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चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita

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Bhishma Kukreti:

महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत

चरक संहितौ   गढ़वळि  अनुवाद 
खंड - 1  सूत्रस्थानम

भाग - 1  श्री गणेश

शीर्षक -   प्रस्तावना

अनुवादक - भीष्म कुकरेती
-
                  !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती  श्री तैं  समर्पित !!!

    चरक संहिता विश्वौ  अनमोल  ज्ञान  भंडार च।   आयुर्वेद विद्यार्थ्युं  इ  ना ऍम मनिखों कुण  बि  चरक संहितौ  महत्व च।  गढ़वाली म साहित्य ग्रंथों व आध्यात्मिक ग्रंथों अनुवाद त  अवश्य ह्वे  किंतु  मैं नि  लगद आयुर्वेद /चिकत्सा /अभियन्त्रिका विषयों कु  अनुवाद  ह्वे  हो।  गढ़वाली म बनि बनि  विज्ञानं -ज्ञान दृष्टि धरिक  इ  मीन चरक संहिता अनुवादौ  कार्य हथ  पर ले।  ग्रंथ भौत  दीर्घ च।  तो पूरो हूणम समय बि  लगल .
               चरक जीवनी
महर्षि चरकौ  समय   200  बीसी   जांद।  आचार्य चरकन   अग्निवेश तंत्र , कुछ  स्थान   अर  अध्याय जोड़ि   जु  चरक संहिता नाम से विख्यात ह्वे।   चरक संहिता का उपदेशक अत्रि पुत्र अग्निवेश अर  प्रति संस्कारक चरक च।   भौत  सा विद्वान् चरक तै  कनिष्क को  राज वैद्य मणदन किन्तु  बौद्ध  कनिष्कौ   को राजकवि अश्वघोष बि बौद्ध छौ।  चरक संहिता म बौद्ध धर्म का खंडन बि च तो  यु सिद्धांत कि  चरक कनिष्कक राज वैद्य छौं सही नी।
  चरक संहिता आयुर्वेदक मौलिक ग्रंथ च जखम मुख्य छन -
*रोगों कारण अर उंकी युक्तिसंगत चिकित्सा
* चिकित्सीय परीक्षणै  वस्तुनिष्ठ विध्युं   उल्लेख
                 चरक संहिता की संरचना
खंड  -------------------अध्याय संख्या   ------ विवरण --
१- सूत्रस्थानम  --------------- ---३०   -------------------------------साधारण सिद्धांत
२- निदानस्थानम --------------   ८   ------------------------------रोग निदान 
३- विमानस्थानम् -------------   ८  -------------------------------विशेष निरूपण
४- शरीरस्थानम् -------------- --८  ---------------------------------शारीरिकी
५- इन्द्रियस्थानम् -------------  १२  ---------------------------------संवेदनशील इन्द्रिय निरोगदान 
६- चिकित्सास्थानम् ------- ---   ३०----------------------------------चिकित्सा
७- कल्पस्थानम् -----------------१२ ---------------------------------औषधि व विष शास्त्र
८- सिद्धिस्थानम् ----------------१२------------------------------------- सफल उपचार
चरकक संहिता म कायचिकित्सा प्रमुखता से प्रतिपादित च। 
 चरक संहिताओं का भास्य (टीकाएँ ) मुख्य  निम्न छन -
 चरक न्यास -----------भट्टारक हरिश्चंद्र (६ सदी )
तत्वचंद्रिका -----------जेज्जट (१४ 60 ई )
चर्कोप्सकार  --------------योगेंद्रनाथ सेन
चरकतत्वप्रकाश ------------नरसिंघ कविराज
जल्पकल्पतरु ------------------गंगाधर कविरत्न

चूँकि चरक संहिता संस्कृत म उपलब्ध च अर जै  तैं  संस्कृत आंदि  हो वैकुण  गढ़वाली अनुवाद की आवश्यकता नी च।  अतः  मीन अपण  अनुवाद म संस्कृत श्लोक व गद्य नि  देई अपितु सीधा गढ़वाली अनुवाद ही दे।

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती (जसपुर निवासी गढ़वाल )
चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद ;  चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 Firstever authentic Garhwali Translation of Charak  Samhita, Translation of Charak Samhita by Agnivesh and Dridhbal

Bhishma Kukreti:
महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत

चरक संहितौ  सर्वप्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 

 खंड - १  सूत्रस्थानम   
 अनुवाद शीर्षक -  सूत्रस्थानम प्रथम अध्याय -  १ -१५   
अनुवाद भाग -  २
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
-
      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!! 
-
अब इख  बिटेन ' दीर्घ जीवतीय ' (लम्बो जीवन ) नामौ  अध्यायौ व्याख्यान करदां। ( च  स.  सू  . स्थ  1 , 1  )   
इन  भगवान आत्रेय न बोली छौ।   ( च  स.  सू.  स्थ  1, 2   ) 
दीर्घ काल तक जीणै  उग्र इच्छाधारी तपस्वी भारद्वाज मुनि देवराज इंद्र तै योग्य जाणि ऊमा गेन  ( च  स.  सू. स्था.   1, 3   ) 
पैली पैल ब्रह्मान आयुर्वेदक उपदेश दे अर   वै उपदेश तै  प्रजापति दक्षन पूर ढंग से ग्रहण कार।  दक्ष से द्वी अश्विनीकुमारोंन अर अश्विनी कुमारों से इन्द्रन ग्रहण कार।  इलैइ  भरद्वाज मुनि इंद्रम  ऐना ।  ( च  स.  सू.  स्थ  1 , 4 -5)
जब तप , उपवास , ब्रह्मचर्य, अध्ययन, व्रत अर  आयु    यूंमा बिघ्नकरंदेर रोग उतपन्न ह्वे गेन; तब प्राणियों पर दया करी पुण्यात्मा महर्षिगण पवित्र हिमालय क पार्श्व म कट्ठा  ह्वेन  ( च  स.  सू.  स्थ  1 , 6, 7 )
अंगिरा,जमदग्नि,वसिष्ठ,कश्यप,भृगु, आत्रेय,गौतम ,सांख्य, पुलस्त्य, नारद,असित, अगस्त्य,वामदेव,मार्कण्डेय,आश्वलायन,पारीक्षि ,भिक्षु, आत्रेय, भारद्वाज, कपिंजल, विश्वमित्र,आश्वरध्य, भार्गव, च्यवन,अभिजित, गार्ग्य,शांडिल्य, कौण्डिन्य, वार्क्षि ,देवल, गलब, सांकृत्य, वैजवपि ,कुशिक,बादरायण ,वडिश ,शरलोमा,काप्य, कात्यायन, कांकायन,कैकशेय ,धौम्य,मरीचि, काश्यप,शर्कराक्ष, हिरणाक्ष ,लोकाक्ष, पैंगी, शौनक,शाकुनेय, मैत्रेय, गैमतायनि, वैखानस, वालखिल्प, अर  हौरि ब्रह्मज्ञान,यम , नियम ,अर  तप से चमक्यां ,आहुति से उज्व्वल हुयीं  अग्नि स्वरूप तेजस्वी, महर्षि लोग, सुख से बिराजिक यीं  पुण्यशाली कथा तै इन  बुलण  बिसे गेन।   ( च  स.  सू.  स्थ  1, 8 -15       



संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )


शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद ;  चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 First  ever authentic Garhwali Translation of Charka  Samhita, Translation of Charka Samhita by Agnivesh and Dridhbal ,  First Ever  Garhwali Translation of Charka Samhita

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
बहुत सुन्दर जानकारी च सर।

Bhishma Kukreti:
महर्षि भरद्वाजौ इन्द्रम जाण

चरक संहिता सूत्रस्थानम  पैलो अध्याय  १५  से २७  तक
चरक संहितौ  गढ़वळि  अनुवाद 
 खंड - १  सूत्रस्थानम

 अनुवाद शीर्षक -
  अनुवाद भाग -   3
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
 धर्म , अर्थ, काम अर  मोक्ष यूं चर्रि  पुरुषार्थों मूल आरोग्य इ च  (१५    )   
रोग ये आरोग्य, अभ्युदय  अर  जीवन (आयु ) कु नाश करंदेर हूंदन।  मनिखों कुण  यी रोग महा बिघ्नकारी ह्वे  गेन।  इलै  यूं रोगुं  शांति बान  क्या हूण  चयेंद ? इन बोलि सब ऋषि ध्यानमग्न ह्वे  गेन। ऊँन   आंतरिक चक्षु से इंद्र तैं शरण दिंदेर  रूपम द्याख।  अर जाण  ले बल देवराज इंद्र इ शान्ति उपाय ब्वालाल।  (१६  -१७ )
 प्रश्न यि  उठ बल शचिपति इंद्र से प्रश्न पुछणो इंद्र भवन कु  जालो ?  ऋषि भरद्वाजन सबसे पैलि बोली , ये कार्य कुण मी तैं  नियुक्त करे जाव।  इलै आगरा आदि ऋषियूंन ये  कारजौ  कुण  भरद्वाज ऋषि तैं इ नियक्त कार  ( , १८- १९  )
इन्द्रौ भवनम जैका ऊँन देवर्षियुं  मध्य अग्नि सम तेजस्वी , बल नामौ असुर तैं  मरण  वळ इंद्रा तैं  देखि।   ( 20  )   
बुद्धिमान भारद्वाजन इन्द्रौ  समिण  जैकि जय सूचक आशीर्वादों से इन्द्रौ  अभिनंदन करि  ऋषियों उत्तम वचन दुहरायी।     ( २१  )   
" हे   अमरप्रभो ! सब प्राणियों तै भय दीण  वळि  व्याधि उतपन्न ह्वे  गेन इलै  तुम  यूंक शान्ति करणो उपाय उपदेश कारो।   ( 22   )   
  भगवान इन्द्रन महर्षि भारद्वाज तै महामति जाणि थ्वड़ा इ  शब्दों म  संक्छिप्तम आयुर्वेदौ  उपदेस दिनी।   ( 23   )   
हेतु (रोगुं कारण ), रोगुं चिन्ह , औषध (संसोधन अर संशमन रूप चिकत्सा ) , स्वस्थ अर रोगी दुयुं कुण पराम् गति , जैको ब्रह्मान पैलो ज्ञान  करि छौ वूं  तीन सूत्र (हेतु, दोष अर द्रव्य संग्रह ) वळ पुण्य, श्रेष्ठ अर नित्य , सनातन आयुर्वेदो  इन्द्रन उपदेश दिनी।  महामति भरद्वाज  मुनिन एकाग्रचित ह्वेकि ये अनंत अर अपार अर तिनि  स्कंध वळ  आयुर्वेद तै यथावत शीघ्र इ  जाण ले।  भरद्वाज मुनिन ये आयुर्वेद से इ सुखपूर्वक दीर्घ आयु प्राप्त करी।  अर भरद्वाज ऋषिन न   वूं  ऋषि यूँ तै अधिक ना इ हीन जन्या तन्नी  सम्पूर्ण शास्त्रौ  उपदेश दे।  दीर्घ आयु इच्छाधारी ऋषियूं न बि लोक हिट कामना से ये आयुवर्धक आयुर्वेद तैं  भरद्वाज से ले।  (२४ -२७ )   
 

संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद ;  चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
 First ever authentic Garhwali Translation of Charka Samhita, Translation of Charka Samhita by Agnivesh and Dridhbal ,  First ever  Garhwali Translation of Charka Samhita

Bhishma Kukreti:
पुनर्वसु आत्रेय द्वारा आयुर्वेद उपदेश

चरक संहितौ  प्रथम गढ़वळि  अनुवाद 
  महर्षि अग्निवेश व दृढ़बल प्रणीत   
 खंड - १  सूत्रस्थानम २८ - ४०   तक
  अनुवाद भाग -  ४   
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
 ज्ञानौ चक्षु से ऋष्यूंन  सामान्य , विशेष , गुण , द्रव्य, कर्म , समवाय, को  जन छौ  तनि (यथावत )  दर्शन करीन। यूं तै यथवत जाणि आयुर्वेद  ब्यूंत से हितकारी पदार्थों सेवन अर अहितकारी पदार्थों त्याग कौरि परम सुख अर दीर्घ जीवन पायी। २८- २९ I
पैथर , सब प्राण्युं  म मैत्रीबुद्धि रखण वळ पुनर्वसु आत्रेयन सब प्राण्युं  पर दया कौरि अपण छह शिष्यों तै पवित्र आयुर्वेदौ उपदेश दे।  अग्निवेश , भेड, जतूकर्ण , पराशर, हरीत,अर क्षारपाणि  यूं छह शिष्यों न मुनि क उपदेश ग्रहण कार।  ३०-३१ ।
 अग्निवशै  बुद्धि विशेष छे। मुनि आत्रेयौ उपदेशम अंतर् नि छौ। अग्निवेश इ सबसे पैल आयुर्वेदौ  कर्ता  ह्वे।  वांक पैथर भेड आदि बुद्धिमान  न अपण अपण  तंत्र बणैक  ऋषियों दगड़ बैठ्यां  आत्रेय मुनि तैं सुणाइ।  पुण्यकर्मा अग्निवेश आदि ऋषियों द्वारा भली प्रकार से सूत्र रूपम गूंथ्युं आयुर्वेद शास्त्र तै सूणी प्रसन्न ह्वेन अर ऊँन  प्रसन्नता से अनुमोदन बि  कार बल यु ग्रंथ ठीक से ग्रन्थित /गूंथा च ।  सब प्राण्युं पर दयालु ऊं ऋषियों की सब्युन प्रशंसा कार।  सब्युंन एक स्वर म बोली बल तुमन प्राणियों पर दया कार।  स्वर्गम स्थित नारद सहित देवऋषियोंन  बि ऊं ऋषियों पुण्य शब्द सूणी।  ये तै सूणी  वो बि प्रसन्न ह्वेन।  सबि प्राणियोंन अति स्नेह अर गंभीर शब्दों से साधुवाद दे।  ये साधुवादै ध्वनि सूणी  आगास गज गे।  सुखदायी वायु बगण लग गए , सबि  दिशाओं म  उज्यळ  चमकण  लफ गे , जल से बि  दिव्य पुष्प बरसण  लग गेन।
बुद्धि , उपलब्धि , (सिद्धि )  साध्य -साधन, स्मृति , मेघा धारण करणै  शक्यात , धृति, कीर्ति , यश , क्षमा ,दया, प्राणियों क दुःख दूर करणै  गाणी -स्याणी , यी सब ज्ञानमयी देवता अग्निवेश आदि ऋषियों म प्रवेश करी गेन। 
महर्षियों द्वारा अनुमोदित मथ्याका ऋषिओं का शास्त्र लोगुं परम कल्याणौ बान  प्रतिष्ठा तै प्राप्त ह्वेन। ( ३२ -४० )


संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल )
शेष अग्वाड़ी  फाड़ीम

चरक संहिता कु  एकमात्र  विश्वसनीय गढ़वाली अनुवाद ;  चरक संहिता कु सर्वपर्थम गढ़वाली अनुवाद ;
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