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अरस्तु का पेरी पोएटिक्स का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Peri poietik
Bhishma Kukreti:
प्रहसन /कौमदी अर त्रासदी - महाकाव्य म भेद पर अरस्तु विचार
अरस्तु कु पेरी पोएटिक्स कु गढ़वाली अनुवाद ( शब्दानुवाद ) भाग - 5
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(ईरानी, अरबी उर्दू शब्दों क वर्जना को प्रयत्न करे गे )
[Garhwali Translation of Peri poietikes by Aristotle (on the Art of poetry )
Based on the Translation by INGRAM BYWATER (oxford 1920) ]
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
( (ईरानी, अरबी उर्दू शब्दों क वर्जना को प्रयत्न करे गे )
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जख तलक कौमदी /प्रहसनौ प्रश्न च , यो (अवलोकन करे गे ) औसत मनिखों से बि निकृष्ट व्यक्तियों कु अनुकरण च; निष्कृष्ट , तथापि , प्रत्येक हीनतर नि छा , हाँ एक विशेष प्रकारौ उपहास की बात च , जु भद्दो जाति क च । उपहास परिभासित करे सक्यांद बल अशुद्ध या विकृत , जु दुःख जन्मदाता नी या दूसरौ कुण हानिकारक नी च, मुखौटा /उपमुखम , उदाहरणार्थ , जु हंसी की तीब्रता वृद्धि करद , जु कुछ भद्दो हूंद अर बिन दुःख दियां विकृत हूंद।
उन त , त्रासदी म क्रमगत परिवर्तन का लिख्वार जण्यां पछयणां छन , कौमदी /प्रहसन /चबोड़ / चखन्यौ का बारा म हम इन नि बोल सकदा, यांक प्रथम काल अज्ञात इ राई, किलैकि अबि तक बि (ईं विधा ) तै गंभीरता से नि लिए गे । यांक विकास कु पैथरो भागम अर्कोनोंन कौमदी कलाकारों अनुदान दे या कदर कार या पछ्याणक दे (granted by archon ); वो बि बस स्वेच्छिक छा (volunteers ) (अर्थात कौमदी कोरसौ प्रायोजक नि रै होला ) । जब यूं प्रहसनों क रिकॉर्ड /अभिलेखीकरण शुरू ह्वे त अवश्य इ कौमदी /प्रहसन कु कुछ निश्चर रूप ऐ गे छौ अर प्रहसन कवियों न निश्चित शब्द प्रयोग शुरू कर याल छौ । यु उत्तरहीन इ च कि कौंन मुखौटा/उपमुख दे , प्रस्ताव कैन दे , या कलाकारूँ भीड़ दे (तब नाटक कोर्स /कलाकारों भीड़ युक्त म खिले जांद छा) । तथापि , प्लाट कु जन्म सिसली म ऐंठन का एपिचारमस अर फार्मस कवियों से , ह्वे , क्रेटस न व्यक्तिगत गाळी से प्रहसन शुरू कार अर व्यक्तिगत व अव्यक्तिगत वृति क हास्य /प्रहसन कथौं ढांचा तयार कार , दुसर शब्दों म प्लाट। ( बाइवाटर कु नोट - क्रेट्स से पैल राजनैतिक व्यक्तियों कु चबोड़ करे जांद छौ , क्रेट्स अरस्तु से पैलक लिख्वार च , क्रेट्सन मिथ आधारित प्रहसन शुरू कार। यु एक दिशा इंगित करदो बल राजनीतिज्ञों राजनीतिज्ञों पर भद्दा चबोड़ रुकवाई ) ।
महाकाव्य , तब , इख तलक कि त्रासदी दगड स्वीकृत ह्वे , याने गंभीर विषयों काव्यात्मक भव्य अनुकरण (Imitation ) । यूंमा भेद छन , तथापि , १ - वेमा एक प्रकार की कविता म अर लम्बी कथा , २ - लंबै - इलैकि क्रियाओं म समय प्रतिबंध नई हूंद, जबकि त्रासदी म समय सीमा नि हूंदी , जबकि त्रासदी म सीमा सीमित हूंद , सूरज उगण से अछल्याण तक , या थोड़ा भौत यांक न्याड़ -ध्वार । यु , म्यार विचार से एक भेद च , यद्यपि पैल व्यवहारम ये विषयम महाकाव्य अर त्रासदी इकसनि छा। वूंमा एक हैंको भेद च ३ - घटकों म अंतर, कुछ दुयुं म सामान हूंदन, कुछ महाकाव्यों म विशेष हूंदन -इलै भलो या बुरो महाकव्य कु आलोचक (न्यायकर्ता ) बि त्रासदी आलोचक हूंद। महाकाव्य का अभी घटक /अंग त्रासदी म हूंदन किन्तु सबि त्रासदी अंग महाकाव्य म नि मिल्दन।
शेष अग्वाड़ी भाग - म
सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती २०२१
First Authentic Garhwali Translation of Peri Poetikses by Aristotle, First Ever Translation of Peri Poetikses by Aristotle in Garhwali Language., First Ever Garhwali Translation of a Greece Classics; गढ़वाली भाषा में प्रथम बार अरस्तु /अरिस्टोटल के पेरी पोएटिक्स का सुगढ़ अनुवाद , यूनानी साहित्य का प्रथम बार गढ़वाली में अनुवाद ,
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