Author Topic: Re: Information about Garhwali plays-विभिन्न गढ़वाली नाटकों का विवरण  (Read 63808 times)

Bhishma Kukreti

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             Putra janm par Namkaran: A Garhwali Drama about Son bias and bias against Daughter


(Review of a Garhwali drama ‘Putra janm par Namkaran’ (1997) written by Om Prakash Semwal)

                                          Bhishma Kukreti



     The bias for having sons and bias against daughters is a universal phenomenon. That is the reason that there are following proverbs and sayings in various societies –
She is a true wife who has born a son (Manusmiriti)
‘Abu-banat (an Arabic insult)
Raising a daughter means you are watering a neighbor’s garden (A Punjabi proverb) 
With one son you have progeny; with ten daughters you don’t have anything (Vietnamese saying) 
The birth of a son is welcomed with shouts of joy and firecrackers but when a girl is born neighbors say nothing (a Chinese proverb)
  Even after gaining praiseworthy literacy in Garhwal, society is son bias and against the daughter’s birth. Playwright Om Prakash Semwal lives in rural Garhwal and has true knowledge of social behavior in the region.
  Om Prakash Semwal wrote and staged a play ‘Putra janam par Namkaran’ about son bias and bias against daughter’s birth in a school of Chamoli Garhwal in December 1997.
  Everybody related to Gumanu as his family, his in-laws, his friends, and relatives are frustrated about the births of his daughters. Nobody celebrates the daughter’s birth joy. However, this time wife of Gumanu delivers a male child and there is tremendous joy and celebration at the time of the naming ceremony of the boy child. Om Prakash Semwal attacks society’s bias for the son and bias against the daughter heavily at the end of the drama.
  Initially, the dram is realistic and the later stage of the dram is of Parsi theatre style.
The drama is aimed at the youth of Garhwal, and is successful in showing gender discrimination in society and a strong message against gender discrimination.   
The dram is successful in making the social debate about son bias and bias against daughter

Copyright@ Bhishma Kukreti, 4/7/2012                 
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Bhishma Kukreti

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Chunav:  Garhwali Drama Portraying Malpractices in Election



                                  Bhishma Kukreti


        Om Prakash Semwal wrote and staged a Garhwali drama ‘Chunav’ in G.I. College Chopta, Garhwal in 2001. The story deals with the theory of the problem of ‘power corrupts.  Gram Pradhan takes developmental work and enjoys the benefits of village developmental works along with his family members and his supporters.  A couple of aware people want to oust present Gram Pradhan and elect an honest person. However, the corrupt Pradhan and his supporters don’t like the idea of somebody is opposing them. There are scenes of social conflicts in the drama. At the time of the election, present Gram Pradhan uses all sorts of malpractices. Now, the election machinery comes into action.
  The dram portrays the present crumbling situation of the country and the selfish interest and malpractices by leaders in power.

Copyright@ Bhishma Kukreti, 7/7/2012
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Bhishma Kukreti

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श्रीमती बीछा देवी जी का गढ़वाली नाटकों में योगदान

प्रिय भाई कुकरेतीजी,

हाल में ही अखिल भारतीय उत्तराखंड महासभा चंडीगढ़ क्षेत्र के अध्यक्ष
दिनेश राणा की माता बीछा देवी जी का स्वर्गवास हो गया। बहुत कम लोगों को
 पता है की स्व0 श्रीमति बीछा देवी जी चंडीगढ़ के गढ़वाली मतया मंच की प्रथम
महिला कलाकारों में से थी तथा उनका स्वाभाविक घरेलू महिला का अभिनय
चंडीगढ़ के उत्तरखंडी समाज में बहुत ही पसंद किया गया था। टिपिकल सास और
माँ  की भूमिकायों में बहिन बीछा देवी जैसा अभिनय पेशेवर कलाकार भी नहीं
 कर पाएंगे ये मेरा मानना है। उनके बारे में और अधिक जानकारी भेजने की
कोशिश करूंगा।
श्रद्धांजली के रूप में उनको याद करते हुये आपसे विनती है कि ये सूचना
सभी को भेज दें।

धन्यवाद सहित ,
ड़ी ड़ी सुंदरियाल ,  शैल कुंज,  49, शिवालिक विहार jeekarpur

ddsundriyalchd@gmail.com

Bhishma Kukreti

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Garhwali Theatre in Garhwali Chandigarh

             

 Presented by Sri D. D Sundariyal

गढ़ कला संगम चंडीगढ़ की पहली प्रस्तुति  "जौंल बुरांश " एक इनी प्रेम कथा

छाई जो ब्राह्मण लड़की और ठाकुर लड़का का भावनात्मक रिश्तों अर   सामाजिक

कानून वपारिवारिक बंधनो का ताना बाना माँ दुखांत नाटक का रूप म सन 1980 म

गढ़वाली समाज क घोर विरोध व वाद विवाद क बाबजूद  मंचित होई। नायक विजय तथा

नायिका रूपा (सते राम जुयाल व कलावती जुयाल) सामाजिक व पारिवारिक

प्रताड़ना से त्रस्त हवइकी फांस खणों विवश हुँदैन पर वीं जगा फर द्वी

बुरांश की डाली जामनि  जो सदनी फुली ही रैनी और गाँव व समाज थाई

प्रेमियों कु बलिदान याद दिलाणु राई।डी0 डी0 सुंदरियाल "शैलज" की कथा,

पटकथा व निर्देशन म प्रस्तुति गीत, संगीत व मनोरंजन की दृष्टि से दर्शक

कु  पसंद आई पर अंतरजातीय प्रेम कथा वै समयानुसार लोगु ते ज्यादा ठीक नि

लगी।

1979-80 का दोरान संगम द्वारा तीन प्रस्तुति "जौल-बुरांश" का अलावा देनी।

"घूंघटों" (ले 0 एन0 डी0 लखेड़ा), व ओंसी-कु चाँद" " खंद्वार" (ले0 डी डी

सुंदरियाल), तीनी नाटकू निर्देशन चंडी भट्ट भारती न करि।  "घूंघटों" शराब

क दुष्परिणाम से बर्बाद परिवार की कथा छ त ओंसी-कु चाँद अनाथ बालिका पर

अत्याचार (चाची द्वारा) पर आधारित घटनाओ कु विवरण कार्ड। ठाकुर सिंह

नेगी, स्व सुशीला नेगी , कलावती जुयाल, सुशीला सुंदरियाल, ड़ी

ड़ीसुंदरियाल, चंडी भट्ट भर्ती, सते राम जुयाल, एन ड़ी लखेरा  आदि कलाकरों

ने इन नाटकों में भूमिकाएँ निभाई। पलायन  समस्या पर आधारित खंद्वार नाटक

बहुत प्रसिद्ध हुआ एक गरीब किसान जो सड़क गैंग  में काम करने को मजबूर था

और जिसने बेटे को कृषि वैज्ञानिक बनाकर नए भविष के सपने देखे थे ॥टूट कर

बिखर गया जब बेटा परदेश नौकरी गया, अपनी बीबी को भी ले गया। उसकी माँ गम

में मर गयी और बूढ़ा हताश होकर अपने बेटे को श्राप दे गया। "अरे भाई...

अगर कूड़ि पुंगड़ी बांज नि रखणआइ त   क्वी अपना नौनयालु ते एसकोल नि

भेजयान....." संवाद भीतर तक चिरा लगाई दिन्द। गरीब मंगतु मजदूर क रूप माँ

स्व0 देवी परसद अंथ्वाल जी कु प्रकृतिक व सजीव अभिनया कई बर्षू तक लोग

याद करना रैनी। भट्ट कु हास्य अभिनय (कल्या) नाटक की जान छाई। यूं सभी

नाटकू माँ नरेंद्र सिंह नेगी जी व अन्य प्रसिद्ध लोक गीत कु सफल  प्रयोग

भी करे ग्याई। (जारी.....)

गढ़ कला संगम की नाट्य यात्रा-3

 

सन 1981 में "दानु देवता बुढु केदार" (ले0 डी डी सुंदरियाल "शैलज"

निर्दे0 चंडी भट्ट भारती) नई और पुरानी पीढ़ी के आचार विचारों की टकराहट

दिखाता है। गाँव के जाने माने प्रभावशाली व आदरणीय पंडित  गजा धर जोशी (

ओं0पी0 धस्माना) जब बूढ़े असहाय होकर अफसर बेटे (विमल नेथानी) व देसी बहू

(कांति नेथनी) के पास परदेश आते हैं तो ग्राम्य और शहरी जीवन के रहन सहन,

मर्यादा व परम्पराओं की उलझनों में सभी पात्र  उलझते चले जाते हैं जिससे

कभी हास्यमय तो कभी कारुणिक स्तिथियाँ पैदा होती हैं। दोनों पीढ़ियों में

कड़ी का काम करते घरेलू नौकर (चंडी भट्ट) और पप्पू (गजाधर का पोता)

प;अरिवार में समंजस्य बनाने का प्रयत्न करते रहते हैं। अंत में हताश,

निराश बूढ़ा समझोता कर वापस अपने गाँव चला जाता है। सम्पूर्ण नाटकीय

हलचलों वाला यह नाटक दर्शकोन्ने पसंद किया।

 

1981 से 1983 तक संगम ने तैड़ि-तीलोगी लोक कथा पर आधारित  ऐतिहासिक प्रेम

कहानी "धोलि-का-आंसु" का 5-6 बार चंडीगढ़, पानीपत, लूधियाना आदि शहरोंमें

मंचन किया। ब्रिटिश गढ़वाल व राजशाही टिहरी गढ़वाल के दो बड़े घरानों की

रंजिश पर आधारित दुखांत प्रेम कहानी को दर्शकों का पूरा प्यार मिला।

इस नाटक के गीत संगीत की लोकप्रियता से लोगों ने इसे फिल्मबनाने के लिए

भी प्रेरित किया पर फ़ाइनेंस के अभाव में प्रोजेक्ट फ़ाइल हो गया। जसवंत

रावत और उर्मिला रावत के रूम में एक नई जोड़ी रंगमंच पर इस नाटक आई।

"धोलि-का- आंसु" नाटक चंडीगढ़ व अन्य शहरॉ में कई बार मंचित हुआ था ।

मुरली धर -कुसुम नवनी (जो बाद में सोकार सिंह रावत द्वारा निर्मित फिल्म

"रामी बौराणी" में चर्चित रहे) पहली बार नायक नायिका के रूप में इस नाटक

में लाये गए थे। पहली बार गढ़वाली नाटकों में हारमोनियम तबला के अलावा

अन्य संगीत वाद्य यंत्रों, सिंथसाइजर, सितार , वाइलीन, मेंडोलिन आदि  का

प्रगोग किया गया। संगीत शास्त्री एन0 एस0 राठोर के निर्देशन में , मोहन

ठाकुर( तबला) , प्रकाश नेपाली, जीणू राम (बांसुरी), आदि कलाकारों को

संगम ने मंच प्रदान किया और सभी लोग 1996 तक संगम के सभी कार्यक्रमों के

हिस्सा बने रहे।

 

अस्सी के दशक में संगम ने जो अन्य नाटक मंचित किए उनमे "जगवाल", " आस

निरास" ,( ले0 एन0 डी0 लखेड़ा ) " रत्ब्योणा, "  " सर्ग दीदा पाणि-

पाणि.." . तीलु रौतेली" (ले डी0 डी0 सुंदरियाल शैलज) नए थे। पुराने

नाटकों को अन्य शहरों में मंचित किया गया ।

 

" जगवाल" अंधविश्वास में फंसे परिवार को चालाक तंत्रिकों द्वारा लूटे

जाने की कहानी है जिसमें डी डी सुंदरियाल द्वारा अंधे बाबा तांत्रिक की

भूमिका काफी सराही गई। आस निरास में टूटते सन्यूक्त परिवारों व असहाय

बूढ़े लोगों की उपेक्षा को दर्शाता है। सुनीता जुयाल एवं परमानंद जुयाल के

रूप  में नए कलाकार इस नाटक में मंच पर आए। "रत्ब्योणा" विधवा विवाह की

वकालत करता है जिसमे ओ पी धसमाना द्वारा लँगड़े फोजी का अभिनया आज भी

लोगों के जेहन में याद है।  इसी नाटक में संतोष रावत ने विधवा की मुख्य

भूमिका निभाई थी। "सरग दीदा पाणि-पाणि" पंचायत और ग्राम विकास समिति  से

लेकर  ऊपर तक फैले  भ्रष्टाचार, पढे लिखे  युवकों की बेरोजगारी, शराब

माफिया की गुंडागर्दी, राजनीतिक पतन को दिखाता है। इन सभी नाटकों को चंडी

भट्ट भारती द्वारा निर्देशित किया गया और अपने  हास्य अभिनय की छाप भी इन

नाटकों में दर्शकों के दिल में छोड़ने में कामयाब रहे ।   (जारी...)

To be continued…..

Garhwali, Uttarakhandi, Theatre, Stage Plays, Dramas

Bhishma Kukreti

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Contribution of Kali Prasad (Kishor) Ghildiyal) in developing Modern Garhwali drama

                                      Bhishma Kukreti

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     Kali Prasad (Kishor) Ghildiyal is famous name for developing Garhwali modern fiction, poetry and drama literature.  His elder brother late Durga Prasad Ghildiyal is a famous Garhwali fiction writer.  Kali Prasad Ghildiyal was born in village Padlyun, Katalsyun, Pauri Garhwali in 1930. Kali Prasad lives in NOIDA.
         Apart from his immense contribution in Garhwali fiction, Kali Prasad wrote three Garhwali plays -duno Janam, Keedu bwe and Rag Thag. According to Parashar Gaur, all three plays of Ghildiyal were staged in Sarojani Nagar Community hall, Delhi.
Keedu bwe- the drama is about a village widow looking after her son, taking all pain in his higher education. However, the son after marriage and getting good respectable job ignores his mother. The mother dies in pain for remembering her son for whom she did sacrifice.
Duno Janam: Duno Janam drama is about the problem of untouchability and the crookedness in village councils, and government administration.
Rag Thug: Rag Thug is about childless husband and wife taking care of a notorious child and marrying him. When the boy get married the woman delivers a child too. The theme is that God provides justice in time.
 References:
Dr. Sudha Rani, 1980, Garhwali Rangmanch, Garhwal ki Jeevit Vibhutiyan, Dev Prayag
2- Parashar Gaud- http://www.merapahadforum.com/uttarakhand-language-books-literature-and-words/(-)-uttarakhandi-plays-!!/30/
3- Telephonic Talk of Bhishma Kukreti with Kali Prasad Ghildiyal on 4/8/2012
Copyright@ Bhishma Kukreti, 4/8/2012
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Bhishma Kukreti

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आधुनिक गढ़वाली नाटकों व  नाट्य मंचन की सौ साल की यात्रा

                              भीष्म कुकरेती 

 


                गढ़वाल सदा से ही अपने धार्मिक, सांस्कृतिक , सामाजिक,  कलात्मक  व भौगोलिक  वैशिष्ठ्य के करण विशेष रहा है. जहां तक लोक नाट्य कला व मंचन कला का प्रश्न है इसमें भी गढ़वाल की  अपनी  विशेषता रही है. गढ़वाल में बादी- बादण व्यवसायिक स्तर पर लोक नाटकों को संजोये रहते थे व समय समय पर काल, वर्ग, व स्थान की दृष्टी से उनका विकास करते रहते थे. अब यह व्यवसायिक जाति अपने व्यवसाय को तिलांजलि दे रही है जो की शायद समय की भी मांग है.

         गढ़वाल में आधुनिक या कहें कि ब्रिटिश शिक्षा आने से ही गढ़वाली आधुनिक नाटकों का प्रादुर्भाव हुआ.

   आधुनिक  गढ़वाली नाटकों को समय अनुसार विभेद नही कर सकते हैं क्योंकि कालानुसार गढ़वाली नाटकों में एक ही प्रवृति  नही पाई गयी है  . गढ़वाली नाटकों को विषय अनुसार विभेद कर सकते हैं जैसे


- धार्मिक नाटक,

पौराणिक इतिहास पर आधारित नाटक

 -सामजिक व सांस्कृतिक नाटक

- विशेष दर्शकों हेतु नाटक

-आपस में कुछ विशेष लोगों के मध्य खेला जैसे साथियों के मध्य खेला जाने वाला नाटक

- पारिवारिक नाटक

-किसी विशेष परम्परा में खेला जाने वाला नाटक

-त्रासदी या करूण रसमय नाटक

-सम्भोग श्रृंगारिक नाटक

-विप्रलंभ श्रृंगारिक नाटक

-संबंधियों से प्रेम आधारित नाटक

-प्रहसन या हास्य नाटक

-प्रहसन युक्त व्यंग्यात्मक नाटक

-निखालिस व्यंग्यात्मक नाटक

- वात्सल्य मूलक नाटक

-प्रति वात्सल्य मूलक नाटक

-वीर रस युक्त नाटक

-भक्ति या स्वामी भक्ति पूर्ण आधुनिक नाटक

-अपराधिक नाटक व जासूसी नाटक

-संवेदन  शील  नाटक 

-रहस्यात्मक या भूत आदि नाटक

-न्याय पूरक नाटक

-प्रेरणा दायक नाटक

-बाल नाटक

-अन्य प्रकार

भवानी दत्त थपलियाल ने गढ़वाली जागर कथा आधारित  'जय विजय' नाटक लिखकर आधुनिक गढ़वाली नाटकों का श्री गणेश किया . किन्तु 'भक्त प्रहलाद' (१९१२) पहले प्रकाशित हुआ. अत: 'भक्त प्रहलाद' को आधुनिक गढ़वाली का प्रथम नाटक कहा जाता  है.

'बाबा  जी कि कपाळ क्रिया (१९१२-१३) भवानी दत्त थपलियाल द्वारा लिखित नाटक 'भक्त प्रहलाद' का एक भाग है उसी तरह 'फौन्दार कि कछेड़ी'  भी भक्त प्रहलाद का भाग होते भी मंचन दृष्टि से अलग नाटक भी है.

१९३० में वकील घना  नन्द बहुगुणा का 'समाज' नाटक लखनऊ से प्रकाशित हुआ

विश्वम्बर दत्त उनियाल कृत सामाजिक नाटक  'बसंती' १९३२ में देहरादून में मंचित हुआ

सत्य प्रसाद रतूड़ी , देवी दत्त नौटियाल, विद्या लाल नौटियाल, मढ़कर नौटियाल (चार मित्र सूखक) लिखित व गीत विजय रतूड़ी द्वारा रचित नाटक 'पांखु' का मंचन १९३२ में टिहरी में हुआ. 

इश्वरी दत्त जुयाल रचित नाटक 'परिवर्तन' १९३४ में कराची से प्रकाशित हुआ.

 भगवती प्रसाद पांथरी रचित अध : पतन (१९४०-४१)   एक सामाजिक  नाटक है .पांथरी द्वारा रचित दूसरा नाटक  भूतों कि खोह है(१९४०) है

भगवती प्रसाद चंदोला रचित  श्रमदान पर व्यंग्य करता नाटक  'आज अळसो छोड़ देवा' देहरादून में मंचित हुआ

जीत सिंह नेगी द्वारा लिखित गीत-गद्य नाटक 'भारी भूल ' १९५५-५६ मंचित और १९५७ में प्रकाशित हुआ . नेगी के प्रकाशित व अप्रकाशित  'जीतू बगडवाल' , 'राजू पोस्टमैन', 'रामी बौराणी' सभी नाटक मंचित हुए हैं. मलेथा की कूल नृत्य नाटिका का १९८७ से मंचन प्रारम्भ हुआ 

डा. गोविन्द चातक  के सात नाटक जंगली फूल में संकलित हुए (१९५७).  ब्वारी वहू प्रताड़ना विषयक नाटक है; 'द्वी हजार कि द्वी आंखी' महिला मनोविज्ञान कि कथा है; 'घात ''अंधविश्वास विरोधी, 'जंगली फूल' सामाजिक नाटक; केर(मानव अधिकार संबंधी) ; मुंडारो (अनमेल विवाह) ; 'नौनु हुंद तो' (पुत्र लालसा) गढ़वाली नाट्य विधा के फूल हैं 

अबोध बंधु बहुगुणा का बादी बादण शैली का 'छिलाअ छौळ ' नाटक १९५९ में उत्तराखंड साप्ताहिक में प्रकाशित हुआ.


ललित मोहन थपलियाल के सभी नाटक १९५५ के बाद मंचित होने शुरू हुए; खाडू लापता एक हसी व्यंग्य मिश्रित सामाजिक नाटक है;  'अन्छरियों का ताल' एक रहस्यात्मक व दार्शनिक नाटक है; 'एकीकरण' सामजिक संस्थाओं पर चोट है;  'घर जवें'  एक हास्य व्यंग्यात्मक  नाटक है;  'चमत्कार'   अंधविश्वास विरोधी नाटक है

सन अस्सी से पहले देहरादून में दामोदर थपलियाल के चार  नाटक -मनखि, औंसी क रात, तिब्बत विजय व प्रायश्चित मंचित हुए जिनमे मनखि व  औंसी क रात प्रकाशित हो चुके हैं

१९६३ में 'नाची नरसिंग' जगदीश पोखरियाल लिखित देशभक्ति विषयी नाटक मंचित हुआ

मुंबई में १९६२-६३ म२ दीन दयाल द्विवेदी का सामाजिक नाटक 'जागरण' मंचित हुआ

  विश्व मोहन बडोला निर्देशित, लौर्ड डुनसाने कृत  'चट्टी की एक रात' (१९७०)  विदेशी भाषा पर आधारित  नाटक है.  भीष्म कुकरेती ने इसी  नाटक का अनुवाद 'ढाबा मा एक रात' (२०१२) कर इंटरनेट माध्यम में  प्रकाशित किया

 राजेन्द्र धष्माना द्वारा रचित सामजिक संस्थाओं पर चोट करता 'जंकजोड़ ' (१९७०) ' नाटक है तो ' अर्धग्रामेश्वर' आधनिक शैली का नाटक 'अर्ध ग्रामेश्वर '  (1976) सामयिक  ग्रामीण व्यवस्था व प्रवासियों के खटकरम को दर्शाता है

सन १९७० में भीष्म कुकरेती व सम्पूर्ण बिष्ट द्वारा प्रेम चंद कृत 'कफन' का रूपांतरित नाटक देहरादून में मंचित हुआ . १९८० में कुसुम नौटियाल द्वारा रूपांतरित नाटक दिल्ली में मंचित  हुआ

१९७१ से सन अस्सी तक किशोर घिल्डियाल (काली प्रसाद घिल्डियाल) के नाटक 'दूणो जनम' (छुवाछूत विषयक ) ; 'रग ठग '(पुत्र-पुत्रीहीन  दम्पति का संघर्ष) व 'कीडू क ब्व़े '(स्त्री त्याग व संघर्ष) के नाटक दिल्ली में मंचित हुए.

१९७१ में पाराशर गौड़ द्वारा लिखित 'चोळी' (महत्वाकांक्षा सम्बन्धी ) नाटक दिल्ली में मंचित  हुआ

मदन थपलियाल द्वारा कश्मीरी नाटक का रूपांतरित नाटक 'नाटक बन्द करो' का मंचन दिल्ली में १९७३ में हुआ

प्रशाश्कीय लाला फीताशाही पर चोट करता राजेन्द्र धष्माना लिखित नाटक 'जंक जोड़' १९७५ में मंचित हुआ.

नित्यानंद मैठाणी द्वारा लिखित हास्य व्यंग्य नाटक 'चौडंडि' ,; 'छुट्या  बल्द ' (१९७५) युवा शक्ति जागरण का रेडिओ नाटक है; . 'च्यूं'   में मैठाणी ने  लोक कथा शैली अपनाई है; मैठाणी के अन्य 'फुलमुंडी सासू ' वहु प्रताडन विषयक; (सभी नाटक १९७५ के हैं) ; 'खौल्या' (गरीबी, कुपोषण ); ना थीड माई तै (पुत्र लालसा संबंधी ), टॉम (शराब विरोधी)  प्रसिद्ध  नाटक  हैं   

चिंता मणि बडथ्वाल  द्वारा लिखित नाटक ' टिन्चरी ' नाटक दिल्ली में १९७६ में मंचित हुआ

डा.  पुष्कर नैथाणी द्वारा लिखित नाटक 'अभिज्ञान शाकुंतलम' (१९७८-७९)  कालिदास के संस्कृत नाटक का उमदा  अनुवाद है. 

स्वरूप ढौंडियाल लिखित नाटक 'अदालत' कै बार मंचित हुआ (१९७९)  और पलायन विभीषिका को दर्शाता असलियत वादी  नाटक है   

कन्हयालाल डंडरियाल द्वारा लिखित व राजेन्द्र धष्माना द्वारा रूपांतरित नाटक 'कंशानुक्रम' १९७९ में दिल्ली में मंचित हुआ.

पाराशर गौड़ द्वारा लिखित 'औंसी कि रात' नाटक दिल्ली में मंचित हुआ.

इसी तरह दिल्ली में १९७० से १९७५ तक मंचित वीरेन्द्र मोहन रतूड़ी का 'एक जौ अगने' व गिरधारी लाल कंकाल लिखित नाटको का गढ़वाली नाटक में महत्वपूर्ण स्थान है

वैदराज गोविन्दराम पोखरियाल का संयुक्त परिवार कि विभीषिका दिखाता 'बंटवारो ' नाटक अस्सी के दशक में प्रकाशित हुआ

डा. हरिदत्त भट्ट के नाटक 'नौबत, 'दिवता नचा', 'वयो कि बात', 'छि कख क्या' नाटक १९८० से पहले प्रकाशित व मंचित हुए. मूलत : ये नाटक सामजिक व हसी व्यंग्य के नाटक हैं.:

 डी.डी. सुंदरियाल लिखित ज़ात-पंत विरोधी 'जौंळ -बुरांश' (१९७९) में चंडीगढ़ में मंचित हुआ.


सुरेन्द्र बलोदी द्वारा लिखित व निर्देशित नाटक 'ब्यखनि क घाम" (१९८०) एक दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक व प्रेरणादायक नाटक है.

१९८० से पहले ब्रज मोहन कबटियाल द्वारा लिखित , निर्देशित धार्मिक गीतेय नाटक 'किष्किन्धा काण्ड' कई बार कोटद्वार में मंचित हुआ.

एन. डी. लखेड़ा लिखित शराब विरोधी नाटक घुंघटो ' १९८० में चण्डीगढ़ में मंचित हुआ

डी.डी. सुंदरियाल लिखित बाल प्रताडन आधारित 'औंसी कु चांद' नाटक चण्डीगढ़ में १९८० मंचित हुआ


पलायन विभीषिका आधारित ,डी.डी. सुंदरियाल लिखित 'खंद्वार ' नाटक १९८० में चंडीगढ़ में मंचित हुआ

शांति स्वरुप उनियाल द्वारा लिखित स्त्री वीरता विषयी 'विधवा ब्योली' नाटक का  प्रकाशन १९८० में हुआ व मंचन भी हुआ

शारदा नेगी द्वारा लिखित शाहुकारी विरुद्ध नाटक ' चक्रचाळ ' मंचित हुआ.

मदन बल्लभ डोभाल लिखित नाटक 'खबेस' अनेक विशो को उठाने वाला नाटक दिल्ली में मंचित हुआ

चंडीगढ़ में मंचित , १९८१ डी.डी. सुंदरियाल लिखित 'दानु दिवता बुडू केदार' दो सखियों के टकराव कि कहानी दर्शाती है

प्रसिद्ध लोक कथा 'तैड़ी तिलोगी ' पर आधरित सुंदरियाल द्वारा रूपांतरित 'धौळि का आंसू ' १९८०-१९८३ के बीच ५-६ बार पंजाब में मंचित हुआ

पंजाब में अस्सी के दशक में एन.डी. लखेड़ा लिखित नाटक 'जग्वाळ ' (अंध विश्वास  विरोधी) व 'आस निरास' (संयुक्त परिवारों का टूटना ) ; डी.डी. सुंदरियाल लिखित 'रत व्योणा'(विधवा विवाह समर्थन ), 'सरगा दिदा पाणि पाणि' (ग्रामीण भ्रस्टाचार) व तीलु रौतेली (लोक गाथा), 'जथगा डाड डाड' (सड़ी गली शिक्षा विरोध) और बलवंत रावत लिखित 'अर सपना सच ह्व़े ग्याई'   नाटक पंजाब में मंचित हुए.   

सचिदानंद कांडपाल द्वारा लिखित नाटक ' मीतु रौत '(1982)  जो चंडीगढ़ में  मंचित भी हुआ एक वीर रस युक्त ऐतिहासिक व लोक कथा आधारित नाटक है

मोहन सिंह बिष्ट द्वारा रचित अपसंस्कृति व दहेज़ कुप्रथा के रोग आधारित    'औडळ' (१९८२)  नाटक दिल्ली में मंचित  हुआ 

चन्द्र शेखर नैथाणी लिखित विकलांग समस्या का नाटक ' मांगण ' १९८२ में दिल्ली में मंचित हुआ

कन्हया लाल डंडरियाल का दहेज़ पर चोट करता  'स्वयंबर' नाटक १९८३ में दिल्ली में मंचित हुआ

ब्रज लाल शाह द्वारा रचित 'महाभारत' नृत्य नाटिका १९८४ में दिल्ली में मंचित हुआ

ब्रज मोहन कबटियाल ने १९८५ से पहले  'वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली', 'गंगू रमोला' 'जीतु बगड्वाल', 'बीर बाला तीलु रौतेला', 'ओड का झगड़ा' , व 'अनपढ़' जैसे ऐतिहासिक व सामाजिक विषयी नाटक लिखे व कोटद्वार में मंचित भी किये.

पाराशर गौड़ द्वारा लिखित प्रायोगिक नाटक 'आन्दोलन' उत्तराखंड राज्य संघर्ष पर लिखा नाटक है जो १९८०-१९८५ के बीच  मंचित हुआ . गौड़ का 'रिहर्सल' नाटक एक रोमांचकारी नाटक है जो मंचित हुआ है;

प्रेम लाल भट्ट का  जातीय संघर्ष का 'खबेस लग्युं च रे खबेश' (१९८५) नाटक दिल्ली में मंचित हुआ

अबोध बन्धु बहुगुणा  लिखित (सभी नाटक १९८६ में चक्रचाळ संकलित ) में  'अंद्र  ताल'  नाटक प्रवासी गढ़वालियों के करूँ कथा बखान करता है , बहुगुणा  द्वारा ऐतिहासिक नाटक 'अंतिम गढ़';  गढ़वाल सभा देहरादून द्वारा मंचित हुआ. बहुगुणा  लिखित 'चक्रचाळ' एक रेडिओ नाटक है; दुघर्या में विधवा पुर्नार्विवाह समर्थन है;  'फरक '. जात पांत विरोधी, 'जीतू हरण' लोक गाथा आधारित पद्य-गद्य नाटिका; 'जोड़ घटाणो ' प्रवासियों के आत्मिक व भौतिक संघर्ष  आधारित; 'कचबिटाळ' प्रवासी व वासी गढ़वालियों  मध्य अन्तराल,  'काठे बिराळी ' (प्रवाशियो कि समस्या प्रधान ) ; 'किरायेदार' (खोय पाया विषय) ;  कुलंगार (कुत्सित प्रवृतियों पर चोट ) ; माई को लाल (श्री देव सुमन बलिदान) , नाग मयूर (ऐतिहासिक); नौछमी नारायण (कृष्ण के नौ रूप);  सृष्ठी संभव (दार्शनिक ); 'तिलपातर' ( बदलाव) नाटक संकलित हैं

ब्रजेन्द्र लाल शाह द्वारा लिखित नाटक 'जीतू बगडवाल' १९८६ में दिल्ली में मंचित हुआ

प्रेम लाल भट्ट द्वारा लिखित पारिवारिक नाटक  ' बडी ब्वारी' दिल्ली में मंचित  हुआ.

१९८७ में पुरुषोत्तम डोभाल कृत 'टिल्लू रौतेली' नाटक प्रकाश में आया

१९८६-८७ में  कुसुम नौटियाल द्वारा लिखित , लोक कथा आधरित 'लिंडर्या छ्वारा' नाटक मंचित हुआ

 हरीश थपलियाल द्वारा लिखित व निर्देशित पलायन  विभीषिका विषय का नाटक 'हौळ कु लगाल (१९८७)  व हास्य-व्यंग्य युक्त  नाटक मेरी पैलि चोरी (१९८९)  भरा नाटक 'मुंबई में मंचित हुए . 

 दिनेश भारद्वाज व रमण कुकरेती द्वारा लिखित हास्य व्यंग्यात्मक नाटक ' बुड्या लापता' १९८५- ८७ के बीच मुंबई में मंचित हुआ

  कुकरेती द्वारा लिखित  'द्वी पळया' (गढ़ ऐना, १९८९) नाटक  सुनने व असलियत में भेद बताता प्रेरणात्मक नाटक है   

गोविन्द कपरीयाल द्वारा लिखित अंध विश्वासों पर चोट करता नाटक ' मेरो नाती' (१९८९) गैरसैण में मंचित हुआ.

ललित केशवान द्वारा लिखित ऐतिहासिक नाटक ' हरि हिंदवाण ' १९८९ में मंचित हुआ

दिनेश भारद्वाज द्वारा लिखित लोक गाथा आधारित गीते नाटक 'तिल्लु रौतेली' मुंबई में १९८९ में मंचित हुआ

भीष्म कुकरेती द्वारा लिखित राजनैतिक व्यंग्यात्मक नाटक 'बखरौं ग्वेर स्याळ' रंत रैबार (२००५) में प्रकाशित हुआ 
 
 भगवती प्रसाद मिश्र द्वारा लिखित धार्मिक नाटक 'बाल नारायण' गढ़ ऐना में मई , १९९० में प्रकाशित हुआ.

गढ़ ऐना के मई, १९९० , अंकों में नागेन्द्र बहुगुणा द्वारा लिखित स्थानीय शराब माफिया की पोल खोलता 'चंदन' नाटक प्रकाशित हुआ

मुंबई में सोनू पंवार द्वारा लिखित निर्देशित नाटक ' बख्त्वार बाड़ा ' १९८९- १९९० के करीब मंचित हुआ .

प्रेम लाल भट्ट लिखित, गरीबी व ऋण विषयी नाटक 'नथुली' १९९० में मंचित  हुआ

धाद (जन. १९९१) में डा. नरेंद्र गौनियाल का शराब विरोधी नाटक 'शराबी' प्रकाशित हुआ .

राजेन्द्र धष्माना द्वारा मराठी नाटक का रूपान्तर 'पैसा ना ध्यला नाम च गुमान सिंग रौतेला ' का मंचन दिल्ली में १९९२ में हुआ.

 १९९२ में मंचित व ओम प्रकाश सेमवाल लिखित 'गरीबी' (१९९२)  नाटक जो चाहो वही पाओ विषय युवाओं के लिए प्रेरणात्मक नाटक है वहीं 'दैजू' (१९९५ में मंचित ) नाटक दहेज प्रथा को नकारने वाला नाटक है.ओम प्रकाश सेमवाल का नशा विरोधी नाटक 'नशा '१९९३ में मंचित हुआ

कुला नन्द घनशाला द्वारा लिखित मनिखी बाग़ (१९९३) प्रशाश्कीय लाल फीताशाही , भ्रष्ट तन्त्र पर चोट करता नाटक है

सुरेन्द्र बलोदी द्वारा लिखित व मंचित (१९९४) नाटक ' सुरमा' स्त्री उत्पीडन व त्रास पर आधारित नाटक है व शराब माफिया विरोधनी  टिंचरि   बाई पर आधारित बलोदी का नाटक ' ब्व़े तु फिर ऐ' १९९५ में मंचित हुआ .

स्वरुप ढौंडियाल  लिखित 'मंगतू बौळया' (१९९३)  ग्रामीण आर्थिक दशा दरशाता असलियतवादी  नाटक है

शराब की बुराईयों पर आधारित , ओम प्रकाश सेमवाल द्वारा लिखित नाटक ' ब्यौ' १९९५ में मंचित हुआ.

ओम प्रकाश सेमवाल द्वारा लिखित, ज़ात पांत व्यवस्था पर चोट करता नाटक 'भात'  १९९६ में मंचित हुआ.

पर्यावरण वचत में वन जानवरों को बचाने व वन आग रोकने पर आधारित सेमवाल का नाटक ' कखि लगीं आग अर कखि  लग्युं बाग़' १९९७ में मंचित हुआ.
 
 सेमवाल द्वारा पुत्र जन्म को महत्व व व पुत्री जनम को महत्वहीन  की मान्यता पर आधारित नाटक 'पुत्रजन्म और नामकरण' १९९७ में मंचित  हुआ .

ओम प्रकाश सेमवाल लिखित सामाजिक नाटक 'दगड़ी' १९९८ में मंचित हुआ.

वन संरक्षण पर आधारित कुला नन्द घनशाला लिखित नाटक 'रामू पतरोल' १९९८ में मंचित हुआ.

ओम प्रकाश सेमवाल लिखित , अपने ही रिश्तेदारों का दोहन विषयक 'नौकरी' नाटक १९९९ में मंचित हुआ.

भारतीय शिक्षा के गिरते स्तर  को उजागर करता घनशाला लिखित नाटक कंप्लेंट (२००० ) में छपा.


पागल (ओम प्रकाश सेमवाल, २०००) अंधविश्वास पर चोट करता मंचित, नाटक है.

डा. डी.आर. पुरोहित, सचिदा नन्द कांडपाल व कृष्णा नन्द नौटियाल लिखित 'चक्रव्यूह ' (२००१) नाटक महाभारत कथा पर आधारित नाटक है जो कि कई बार मंचित हो चुका

ओम प्रकाश सेमवाल लिखित चुनावी धांधली आधारित  'चुनाव नाटक २००१ में मंचित हुआ

२००१ में डा. डी.आर . पुरोहित लिखित ऐतिहासक नाटक 'पाँच भै कठैत ' मंचित हुआ . डा. पुरोहित द्वारा लिखित ' व मंचित 'नंदा देवी जातरा (२००२), एक्लू बटोही (२००४) , इलेक्सन में कृष्ण '(२००८) , 'गांधी बुड्या आइ (२००९), गीत औफ़ गुटका ईटर (२००९), रूपकुंड (नेशनल जिओग्राफी हेतु) नाटक प्रसिद्ध हुए हैं   

ओम प्रकाश सेमवाल का बाल शिक्षा सुधार आधारित नाटक 'धौंस' २००२  में मंचित हुआ.

कुला नन्द घनशाला द्वारा लिखित गढ़वाली नाटक 'सुनपट्ट' (२००२) एक हास्य व्यंग्य नाटक है   

गढ़वाल में स्वास्थ्य सेवाओं की बिगडती दशा को दर्शाता कुला नन्द घनसाला लिखित नाटक 'डाक्टर साब' २००४ में प्रकाशित हुआ.

महावीर सिंग का नाटक 'मुरख्या बुड्या' (२००४) एक हास्य व्यंग्यात्मक नाटक मुंबई में मंचित हुआ

नन्द लाल भारती टीम रचित 'पांडव गाथा ' जौंलसारी  भाषा का नाटक २००५ में देहरादून में मंचित  हुआ

 २००५ में ओम बधानी लिखित लोक गाथा नायकों -बीर भड़  नरु और बिजुला आधारित गीतेय  नाटक 'डांड्यू  क मैती' देहरादून  में मंचित हुआ.

२००५ में नवांकुर नाट्य समूह पौड़ी द्वारा रचित व भूपनेश कुमार द्वारा निर्देशित वीर गाथा आधारित नाटक 'वीर बधू देवकी' का मंचन देहरादून में हुआ

दिल्ली में  दिनेश बिजल्वाण लिखित दो नाटक 'पल्टनेर चन्द्र सिंग' (२००५) व 'कैकु ब्यौ कैकु क्यौ' मंचित हो चुके हैं व 'रुमेलो' (शेक्शपियर के ओथेलो का रूपान्तर ) व 'तिल्लू रौतेली' अप्रकाशित पड़े हैं 

मनु ढौंडियाल व हरीश बडोला लिखित  'गंगावतरण' धार्मिक आख्यानो व पर्यावरण विषयक नाटक  २००७ में मंचित हुआ 

डा. डी. आर. पुरोहित लिखित 'बूढ़ देवा' ,२००७ में मंचित   नाटक एक मास्क लोक नाट्य रूपांतरित नाटक है

प्रमोद रावत द्वारा रचित 'तिलाड़ी एक बिसरीं याद' नाटक का २००७ में मंचन हुआ

दिनेश गुसाईं एवं सहयोगियों द्वारा 'गंगू रमोला' धार्मिक गाथा पर आधारित नाटक २००७ में देहरादून में मंचित हुआ.

ओम बधानी द्वारा लिखित वीर भड़ विषयी  गीत -गद्य नाटक 'राणा घमेरू'  का मंचन २००७ में देहरादून में हुआ

भाई बहिन के  प्रेम पर लोक कथा आधारित, अरविन्द नेगी द्वारा लिखित व मंचित  'अम्बा बैनोळ' (२००८) गढ़वाली नाटक है.

'छत्रभंग' शाक्त ध्यानी द्वारा रचित राजनैतिक व्यंग्यात्मक व गढ़वाली का प्रथम प्रतीतात्मक नाटक २००९ में मंचित हुआ. 

कुला नन्द घनशाला द्वारा रचित व मंचित  'चिंता' (२०११) राजनैतिक खेलों पर करारा व्यंग्यात्मक  नाटक है .कुलानन्द घनसाला रचित नाटक 'अब क्या होलु' उत्तराखंड राज्य आन्दोलन विषयक नाटक है ; 'क्या कन तब 'हास्य व्यंग्य मिश्रित नाटक व फिल्म में शक की बुराईयाँ दिखाई गयी है;

गिरीश सुंदरियाल कृत नाटक संकलन 'असगार ' २०११ में प्रकाशित हुआ जिसमे  'ऐली मेरी पौड़ी '  (२०११) सरकारी दफ्तरों में लाल फीताशाही पर कटाक्ष करता  व्यंग्यात्मक नाटक है; 'भर्ती'  बेरोजगारी व युवा समस्या  विषयक नाटक है; 'पाँच साल बाद' एक राजनैतिक प्रहसन नाटक है; 'शिल्यानाश' एक प्रेरणादायक नाटक है ;  असगार पलायन कि विभीषिका बताता नाटक है .

 ललित केशवान द्वारा संकलित नाट्य संग्रह (२०११) में  'भस्मासुर'  पुराण विषयी नाटक है;'एक मंथरा हैंकि'  शराब विरोधी नाटक है; 'जय बद्रीनारायण' धार्मिक; 'खेल ख़तम' भू माफिया व भू-चोरो पर आधारित ; 'लालसा' .एक सामजिक ,

 मुंबई में बलदेव राणा का गीत गद्य नाटक 'माधो सिंग भंडारी ' कई बार मंचित हो चुका है , बलदेव राणा ने दस के करीब नाटक मंचित किये हैं इनमे से नंदा ज़ात यात्रा (२००९  से प्रति वर्ष) एक अभिनव प्रयोग माना जाएगा. इसी तरह मुंबई में कुंदन सिंग नेगी ने भी कि पर्वतीय नाट्य मंच (१९८६ से अब तक) के लिए नाटक लिखे उनमे से 'लाटो ब्यौ' और मामा बाबु खूब सराहे गये.

श्रीनगर व अन्य स्थानों में  मंचित 'जयद्रथ वध' भी अपने आप में एक प्रख्यात नाटक है

डा. नन्द किशोर हटवाल के दो नाटक मंचित हुए हैं

 इस तरह हम पाते हैं कि आधुनिक  गढ़वाली नाटक  ने सौ साल की  यात्रा में कई पडाव देखे व गढ़वाली नाटकों में सभी तरह के विषय आये हैं.


Copyright@ Bhishma Kukreti 7/10/2012

Bhishma Kukreti

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Dotiyal Pradhan Ji: Contemporary Drama/Play with Satirical, Humorous, Hilarious Style 
                               Bhishma Kukreti

                 Tribhuwan Uniyal (Sanguda, Aswalsyun, Pauri Garhwal, 30/6/1967) is a famous satirical columnist and lyrist of the Garhwali language. His audio disc ‘Master’ is a very famous audio disc. 
                 Tribhuwan Uniyal wrote four dramas (a documentary is there of four Garhwali plays, 2007). All his plays are humorous, hilarious, and satirical. All the plays/dramas by Uniyal deal with the contemporary subject of rural Garhwal.
    ‘Dotiyal Pradhan Ji’ is a satirical, humorous, and hilarious Garhwali drama/play by Tribhuwan Uniyal Ji. The subject of drama/play deals with the problem of migration by Garhwalis and encroachment by Nepalis in rural Garhwal. A son of migrated Garhwali comes to his village for a certificate from Pradhan (village council chief). The second-generation migrated Garhwali is shocked that somebody has occupied his ancestral house.  The second-generation migrated Garhwali is furious about a Nepali occupying his own house without his permission. The second-generation migrated Garhwali threatens the Nepali that he will complain to the Gram Pradhan (village council chief). It is more than a shock for second-generation migrated Garhwali by knowing that Nepali (Dotiyal) is the Gram Pradhan of the village.
     The spoofy, comical, and uproarious playwright (drama writer) Uniyal took the subject of the future that tomorrow this land (rural Garhwal) will be owned by other communities than Garhwalis. The dram writer uses proper uses of conflicts of interest in the sardonic, witty, and entertaining drama/play. The dialogues are satirical, humorous, and hilarious. The dialogues provide speed to the drama/play. The subject is definitely contemporary. Uniyal took every care in the characterization of characters of ironic, comical, and amusing play/drama of existing subject.
Copyright@ Bhishma Kukreti 8/10/2012
Notes on Contemporary Dramas/Plays with Satirical, Humorous, Hilarious Style; Contemporary Garhwali Dramas/Plays with Satirical, Humorous, Hilarious Style; Contemporary Uttarakhandi Dramas/Plays with Satirical, Humorous, Hilarious Style; Contemporary Uttarakhandi Dramas/Plays with Satirical, Humorous, Hilarious Style written by playwright residing in Pauri; Contemporary Mid Himalayan Dramas/Plays with Satirical, Humorous, Hilarious Style; Contemporary Mid Himalayan Dramas/Plays with Satirical, Humorous, Hilarious Style written by playwright residing in Garhwal; Contemporary Himalayan Dramas/Plays with Satirical, Humorous, Hilarious Style; Contemporary Himalayan Dramas/Plays with Satirical, Humorous, Hilarious Style by playwright residing in Himalayas; Contemporary North Indian Dramas/Plays with Satirical, Humorous, Hilarious Style; Contemporary Indian Dramas/Plays with Satirical, Humorous, Hilarious Style;  Contemporary Indian subcontinent Dramas/Plays with Satirical, Humorous, Hilarious Style; Contemporary South Asian Dramas/Plays with Satirical, Humorous, Hilarious Style; Contemporary Asian Dramas/Plays with Satirical, Humorous, Hilarious Style; Contemporary Oriental Dramas/Plays with Satirical, Humorous, Hilarious Style to be continued…
Let us celebrate hundred years of Modern Garhwali dramas!

Bhishma Kukreti

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Masteni Ji: A Satirical Drama/Play about the teacher, teaching, and education system in Rural Garhwal, India
(Critical review of Garhwali Satire Series)
                                  Bhishma Kukreti

                    Tribhuwan Uniyal is a famous Garhwali satirist and is a regular satirical columnist for ‘Khabar Sar’ a fortnight newspaper from Pauri. Uniyal created a satirical drama ‘Master Ji (documentary 2007). The satirical drama/play Master Ji is about a lady teacher resides fifty-sixty kilometers away from the school where she goes by bus on daily basis from her residence.  The lady teacher is unable to focus on teaching but she is busy with her problem of daily travel by bus from her residence to the school. Uniyal exposes various weaknesses of the education system in rural Garhwal, India. The dialogues of satirical drama are humorous and dialogues create a pace for the play.
  The satirical drama compels the audience to the education system in rural Garhwal, India.
Copyright@ Bhishma Kukreti 10/10/2012
Notes on Satirical Dramas/Plays about teacher, teaching and education system in Rural Garhwal, India; Garhwali Satirical Dramas/Plays about teacher, teaching and education system in Rural Garhwal, India; Uttarakhandi Satirical Dramas/Plays about teacher, teaching and education system in Rural Garhwal, India; mid Himalayan Satirical Dramas/Plays about teacher, teaching and education system in Rural Garhwal, India; Himalayan Satirical Dramas/Plays about teacher, teaching and education system in Rural Garhwal, India; Himalayan Satirical Dramas/Plays about teacher, teaching and education system in Rural Garhwal, India written by writer residing in rural Garhwal; Mid Himalayan Satirical Dramas/Plays about teacher, teaching and education system in Rural Garhwal, India written by writer residing in Himalaya; North Indian Satirical Dramas/Plays about teacher, teaching and education system in Rural Garhwal, India; Indian Satirical Dramas/Plays about teacher, teaching and education system in Rural Garhwal, India; Indian subcontinent Satirical Dramas/Plays about teacher, teaching and education system in Rural Garhwal, India; South Asian Satirical Dramas/Plays about teacher, teaching and education system in Rural Garhwal, India; Asian Satirical Dramas/Plays about teacher, teaching and education system in Rural Garhwal, India; Oriental Satirical Dramas/Plays about teacher, teaching and education system in Rural Garhwal, India; Oriental Satirical Dramas/Plays about teacher, teaching and education system in Rural Garhwal, India written by residing in Himalaya to be continued…

Devbhoomi,Uttarakhand

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यहां तो रोज खेत चर रहा है 'खाडू'

जितार सिंह का घर में पाला हुआ खाडू एक दिन मौका पाते ही 'उज्याड़' खाने जमन सिंह के खेत में घुस गया। जमन सिंह की पत्नी रुकमा यह कैसे बर्दाश्त कर पाती। सो, उसने खाडू को अधमरा कर दिया और फिर उसकी मौत भी हो गई। यहीं से शुरू हुआ झगड़ा, जो दोनों परिवारों को कोर्ट-कचहरी तक ले गया।

यह बानगी है लेखक-निर्देशक कुलानंद घनशाला के गढ़वाली नाटक 'उज्याड़' की, जिसका हिमगिरी सोसाइटी की ओर से शनिवार शाम ओएनजीसी के एएमएन घोष ऑडिटोरियम में मंचन किया गया। नाटक में लेखक खाडू के बहाने हमारी उस बोझिल न्यायिक प्रक्रिया को कटघरे में खड़ा करता है, जिसमें उलझकर कई घर बर्बाद हो गए। और..आखिर में होता क्या है? वही राजीनामा, जैसे इस नाटक की परिणति है।

फिर नाटक की ओर लौटें। खाडू की मौत के बाद बात गाली-गलौज से मारपीट तक जा पहुंची। नतीजा मामला ग्राम प्रधान से पटवारी तक होता हुआ आगे बढ़ गया। रुकमा की अहंकारी वृत्तिएवं जिद्दी स्वभाव के कारण रामी व जितार सिंह, रुकमा व जमन सिंह के विरुद्ध कोर्ट जा पहुंचे। मामला चलता रहा, चलता रहा और एक दिन मानसिक एवं आर्थिक रूप से खस्ताहाल हो चुके जमन सिंह का क्रोध रुकमा पर टूट पड़ा। आखिरकार रुकमा को जितार सिंह के घर जाकर माफी मांगनी पड़ी।

पर, सवाल वहीं का वहीं है। निरीह खाडू रुकमा के खेत की बिज्वाड़ की भेंट चढ़ गया, लेकिन भ्रष्टाचार रूपी खाडू किसकी भेंट चढ़ेगा, किसी को कुछ पता नहीं। नाटक में चंदा ममगाई ने गुलाबी, उर्मिला कंडवाल ने रुकमा, कुलानंद घनशाला ने पद्मा, प्रेमबल्लभ गोदियाल ने जमन सिंह, बबीता ने रामी, रतन सिंह रावत ने राजाराम, वीर सिंह रावत ने गजब सिंह, भूपेंद्र कंडारी ने प्रधान, धन सिंह गुसाई ने पटवारी, शंभूप्रसाद ममगाई ने पटवारी के चपरासी व मुकेश बड़थ्वाल ने जितार सिंह के पात्रों को जीवंत किया। प्रस्तुति नियंत्रक पुरुषोत्ताम ममगाई थे, जबकि प्रस्तुति सहयोग रामप्रसाद सुंद्रियाल, डॉ. सुनील कैंथोला, मदनमोहन डुकलान, रमेंद्र कोटनाला व रोशन धस्माना का रहा।






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Bhishma Kukreti

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                   गढ़वळि  नै जमानौ स्वांगुं (नाटकुं  )सौ सालै जात्रा

 

                        भीष्म कुकरेती

 

                     सद्यनि बिटेन गढ़वाळ विलखछणि   धर्म,संस्कृति, ब्यूंत, कौंळ(कला), अर भुगोल्या स्थितिs बान प्रसिद्ध च. लोक स्वांग ब्यून्तो/ तरीकोंम   बि गढ़वाळ बिलखणि छौ। बादी-बादण व्यवसायिक स्टार पर अर समाज हरेक स्थिति मा लोक-नाटकों तै समौ, जगा, जाति (वर्ग याने क्लास ) को हिसाब से बढ़ाणम कामयाब रैन। अब समौ मांग से बादी अपन जातीय व्यवसाय छुड़णा छन अर एक हिसाबन  सै बात बि च। 

       

        नै जमानो स्वांगुं प्रचलन ब्रिटिश शिक्षा से इ आयि।

आजौ स्वांगों तै समौ हिसाब से बंटण कठण च, किलैकि एकी समौ पर एकि परविरती नि मिलदी     

  गढ़वळि स्वांग भौं भौं किसमौ छन जन कि -

 -समाज का लोगुं  बीच स्वांग

-धार्मिक स्वांग

-इतायासो अधारो स्वांग

-ख़ास दिखणेरूं बान खिले गे स्वांग   

-परिवार्या (पारिवारिक ) स्वांग

-कै ख़ास परम्परा वळु स्वांग

-कळकळो या   तरास दिखांद स्वांग/करुण रसीय नाटक

 


-सम्भोग श्रृंगारिक नाटक

-विप्रलंभ श्रृंगारिक नाटक

-संबंधियों से प्रेम आधारित नाटक

-प्रहसन या हास्य नाटक

-प्रहसन युक्त व्यंग्यात्मक नाटक

-निखालिस व्यंग्यात्मक नाटक

- वात्सल्य मूलक नाटक

-प्रति वात्सल्य मूलक नाटक

-वीर रस युक्त नाटक

-भक्ति या स्वामी भक्ति पूर्ण आधुनिक नाटक

-अपराधिक नाटक व जासूसी नाटक

-संवेदन शील नाटक

-रहस्यात्मक या भूत आदि नाटक

-न्याय पूरक नाटक

-प्रेरणा दायक नाटक

-बाल नाटक

-हौर किसमौ नाटक 

 

जख  तलक नया जमानो स्वांगों  सवाल च भवानी दत्त थपलियालन जागर कथाs अडसारो लेकि (आधारित)  'जय विजय 'नाटक लेखिक  गढ़वळि नै जमानौ स्वांगुं पवाण लगै पण पैल ऊंको लिख्युं स्वांग 'भक्त प्रल्हाद' छ्पी (१९१२).

'बाबा जीक कपाळ क्रिया' अर 'फौन्दार कि कछेड़ी'  प्रहलाद नाटको भाग हूंदा बि मंचनो हिसाब से बिगऴयां स्वांगोंम गणे जांदन। आज बि यि स्वांग अपण चबोड़, चखन्यो, क्रूर राजनीति, क बान उथगा इ नै छन जथगा  १९१२-१ ३ म छ्या।

 

  १९३०म पौड़ीs नामी गिरामी वकील घना नन्द बहुगुणान 'समाज' नाटक लखनऊ बिटेन छपाइ।   

 विश्वम्बर दत्त उनियालs  गां -गौळो( सामाजिक) स्वांग   'बसंती' १९३२म  देहरादूनम खिले ग्याइ।

 सत्य प्रसाद रतूड़ी , देवी दत्त नौटियाल, विद्या लाल नौटियाल, मढ़कर नौटियाल (चार मित्र सूखक) लिख्युं अर विजय रतूड़ीs लिख्यां गीत वळु  नाटक 'पांखु'  १९३२म टिहरीम खिले गे।

 इश्वरी दत्त जुयालs लिख्युं स्वांग  'परिवर्तन' १९३४म  कराचीम छप। 

 भगवती प्रसाद पांथरी रच्युं 'अध : पतन' (१९४०-४१) गां -गौळो( सामाजिक) स्वांग च अर .पांथरीs रच्युं दुसरु  नाटक 'भूतों कि खोह'(१९४०) च। .

.भगवती प्रसाद चंदोलाs रच्युं  श्रमदान पर व्यंग्य करदारो  नाटक 'आज अळसो छोड़ देवा' देहरादूनम  मंचित ह्वे।

 जीत सिंह नेगी द्वारा लिखित गीत-गद्य नाटक 'भारी भूल ' १९५५-५६ मंचित ह्वे अर  १९५७म  प्रकाशित ह्वे।

  जीत सिंह नेगीs छप्यां-अणछप्यां  स्वांग जीतू  'जीतू बगडवाल' , 'राजू पोस्टमैन', 'रामी बौराणी' सबि  खिले गेन अर 1987 बिटेन 'मलेथा की कूल' नृत्य नाटिका  कु मंचन बिजां दें होंद गे।

डा. गोविन्द चातकs सात स्वांगुं खौळ (नाट्य-संग्रह ) 'जंगली फूल' 1957म छप।  'ब्वारी वहू प्रताड़ना विषयी  स्वाग च, 'द्वी हजार कि द्वी आंखी' जनानी  मनोविज्ञानs  कि कथाच; 'घात ''अंधविश्वास विरोधी, 'जंगली फूल' सामाजिक नाटक; केर(मानव अधिकार संबंधी) ; मुंडारो (अनमेल विवाह) ; 'नौनु हुंद तो' (पुत्र लालसा) वळ स्वांग छन। यी सबि गढ़वाली नाट्य विधाका गैणा (तारे) छन।

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अबोध बंधु बहुगुणाs  'छिलाs  छौळ ' बादी बादण भौणेर (शैली)  स्वांग १९५९म  ' उत्तराखंड साप्ताहिक'म छप। 

ललित मोहन थपलियालs  सबि  नाटक १९५५का पैथर खिले गेन। 'खाडू लापता' एक हंसोड्या अर चबोड्या स्वांग च (  हसी व्यंग्य मिश्रित सामाजिक नाटक); 'अन्छरियों का ताल' एक रहस्यात्मक व दार्शनिक नाटक च, 'एकीकरण' सामजिक संस्थाओं पर चमकताळ  लगन्देरू स्वांग च,  ; 'घर जवें' एक हास्य व्यंग्यात्मक नाटक च त है; 'चमत्कार' अंधविश्वास विरोधी नाटक च। 

सन अस्सी से पैलि  देहरादूनम  दामोदर थपलियालs   नाटक -मनखि, औंसी क रात, तिब्बत विजय व प्रायश्चित मंचित ह्वेन। जांमादे  मनखि व औंसी क रात' प्रकाशित हुयां छन। 


पाराशर गौड़ लिख्युं  नाटक 'औंसी कि रात'  1962म दिल्लीम मंच्याई अर पैलि दै जनान्युन कै गढ़वाळी स्वांगम पाठ ख्याल।   

जगदीश पोखरियालs रच्युं  देश भगति स्वांग  'नाची नरसिंग'  (1963)दिल्लीम मंच्याई।

मुंबईम  १९६२-६३म   दीन दयाल द्विवेदी रच्युं सामाजिक नाटक 'जागरण' मंचित्यायि।

 

लौर्ड डुनसाने कृत, उन्ना देसी (विदेशी) नाट्कौ अनुदित  'चट्टी की एक रात' (१९७०) स्वांग कु निर्देशन विश्व मोहन बडोलान कार। भीष्म कुकरेतीन येयी स्वांगो अनुवाद 'ढाबा मा एक रात' (२०१२) से कार अर  इंटरनेट माध्यमम छपायि। 

राजेन्द्र धष्मानाs रच्युं  सामजिक संस्थाओं पर चोट करदारो  'जंकजोड़ ' (१९७०) ' नाटक च त  ' अर्धग्रामेश्वर' नवाड़ी ब्यूंतदारी स्वांग ( आधनिक शैली का नाटक ) 'अर्ध ग्रामेश्वर ' (1976) सामयिक ग्रामीण व्यवस्था व प्रवासियों को  खटकरम दिखांदो।

सन १९७०-71म भीष्म कुकरेती व सम्पूर्ण बिष्ट द्वारा प्रेम चंद कृत 'कफन' को  रूपांतरित नाटक भंडारी बाग़, देहरादूनम  मंच्यायि।  .कफन पर  १९८०म  कुसुम नौटियाल द्वारा रूपांतरित नाटक दिल्लीम खिले गे।

सन 1970-71म ही भीष्म कुकरेती अर सम्पूर्ण सिंह बिष्ट को रच्युं व्यंगात्मक नाटक 'ए  ब्वे दारु पिलै दे' भंडारी बाग़, देहरादूनम मंच्यायि। 

१९७१ बिटेन  सन अस्सी तक किशोर घिल्डियाल (काली प्रकसाद घिल्डियाल) का  नाटक- 'दूणो जनम' (छुवाछूत विषयक ) ; 'रग ठग '(पुत्र-पुत्रीहीन दम्पति का संघर्ष) व 'कीडू क ब्व़े '(स्त्री त्याग व संघर्ष)  दिल्लीम खिले गेन। 

 
१९७१म  पाराशर गौड़s लिख्युं 'चोळी' (महत्वाकांक्षा सम्बन्धी ) स्वांग दिल्लीम  मंचित ह्वै।.

मदन थपलियालs अनुदित   कश्मीरी नाटक का रूपांतरित नाटक 'नाटक बन्द करो' कु मंचन दिल्ली ( १९७३)म ह्वे।

नित्यानंद मैठाणीs लिख्याँ हंसोड्या-चखन्योर्या स्वांग 'चौडंडि'च तो  'छुट्या बल्द ' (१९७५) युवा शक्ति जागरण वळु   रेडिओ नाटक च.; . 'च्यूं ' लोक कथा ब्यूंतदर्या  ( शैली) स्वांग च।; मैठाणीs हौरि  'फुलमुंडी सासू ' वहु प्रताडन विषयक;  ; 'खौल्या' (गरीबी, कुपोषण ); ना थीड माई तै (पुत्र लालसा संबंधी ), टॉम (शराब विरोधी) नामी गिरामी छन(सभी नाटक १९७५ का छन).   

चिंता मणि बडथ्वालs लिख्युं  ' टिन्चरी ' स्वांग  दिल्लीम  १९७६म  मंचित ह्वे। 

 

डा. पुष्कर नैथाणी द्वारा लिख्युं  नाटक 'अभिज्ञान शाकुंतलम' (१९७८-७९) कालिदास कु संस्कृत नाटकs उमदा अनुवाद च।.

 

स्वरूप ढौंडियालs लिख्युं नवाड़ी ब्यूंतदारी  नाटक 'अदालत' कति दें  मंचित ह्वे  (१९७९) अर स्वांग  पलायन विभीषिका दर्शान्दो  असलियत वादी नाटक च।

 

कन्हयालाल डंडरियाल द्वारा लिख्युं अर  राजेन्द्र धष्माना द्वारा रूपांतरित नाटक 'कंशानुक्रम' १९७९म  दिल्लीम मंच्यायि।.

इनि  दिल्लम  १९७० बिटेन  १९७५ तक मंचित वीरेन्द्र मोहन रतूड़ीs  'एक जौ अगने' व गिरधारी लाल कंकालs रच्युं  नाटको कु आधुनिक  गढ़वाली नाटकुंम बड़ी जगा च।

 

वैदराज गोविन्दराम पोखरियाल को संयुक्त परिवार कि विभीषिका दिखान्दो  'बंटवारो ' नाटक अस्सी कु  दशकम  प्रकाशित ह्वे।

१९८० से पैलि ब्रज मोहन कबटियाल द्वारा लिखित , निर्देशित धार्मिक गीतेय नाटक 'किष्किन्धा काण्ड' कथगा दें कोटद्वारम मंचित ह्वे।  सन 1980 से पैल ब्रज मोहन कबटियालन   'वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली', 'गंगू रमोला' 'जीतु बगड्वाल', 'बीर बाला तीलु रौतेला', 'ओड का झगड़ा' , व 'अनपढ़' जन  ऐतिहासिक व सामाजिक विषयी नाटक लिखेन  व कोटद्वारम खिले बि गेन।

डा. हरिदत्त भट्ट का  नाटक 'नौबत, 'दिवता नचा', 'ब्यो  कि बात', 'छि कख क्या'  १९८० से पैलि  प्रकाशित व मंचित ह्वेन अर  मूलत : यि  नाटक सामजिक व हसी व्यंग्य वळ स्वांग छन।   

डी.डी. सुंदरियाल लिखित ज़ात-पंत विरोधी 'जौंळ -बुरांश' (१९७९)म  चंडीगढ़म मंच्यायि।


सुरेन्द्र बलोदी द्वारा लिखित व निर्देशित नाटक 'ब्यखनि क घाम" (१९८०) एक दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक व प्रेरणादायक नाटक च।

 

 

एन. डी. लखेड़ा लिखित शराब विरोधी नाटक घुंघटो ' १९८०म  चण्डीगढ़म खिले गे।

 

डी.डी. सुंदरियाल लिखित बाल प्रताडन आधारित 'औंसी कु चांद' नाटक चण्डीगढ़म  १९८०म  मंच्यायि। 

 


पलायन विभीषिका आधारित ,डी.डी. सुंदरियालs लिख्युं   'खंद्वार ' स्वांग  १९८०म  चंडीगढ़म खिले गे। 

 

शांति स्वरुप उनियालs लिख्युं  स्त्री वीरता विषयी 'विधवा ब्योली' नाटक कु   प्रकाशन १९८० मा ह्वे अर मंचन बि ह्वे।

एई दौरान शारदा नेगी द्वारा लिखित शाहुकारी विरुद्ध नाटक ' चक्रचाळ ' मंचित ह्वे।

 

मदन बल्लभ डोभाल लिखित नाटक 'खबेस' अनेक विषय उठांदो नाटक दिल्लीम  मंचित ह्वे।

चंडीगढ़म  मंचित , १९८१ डी.डी. सुंदरियाल लिखित 'दानु दिवता बुडू केदार' द्वी  दगड्याण्यु टकराव की कहानी दर्शान्दि।

प्रसिद्ध लोक कथा 'तैड़ी तिलोगी ' पर आधरित सुंदरियाल द्वारा रूपांतरित 'धौळि का आंसू ' १९८०-१९८३ का  बीच ५-६ दें  पंजाबम खिले गे।

 

पंजाबम अस्सी का  दशकम  में एन.डी. लखेड़ा लिखित नाटक 'जग्वाळ ' (अंध विश्वास विरोधी) व 'आस निरास' (संयुक्त परिवारों का टूटना ) ; डी.डी. सुंदरियाल लिखित 'रत व्योणा'(विधवा विवाह समर्थन ), 'सरगा दिदा पाणि पाणि' (ग्रामीण भ्रस्टाचार) व तीलु रौतेली (लोक गाथा), 'जथगा डाड डाड' (सड़ी गली शिक्षा विरोध) और बलवंत रावत लिखित 'अर सपना सच ह्व़े ग्याई' नाटक पंजाबम  मंचित ह्वेन।

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सचिदानंद कांडपालs लिख्युं स्वांग  ' मीतु रौत '(1982) जो चंडीगढ़म   मंचित ह्वे यु  एक वीर रस युक्त ऐतिहासिक व लोक कथा आधारित नाटक च। 

मोहन सिंह बिष्ट द्वारा रचित अपसंस्कृति व दहेज़ कुप्रथा का  रोग आधारित 'औडळ' (१९८२) नाटक दिल्लीम मंच्याइ। 

चन्द्र शेखर नैथाणी लिखित विकलांग समस्या का नाटक ' मांगण ' १९८२ मा  दिल्लीम खिले गे।

 

कन्हया लाल डंडरियालs  दहेज़ पर चोट करदो   'स्वयंबर' नाटक १९८३म  में दिल्लीम मंचित ह्वे।

 आयि

ब्रज लाल शाह द्वारा रचित 'महाभारत' नृत्य नाटिका १९८४म  दिल्लीम  मंचित ह्वे।

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पाराशर गौड़s रच्युं  प्रायोगिक नाटक 'आन्दोलन' उत्तराखंड राज्य संघर्ष पर लिख्युं नाटक च  जो १९८०-१९८५ का बीच मंचित ह्वे। . गौड़ कु  'रिहर्सल' नाटक एक रोमांचकारी नाटक च जु दिल्लीम  मंच्यायि।

प्रेम लाल भट्ट कु   जातीय संघर्ष का 'खबेस लग्युं च रे खबेश' (१९८५) नाटक दिल्लीम खिले गे। 

अबोध बन्धु बहुगुणा लिखित (सभी नाटक १९८६म चक्रचाळ संकलित ) मा   'अंद्र ताल' नाटक प्रवासी गढ़वालियों के करूँ कथा बखान करदो  , बहुगुणा द्वारा ऐतिहासिक नाटक 'अंतिम गढ़'; गढ़वाल सभा देहरादून द्वारा मंचित ह्वे।. बहुगुणा लिखित 'चक्रचाळ' एक रेडिओ नाटक च; दुघर्या'मा विधवा पुर्नार्विवाह समर्थन च ; 'फरक '. जात पांत विरोधी, 'जीतू हरण' लोक गाथा आधारित पद्य-गद्य नाटिका; 'जोड़ घटाणो ' प्रवासियों के आत्मिक व भौतिक संघर्ष आधारित; 'कचबिटाळ' प्रवासी व वासी गढ़वालियों मध्य अन्तराल, 'काठे बिराळी ' (प्रवाशियो कि समस्या प्रधान ) ; 'किरायेदार' (खोय पाया विषय) ; कुलंगार (कुत्सित प्रवृतियों पर चोट ) ; माई को लाल (श्री देव सुमन बलिदान) , नाग मयूर (ऐतिहासिक); नौछमी नारायण (कृष्ण का  नौ रूप); सृष्ठी संभव (दार्शनिक ); 'तिलपातर' ( बदलाव) नाटक संकलित छन। 

ब्रजेन्द्र लाल शाह द्वारा लिखित नाटक 'जीतू बगडवाल' १९८६म  दिल्ली म मंचित ह्वे। 

प्रेम लाल भट्टs लिख्युं  पारिवारिक नाटक ' बडी ब्वारी' दिल्लीम मंच्यायि।

१९८७म  पुरुषोत्तम डोभाल कृत 'टिल्लू रौतेली' नाटक प्रकाशमा आयि। 

१९८६-८७मा   कुसुम नौटियालs लिख्युं , लोक कथा आधरित 'लिंडर्या छ्वारा' नाटक मंचित ह्वे।

 हरीश थपलियालs लिख्युं व निर्देशित पलायन विभीषिका विषयs  स्वांग  'हौळ कु लगाल?" (१९८७) अर हंसौड्या-चबोड़्या  नाटक 'मेरी पैलि चोरी '(१९८९) भरा नाटक 'मुंबईम मंच्यायि। .

 

दिनेश भारद्वाज व रमण कुकरेती द्वारा लिखित हास्य व्यंग्यात्मक नाटक ' बुड्या लापता' १९८५- ८७ का  बीच मुंबईम खिले गे।

भीष्म कुकरेती द्वारा लिखित 'द्वी पळया' (गढ़ ऐना, १९८९) नाटक  कंदुड़ोन   सुणनम   अर आंख्युंन दिखणम भेद बतान्दो   प्रेरणात्मक नाटक च। 

गोविन्द कपरीयालs लिख्युं अंध विश्वासों पर चोट करदारो नाटक ' मेरो नाती' (१९८९) गैरसैणम  मंचित ह्वे।.

ललित केशवानs रच्युं  ऐतिहासिक नाटक ' हरि हिंदवाण ' १९८९म दिल्लिम खिले गे। 

दिनेश भारद्वाज द्वारा लिखित लोक गाथा आधारित गीतेय  नाटक 'तिल्लु रौतेली' मुंबईम  १९८९ मा  मंचित ह्वे।

भीष्म कुकरेती द्वारा 1985म लिख्युं  राजनैतिक व्यंग्यात्मक नाटक 'बखरौं ग्वेर स्याळ' रंत रैबार (२००५) मा  प्रकाशित्यायि (प्रकाशित हुआ)। 

भगवती प्रसाद मिश्र द्वारा लिखित धार्मिक नाटक 'बाल नारायण' गढ़ ऐनाम ( मई , १९९०) छप। 

गढ़ ऐना के मई, १९९० , अंकोंम  नागेन्द्र बहुगुणा द्वारा लिखित स्थानीय शराब माफिया की पोल खोलदो  'चंदन' नाटक प्रकाशित्यायि।

मुंबईमा  सोनू पंवारs रच्युं  नाटक ' बख्त्वार बाड़ा ' १९८९- १९९० को  करीब मंचित्यायि(मंचित हुआ)।

प्रेम लाल भट्ट लिखित, गरीबी व ऋण विषयी नाटक 'नथुली' १९९०म खिले गे। 

धाद (जन. १९९१)म  डा. नरेंद्र गौनियाल को  शराब विरोधी नाटक 'शराबी' प्रकाशित्यायि। .

राजेन्द्र धष्मानाs  मराठी नाटक को  रूपान्तर 'पैसा ना ध्यला नाम च गुमान सिंग रौतेला ' कु  मंचन दिल्लीम  १९९२मा ह्वे।.

१९९२म  मंचित व ओम प्रकाश सेमवालs लिख्युं  'गरीबी' (१९९२) नाटक जो चाहो वही पाओ विषय युवाओं कुणि प्रेरणात्मक नाटक च , 'दैजू' (१९९५म  मंचित ) नाटक दहेज प्रथा को नकारने वळु नाटक च. ओम प्रकाश सेमवाल कु  नशा विरोधी नाटक 'नशा '१९९३म  मंचित्यायि।

  स्वरुप ढौंडियालs लिख्युं 'मंगतू बौळया' (१९९३) ग्रामीण आर्थिक दशा दरशान्दो असलियतवादी नाटक च। 

कुला नन्द घनशालाs रच्युं 'निखी बाग़ (१९९३) प्रशाश्कीय लाल फीताशाही , भ्रष्ट तन्त्र पर डंडा लगांदो  नाटक च।

सुरेन्द्र बलोदी द्वारा लिखित व मंचित (१९९४) नाटक ' सुरमा' स्त्री उत्पीडन व त्रास पर आधारित नाटक च अर  शराब माफिया विरोधनी टिंचरि बाई पर आधारित बलोदी कु नाटक ' ब्व़े तु फिर ऐ' १९९५म मंचित्यायि।

 

शराब की बुराईयों पर आधारित , ओम प्रकाश सेमवालs लिख्युं  नाटक ' ब्यौ' १९९५म   मंच्यायि।

ओम प्रकाश सेमवालs लिख्युं  ज़ात पांत व्यवस्था पर चोट करदारो नाटक 'भात' १९९६म मंच्याइ।.

पर्यावरण बचाणम  बौणौ   जानवरों तैं बचाण बौणै आग रुकण जन विषय  पर आधारित ओम सेमवाल कु  नाटक ' कखि लगीं आग अर कखि लग्युं बाग़' १९९७म मंचित्यायि(मंचित हुआ)। 

 सेमवाल द्वारा पुत्र जन्म को महत्व व व पुत्री जनम को महत्वहीन की मान्यता पर आधारित नाटक 'पुत्रजन्म और नामकरण' १९९७म खिले गे। 

ओम प्रकाश सेमवालs लिख्युं गां-गौळौ विषयी (   सामाजिक)  नाटक 'दगड़ी' १९९८म मंच्यायि।

वन संरक्षण पर आधारित कुला नन्द घनशालाs  लिख्युं स्वांग  'रामू पतरोल' १९९८म  मंचित ह्वे।.

ओम प्रकाश सेमवालs लिख्युं अपणो  ही रिश्तेदारों को लुठणो  विषयौ  'नौकरी'स्वांग  १९९९म मंचित्यायि(मंचित हुआ)।

भारतीय शिक्षा कु लमडदो स्तर तै दिखांदो कुलानन्द घनशालाs लिख्युं  स्वांग  कंप्लेंट (२००० )म छप।


'पागल' (ओम प्रकाश सेमवाल, २०००म मंचित ) अंधविश्वास पर चोट करदारो  नाटक च।

डा. डी.आर. पुरोहित, सचिदा नन्द कांडपाल व कृष्णा नन्द नौटियालs लिख्युं  'चक्रव्यूह ' (२००१) स्वांग क महाभारत कथा पर आधारित नाटक च जू कथगा दें मंचित ह्वे।

ओम प्रकाश सेमवाल लिखित चुनावी धांधली आधारित 'चुनाव नाटक २००१म खिले ग्यायि। 

२००१म डा. डी.आर . पुरोहित लिखित ऐतिहासक नाटक 'पाँच भै कठैत ' मंचित हवे।

 डा.डी.आर . पुरोहितs लिख्यां  'नंदा देवी जातरा (२००२), एक्लू बटोही (२००४) , इलेक्सनम  कृष्ण '(२००८) , 'गांधी बुड्या आइ (२००९), गीत औफ़ गुटका ईटर (२००९), रूपकुंड (नेशनल जिओग्राफी हेतु) नाटक प्रसिद्ध ह्वेन।   

ओम प्रकाश सेमवालs  बाल शिक्षा सुधार आधारित नाटक 'धौंस' २००२म  मंचित्यायि।

कुला नन्द घनशालाs रच्युं लिखित गढ़वाली नाटक 'सुनपट्ट' (२००२) एक हंसौण्या-चखन्यौर्या स्वांग च।   

 
 
गढ़वाळम  स्वास्थ्य सेवाओं की बिगडती दशा दर्शांदो  कुला नन्द घनसालाs लिख्युं  नाटक 'डाक्टर साब' २००४म  प्रकाशित्यायि।

महावीर सिंग कु लिख्युं  नाटक 'मुरख्या बुड्या' (२००४) एक हास्य व्यंग्यात्मक नाटक मुंबईम  मंचित्यायि।

नन्द लाल भारती टीम रचित 'पांडव गाथा ' जौंलसारी भाषा का नाटक २००५म  देहरादूनम मंचित हवे।

2005म रण बीर सिंह चौहानों लिख्युं नाटक 'हंत्या' छप।

२००५म  ओम बधानीs लिख्युं लोक गाथा नायकों -बीर भड़ नरु और बिजुला आधारित गीतेय नाटक 'डांड्यू क मैती' देहरादूनम  मंचित्यायि। 

२००५ में नवांकुर नाट्य समूह पौड़ी द्वारा रचित व भूपनेश कुमार द्वारा निर्देशित वीर गाथा आधारित नाटक 'वीर बधू देवकी' को  मंचन देहरादूनम ह्वे।

दिल्लीम   दिनेश बिजल्वाण लिखित द्वी  नाटक 'पल्टनेर चन्द्र सिंग' (२००५) व 'कैकु ब्यौ कैकु क्यौ' मंचित हुयां छन। अर 'रुमेलो' (शेक्शपियर के ओथेलो का रूपान्तर ) व 'तिल्लू रौतेली' अणछ्प्यां छन।   

मनु ढौंडियाल व हरीश बडोला लिखित 'गंगावतरण' धार्मिक आख्यानो व पर्यावरण विषयक नाटक २००७म लखनऊम खिले गे।   

डा. डी. आर. पुरोहित लिखित 'बूढ़ देवा' ,२००७म  मंचित नाटक एक मास्क लोक नाट्य रूपांतरित नाटक च। 

प्रमोद रावतs लिख्युं  'तिलाड़ी एक बिसरीं याद' नाटक को  २००७म  मंचन ह्वे।

दिनेश गुसाईं एवं दगड्यों द्वारा रच्युं 'गंगू रमोला' धार्मिक गाथा पर आधारित नाटक २००७म  देहरादूनम  मंचिते। .

ओम बधानी द्वारा लिखित वीर भड़ विषयी गीत -गद्य नाटक 'राणा घमेरू' को  मंचन २००७म  देहरादूनम ह्वे।

 

भै-बैणि प्रेम पर लोक कथा आधारित, अरविन्द नेगी द्वारा लिखित व मंचित 'अम्बा बैनोळ' (२००८) गढ़वाळि  नाटक च।

'छत्रभंग' शाक्त ध्यानी द्वारा रचित राजनैतिक,  व्यंग्यात्मक व गढ़वाळी  को पैलो  प्रतीतात्मक नाटक २००९म  मंचित ह्वे। 

कुला नन्द घनशाला द्वारा रचित व मंचित 'चिंता' (२०११) राजनैतिक खेलों पर करारो व्यंग्यात्मक नाटक च।  .कुलानन्द घनसाला रचित नाटक 'अब क्या होलु' उत्तराखंड राज्य आन्दोलन विषयक नाटक च। ; 'क्या कन तब 'हास्य व्यंग्य मिश्रित नाटक व फिल्म को विषय शक की बुराई च। 

गिरीश सुंदरियाल कृत स्वांग -खौळ ( नाटक संकलन ) 'असगार ' २०११म  प्रकाशित्यायि, जामा   'ऐली मेरी पौड़ी ' (२०११) सरकारी दफ्तरोंम  लाल फीताशाही पर कटाक्ष करदो  व्यंग्यात्मक नाटक च,  'भर्ती' बेरोजगारी व युवा समस्या विषयक नाटक च,  'पाँच साल बाद' एक राजनैतिक हंसोड्या नाटक च,  'शिल्यानाश' एक अडंदेरु ( प्रेरणादायक )नाटक च, अर 'असगार' पलायन कि विभीषिका दिखांदो नाटक च। .

ललित केशवान द्वारा संकलित नाट्य संग्रह (२०११)मा  'भस्मासुर' पुराण विषयी नाटक च, ;'एक मंथरा हैंकि' शराब विरोधी स्वांग च, 'जय बद्रीनारायण' धार्मिक; 'खेल ख़तम' भू माफिया व भू-चोरो पर आधारित ; 'लालसा' .एक सामजिक स्वांग च।
 
 

 मुंबईम बलदेव राणा को  गीत गद्य नाटक 'माधो सिंग भंडारी ' कति दें  मंचित ह्वे।  बलदेव राणान  दस का करीब नाटक मंचित करिन अर यामादे ' नंदा ज़ात यात्रा (२००९ बिटेन बरस्कुल ) एक अभिनव प्रयोग माने जांदो।
 
इनि  मुंबईम  कुंदन सिंग नेगीन बि  पर्वतीय नाट्य मंच (१९८६ बिटेन अब तक) कुणि  नाटक लेखिन अर दिखणेरूं तै    'लाटो ब्यौ' और 'मामा बाबु' खूब पसंद ऐन।

श्रीनगर व अन्य स्थानों में मंचित 'जयद्रथ वध' /कमल व्यूह' भी अपण आपम  एक जण्यु-मण्यु    नाटक च।

डा. नन्द किशोर हटवालs द्वी नाटक मंचित ह्वेन।

 औजी समाज की खस्ता हालात अर ख़तम हुन्दि गढ़वाळि  संस्कृतिव  अपसंस्कृति को आण  पर विचार करदारो गिरीश सुंदरियालs स्वांग 'कब खुललि रात' सन 2012म छप।   
 
 यूं नाटकों अध्ययन से साफ़ च बल गढ़वाळि नाटक  गढ़वाळि साहित्यम कविता से बि बड़ो असरदार साहित्य च। सन 1912 बिटेन पवाण लगांदी गढ़वाळि नाटक विधा एक महत्वपूर्ण विधा च। गढ़वाळि नाटकुंम भौं-भौं विषय, बावन त्रेपन  भाव पाए गेन। नाटक रचंदेरून सामयिकता अर नाट्य साहित्यौ दगड़ पूरो तालमेल  कार।  सबि ना सै पण जादातर नाटककारोन प्लौट, थीम, चरित्र चित्रण, विचार, प्रतीकों से बिम्ब बणाण, बचऴयाण (बात चीत), समय , वर्ग, रस अर भावो  आदि पर  पूरो ध्यान दे।           


Copyright@ Bhishma Kukreti 18 /02/2013


 सन्दर्भ: भीष्म कुकरेती द्वारा 150 से जादा गढ़वाळि नाटकों की समीक्षा

 http://www.merapahadforum.com/uttarakhand-language-books-literature-and-words/information-about-garhwali-plays/60/



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Regards
B. C. Kukreti
 

 

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