Author Topic: चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita  (Read 18973 times)

Bhishma Kukreti

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महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत

चरक संहितौ   गढ़वळि  अनुवाद 
खंड - 1  सूत्रस्थानम

भाग - 1  श्री गणेश

शीर्षक -   प्रस्तावना

अनुवादक - भीष्म कुकरेती
-
                  !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती  श्री तैं  समर्पित !!!

    चरक संहिता विश्वौ  अनमोल  ज्ञान  भंडार च।   आयुर्वेद विद्यार्थ्युं  इ  ना ऍम मनिखों कुण  बि  चरक संहितौ  महत्व च।  गढ़वाली म साहित्य ग्रंथों व आध्यात्मिक ग्रंथों अनुवाद त  अवश्य ह्वे  किंतु  मैं नि  लगद आयुर्वेद /चिकत्सा /अभियन्त्रिका विषयों कु  अनुवाद  ह्वे  हो।  गढ़वाली म बनि बनि  विज्ञानं -ज्ञान दृष्टि धरिक  इ  मीन चरक संहिता अनुवादौ  कार्य हथ  पर ले।  ग्रंथ भौत  दीर्घ च।  तो पूरो हूणम समय बि  लगल .
               चरक जीवनी
महर्षि चरकौ  समय   200  बीसी   जांद।  आचार्य चरकन   अग्निवेश तंत्र , कुछ  स्थान   अर  अध्याय जोड़ि   जु  चरक संहिता नाम से विख्यात ह्वे।   चरक संहिता का उपदेशक अत्रि पुत्र अग्निवेश अर  प्रति संस्कारक चरक च।   भौत  सा विद्वान् चरक तै  कनिष्क को  राज वैद्य मणदन किन्तु  बौद्ध  कनिष्कौ   को राजकवि अश्वघोष बि बौद्ध छौ।  चरक संहिता म बौद्ध धर्म का खंडन बि च तो  यु सिद्धांत कि  चरक कनिष्कक राज वैद्य छौं सही नी।
  चरक संहिता आयुर्वेदक मौलिक ग्रंथ च जखम मुख्य छन -
*रोगों कारण अर उंकी युक्तिसंगत चिकित्सा
* चिकित्सीय परीक्षणै  वस्तुनिष्ठ विध्युं   उल्लेख
                 चरक संहिता की संरचना
खंड  -------------------अध्याय संख्या   ------ विवरण --
१- सूत्रस्थानम  --------------- ---३०   -------------------------------साधारण सिद्धांत
२- निदानस्थानम --------------   ८   ------------------------------रोग निदान 
३- विमानस्थानम् -------------   ८  -------------------------------विशेष निरूपण
४- शरीरस्थानम् -------------- --८  ---------------------------------शारीरिकी
५- इन्द्रियस्थानम् -------------  १२  ---------------------------------संवेदनशील इन्द्रिय निरोगदान 
६- चिकित्सास्थानम् ------- ---   ३०----------------------------------चिकित्सा
७- कल्पस्थानम् -----------------१२ ---------------------------------औषधि व विष शास्त्र
८- सिद्धिस्थानम् ----------------१२------------------------------------- सफल उपचार
चरकक संहिता म कायचिकित्सा प्रमुखता से प्रतिपादित च। 
 चरक संहिताओं का भास्य (टीकाएँ ) मुख्य  निम्न छन -
 चरक न्यास -----------भट्टारक हरिश्चंद्र (६ सदी )
तत्वचंद्रिका -----------जेज्जट (१४ 60 ई )
चर्कोप्सकार  --------------योगेंद्रनाथ सेन
चरकतत्वप्रकाश ------------नरसिंघ कविराज
जल्पकल्पतरु ------------------गंगाधर कविरत्न

चूँकि चरक संहिता संस्कृत म उपलब्ध च अर जै  तैं  संस्कृत आंदि  हो वैकुण  गढ़वाली अनुवाद की आवश्यकता नी च।  अतः  मीन अपण  अनुवाद म संस्कृत श्लोक व गद्य नि  देई अपितु सीधा गढ़वाली अनुवाद ही दे।

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती (जसपुर निवासी गढ़वाल )
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद ;  चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Firstever authentic Garhwali Translation of Charak  Samhita, Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal


Bhishma Kukreti

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महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत

चरक संहितौ  सर्वप्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 खंड - १  सूत्रस्थानम   
 अनुवाद शीर्षक -  सूत्रस्थानम प्रथम अध्याय -  १ -१५   
अनुवाद भाग -  २
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!! 
-
अब इख  बिटेन ' दीर्घ जीवतीय ' (लम्बो जीवन ) नामौ  अध्यायौ व्याख्यान करदां। ( च  स.  सू  . स्थ  1 , 1  )   
इन  भगवान आत्रेय न बोली छौ।   ( च  स.  सू.  स्थ  1, 2   ) 
दीर्घ काल तक जीणै  उग्र इच्छाधारी तपस्वी भारद्वाज मुनि देवराज इंद्र तै योग्य जाणि ऊमा गेन  ( च  स.  सू. स्था.   1, 3   ) 
पैली पैल ब्रह्मान आयुर्वेदक उपदेश दे अर   वै उपदेश तै  प्रजापति दक्षन पूर ढंग से ग्रहण कार।  दक्ष से द्वी अश्विनीकुमारोंन अर अश्विनी कुमारों से इन्द्रन ग्रहण कार।  इलैइ  भरद्वाज मुनि इंद्रम  ऐना ।  ( च  स.  सू.  स्थ  1 , 4 -5)
जब तप , उपवास , ब्रह्मचर्य, अध्ययन, व्रत अर  आयु    यूंमा बिघ्नकरंदेर रोग उतपन्न ह्वे गेन; तब प्राणियों पर दया करी पुण्यात्मा महर्षिगण पवित्र हिमालय क पार्श्व म कट्ठा  ह्वेन  ( च  स.  सू.  स्थ  1 , 6, 7 )
अंगिरा,जमदग्नि,वसिष्ठ,कश्यप,भृगु, आत्रेय,गौतम ,सांख्य, पुलस्त्य, नारद,असित, अगस्त्य,वामदेव,मार्कण्डेय,आश्वलायन,पारीक्षि ,भिक्षु, आत्रेय, भारद्वाज, कपिंजल, विश्वमित्र,आश्वरध्य, भार्गव, च्यवन,अभिजित, गार्ग्य,शांडिल्य, कौण्डिन्य, वार्क्षि ,देवल, गलब, सांकृत्य, वैजवपि ,कुशिक,बादरायण ,वडिश ,शरलोमा,काप्य, कात्यायन, कांकायन,कैकशेय ,धौम्य,मरीचि, काश्यप,शर्कराक्ष, हिरणाक्ष ,लोकाक्ष, पैंगी, शौनक,शाकुनेय, मैत्रेय, गैमतायनि, वैखानस, वालखिल्प, अर  हौरि ब्रह्मज्ञान,यम , नियम ,अर  तप से चमक्यां ,आहुति से उज्व्वल हुयीं  अग्नि स्वरूप तेजस्वी, महर्षि लोग, सुख से बिराजिक यीं  पुण्यशाली कथा तै इन  बुलण  बिसे गेन।   ( च  स.  सू.  स्थ  1, 8 -15       



संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )


शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद ;  चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 First  ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita, Translation of Charka Samhita by Agnivesh and Dridhbal ,  First Ever  Garhwali Translation of Charka Samhita


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बहुत सुन्दर जानकारी च सर।

Bhishma Kukreti

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महर्षि भरद्वाजौ इन्द्रम जाण

चरक संहिता सूत्रस्थानम  पैलो अध्याय  १५  से २७  तक
चरक संहितौ  गढ़वळि  अनुवाद 
 खंड - १  सूत्रस्थानम

 अनुवाद शीर्षक -
  अनुवाद भाग -   3
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
 धर्म , अर्थ, काम अर  मोक्ष यूं चर्रि  पुरुषार्थों मूल आरोग्य इ च  (१५    )   
रोग ये आरोग्य, अभ्युदय  अर  जीवन (आयु ) कु नाश करंदेर हूंदन।  मनिखों कुण  यी रोग महा बिघ्नकारी ह्वे  गेन।  इलै  यूं रोगुं  शांति बान  क्या हूण  चयेंद ? इन बोलि सब ऋषि ध्यानमग्न ह्वे  गेन। ऊँन   आंतरिक चक्षु से इंद्र तैं शरण दिंदेर  रूपम द्याख।  अर जाण  ले बल देवराज इंद्र इ शान्ति उपाय ब्वालाल।  (१६  -१७ )
 प्रश्न यि  उठ बल शचिपति इंद्र से प्रश्न पुछणो इंद्र भवन कु  जालो ?  ऋषि भरद्वाजन सबसे पैलि बोली , ये कार्य कुण मी तैं  नियुक्त करे जाव।  इलै आगरा आदि ऋषियूंन ये  कारजौ  कुण  भरद्वाज ऋषि तैं इ नियक्त कार  ( , १८- १९  )
इन्द्रौ भवनम जैका ऊँन देवर्षियुं  मध्य अग्नि सम तेजस्वी , बल नामौ असुर तैं  मरण  वळ इंद्रा तैं  देखि।   ( 20  )   
बुद्धिमान भारद्वाजन इन्द्रौ  समिण  जैकि जय सूचक आशीर्वादों से इन्द्रौ  अभिनंदन करि  ऋषियों उत्तम वचन दुहरायी।     ( २१  )   
" हे   अमरप्रभो ! सब प्राणियों तै भय दीण  वळि  व्याधि उतपन्न ह्वे  गेन इलै  तुम  यूंक शान्ति करणो उपाय उपदेश कारो।   ( 22   )   
  भगवान इन्द्रन महर्षि भारद्वाज तै महामति जाणि थ्वड़ा इ  शब्दों म  संक्छिप्तम आयुर्वेदौ  उपदेस दिनी।   ( 23   )   
हेतु (रोगुं कारण ), रोगुं चिन्ह , औषध (संसोधन अर संशमन रूप चिकत्सा ) , स्वस्थ अर रोगी दुयुं कुण पराम् गति , जैको ब्रह्मान पैलो ज्ञान  करि छौ वूं  तीन सूत्र (हेतु, दोष अर द्रव्य संग्रह ) वळ पुण्य, श्रेष्ठ अर नित्य , सनातन आयुर्वेदो  इन्द्रन उपदेश दिनी।  महामति भरद्वाज  मुनिन एकाग्रचित ह्वेकि ये अनंत अर अपार अर तिनि  स्कंध वळ  आयुर्वेद तै यथावत शीघ्र इ  जाण ले।  भरद्वाज मुनिन ये आयुर्वेद से इ सुखपूर्वक दीर्घ आयु प्राप्त करी।  अर भरद्वाज ऋषिन न   वूं  ऋषि यूँ तै अधिक ना इ हीन जन्या तन्नी  सम्पूर्ण शास्त्रौ  उपदेश दे।  दीर्घ आयु इच्छाधारी ऋषियूं न बि लोक हिट कामना से ये आयुवर्धक आयुर्वेद तैं  भरद्वाज से ले।  (२४ -२७ )   
 

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

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Bhishma Kukreti

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पुनर्वसु आत्रेय द्वारा आयुर्वेद उपदेश

चरक संहितौ  प्रथम गढ़वळि  अनुवाद 
  महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत   
 खंड - १  सूत्रस्थानम २८ - ४०   तक
  अनुवाद भाग -  ४   
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
 ज्ञानौ चक्षु से ऋष्यूंन  सामान्य , विशेष , गुण , द्रव्य, कर्म , समवाय, को  जन छौ  तनि (यथावत )  दर्शन करीन। यूं तै यथवत जाणि आयुर्वेद  ब्यूंत से हितकारी पदार्थों सेवन अर अहितकारी पदार्थों त्याग कौरि परम सुख अर दीर्घ जीवन पायी। २८- २९ I
पैथर , सब प्राण्युं  म मैत्रीबुद्धि रखण वळ पुनर्वसु आत्रेयन सब प्राण्युं  पर दया कौरि अपण छह शिष्यों तै पवित्र आयुर्वेदौ उपदेश दे।  अग्निवेश , भेड, जतूकर्ण , पराशर, हरीत,अर क्षारपाणि  यूं छह शिष्यों न मुनि क उपदेश ग्रहण कार।  ३०-३१ ।
 अग्निवशै  बुद्धि विशेष छे। मुनि आत्रेयौ उपदेशम अंतर् नि छौ। अग्निवेश इ सबसे पैल आयुर्वेदौ  कर्ता  ह्वे।  वांक पैथर भेड आदि बुद्धिमान  न अपण अपण  तंत्र बणैक  ऋषियों दगड़ बैठ्यां  आत्रेय मुनि तैं सुणाइ।  पुण्यकर्मा अग्निवेश आदि ऋषियों द्वारा भली प्रकार से सूत्र रूपम गूंथ्युं आयुर्वेद शास्त्र तै सूणी प्रसन्न ह्वेन अर ऊँन  प्रसन्नता से अनुमोदन बि  कार बल यु ग्रंथ ठीक से ग्रन्थित /गूंथा च ।  सब प्राण्युं पर दयालु ऊं ऋषियों की सब्युन प्रशंसा कार।  सब्युंन एक स्वर म बोली बल तुमन प्राणियों पर दया कार।  स्वर्गम स्थित नारद सहित देवऋषियोंन  बि ऊं ऋषियों पुण्य शब्द सूणी।  ये तै सूणी  वो बि प्रसन्न ह्वेन।  सबि प्राणियोंन अति स्नेह अर गंभीर शब्दों से साधुवाद दे।  ये साधुवादै ध्वनि सूणी  आगास गज गे।  सुखदायी वायु बगण लग गए , सबि  दिशाओं म  उज्यळ  चमकण  लफ गे , जल से बि  दिव्य पुष्प बरसण  लग गेन।
बुद्धि , उपलब्धि , (सिद्धि )  साध्य -साधन, स्मृति , मेघा धारण करणै  शक्यात , धृति, कीर्ति , यश , क्षमा ,दया, प्राणियों क दुःख दूर करणै  गाणी -स्याणी , यी सब ज्ञानमयी देवता अग्निवेश आदि ऋषियों म प्रवेश करी गेन। 
महर्षियों द्वारा अनुमोदित मथ्याका ऋषिओं का शास्त्र लोगुं परम कल्याणौ बान  प्रतिष्ठा तै प्राप्त ह्वेन। ( ३२ -४० )


संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

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Bhishma Kukreti

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'
आयु'  प्रकार अर  'आयु ' परिभाषा

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 
  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम  ४१ 
  अनुवाद भाग -   ५

अनुवादक - भीष्म कुकरेती
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
 
हित  , अहित , सुख व दुःख चार प्रकारै  'आयु'हूंदन।   ये 'आयु ' का  हित अहित,  पथ्यापथ्य ,अर  'आयु'  कु मान-परिणाम यु सब जै  शास्त्रम  ह्वावो अर  जैमा आयु लक्षण ह्वावन।   'वै  तै 'आयुर्वेद ' बुल्दन।  हित  आयु, अहित आयु , सुखी आयु , दुखी आयु चार प्रकारै आयु हूंदी। I   ४१  II
(सरैल )पांच महाभूतों से निर्मित , आत्मौ अधिष्ठान, भौतिक इंद्रियां, मन, ( आत्मा ) द्रष्टा, भोक्ता , जीव अर  ईश्वर,  यूंको  संजोगौ  नाम 'आयु'  च। 'आयु' निरंतर चलण वळ हूणन आयु बुले जांद। 
'आयु' अर्थात जीवनौ पर्यायवाची शब्द - सरैल तै धारण करदो , (जीवित ) प्राणो तै  धारण करदो, निरंतर चलणु रौंद , प्राणों दगड संबंधित च अर चेतनानुवृत्ति आदि क पर्यायवाची बुले जांद .

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद ;  चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ; जसपुर , ढांगू पौड़ी गढ़वाली द्वारा पहली बात चरक संहिता का अनुवाद
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Bhishma Kukreti

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आयुर्वेदौ  महत्ता  व आधार तथा  सामन्य व विशेषम भेद

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 
  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )

 खंड - १  सूत्रस्थानम  ४३ बिटेन - 53  तक
  अनुवाद भाग -   ६
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों तै स्थान  नि  दीणो पुठ्याबल )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!

  यु आयुर्वेद सबसे  बिंडी श्रेष्ठ पुण्यजनक च (किलैकि  बाकी ज्ञान परलोक  हित संबंधी छन ) I यु आयुर्वेद इहलोक अर  परलोक दुई हितों छ्वीं  लगान्द।  इन  जणगरों  मत  च।  ४३  । 
सामन्य अर विशेष -
सबि पदार्थों सब  कालोंम (समौ ) 'सामन्य' समान गुण धर्म इ वृद्धि क कारण हूंद, अर  विशेष ' अर्थत विभेद या विपरीत हूण  ह्रास कु कारण हूंद।  दुयुंक सरैलौ दगड संबंध सब पदार्थों वृद्धि अर  ह्रासौ कारण च।  यूँ समौम स्राईलो अंदर द्वी  धर्म इकदगड़ी  रै  सकदन।  इलै  सरैलम वृद्धि (metabolism ) अर सरैलम टूटन (ketabolism ) द्वी क्रिया प्रत्येक समौ हूणै  रंदन।  अर पृथक /बिगळयूं   धर्म 'विशेष च।  किलैकि समान धर्म ''सामन्य ' च त विपरीत धर्म विशेष ' च।  ४४ -४५ । 
(सत्व )मन , (आत्मा ) चेतना ,अर  सरैल यूं  तिन्युं से निर्मित तै 'लोक' बुल्दन।  यी तिनी तिपाई /तिकंटी क प्रकार से 'लोक' तै धारण कर्यां छन।  ये संजोग से निर्मित पुरुषम जन्म-मरण जन सब स्तिथ च।  यु सत्वादि समुदाय पुरुष बुले जांद अर  वु  चटन च।  यु ही आयुर्वेदौ आधार  /अधिकरण च अर  येकुण  इ  आयुर्वेद प्रकाशित करे गे।  ४६ -४७ । 
आगास आदि (पंच महाभूत -अगास , भूमि , वायु, जल , आग )  पांच महाभूतों, आत्मा , मन , काल , दिशा , यी द्रव्य का संग्रह छन।  इन्द्रियों संग द्रव्य चेतन च तो इन्द्रिय हीं अचेतन च।  ४८ । 
प्रयत्न  अर चेष्टा स्राईलो व्यापार कर्म बुले जांदन।  ४९ । 
पृथ्वी आदि द्रव्यों कु अपण  गुणों से नि बिगळयाण  ' समवाय' अर्थत नित्य संबंध  च।  (गुणों से हीं द्रव्य नी अर द्रव्य बिन गन नीन )। ५०  ।   
द्रव्य दगड़ 'समवाय ' संबंध वळ निष्क्रिय /निश्चेष्ट व कारणवान  गुण  च (गन निर्गुण च ) ।  ५१ । 
जु द्रव्यो   आसरो /आश्रय  रौंद अर  संजोग व विभाग म कारण /हेतु हूंद वो कर्म च।  कर्म कै  हैंको कर्मौ  अपेक्षा /आशा नि  करदो।  कर्तव्य कार्यो  अनुष्ठान /क्रिया रूप कर्म च।  ५२ ।
ये भांति सामन्य आदि छः कारणों वर्णन करे गे।  अब ऊँको कार्य बताये जाल।  ये शास्त्र म धातुओं क साम्य करण  इ कार्य च।  ये शास्त्रौ  उद्देश्य बि धातुओं तै समान रखण  च।  ५३ ।    .


संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
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            व्याधि हूणो नुख्य कारण

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम   बिटेन ५४   -५८  तक
  अनुवाद भाग -   7
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जित करणो   पुठ्याजोर )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
      काल ( जड्डू , रुड़ी, बरखा अर परिणाम ) , बुद्धि , इन्द्रियुं (शब्द, स्पर्श, रूप , रस अर गंध ) यूं तिन्युं  अतियोग , अयोग अर मिथ्यायोग हूण  से दुइ भांति सरैले अर मानसिक व्याधियां उतपन्न हूंदन।  ५४ 
सरैल अर  स्वच्छ (मन ) यी द्वी  ( बिगळयां  या दगड़ी ) इ रोगुं  आधार भूमि छन .  .जन  यि  व्याधियों आश्रय स्थल छन तन्नि सुखौ  बि आश्रय स्थल छन।  ५५ 

         निर्विकार अर सूक्छम आत्मा , मन , शब्दादि गुण , इन्द्रियों चैतन्य म कारण छन , वु नित्य च , साक्छी च , किलैकि वु सब क्रियाओं तै दिखुद च।   अचित्यूं  (अचेतन )  सरैल अर  चितळ  (चैतन्य) मन कु कारण  आत्मा इ  च।   ५६

संक्छेपम सरैलो  दोषुं कारण वात , पित्त अर कफ हूंदन।  अर मानसिक रोगुं  कारण रज अर  तम छन।  सरैलौ  क्वी  बि रोग  वात , पित्त अर कफ  बिना   नि  ह्वे सकद।  ५७

             सरैलौ दोष  दैव व्यपाश्रय (शरण ) , अर युक्ति-व्यपाश्रय आषध्यूं से शांत हूंदन।  मानसिक व्याधि ज्ञान -विज्ञान (अध्यात्म , आत्मा ), शास्त्र ज्ञान , धैर्य (चित्त स्थिरता ), स्मृति (भली बातों  तै समळिक ), समाधि  (विहसयों से ध्यान हटाई क आत्मा म ध्यान ) आदि से शांत हूंदन।  ५८

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
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              वायु, पित्त  अर  कफ   

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम
अध्याय १,  ५९  बिटेन  - ६६ तक
  अनुवाद भाग -   ८

अनुवादक - भीष्म कुकरेती

  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
 वायु का लक्षण -वायु रूखी, शीत , छुटि , सूक्ष्म , गतिशील , अविच्छिल , अर  कठोर च।  या एक विपरीत /विरोधी गुण  वळ स्निग्ध , उष्ण, गुरु , स्थूल, स्थिर , पिच्छिल , अर कुंगळ /मृदु द्रव्यों से शांत हूंद।  ५९ I
पित्त का लसखन -
पित्त थुड़ा स्निग्ध , गरम , तीक्ष /   शीघ्र कार्य करण  वळ ,  स्यूणो  टुपणा  जन तीक्ष्ण, द्रव , अम्ल/खट्टो , गमनशील व कटु  रस च।  ६० । 
कफ को लक्षण -
गुरु , शीत , मृदु , स्निग्ध, स्थिर अर  पिच्छिल यी कफौ  गुण  छन विपरीत गुण  वळ  पदार्थों से कफ शांत ह्वे   जांद ।  ६१ । 
विपरीत गुण  वळ द्रव्यों क देश (स्थान ), मात्रा अर  कालौ  अनुसार योजनाबद्ध रूप से औषधि दीण से साध्य व्याधि शांत ह्वे  जांद, असाध्य व्याधि  शांत नि  हूंदन।  अर  जु  रोग औषध्यूं  कुण  असाध्य छन ऊंकुण  औषधि उपदेस नि  दिए जांद।  यांक अगवाड़ी विस्तार से एक एक द्रव्यौ   गुण  कर्म क बाराम आचार्य ब्वालल।  ६२, ६३ ।   
रसनेंद्रियों से  ग्राह्य गुण  रस च।  ये रस्क आधार जल अर पृथ्वी छन।  ये रसौ  भेद करणम अगास , वायु अर  अग्नि यी तिन्नी  निमित्त कारण हूंदन।   वास्तवम रस कु उतपति स्थल जल च  अर  पृथ्वी एक आधार च।  ६४ ।
अर   संक्षेप म स्वादु , मधुर , अम्ल, लवण , कटु , तिक्त  /तीखो  अर कपाय  छह रस छन।  यूंक  विस्तार से यी  ६३   भेद /पृथक पृथक ह्वे  जांदन।  ६५ ।
स्वादु , अम्ल अर लवणौ  रस वायुक शमन करदन।  कपाय , मधुर अर तिक्त रस पित्त तैं , कपाय , कटु अर तिक्त  रस कफ तै शमन करदन।  ६६ । 


संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Fist-ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita,  first-Ever Garhwali Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita. First-Ever Himalayan Language Translation of  Charak Samhita


Bhishma Kukreti

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 द्रव्युं  विभिन्न प्रकार

चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 


  (महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत  )
 खंड - १  सूत्रस्थानम ,  पैलो अध्याय  बिटेन ६७ - ७६  तक
  अनुवाद भाग -   ९ 
अनुवादक - भीष्म कुकरेती

  ( अनुवादम ईरानी , इराकी अरबी शब्दों  वर्जणो  पुठ्याजोर )   
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
-
 
द्रव्य भेद -
द्रव्य तीन प्रकारै  हूंदन - कुछ द्रव्य वात  आदि दोषों शोधन व शमन करदन जन कि -तेल वायु कु , घी पित्त कु , शहद कफ  कु  शमन करदो ।  कुछ द्रव्य स्वास्थ्य रक्षण करदन, यी स्वस्थ  अवस्था कुण  हितकारी छन   जन कि - लाल चौंळ , सांटी चौंळ , जीवन्ति शाक।  ६७ I
द्रव्य  पुनः तीन प्रकारै  हूंदन - १- जंगम  - प्राणियों से उतपन्न २- औद्भिद - परितवहि से उगण  वळ  वनस्पति ३ -पार्थिव /खनिज
जंगम द्रव्य - शहद , गोरस , दूध , घी आदि , पित्त , वासा , मज्जा , रक्त , मांस , विष्ठा, मूत्र , चर्म  , वीर्य , अस्थि , स्नायु , सींग , नख, खुर , केश , रोम , आदि जंगम बिटेन  लिए जांदन।  ६८ -६९ । 
भौम द्रव्य -
स्वर्ण , स्वर्ण मल (शिलाजीत ), पांच लौह (सीसा , रांगा , ताम्बा , चांदी अर  सिकता ) , बळु , चूना , पार्थिव विष , मनशिला, हरताल (मणि ) , गेरू , अंजन , यी पार्थव औषध छन।  औद्भिद द्रव्य  चार प्रकारै हूंदन - वनस्पति, वोरुत ,वानस्पत्य ,अर औषधि।  ७० -७१ । 
जौंमा बिन पुष्प का फल आंदन वो वनस्पति छन जन - तिमल , बेडु , बौड़ आदि।  जौंमा पुष्प अर  फल द्वी आवन  वो वानस्पत्य छन जन - आम , फळिन्ड आदि।  जु फल आण  पर नष्ट ह्वे  जांदन वो औषध ह्वे  जन ग्यूं -चौंळ  आदि।  जु लता जन फैलणा रौंदन वो विरुध  ह्वे , जन गिलोय।  ७२ । 
मूल , खाल/छाल, अंदरौ  सार  भाग  (सार ), निर्यास - गोंद , नाळ , )स्वरस ), थींची/कूटिक द्रव्य से निकाळयूं  रस, आम जामुन पत्ता (पल्लव ), दूध थॉर आदि (छार ), आदि क फल , पुष्प, भष्म , तैल , मिलायुं आदि, कांड ,पत्ता , शुंग , जु डा ळ  पर हूंदन , कंद आदि औदभिद्धद  हूंदन।  ७३ । 
जौं  वृक्षों मूल प्रयोग म आयी सकदन वो मूलिन  ह्वे।  इन वनस्पति सोळा  छन।  जौं वनस्पति फल काम ांदन वो फलनि छन अर  उन्नीस छन।  चार महासनेह -घी , तेल वसा , मज्जा।  पांच प्रकारौ लूण , आठ प्रकारौ मूत्र  अर  आठ प्रकारौ दूध ,ार संशोधन हेतु छह वृक्ष पुनर्वसु आत्रेय न बताई।  जु  विद्वान् वैद्य रोगों म यूँ सब्युं  प्रयोग करण जणदु  ह्वावो वो आयुर्वेद तै भली भांति  जणदु।  ७४ , ७५ , ७६ ।   

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद; चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
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