६ - १८ गुणा पानी म पकैक  चतुर्थांश  शेष रखण।  ६- शाक ;७-यश (अब्र तै दळी  १४ या १८ गुणा पाणि म पकैक आधा पाणि बाकी रखण ; कालंबिक , खड , सत्तु , तिलक  पिन्ना ,मदिरा , चाटन ,  भक्ष्य  (मालपुवा ) अभ्यञ्जन मालिश ,बस्ति , उत्तर बस्ति ,तेलक   गरारे ,कंदूड़ुन्द तेल  डळण ;  नस्य कर्म , आंखुंम  स्नेह डाळि तृप्त करण।  यी सब  स्नेह की २४ प्रकारै  सेवन विद्धि छन।  २३-२५।
शुद्ध स्नेह (तैलीय पदार्थ ) पीणौ  कुण 'विचारणा' नि  बुल्दन। यु त स्नेह कु  सर्वपर्थम  श्रेष्ठ  रूप च। प्रकृति ,देह , दोष आदि देखि पाचन शक्ति की विवेचना करि ओदन  आदि सेवन विधि करण  चयेंद।  २६।



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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १५९   बिटेन    तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2
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    स्नेह प्रकार

    चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   

 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   तेरवां   स्नेह अध्याय    )   पद  २७- २८   बिटेन  -२९-३०  तक
  अनुवाद भाग -  ९७
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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छ रसों क परस्पर मिलण से ६३ प्रकारौ भेद ह्वे  जांदन।  यूं  ६३ रसों दगड़ जन स्नेह (तैलीय पदार्थ  )  मिल्दो तो स्नेह बि ६३ प्रकारौ  ह्वे जांद।  जब कै बि रसो दगड़ स्नेह नि  मिल्युं हो तो अलग से एक भेद हूंद।  ये तरां से कुल ६४ भेद ह्वे।  ये हिसाबन स्नेह का   सेवन विधि बि  ६४ छन।  सात्म्य , ऋतू अर रोग - बल का अनुसार स्नेह सेवन करण  चयेंद। २७-२८।
स्नेक क मात्रा तीन प्रकारै हूंद- प्रधान , मध्यम व ह्रस्व।  यूं मादे जै स्नेह की मात्रा दिन अर रात  (२४ घंटा ) म जीर्ण हूंद वो स्नेह की प्रधान मात्रा च। अर जु दिन म जीर्ण हूंद वो मध्यम स्नेह अर जु ६ घंटा म जीर्ण हूंद वो ह्रस्व स्नेह ह्वे।  यी स्नेह की जीर्ण हूण , समय  व मात्रा अनुसार च।  ये अनुसार स्नेह क मात्रा अर  मान  बुले गेन। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १५९   बिटेन   १६०  तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charaka  Samhita, First-Ever Garhwali Translation of Charaka  Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charaka Samhita 


Bhishma Kukreti

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    स्नेह लाभ व मात्रा सेवन

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   तेरवां   स्नेह अध्याय    )   पद  ३१    बिटेन  - तक
  अनुवाद भाग -  ९८
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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जो मनिख रोज विशेष रूप से स्नेह प्रयोग करदन भूक -तीस संहन निसकण वळ , बलवान , जठराग्निवळ ,श्रेष्ठ शारीरिक बल वळ , गुल्म रोगी , सर्पविष करंट रोगी ,पागल मृतकृच्छ  रोगी अर  जौंक मल सुख्यूं रौंद वूं तै स्नेह सही मात्रा म सेवन करण  चयेंद।  अब प्रबह्व सूणो - जु सही मात्रा म सेवन ह्वे त  उपरोक्त रोग ठीक हूंदन।  वो शरीर का रोगो तै खींची भैर कर दीन्द ार शरीर का सब भागों फ़ैल जांद ।   वो बलबर्धक ,व शरीर व इन्द्रियों तै हरा भरा करण  वळ  हूंद।  ३१-३४। 
गाँठ , फ्वाड़ा ,फुंसी , खाज ,पमा , कुष्ठ रोगी , प्रमेही , अति मूत्ररोगी ,वातरक्तरोगी , बिंडी नि खाण वळ , न कम खाण वळ ,मृदु कोष खाण वळ , अर मध्यम बल वळ मध्यम मात्रा म स्नेह सेवन कारन।  या मध्य मात्रा मृदु विरेचक, कम कष्टकारी ,बल कम नि करण वळ , सुखपूर्वक शरीर तै कोमल करद।  इलै शरीर शोधन कुण  हितकारी च।  ३५ -३७
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ १६०    बिटेन    तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charaka  Samhita, First-Ever Garhwali Translation of Charaka  Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charaka Samhita 


Bhishma Kukreti

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              घी, तेल व वसा सेवन


चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   तेरवां   स्नेह अध्याय    )   पद   बिटेन  ३८  -४९  तक
  अनुवाद भाग -  ९९
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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बुड्या नौन्याळ /नौन्याळी ,कोमल, नाजुक प्रकृति का , ऐशै  जिंदगी जीण वळ , खाली पेट रण वळ जौंक  पुटुक डा हूंद, मंदाग्नि , निर्बल जठराग्नि ,  जौं तै - जौर पुरण खासू , निर्बल अर अलप बल वळ कम मात्रा म स्नेह लेवन।  या मात्रा पचण लैक हूंद , सुखपूर्वक पच जांदी, शरीर तै चिपुळ  करदी । पुरुषत्वकारक च ,बलकारक निरापद व देर तक सेवन म लाये जै सक्यांद। ३८-४०। 
जौंकि प्रकृति वात पित्त की हो , वात पित्त रोगी ,उत्तम दृष्टि चाहक , उरक्षत रोगी; निर्बल , क्षीण -बृद्ध , बाल; निर्बल व्यक्ति , आयु वृद्धि चाहक , बल , वर्ण ,कांति , स्वर चाहक ,शरीर पुष्टि इच्छुक ,संतति इच्छुक ,सुकमारता -कोमलता इच्छुक ,तेज , आज , बुद्धि स्मृति ,अग्नि धरणै  शक्ति अर इन्द्रिय बल चाहकों , अर आग ,जल , शस्त्र ,विष से आक्रांत रोगी घी क सेवन कारन। ४१-४३।
जौंम चर्बी अर कफ बिंडी हो ,जौंक पुटुक , गौळ म्वाट अर  ढिल्लि हो ,वात  रोगों से पीड़ित ,वात प्रकृति का ,जु बल , हळकोपन पतळोपन , मजबूती , शरीर की स्थिरता ,चिकनापन , कोमलत्वचा ,चाहक हों , कृमि रोग से पीड़ित , क्रूर कोष्ठ वळ , नाड़ीव्रण से आक्रांत , जौं तै तेल सेवन कु हभ्यास  च वो हेमंत म दिन म तेल सेवन कारन।  ४४-४६।
वायु अर घाम तापन करण वळ ,रुक्ष प्रकृति , भार उठाण वळ  या लगातार चलण वळ,परिश्रम से कमजोर गेयां ,वीर्य या रक्त सुक गे हो; कफ क्षीण हो ,मेद क्षीण हो , जौं तै अंथि , संधि सेरा, स्नायु मर्म कोष्ठ के भयानक रोग ह्वावन , जौंक इन्द्रियों तै बलवान वायु घेर्युं ह्वावो , जौंक  अग्निबल जठराग्नि  बलवान  ह्वावो   ,अर जु  वसा सेवन हभ्यासी होवन ऊँ  तै वसा सेवन करण  चयेंद।  ४७ , ४९।   
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्तम , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १६१   बिटेन  १६३   तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली


Bhishma Kukreti

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घी /तेल  सेवन लैक  अर निसेवन लैक  व्यक्ति
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,   तेरवां   स्नेह अध्याय    )   पद  ५०   बिटेन  - ५६ तक
  अनुवाद भाग -  १००
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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जौंक जठराग्नि दीप्त च ,जु क्लेश सहन कर सकदन , खूब खाण वळ , स्नेह सेवन हभ्यासी , वात्त रोगी व क्रूर कोष्ठक वळुं  तै मज्जा से स्नेह लीण  चयेंद।  ५०।
जौं जौं  दिन व्यक्तियों कुण  जु  जु स्नेह हितकारी च वूं  कुण  वु स्नेह बताये गे।  स्नेह सेवन द्वी प्रकारौ हूंद।  एक सात रत की व दुसर तीन रात की।  क्रूरकोष्ठ वळ तै सात रात व मृदु कोशक वळ तै तीन रात छन।  ५१।
स्नेहन का योग्य व्यक्ति जु व्यक्ति स्वेद दीण  या संसोधन लैक  छन; रुक्ष प्रकृति क छन ,वात्त रोगी , नित्य व्यायामसेवी ,नित्य मद्यसेवी ,नित्य स्त्री सेवी ,अर जु चिंता करणा रंदन।  वो स्नेहन का लैक छन।५२।
 संसोधन कर्यां  बगैर ,जौंक रुक्षण करणो  बुले जावो ;ऊँ  तै जौंक कफ बढ़गे  हो ,नाक , गुदा मुख से स्राव हूंद हो ,जौंक हमेशा मंदाग्नि हो ,तीस अर मूर्च्छा पीड़ित ह्वावन , गर्भवती , जौंक तालकुण्ड सुखद हो , भोजनम अरुचि हो , वमन करदो ,उदर रोगी या विष आक्रान्त , दुर्बल , कच्चो दिलौ ह्वावो ,घृणा करंदेर प्रकृति क , स्नेह पाणम जु खुस नि हूंदन ,घृणा करदा होवन , मद/नशा  म रौंदन ,;नस्य कर्म  व अनुवासन वस्ति लियुं ह्वावो तो इन  यक्ति स्नेह (घी , तेल , वसा ) ल्यावन त भयानक रोग ह्वे जालो।  ५३-५६।
 

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संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ  १६३   बिटेन  १६४   तक
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2021 तीस
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चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद; ढांगू वळक चरक सहिता  क गढवाली अनुवाद , चरक संहिता म   रोग निदान , आयुर्वेदम   रोग निदान  , चरक संहिता क्वाथ निर्माण गढवाली
 


 

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