Uttarakhand > Utttarakhand Language & Literature - उत्तराखण्ड की भाषायें एवं साहित्य
अरस्तु का पेरी पोएटिक्स का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Peri poietik
Bhishma Kukreti:
अरस्तु का पेरी पोएटिक्स का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Peri poietik
क्वी बि भाषा तब समग्र रूप म विकसित हूंद जब भाषाक साहित्य म बनि बनी प्रकार का साहित्य भंडार हो I एक साहित्य वो बि हूंद जु अन्तराष्ट्रीय स्तर का साहित्यकार , दार्शनिकों व आध्यामिक विचारकों ण रची हो . in विचारकों विचरो अनुवाद बि भाषा कुण आवश्यक हूंद . ये इ विषय तैं केंद्र म रखी मी इखम सुकरात का पेरी पोएटिक्स का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Peri poietik कु अनुवाद प्रस्तुत करणों छौन I तुम लोखुं प्रतिक्रिया आवश्क च . मैं पूरी आशा ch मी अपर उद्येश म सफल होलू .
प्रतिक्रिया अवश्य देण
तुमर ही
भीष्म कुकरेती
Bhishma Kukreti:
अरस्तु (एरिस्टोटल ) कु पेरी पोएटिक्स कु गढ़वाली अनुवाद ( शब्दानुवाद )
-
(ईरानी, अरबी उर्दू शब्दों क वर्जना को प्रयत्न करे गे )
[Garhwali Translation of Peri poietikes by Aristotle (on the Art of poetry )
Based on the Translation by INGRAM BYWATER (oxford 1920) ]
भाग - १
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
( (ईरानी, अरबी उर्दू शब्दों क वर्जना को प्रयत्न करे गे )
-
क्वी बि भाषा तब समग्र रूप म विकसित हूंद जब भाषाक साहित्य म बनि बनी प्रकार का साहित्य भंडार हो I एक साहित्य वो बि हूंद जु अन्तराष्ट्रीय स्तर का साहित्यकार , दार्शनिकों व आध्यामिक विचारकों ण रची हो . in विचारकों विचरो अनुवाद बि भाषा कुण आवश्यक हूंद . ये इ विषय तैं केंद्र म रखी मी इखम अरस्तु (एरिस्टोटल ) का पेरी पोएटिक्स का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Peri poietik कु अनुवाद प्रस्तुत करणों छौन I तुम लोखुं प्रतिक्रिया आवश्क च . मैं पूरी आशा ch मी अपर उद्येश म सफल होलू .
प्रतिक्रिया अवश्य दें .
----अरस्तु (एरिस्टोटल ) परिचय -
यूनानी दार्शनिक अरस्तु (एरिस्टोटल ) (३८४ - ३२२ BC ) प्लेटो क च्याला अर सिकंदरौ गुरु छौ। अरस्तु (एरिस्टोटल ) को साहित्यिक रचनाओं म वै बगतौ यूनानौ राजनैतिक वातावरणो क्वी विशेष छाप नि मिलदी।
सुकरातौ साहित्य कार्य (पेरी पोएटिक्स ३३० BC ) म राजनीति विषय नी च। ये ग्रंथ कु कुछ इ भाग बच्यूं च या मील। काव्य सिद्धांत प्लेटो तैं उत्तर च। वास्तव म सुकरातौ कविता सिद्धांत वैको अपण च। पेरी पोएटिक्स वास्तव म नाटक सबंधित च।
--- पेरी पोएटिक्स कु अनुवाद भाग १ -
हमर विषय कविता पोएट्री च। म्यार प्रस्ताव केवल साधारण रूपम कला से संबंधित नी च , अपितु यांक भौत सा उपश्रेणी अर ऊंको सक्यात /गुण पर बि : कथानकौ (muthos /plot ) संरचना कविता कुण आवश्यकता हूंद; कविता संरचनौ भागुं संख्या अर ऊंको प्रकृति; अर ये प्रकार से हौर विषय बि परखे जाल। आवा प्राकृतिक अनुक्रम तै दिखला अर पैल प्राथमिक तत्वों से शुरू करला।
महाकाव्य , त्रासदी , अर प्रहसन )कॉमेडी ) देव पूजा कविता बि , रौद्र स्तोत्र , विलाप जन सब छन , जु समग्र रूप से दिखे जाल, यी सब अनुकरण ( mimesis नाटक ) का साधन छन। ,अर दगड़म यी यी एक हैंक से तीन प्रकार से अलग छन, या तो अर्थ कु कारण विशेष /अलग छन या उद्देश्य का कारण विशेष / अलग छन या अनुरकरण से विशेष /अलग ह्वे जांदन।
जन कुछ रूप (form ) अर रंग तै साधन बणांदन , जु यूंको सहायता से अनुकरण ( नाटक , नकल करदन ) , या चित्रांकन करदन ,अर कुछ ध्वनि प्रयोग करदन; मथ्याक कला समोहः म बि , समग्र रूप से ऊंको साधन छन पद्य (rhymes ), भाषा अर राग (melody ) , यद्यपि इखुलि या दगड़ /जुंटा म। पद्य अर राग कु दगुड़ पाइप प्लेइंग कु साधन च अर गीत गाण या हौर कला बि ह्वे सकदन , उदाहरणार्थ अनुकरण वळ बांसुरी वादन। रागहीन पद्य नचाड़ कुण अनुकरणीय हूंद; इख तलक कि वेक व्यवहारौ तरंग, लोगुं स्वभावो प्रतिनिधित्व करद , इख तलक कि वु क्या करदन अर ऊंको दुःख (बि ) I यांसे अगनै , एक इन कला बि च जु केवल भाषा से इ अनुकरणीय )नकल ) हूंद , बिना राग का ,पद्य या गद्यम, अर जु कविता रुपम च त , कै क्वी एक रुपम या कई मीटरुं म । , यी अनुरक्त कला को आज क्वी नाम नी च (संभवतया तब यूनान म स्वांग या नाटक नाम नि छौ। )
हाँ अंतम , कुछ ऑवर कला छन जखम तुकबंदी वळ पद्य /rhymes, राग /melody अर कविताओं /verses प्रयोग करे जांद। अर्थात हमम उद्धत /dithyrambic अर आर्थिक।/नोमिक कविता, त्रासदी/tregedy , प्रहसन /comedy छन; विशेषता का दगड़ , तथापि, यी तीन प्रकारौ साधन कुछ स्थलों म इकदगड़ी , कुछ स्थलुं म अलग अलग, एक का पश्चात हैंक प्रयोग हूंदन। यी तत्व मथ्याक कलाउं म अलग हूंदन म्यर अर्थ च नकल /स्वांग / imitation करदा दैं
शेष अग्वाड़ी भागम
सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती २०२१
First Authentic Garhwali Translation of Peri Poetikses by Aristotle, First Ever Translation of Peri Poetikses by Aristotle in Garhwali Language; First Ever Garhwali Translation of a Greece Classics; गढ़वाली भाषा में प्रथम बार अरस्तु (एरिस्टोटल ) /अरिस्टोटल के पेरी पोएटिक्स का सुगढ़ अनुवाद , यूनानी साहित्य का प्रथम बार गढ़वाली में अनुवाद ,
Bhishma Kukreti:
अरस्तु कु पेरी पोएटिक्स कु गढ़वाली अनुवाद ( शब्दानुवाद ) भाग - २
-
(ईरानी, अरबी उर्दू शब्दों क वर्जना को प्रयत्न करे गे )
[Garhwali Translation of Peri poietikes by Aristotle (on the Art of poetry )
Based on the Translation by INGRAM BYWATER (oxford 1920) ]
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
( (ईरानी, अरबी उर्दू शब्दों क वर्जना को प्रयत्न करे गे )
-
जु बि अनुकरणकार (कवि या स्वांगकार ) अनुकरण करद वो कार्य छन (actions ) I वु [स्वांग (कार्य ) ] का कर्ता क कार्य आवश्यक रूप से भला लोग ( संभवतया राजा या भद्र /elite ) या बुरु (Bad, संभवतया दास ) - सदा इ , मानवीय स्वभाव की विविधता ये प्राथमिक विशेषता से इ उपजदन, चूँकि पाप अर पुण्य का भेद रेखा सरा मानव जाति क च। इलै ध्यान दीण वळि बात च , जु लोग प्रतिनिधि करदन वूं तै भला से अळग या तौळ स्तर पर हूण चयेंद , या जन हम अछेकि छंवां (वास्तविक ) I पेंटिंग /चित्रांकन की तुलना कारो। पोलिग्नोटिस का चित्रों तै , चित्र म लोग हम से बच्छा छन, पाऊसन का वास्तविक से निकम छन , डाइनोसियस का चित्रों म लोग हमर जन इ छ्न। यु स्पष्ट च बल प्रत्येक अनुकरणौ अळगौ अभिरुप /रचना उपरोक्त भेद तै स्वीकार कारल ( रचनाकार ग्रहण कारल ) , अर जब क्वी माध्यम विशेष भेद प्रयोग करदन तो वो अलग प्रकार को अनुकरण ह्वे जांद। इख तक कि नाच , बांसुरी वादन , गीत संगीत /गायन म बि वा विविधता संभव च; अर यो नामहीन कला म बि संभव च जखम भाषा , गद्य या रागहीन पद्य प्रयोग हूंद , यांको अर्थ च; उदाहरणार्थ होमर का चरित्र हमसे अच्छा छन; क्लेओफोन का चरित्र हमर स्तर का छन; अर थासॉस का ( रचयिता ) हेजेमोन, पैरोडी का पैलो लिख्वार , अर निकोचेरस कु रास्कल्स' महाकाव्य, यूंमाँ निम्न स्तर कु च (मानव चरित्र चरित्रीकरण )। वी उत्स्व गीत व नामकरण गीत पर बि लागु हूंद; चरित्रों चरित्रीकरण विशेष उदाहरण छन ( अध्याय लुप्त ) अर अरगस , अर 'साइक्लोप्सेस' का (चरित्र ) टीमोथियस अर फिलोजेनस। यु भेद विलाप ( कला) अर प्रहसन तै बि अलग (पछ्याणक ) करदन; एक बुरा से बुरा चरित्र अनुकरण तै पसंद करदन अर दुसर (अनुकरणम ) आज का मनिखों से अच्छा (पसंद करदन ) ।
शेष अग्वाड़ी भाग ३
सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती २०२१ age., First Ever Garhwali Translation of a Greece Classics; गढ़वाली भाषा में प्रथम बार अरस्तु /अरिस्टोटल के पेरी पोएटिक्स का सुगढ़ अनुवाद , यूनानी साहित्य का प्रथम बार गढ़वाली में अनुवाद ,
Bhishma Kukreti:
अरस्तु कु पेरी पोएटिक्स कु गढ़वाली अनुवाद ( शब्दानुवाद ) भाग - ३
-
(ईरानी, अरबी उर्दू शब्दों क वर्जना को प्रयत्न करे गे )
[Garhwali Translation of Peri poietikes by Aristotle (on the Art of poetry )
Based on the Translation by INGRAM BYWATER (oxford 1920) ]
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
( (ईरानी, अरबी उर्दू शब्दों क वर्जना को प्रयत्न करे गे )
-
यूं कलाओं म एक तिसर भिन्नता बि हूंद , शैली जैमा कला उद्देश्य प्रतिनिधित्व हूंद। एक इ साधन अर अनुकरण कुण एकि उद्देश्य हूण पर या तो कथा द्वारा या चरित्र उदाहरण से व्यक्त कर सकद जन कि होमर करद , या सब स्थलों म बिन परिवर्तन कु एक सामान रावो या अनुकरणकर्ता /रचनाकार सरा कथा तैं नाटकीय रूप म बताई /प्रतिनिधत्व सकद जन बुल्यां यि सच्ची ह्वे ह्वावन।
जनकि पैली बतै याल बल , इलै , यूं अनुकरणों म यी तीन भेद /विशेषता हूंदन - ऊंको साधन , ऊंको उद्देश्य अर ऊंकी शैली।
अतः , अनुकरणकर्ता (रचनाकार) रूपमा एक ओर सोफ़ोकलस च अर दुसर ओर होमर , द्वी भला लोगन चित्रण करदन , अर दुसर ओर अरिस्टोफोन्स च , चूंकि द्वी अपण चरित्रों तै इन प्रस्तुत करणा छा जन पाठ खिलण हो /ऐक्टिंग हो अर कर्म। वास्तवम, कुछुं अनुसार यो इ कारण च बल क्रीड़ा तेन स्वांग /ड्रामा बुले जांद, किलैकि प्ले म चरित्र कथा म जीवित हूंदन। (charcters atc the story ) I . इलै ग्र्रीक का द्वी डोरियन्स ट्रेजिडी अर कॉमेडी अपण अन्वेषण बुल्दन तो मेगारियन कामदी पर स्वत्व बथान्दन , मेगारियन सिसिलियन मेगारियन से अलग प्रजातन्त्री खंड ह्वे , अर ऊँन बोली बल कवि इपीकारमस ऊंको देस कु च जु चिओनाइड्स अर मैग्नेस से पैल छा; इख तलक कि कुछ पेलेपोन्नेसिई डोरियन्स बि त्रासदी पर स्वत्व बथांदन। अपण समर्थन म सि लोक बुल्दन बल सि दूरस्थ गाँव कुण 'कोमायी ' (komai ) बुल्दन , जब कि ऐंथस वळ 'डेमेस (demes, demoi ) बुल्दन , अर्थात प्रहसन कवि तै komoi से नाम नि मील , अपितु एक गांव से हैं गांव परिभ्र्रमण से मील, सि अभिनय (act ) कुण 'ड्रान ' (dran, प्रहसन करण ) बुल्दन तो एथेंस वळ प्राटेन (prattein, ) बुल्दन।
संख्या व प्रकृति अनुसार अनुकरण म भौत भेद हूंदन।
शेष अग्वाड़ी भाग - ४ म
सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती २०२१
First Authentic Garhwali Translation of Peri Poetikses by Aristotle, First Ever Translation of Peri Poetikses by Aristotle in Garhwali Language., First Ever Garhwali Translation of a Greece Classics; गढ़वाली भाषा में प्रथम बार अरस्तु /अरिस्टोटल के पेरी पोएटिक्स का सुगढ़ अनुवाद , यूनानी साहित्य का प्रथम बार गढ़वाली में अनुवाद , एक या तो
Bhishma Kukreti:
कविता जन्म अर अनुक्रमण सिद्धांत
अरस्तु कु पेरी पोएटिक्स कु गढ़वाली अनुवाद ( शब्दानुवाद ) भाग -४
-
(ईरानी, अरबी उर्दू शब्दों क वर्जना को प्रयत्न करे गे )
[Garhwali Translation of Peri poietikes by Aristotle (on the Art of poetry )
Based on the Translation by INGRAM BYWATER (oxford 1920) ]
अनुवादक - भीष्म कुकरेती
( (ईरानी, अरबी उर्दू शब्दों क वर्जना को प्रयत्न करे गे )
-
यु स्पष्ट च बल कविता जन्म द्वी कारणों से ह्वे, ऊं मध्ये प्रत्येक मनिख- प्रकृति भाग च। बचपन से इ अनुकरण करण मनिखौ प्रकृति म हूंद , हमम निम्न स्तर का प्राणियों तुलना म एक सुविधा च बल संसारम हम सर्वाधिक अनुकरण करण वळ प्राणी छंवा अरहम अनुकरण से इ पैल-पैल सिखदा I अर यु बि हम कुण एक प्राकृतिक (घटना ) च बल हम तै अनुकरण कार्य म आनन्द आंदो /मिल्दो I दुसर बिंदु तै अनुभव से बताये जै सक्यांद, यद्यपि क्वी विषय या वस्तु वास्तविक धरातल म दुखदायी ह्वावन, किन्तु जब यूँ तै वास्तविक रूपम कै अन्य कला म दिखाए जान्दं तो हम आनन्दित हूंदा जनकि निम्न स्तरीय जन्तु या मुर्दा I यांको स्पष्टीकरण अग्वाड़ी का तर्कों म बि मिल सकद; जकि सिखणम सबसे बिंडी आनन्द आंदो , ना केवल दार्शनिकों तै किन्तु साधरण मनुष्य तैं बि, हालांकि कम ही संख्या सै I चित्र दिखण म आनन्द को एक कारण च बल दिखणो अतिरिक्त हम वस्तु क अर्थ बि सिखदा छा, उदाहरणार्थ , वो मनिख इन तन च (या स्यु स्यु च ) I जु कैन व वस्तु पैल नि देखि हो, वैक आनन्द अनुकरणकरण रूपम चित्र म नि होलू ( आनन्द नि मीलल ) अपितु रंग या इनि इकजनी कारकों से होलू I अनुकरण, तब , हमकूण प्राकृतिक हूंद , जन – मेलोडी/मधुर गीत या मधुर कविता /गीत, अवश्य ही छंद मीटर गीत का इ ह्वाल, मूल कौशलम, अर कई क्रमगत प्रयत्नों द्वारा सुधार /विकास से, कई , अर्थात कविता की रचना सुधार से ही हून्दी I
कविता , तथापि , शीघ्र इ , कवियों मनोदशा अनुसार द्वी भागों म बंट जांदी; ऊं मध्ये अधिक गंभीर (कवि ) भद्र कार्य का प्रतिनिधित्व करदन, अर शैली भद्र व अधम कार्यो छंटनी करद। पैल पैल अभद्र प्रतिनिधि न अपशब्द युक्त / गाली गलौज वळि अभद्र कविता रच, जन हौरुंन गेय कविता या चारण कविता। हम तै होमरक निम्न स्तरै कविता , यद्यपि संभवतया तन कवि भौत संख्या म छया; उदाहरण होमर का पैथर मिल जाला, जन कि वैक (Margites) अर इनि हौरुं कविता। इन अपशब्द युक्त कविताओंम लघुचरण युक्त मीटर (दुहराव ) प्रयोग करे गे ; इलै हमर वर्तमान ढांचो लघु गुरु चरण युक्त मीटर (दुहराव ) ऊंको मीटर छौ जु अपण लघु गुरु चरण युक्त मीटर दुसरों विरुद्ध प्रयोग करदा छा। यांक फल यु ह्वे बल यूं पुरण लिख्वारों मादे कुछ ओजपूर्ण /वीर रसौ लिख्वार ह्वेन तो बाकि अपशब्दों साहित्यो लिख्वार ह्वेन। होमर की स्तिथि , तथापि , बिगळीं च: जन कि वैकि शैली गंभीर छे , कवियों का कवि, वु केवल साहित्यिक श्रेष्टता म सबसे बिगळ्यूं /अलग नि छौ, किन्तु अनुकरणम बि नाटकीयता वळ छौ, अर वी हम कुण प्रहसनौ शैली बि लै , जो अपशब्दों नाटकीयता प्रयोग से ना अपितु बेतुका नाटकीयतौ प्रयोग से; वैक Margites हमर प्रहसन म ऊनि च जन हमर करुणा (tragedy ) म Iliad अर Odyssey छन। जनि , तथापि , त्रासदी अर प्रहसन धरातल म पसर , ऊंन एक पंक्ति का कवियों तै आकर्षित कार अर एक पंक्ति का लिख्वार लघु गुरु छोड़ि प्रहसन का रचनाकार ह्वे गेन अर महाकव्य का स्थान पर हौर त्रासदी म आकर्षित ह्वे गेन, किलैकि यी द्वी नया कला माध्यम पुरण कला माध्यम से अधिक सुंदर व अधिक सम्मानजनक छा।
अब जु पूछे जाल बल रचनात्मक दृष्टि से त्रासदी कन च तो नाटकीयता दृष्टि से दिखण पोड़ल।
जन कि प्रहसन म बि ह्वे , त्रासदी बि कामचलाऊ व्यवस्था (आशु रचना ) से शुरू ह्वे अर प्रहसन व चारण गीतों रचनाकारों दगड़ लैंगिक गीत जो अबि बि हमर संस्थाओं म नगरों म ज़िंदा च । फिर यांक विकास धीरे धीरे , जु बी ऊंम छा (प्राचीन ) म हर कदम पर सुधार करिक ह्वे। वास्तव म लम्बो अवधि म परिवर्तन से पुराणी त्रासदी रुक अर आजौ प्राकृतिक रूप प्राप्त ह्वे। अस्चाइल्स द्वारा रंगमंच कलाकारों संख्या एक से द्वी कराई गे अर सामूहिक गान तै छुट/सीमित कौरिक मुख्य कलाकार कुण वार्तालाप पक्का करे गे। सोफ़ोकलस की दृश्य अर तिसरु कलाकार च। त्रासदी न महत्ता बि पायी। छुटि कथाओं अर आकर्षक स्थान पर व्यंग्यत्मक मंच न स्थान पायी, विकासौ पैंथरौ भाग म अर द्विमात्रिक चतुष्पदी से लघु गुरु चरण वळम परिवर्तन ह्वे । चतुष्पदिक प्रयोग को मुख्य कारण छौ बल या काव्य शैली व्यंग्यौ कुण उपयुक्त छे अर नाचौ कुण उपयक्त छे । जनि वाच्य माध्यम से जुड़ तनि प्राकृतिक रूप से यु सही उपयुक्त मीटर आयी। लघु गुरु चरण युक्त कविता सबसे अधिक वाच्य माध्यम च, ार हम आम बोल चल म बि प्रयोग करदां , जबकि हम भौत कम इ हेक्जामीटर (षट्पदी ) म बचल्यांदा , वो बि जब आवाज म परिवर्तन करदां । हैंको परिवर्तन छै श्रृंखला /episode म संख्या वृद्धि का। अलंकरण जुड़न, प्रवेश क विषय बड़ो च ार विस्तार की आवश्यकता च ।
चौथो भाग समाप्त
शेष अग्वाड़ी भाग - म
सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती २०२१
First Authentic Garhwali Translation of Peri Poetikses by Aristotle, First Ever Translation of Peri Poetikses by Aristotle in Garhwali Language., First Ever Garhwali Translation of a Greece Classics; गढ़वाली भाषा में प्रथम बार अरस्तु /अरिस्टोटल के पेरी पोएटिक्स का सुगढ़ अनुवाद , यूनानी साहित्य का प्रथम बार गढ़वाली में अनुवाद ,
Navigation
[0] Message Index
[#] Next page
Go to full version